ब्रह्माजी बोले- [हे नारद!] महेश्वरके कहे गये इस वचनको आदरपूर्वक सुनकर वीरभद्र बहुत सन्तुष्ट हुए। उन्होंने महेश्वरको प्रणाम किया ॥ 1 ॥ तत्पश्चात् त्रिशूलधारी उन देवाधिदेवकी आजाको शिरोधार्य करके वीरभद्र वहाँसे शीघ्र ही दक्षके यज्ञकी ओर चल पड़े। भगवान् शिवने प्रलयाग्निके समान करोड़ों महावीर गणको [ केवल] शोभाके लिये उनके साथ भेज दिया ।। 2-3 ।।
वे बलशाली तथा वीर गण वीरभद्रके आगे और पीछे भी चल रहे थे। कौतूहल करते हुए वीरभद्रसहित जो लाखों गण थे, वे कालके भी काल शिवके पार्षद थे, वे सब रुद्रके ही समान थे ।। 4-5 ।।
महात्मा वीरभद्र शिवके समान ही वेशभूषा धारण करके रथपर बैठकर उन गणोंके साथ चल पड़े। उनकी एक हजार भुजाएँ थीं, उनके शरीरमें नागराज लिपटे हुए थे। वे प्रबल और भयंकर दिखायी पड़ रहे थे ॥ 6 ॥
उनका रथ आठ लाख हाथ विस्तारवाला था। उसमें दस हजार सिंह जुते हुए थे, जो प्रयत्नपूर्वक | रथको खींच रहे थे ॥ 7 ॥उसी प्रकार बहुत से प्रबल सिंह, शार्दूल, मगर, मत्स्य और हजारों हाथी उनके पार्श्वरक्षक थे ॥ 8 ॥ इस प्रकार जब दक्षके विनाशके लिये वीरभद्रने प्रस्थान किया, उस समय कल्पवृक्षोंसे फूलोंकी वर्षा होने लगी। सभी गणोंने शिवजीके कार्यके लिये चेष्टा करनेवाले वीरभद्रकी स्तुति की और उस यात्राके उत्सवमें कुतूहल करने लगे ।। 9-10 ॥
उसी समय काली, कात्यायनी, ईशानी, चामुण्डा, मुण्डमर्दिनी, भद्रकाली, भद्रा, त्वरिता तथा वैष्णवी इन नौ दुर्गाओं तथा समस्त भूतगणोंके साथ महाकाली दक्षका विनाश करनेके लिये चल पड़ीं ।। 11-12 ।।
शिवकी आज्ञाके पालक, डाकिनी, शाकिनी, भूत, प्रमथ, गुह्यक, कूष्माण्ड, पर्पट, चटक, ब्रह्मराक्षस, भैरव तथा क्षेत्रपाल आदि वीर दक्षके यज्ञका विनाश करनेके लिये तुरंत चल दिये ।। 13-14
उसी प्रकार चौंसठ गणोंके साथ योगिनियोंका मण्डल भी सहसा कुपित होकर दक्षयज्ञका विनाश करनेके लिये निकल पड़ा ॥ 15 ॥
हे नारद! उन सभी गणोंके धैर्यशाली तथा महाबली मुख्य गणका जो समूह था, उसकी को सुनिये ॥ 16 ll
शंकुकर्ण [नामक ] गणेश्वर दस करोड़ गणोंके साथ, केकराक्ष दस करोड़ गणोंके साथ तथा विकृत आठ करोड़ गणोंके साथ चल पड़े ॥ 17 ॥
हे तात! हे मुने! विशाख चौंसठ करोड़, पारियात्रिक नौ करोड़, सर्वाकक छ: करोड़ बीर विकृतानन भी छ: करोड़, गणोंमें श्रेष्ठ ज्वालकेश बारह करोड़, समदज्जीमान् सात करोड़, दुद्रभ आठ करोड़, कपालीश पाँच करोड़, सन्दारक छ: करोड़, कोटि और कुण्ड एक-एक करोड़, गणोंमें उत्तम विष्टम्भ चौंसठ करोड़ वीरोंके साथ, सन्नाद, पिप्पल एक हजार करोड़, आवेशन तथा चन्द्रतापन आठ आठ करोड़, गणाधीश महावेश हजार करोड़ गणोंके साथ, कुंडी बारह करोड़ और गणश्रेष्ठ पर्वतक भी बारह करोड़ गणोंके साथ दक्षयज्ञका विध्वंस करनेके लिये चल पड़े ॥ 18-23 ॥काल, कालक और महाकाल सौ-सौ करोड़ | गणोंको साथ लेकर दक्षयज्ञकी ओर चल पड़े ॥ 24 ॥ हे तात! अग्निकृत् सौ करोड़, अग्निमुख एक करोड़, आदित्यमूर्धा तथा घनावह एक-एक करोड़, सन्नाह सौ करोड़, गण कुमुद एक करोड़, गणेश्वर अमोध तथा कोकिल एक-एक करोड़ और गणाधी काष्ठागूढ, सुकेशी, वृषभ तथा सुमन्त्रक चौंसठ चौंसठ करोड़ गणोंको साथ लेकर चले ॥ 25-27 ॥
हे तात! गणोंमें श्रेष्ठ काकपादोदर साठ करोड़, | गणश्रेष्ठ सन्तानक साठ करोड़, महाबल तथा पुंगव नौ-नौ करोड़, गणाधीश मधुपिंग नौ करोड़ और नील तथा पूर्णभद्र नब्बे करोड़ गणोंको साथ लेकर चल पड़े। गणराज चतुर्वक्त्र सौ करोड़ गणोंको साथ लेकर चला ॥ 28-31 ॥
हे मुने। गणेश्वर विरूपाक्ष, तालकेतु, षडास्य | तथा गणेश्वर पंचास्य चौंसठ करोड़, संवर्तक, स्वयं प्रभु कुलीश लोकान्तक, दीप्तात्मा, दैत्यान्तक एवं शिवके परम प्रिय गण श्रीमान् भृंगी, रिटि, अशनि, भालक और सहस्रक चौंसठ करोड़ गणोंके साथ चले ।। 32-34 ॥
महावीर तथा वीरेश्वर वीरभद्र भी शिवजीकी आज्ञासे बीसों, सैकड़ों तथा हजारों करोड़ गणोंसे घिरे हुए वहाँ पहुँचे ll 35 ll
वीरभद्र हजार करोड़ भूतों तथा तीन करोड़ रोमजनित श्वगणोंके साथ शीघ्र ही वहाँ पहुँच गये ॥ 36 ॥
उस समय भेरियोंकी गम्भीर ध्वनि होने लगी।। शंख बजने लगे। जटाहर, मुखों तथा श्रृंगोंसे अनेक प्रकारके शब्द होने लगे। उस महोत्सवमें चित्तको आकर्षित एवं सुखानुभूति उत्पन्न करनेवाले बाजों के शब्द चारों ओर व्याप्त हो गये ।। 37-38 ॥
हे महामुने! सेनासहित महाबली वीरभद्रकी उस यात्रामें अनेक प्रकारके सुखदायक शकुन होने लगे ॥ 39 ॥