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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 2 (सती खण्ड) , अध्याय 33 - Sanhita 2, Khand 2 (सती खण्ड) , Adhyaya 33

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गणोंसहित वीरभद्र और महाकालीका दक्षयज्ञ विध्वंसके लिये प्रस्थान

ब्रह्माजी बोले- [हे नारद!] महेश्वरके कहे गये इस वचनको आदरपूर्वक सुनकर वीरभद्र बहुत सन्तुष्ट हुए। उन्होंने महेश्वरको प्रणाम किया ॥ 1 ॥ तत्पश्चात् त्रिशूलधारी उन देवाधिदेवकी आजाको शिरोधार्य करके वीरभद्र वहाँसे शीघ्र ही दक्षके यज्ञकी ओर चल पड़े। भगवान् शिवने प्रलयाग्निके समान करोड़ों महावीर गणको [ केवल] शोभाके लिये उनके साथ भेज दिया ।। 2-3 ।।

वे बलशाली तथा वीर गण वीरभद्रके आगे और पीछे भी चल रहे थे। कौतूहल करते हुए वीरभद्रसहित जो लाखों गण थे, वे कालके भी काल शिवके पार्षद थे, वे सब रुद्रके ही समान थे ।। 4-5 ।।

महात्मा वीरभद्र शिवके समान ही वेशभूषा धारण करके रथपर बैठकर उन गणोंके साथ चल पड़े। उनकी एक हजार भुजाएँ थीं, उनके शरीरमें नागराज लिपटे हुए थे। वे प्रबल और भयंकर दिखायी पड़ रहे थे ॥ 6 ॥

उनका रथ आठ लाख हाथ विस्तारवाला था। उसमें दस हजार सिंह जुते हुए थे, जो प्रयत्नपूर्वक | रथको खींच रहे थे ॥ 7 ॥उसी प्रकार बहुत से प्रबल सिंह, शार्दूल, मगर, मत्स्य और हजारों हाथी उनके पार्श्वरक्षक थे ॥ 8 ॥ इस प्रकार जब दक्षके विनाशके लिये वीरभद्रने प्रस्थान किया, उस समय कल्पवृक्षोंसे फूलोंकी वर्षा होने लगी। सभी गणोंने शिवजीके कार्यके लिये चेष्टा करनेवाले वीरभद्रकी स्तुति की और उस यात्राके उत्सवमें कुतूहल करने लगे ।। 9-10 ॥

उसी समय काली, कात्यायनी, ईशानी, चामुण्डा, मुण्डमर्दिनी, भद्रकाली, भद्रा, त्वरिता तथा वैष्णवी इन नौ दुर्गाओं तथा समस्त भूतगणोंके साथ महाकाली दक्षका विनाश करनेके लिये चल पड़ीं ।। 11-12 ।।

शिवकी आज्ञाके पालक, डाकिनी, शाकिनी, भूत, प्रमथ, गुह्यक, कूष्माण्ड, पर्पट, चटक, ब्रह्मराक्षस, भैरव तथा क्षेत्रपाल आदि वीर दक्षके यज्ञका विनाश करनेके लिये तुरंत चल दिये ।। 13-14

उसी प्रकार चौंसठ गणोंके साथ योगिनियोंका मण्डल भी सहसा कुपित होकर दक्षयज्ञका विनाश करनेके लिये निकल पड़ा ॥ 15 ॥

हे नारद! उन सभी गणोंके धैर्यशाली तथा महाबली मुख्य गणका जो समूह था, उसकी को सुनिये ॥ 16 ll

शंकुकर्ण [नामक ] गणेश्वर दस करोड़ गणोंके साथ, केकराक्ष दस करोड़ गणोंके साथ तथा विकृत आठ करोड़ गणोंके साथ चल पड़े ॥ 17 ॥

हे तात! हे मुने! विशाख चौंसठ करोड़, पारियात्रिक नौ करोड़, सर्वाकक छ: करोड़ बीर विकृतानन भी छ: करोड़, गणोंमें श्रेष्ठ ज्वालकेश बारह करोड़, समदज्जीमान् सात करोड़, दुद्रभ आठ करोड़, कपालीश पाँच करोड़, सन्दारक छ: करोड़, कोटि और कुण्ड एक-एक करोड़, गणोंमें उत्तम विष्टम्भ चौंसठ करोड़ वीरोंके साथ, सन्नाद, पिप्पल एक हजार करोड़, आवेशन तथा चन्द्रतापन आठ आठ करोड़, गणाधीश महावेश हजार करोड़ गणोंके साथ, कुंडी बारह करोड़ और गणश्रेष्ठ पर्वतक भी बारह करोड़ गणोंके साथ दक्षयज्ञका विध्वंस करनेके लिये चल पड़े ॥ 18-23 ॥काल, कालक और महाकाल सौ-सौ करोड़ | गणोंको साथ लेकर दक्षयज्ञकी ओर चल पड़े ॥ 24 ॥ हे तात! अग्निकृत् सौ करोड़, अग्निमुख एक करोड़, आदित्यमूर्धा तथा घनावह एक-एक करोड़, सन्नाह सौ करोड़, गण कुमुद एक करोड़, गणेश्वर अमोध तथा कोकिल एक-एक करोड़ और गणाधी काष्ठागूढ, सुकेशी, वृषभ तथा सुमन्त्रक चौंसठ चौंसठ करोड़ गणोंको साथ लेकर चले ॥ 25-27 ॥

हे तात! गणोंमें श्रेष्ठ काकपादोदर साठ करोड़, | गणश्रेष्ठ सन्तानक साठ करोड़, महाबल तथा पुंगव नौ-नौ करोड़, गणाधीश मधुपिंग नौ करोड़ और नील तथा पूर्णभद्र नब्बे करोड़ गणोंको साथ लेकर चल पड़े। गणराज चतुर्वक्त्र सौ करोड़ गणोंको साथ लेकर चला ॥ 28-31 ॥

हे मुने। गणेश्वर विरूपाक्ष, तालकेतु, षडास्य | तथा गणेश्वर पंचास्य चौंसठ करोड़, संवर्तक, स्वयं प्रभु कुलीश लोकान्तक, दीप्तात्मा, दैत्यान्तक एवं शिवके परम प्रिय गण श्रीमान् भृंगी, रिटि, अशनि, भालक और सहस्रक चौंसठ करोड़ गणोंके साथ चले ।। 32-34 ॥

महावीर तथा वीरेश्वर वीरभद्र भी शिवजीकी आज्ञासे बीसों, सैकड़ों तथा हजारों करोड़ गणोंसे घिरे हुए वहाँ पहुँचे ll 35 ll

वीरभद्र हजार करोड़ भूतों तथा तीन करोड़ रोमजनित श्वगणोंके साथ शीघ्र ही वहाँ पहुँच गये ॥ 36 ॥

उस समय भेरियोंकी गम्भीर ध्वनि होने लगी।। शंख बजने लगे। जटाहर, मुखों तथा श्रृंगोंसे अनेक प्रकारके शब्द होने लगे। उस महोत्सवमें चित्तको आकर्षित एवं सुखानुभूति उत्पन्न करनेवाले बाजों के शब्द चारों ओर व्याप्त हो गये ।। 37-38 ॥

हे महामुने! सेनासहित महाबली वीरभद्रकी उस यात्रामें अनेक प्रकारके सुखदायक शकुन होने लगे ॥ 39 ॥

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] सतीचरित्रवर्णन, दक्षयज्ञविध्वंसका संक्षिप्त वृत्तान्त तथा सतीका पार्वतीरूपमें हिमालयके यहाँ जन्म लेना
  2. [अध्याय 2] सदाशिवसे त्रिदेवोंकी उत्पत्ति, ब्रह्माजीसे देवता आदिकी सृष्टिके पश्चात् देवी सन्ध्या तथा कामदेवका प्राकट्य
  3. [अध्याय 3] कामदेवको विविध नामों एवं वरोंकी प्राप्ति कामके प्रभावसे ब्रह्मा तथा ऋषिगणोंका मुग्ध होना, धर्मद्वारा स्तुति करनेपर भगवान् शिवका प्राकट्य और ब्रह्मा तथा ऋषियोंको समझाना, ब्रह्मा तथा ऋषियोंसे अग्निष्वात्त आदि पितृगणोंकी उत्पत्ति, ब्रह्माद्वारा कामको शापकी प्राप्ति तथा निवारणका उपाय
  4. [अध्याय 4] कामदेवके विवाहका वर्णन
  5. [अध्याय 5] ब्रह्माकी मानसपुत्री कुमारी सन्ध्याका आख्यान
  6. [अध्याय 6] सन्ध्याद्वारा तपस्या करना, प्रसन्न हो भगवान् शिवका उसे दर्शन देना, सन्ध्याद्वारा की गयी शिवस्तुति, सन्ध्याको अनेक वरोंकी प्राप्ति तथा महर्षि मेधातिथिके यज्ञमें जानेका आदेश प्राप्त होना
  7. [अध्याय 7] महर्षि मेधातिथिकी यज्ञाग्निमें सन्ध्याद्वारा शरीरत्याग, पुनः अरुन्धतीके रूपमें ज्ञाग्नि उत्पत्ति एवं वसिष्ठमुनिके साथ उसका विवाह
  8. [अध्याय 8] कामदेवके सहचर वसन्तके आविर्भावका वर्णन
  9. [अध्याय 9] कामदेवद्वारा भगवान् शिवको विचलित न कर पाना, ब्रह्माजीद्वारा कामदेवके सहायक मारगणोंकी उत्पत्ति; ब्रह्माजीका उन सबको शिवके पास भेजना, उनका वहाँ विफल होना, गणोंसहित कामदेवका वापस अपने आश्रमको लौटना
  10. [अध्याय 10] ब्रह्मा और विष्णुके संवादमें शिवमाहात्म्यका वर्णन
  11. [अध्याय 11] ब्रह्माद्वारा जगदम्बिका शिवाकी स्तुति तथा वरकी प्राप्ति
  12. [अध्याय 12] दक्षप्रजापतिका तपस्याके प्रभावसे शक्तिका दर्शन और उनसे रुद्रमोहनकी प्रार्थना करना
  13. [अध्याय 13] ब्रह्माकी आज्ञासे दक्षद्वारा मैथुनी सृष्टिका आरम्भ, अपने पुत्र हर्यश्वों तथा सबलाश्वोंको निवृत्तिमार्गमें भेजने के कारण दक्षका नारदको शाप देना
  14. [अध्याय 14] दक्षकी साठ कन्याओंका विवाह, दक्षके यहाँ देवी शिवा (सती) - का प्राकट्य, सतीकी बाललीलाका वर्णन
  15. [अध्याय 15] सतीद्वारा नन्दा व्रतका अनुष्ठान तथा देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  16. [अध्याय 16] ब्रह्मा और विष्णुद्वारा शिवसे विवाहके लिये प्रार्थना करना तथा उनकी इसके लिये स्वीकृति
  17. [अध्याय 17] भगवान् शिवद्वारा सतीको वरप्राप्ति और शिवका ब्रह्माजीको दक्ष प्रजापतिके पास भेजना
  18. [अध्याय 18] देवताओं और मुनियोंसहित भगवान् शिवका दक्षके घर जाना, दक्षद्वारा सबका सत्कार एवं सती तथा शिवका विवाह
  19. [अध्याय 19] शिवका सतीके साथ विवाह, विवाहके समय शम्भुकी मायासे ब्रह्माका मोहित होना और विष्णुद्वारा शिवतत्त्वका निरूपण
  20. [अध्याय 20] ब्रह्माजीका 'रुद्रशिर' नाम पड़नेका कारण, सती एवं शिवका विवाहोत्सव, विवाहके अनन्तर शिव और सतीका वृषभारूढ़ हो कैलासके लिये प्रस्थान
  21. [अध्याय 21] कैलास पर्वत पर भगवान् शिव एवं सतीकी मधुर लीलाएँ
  22. [अध्याय 22] सती और शिवका बिहार- वर्णन
  23. [अध्याय 23] सतीके पूछनेपर शिवद्वारा भक्तिकी महिमा तथा नवधा भक्तिका निरूपण
  24. [अध्याय 24] दण्डकारण्यमें शिवको रामके प्रति मस्तक झुकाते देख सतीका मोह तथा शिवकी आज्ञासे उनके द्वारा रामकी परीक्षा
  25. [अध्याय 25] श्रीशिवके द्वारा गोलोकधाममें श्रीविष्णुका गोपेशके पदपर अभिषेक, श्रीरामद्वारा सतीके मनका सन्देह दूर करना, शिवद्वारा सतीका मानसिक रूपसे परित्याग
  26. [अध्याय 26] सतीके उपाख्यानमें शिवके साथ दक्षका विरोधवर्णन
  27. [अध्याय 27] दक्षप्रजापतिद्वारा महान् यज्ञका प्रारम्भ, यज्ञमें दक्षद्वारा शिवके न बुलाये जानेपर दधीचिद्वारा दक्षकी भर्त्सना करना, दक्षके द्वारा शिव-निन्दा करनेपर दधीचिका वहाँसे प्रस्थान
  28. [अध्याय 28] दक्षयज्ञका समाचार पाकर एवं शिवकी आज्ञा प्राप्तकर देवी सतीका शिवगणोंके साथ पिताके यज्ञमण्डपके लिये प्रस्थान
  29. [अध्याय 29] यज्ञशाला में शिवका भाग न देखकर तथा दक्षद्वारा शिवनिन्दा सुनकर क्रुद्ध हो सतीका दक्ष तथा देवताओंको फटकारना और प्राणत्यागका निश्चय
  30. [अध्याय 30] दक्षयज्ञमें सतीका योगाग्निसे अपने शरीरको भस्म कर देना, भृगुद्वारा यज्ञकुण्डसे ऋभुओंको प्रकट करना, ऋभुओं और शंकरके गणोंका युद्ध, भयभीत गणोंका पलायित होना
  31. [अध्याय 31] यज्ञमण्डपमें आकाशवाणीद्वारा दक्षको फटकारना तथा देवताओंको सावधान करना
  32. [अध्याय 32] सतीके दग्ध होनेका समाचार सुनकर कुपित हुए शिवका अपनी जटासे वीरभद्र और महाकालीको प्रकट करके उन्हें यज्ञ विध्वंस करनेकी आज्ञा देना
  33. [अध्याय 33] गणोंसहित वीरभद्र और महाकालीका दक्षयज्ञ विध्वंसके लिये प्रस्थान
  34. [अध्याय 34] दक्ष तथा देवताओंका अनेक अपशकुनों एवं उत्पात सूचक लक्षणोंको देखकर भयभीत होना
  35. [अध्याय 35] दक्षद्वारा यज्ञकी रक्षाके लिये भगवान् विष्णुसे प्रार्थना, भगवान्‌का शिवद्रोहजनित संकटको टालनेमें अपनी असमर्थता बताते हुए दक्षको समझाना तथा सेनासहित वीरभद्रका आगमन
  36. [अध्याय 36] युद्धमें शिवगणोंसे पराजित हो देवताओंका पलायन, इन्द्र आदिके पूछनेपर बृहस्पतिका रुद्रदेवकी अजेयता बताना, वीरभद्रका देवताओंको बुद्धके लिये ललकारना, श्रीविष्णु और वीरभद्रकी बातचीत
  37. [अध्याय 37] गणसहित वीरभद्रद्वारा दक्षयज्ञका विध्वंस, दक्षवध, वीरभद्रका वापस कैलास पर्वतपर जाना, प्रसन्न भगवान् शिवद्वारा उसे गणाध्यक्ष पद प्रदान करना
  38. [अध्याय 38] दधीचि मुनि और राजा ध्रुवके विवादका इतिहास, शुक्राचार्यद्वारा दधीचिको महामृत्युंजयमन्त्रका उपदेश, मृत्युंजयमन्त्र के अनुष्ठानसे दधीचिको अवध्यताकी प्राप्ति
  39. [अध्याय 39] श्रीविष्णु और देवताओंसे अपराजित दधीचिद्वारा देवताओंको शाप देना तथा राजा ध्रुवपर अनुग्रह करना
  40. [अध्याय 40] देवताओंसहित ब्रह्माका विष्णुलोकमें जाकर अपना दुःख निवेदन करना, उन सभीको लेकर विष्णुका कैलासगमन तथा भगवान् शिवसे मिलना
  41. [अध्याय 41] देवताओं द्वारा भगवान् शिवकी स्तुति
  42. [अध्याय 42] भगवान् शिवका देवता आदिपर अनुग्रह, दक्षयज्ञ मण्डपमें पधारकर दक्षको जीवित करना तथा दक्ष और विष्णु आदिद्वारा शिवकी स्तुति
  43. [अध्याय 43] भगवान् शिवका दक्षको अपनी भक्तवत्सलता, ज्ञानी भक्तकी श्रेष्ठता तथा तीनों देवोंकी एकता बताना, दक्षका अपने यज्ञको पूर्ण करना, देवताओंका अपने-अपने लोकोंको प्रस्थान तथा सतीखण्डका उपसंहार और माहात्म्य