ऋषिगण बोले- हे प्रभो! गंगा किस स्थानसे जलरूपमें प्रवाहित होकर प्रकट हुई? हे प्रभो! उनका माहात्म्य सबकी अपेक्षा अधिक क्यों हुआ ? इसे बताइये। हे व्यासशिष्य ! जिन दुष्ट ब्राह्मणोंने महर्षि गौतमको दुःख दिया, बादमें उन्हें क्या फल मिला, उसे कहिये ? ॥ 12 ॥
सूतजी बोले- हे ब्राह्मणो! उस समय गौतमके द्वारा प्रार्थना करनेपर स्वयं गंगाजी शीघ्र ही उस ब्रह्मगिरिसे प्रकट हुई ॥ 3 ॥ गूलर वृक्षकी शाखासे उनकी धारा निकली, तब सुप्रसिद्ध मुनि गौतमने आनन्दसे उसमें स्नान किया ॥ 4 ॥ गौतमके जो शिष्य थे तथा अन्य आये हुए जो महर्षिगण थे, उन सभीने वहाँपर प्रसन्नतापूर्वक स्नान किया। तभीसे उस स्थानका नाम गंगाद्वार प्रसिद्ध हो गया है मुनियो इस रमणीय क्षेत्रका दर्शन करनेसे सम्पूर्ण पापोंका अपहरण हो जाता है ।। 5-6 ।।
उसके बाद [महर्षि गौतमसे द्वेष करनेवाले से सभी ऋषि भी स्नान करनेके लिये वहाँ आ गये, तब उन्हें देखकर वे गंगाजी शीघ्रतासे अन्तर्धान हो गयीं ॥ 7 ॥ महर्षि गौतमने हाथ जोड़कर सिर झुकाकर गंगाकी वारंवार स्तुति करते हुए शीघ्रता से कहा ऐसा मत कीजिये, ऐसा मत कीजिये ॥ 8॥
गौतम बोले- [हे माता!] ये सभी महर्षि श्रीमदमें अन्धे हों, सज्जन हों अथवा असज्जन हों, [परंतु मेरे ] इस पुण्यके प्रभावसे आप इन्हें दर्शन दीजिये ॥ 9॥
सूतजी बोले- हे ऋषिश्रेष्ठो ! उसके बाद आकाश मण्डलसे गंगाजीकी वाणी प्रतिध्वनित हुई, आपलोग गंगाजीके उस उत्तम कथनको सुनिये - ॥ 10 ॥गंगाजी बोलीं- ये अत्यन्त दुष्ट, कृतघ्न, स्वामी द्रोह करनेवाले, धूर्त और पाखण्डी हैं. इन्हें देखनातक नहीं चाहिये ॥ 11 ॥
गौतम बोले हे मातः! महापुरुषोंके इस कथनको आप सुनिये और भगवान् शंकरके वचनको सत्य कीजिये।' इस पृथ्वीपर जो मनुष्य अपकार करनेवालोंका भी उपकार ही करता है, मैं उससे पवित्र होता हूँ' यह भगवान्का वचन है ।। 12-13 ॥
सूतजी बोले- महात्मा गौतममुनिका यह वचन | सुनकर आकाशमण्डलसे पुनः गंगाजीका कथन ध्वनित हुआ - हे गौतम महर्षे! आप सत्य और कल्याणकारी वचन कह रहे हैं, फिर भी ये संसारको शिक्षा देनेके लिये प्रायश्चित्त करें। विशेषरूपसे आपके अधीन हुए इन लोगोंको आपकी आज्ञासे एक सौ एक बार इस पर्वतकी परिक्रमा करनी चाहिये। हे मुने! तभी इन दुराचारियोंको मेरे दर्शनका विशेष अधिकार प्राप्त होगा, यह मैंने सत्य कहा है ॥ 14-17 ॥
[पुनः सूतजी बोले-] गंगाजीकी यह बात सुनकर उन सभी दीन ऋषियोंने हमारे अपराधको क्षमा करें' गौतमसे इस प्रकार प्रार्थनाकर पर्वतकी परिक्रमा की। उन ऋषियोंके द्वारा ऐसा कर लेनेपर उन गौतमने गंगाजीकी आज्ञासे गंगाद्वारके नीचेवाले स्थानका नाम कुशावर्त रखा ॥ 18-19 ॥
उसके बाद वे गंगाजी गौतमको प्रसन्न करनेके लिये वहाँ पुनः प्रकट हुई, तबसे वह श्रेष्ठ तीर्थ कुशावर्त नामसे प्रसिद्ध हुआ। वहाँ स्नान करनेवाला मनुष्य अपने सभी पापोंका त्याग करके दुर्लभ विज्ञान प्राप्तकर शीघ्र ही मोक्षका अधिकारी हो जाता है । ll 20-21 ॥
इसके बाद जब गौतम एवं अन्य ऋषिगण परस्पर मिले, उस समय जिन्होंने पहले कृतघ्नता की थी, वे लोग लखित हो गये॥ 22 ॥
ऋषिगण बोले- हे सूतजी! हमलोगोंने तो इसे दूसरी तरहसे सुना है, हम उसका वर्णन करते हैं। गौतमने क्रुद्ध होकर उन्हें शाप दिया था- आप ऐसा जानिये ॥ 23 ॥
सूतजी बोले- हे द्विजो कल्पभेदके कारण वह भी सत्य है, हे सुव्रतो! मैं उस कथाका भी विशेष रूपसे वर्णन करता हूँ ॥ 24 ॥गौतमने उन ऋषियोंको दुर्भिक्षसे पीड़ित देखकर महात्मा वरुणको उद्देश्यकर बहुत बड़ा तप किया। उसके अनन्तर वरुणकी कृपासे उन्होंने अक्षय जल प्राप्त किया और तत्पश्चात् बहुत से धान तथा जौ बोवाये। [हे ऋषिश्रेष्ठो!] इस प्रकार उन परोपकारी महर्षि गौतमने अपने तपोबलसे उनके भोजनका प्रबन्ध किया ।। 25-27 ॥
किसी समय उनकी दुष्ट स्त्रियाँ जब जल लेनेके प्रसंगमें [अपने ही व्यवहारके कारण] अपमानित हो गयीं। तब वे क्रुद्ध होकर अपने पतियोंसे गौतमके प्रति ईर्ष्यायुक्त वचन बोलीं। तब दुष्टबुद्धिवाले तथा कुटिल अन्तःकरणवाले उन ब्राह्मणोंने एक कृत्रिम गाय बनाकर उनकी फसलको चरनेके लिये छोड़ दिया ।। 28-29 ।।
तब गौतमने अपनी फसलको खानेमें आसक्त उस गायको देखकर उसे धीरेसे हटाते हुए एक तिनकेसे मारा। हे विप्रो ! वह गाय तिनकेके स्पर्शमात्रसे भूमिपर गिर पड़ी और होनहारवश क्षणभरमें मर गयी । ll 30-31 ॥
तब वहाँके कुत्सित विचारवाले सभी ऋषिगण एकत्र होकर कहने लगे कि गौतमने गाय मार डाली ॥ 32 ॥
इसके बाद शिवभक्त गौतम 'गाय मर गयी' ऐसा सोचकर भयभीत हो गये और अपनी पत्नी अहल्या तथा शिष्योंसहित आश्चर्यमें पड़ गये। उसके पश्चात् उस कृत्रिम गायके विषयमें जानकर वे गौतम कुपित हो उठे और तब मुनिश्रेष्ठ गौतमने उन सभी ऋषियोंको शाप दे दिया । ll 33-34 ॥
गौतम बोले- तुम सभी दुरात्मा हो, मुझ शिवभक्तको इस प्रकार विशेष दुःख देनेके कारण वेदसे विमुख हो जाओ। आजसे वेदोक्त सत्कर्ममें और विशेषकर मुक्ति प्रदान करनेवाले शैवमार्गमें तुमलोगोंकी श्रद्धा नहीं रहेगी ॥ 35-36 ॥
आजसे वेदबहिष्कृत एवं मोक्षमार्गसे रहित बुरे मार्ग में तुमलोगोंकी प्रवृत्ति रहेगी। आजसे तुमलोगोंके मस्तकमें मृत्तिकाका तिलक होगा और हे ब्राह्मणो ! माथेपर मृत्तिकाका लेप करनेवाले तुमलोग नरकगामी होओगे ।। 37-38 ।।तुमलोग शिवको परदेवता नहीं मानोगे और उन अद्वैत सदाशिवको अन्य देवताओंके समान समझोगे ॥ 39 ॥
शिवपूजा आदि कर्ममें, शिवनिष्ठ भक्तोंमें एवं शिव तुमलोगों की प्रीति कभी भी नहीं होगी ॥ 403 आज मैंने जितने दुःखदायी शाप तुमलोगोंको दिये है, वे सब सर्वदा तुमलोगोंकी सन्तानोंको भी प्राप्त होंगे ॥ 41 ॥
हे द्विजो ! तुमलोगोंके पुत्र-पौत्र आदि शिवभक्तिसे विमुख रहेंगे और तुमलोग अपने पुत्रोंके साथ निश्चित रूपसे नरकमें निवास करोगे। उसके बाद चाण्डालयोनिमें जन्म लेकर दुःख दारिद्र्यसे पीड़ित रहोगे और भूर्त एवं निन्दा करनेवाले होओगे तथा सर्वदा तप्त मुद्रासे चिह्नित रहोगे ।। 42-43 ।।
सूतजी बोले - [ हे महर्षियो!] इस प्रकार उन सभी मुनियोंको शाप देकर महर्षि गौतम अपने आश्रमपर चले गये। उन्होंने अत्यधिक शिवभक्ति की तथा वे परम पवित्र हो गये। उसके बाद उन शापोंके कारण खिन्न हृदयवाले वे सभी ब्राह्मण शिवधर्मसे बहिष्कृत होकर कांचीपुरमें निवास करने लगे ।। 44-45 ll
उनके सभी पुत्र भी शिवधर्मसे बहिष्कृत हो गये। आगे चलकर कलियुगमें बहुत से लोग उन्हींके समान दुष्ट होंगे। हे मुनिसत्तमो ! इस प्रकार मैंने उनका समग्र वृत्तान्त आपलोगोंसे कहा हे प्राज्ञो ! इसके पहलेका वृत्तान्त भी आपलोग आदरपूर्वक सुन चुके हैं ।। 46-47 ।।
इस प्रकार मैंने गौतमी गंगाकी उत्पत्ति तथा पापहारी उत्तम माहात्म्य आपलोगोंसे कह दिया और त्र्यम्बक नामक ज्योतिलिंगका माहात्म्य भी मैंने कहा, जिसे सुनकर मनुष्य सारे पापोंसे छूट जाता है, इसमें सन्देह नहीं है ॥ 48-49 ।।
अब इसके आगे मैं वैद्यनाथेश्वर नामक ज्योतिर्लिंग के पापनाशक माहात्म्यका वर्णन करूंगा, • आप लोग उसे सुनिये ॥ 50 ॥