शौनक बोले- हे सूत! आप सभी मन्वन्तरोंका विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये, अबतक जितने भी मनु हुए हैं, उनका वर्णन मैं सुनना चाहता हूँ ॥ 1 ॥
सूतजी बोले- स्वायम्भुव, स्वारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत, चाक्षुष - इन छः मनुओंको मैंने आपसे कह दिया है। हे मुनिश्रेष्ठ! अब वैवस्वत मनुका वर्णन कर रहा हूँ ॥ 2-3 ॥
उसके बाद क्रमशः सावर्णि, रौच्य, ब्रह्मसावर्णि, धर्मसावर्णि, रुद्रसावर्णि, देवसावर्णि और इन्द्रसावर्णि | ये मनु होनेवाले हैं ॥ 4-5 ॥
इस प्रकार मैंने बीते हुए छ: मनुओं, वर्तमान सातवें वैवस्वत मनु तथा आगे आनेवाले सात मनुओं-कुल चौदह मनुओंको कहा, जैसा कि मैंने सुना है॥ 6 ॥
हे मुने! तीनों कालोंमें होनेवाले इन चौदह मन्वन्तरों तथा सहस्रयुगात्मक कल्पका वर्णन किया गया, अब उनके ऋषियों, मनुपुत्रों एवं देवताओंको कह रहा हूँ। हे शौनक ! प्रेमपूर्वक आप उन यशस्वियोंका श्रवण कीजिये ॥ 7-8 ।।
स्वायम्भुव मन्वन्तरमें मरीचि, अत्रि, भगवान् अंगिरा, पुलह, क्रतु, पुलस्त्य, वसिष्ठ-ये सात ब्रह्मपुत्र कहे गये हैं। हे मुने! उत्तर दिशामें स्थित [ महर्षिगण उस समयके] सप्तर्षि और उस मन्वन्तरमें याम नामक देवता हुए ॥ 9-10 ॥
आग्नीध्र, अग्निबाहु, मेधा, मेधातिथि, वसु, ज्योतिष्मान्, धृतिमान्, हव्य, सवन और शुभ्र-ये दस महात्मा स्वायम्भुव मनुके पुत्र कहे गये हैं। हे मुनिश्रेष्ठ !
उस समय यज्ञ नामक इन्द्र कहे गये ॥ 11-12 ॥
हे तात! इस प्रकार मैंने पहला स्वायम्भुव मन्वन्तर कहा, अब मैं दूसरा मन्वन्तर कह रहा हूँ, | उसे भलीभाँति सुनिये ॥ 13 ॥
(दूसरे मन्वन्तरमें) ऊर्जस्तम्भ, परस्तम्भ, ऋषभ, वसुमान् ज्योतिष्मान् द्युतिमान् तथा सातवें रोचिष्मान इन्हें महर्षि [सप्तर्षि] समझना चाहिये, उस कालमें रोचन नामक इन्द्र हुए स्वारोचिष मन्वन्तरमें 'तुषित' नामवाले देवता कहे गये हैं ।। 14-15 ॥
हे मुनिश्रेष्ठ । हरिघ्न, सुकृति, ज्योति, अयोमूर्ति, अवस्मय, प्रथित, मनस्यु, नभ और सूर्य-ये महात्मा स्वारोचिप मनुके महान् बल तथा पराक्रमवाले दस पुत्र कहे गये हैं। हे मुने! मैंने दूसरा मन्वन्तर कहा अब मैं तृतीय मन्वन्तरका वर्णन करता हूँ, उसे अच्छी तरह सुनें ।। 16-18 ।।
जो कभी महान् ओजस्वी हिरण्यगर्भके ऊर्जा नामसे प्रसिद्ध पुत्र थे, वे ही वसिष्ठके सात पुत्र हुए, जो वासिष्ठ नामसे प्रसिद्ध हैं। हे ऋषिश्रेष्ठ! वे इस तृतीय मन्वन्तरके ऋषि कहे गये हैं, उत्तम नामक तीसरे मनुके भी दस पुत्र हुए, उनका कथन कर रहा हूँ, उसे समझो ॥ 19-20 ।।
इष, ऊर्जित, ऊर्ज, मधु, माधव, शुचि, शुक्रवह, नभस, नभ और ऋषभ - ये नाम हैं। उस समय सत्यवेद, श्रुत आदि देवता हुए। हे मुने! उस कालमें सत्यजित् नामक इन्द्र हुए थे, जो तीनों लोकोंक अधिपति थे । हे मुने! इस श्रेष्ठ तृतीय मन्वन्तरका वर्णन किया। अब चतुर्थ मन्वन्तरको कह रहा हूँ, आप उसे सुनें ॥ 21 - 23॥
गार्ग्य, पृथु वाग्मी, जय, धाता, कपीनक, कपीवान्-ये सप्तर्षि हुए। उस समय सत्य नामके देवता हुए और त्रिशिख नामक इन्द्र हुए, ऐसा जानना चाहिये। हे मुने! अब मनुके पुत्रोंको सुनिये द्युतिपोत, सौतपस्य, तप, शूल, तापन, तपोरति, अकल्माष, धन्वी, खड्गी और महानृषि-ये तामस मनुके महाव्रती दस पुत्र कहे गये हैं । 24- 26 ॥
इस प्रकार मैंने चौथे तामस मन्वन्तरका वर्णन आपसे कर दिया। हे तात! अब पंचम मन्वन्तरका श्रवण कीजिये ॥ 27 ॥
देवबाहु, जय, वेदशिरा मुनि हिरण्यरोमा पर्जन्य, सोमपायी ऊर्ध्वबाहु तथा सत्यनेत्ररत- ये सप्तर्षि हुए। उस समय तपस्वी स्वभाववाले भूतरज नामक देवता हुए और विभु नामक त्रिलोकाधिपति इन्द्र हुए, उस समय तामसके सहोदर भाई रैवत नामक [पंचम ] मनुको जानना चाहिये ॥ 28-30 ॥
हे मुने! अर्जुन अथवा पंक्तिविन्ध्य (दक्षकन्या प्रिया) दया आदिके पुत्र हुए, जो महान् तपस्यासे युक्त होकर मेरुपृष्ठपर अब भी निवास करते हैं॥ 31 ॥
रुचिके पुत्र प्रजापति रौच्य भी मनु कहे गये हैं, जिन्होंने भूति नामक स्त्रीसे भौत्य नामक पुत्र उत्पन्न किया। इस कल्पमें ये सात अनागत मनु कहे गये हैं और सात अनागत महर्षि कहे गये हैं, जो स्वर्गलोकमें निवास करते हैं ।। 32-33 ॥
कश्यप, अत्रि, वसिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भरद्वाज- ये सात ऋषि कहे गये हैं। [परशु] राम, व्यास, अत्रिगोत्रीय बहुश्रुत दीप्तिमान्, भरद्वाजगोत्रीय महातेजस्वी द्रोणपुत्र अश्वत्थामा, गौतमपुत्र शरद्वान् [के पुत्र ] कृपाचार्य, कुशिकवंशी गालव तथा कश्यपवंशी रुरु-ये सात महात्मा आगे सप्तर्षि होनेवाले हैं। उसमें स्वयम्भू [ब्रह्मा] ने तीनको ही अनागत देवता कहा है। [ उस समय] वे देवता मरीचिपुत्र महात्मा कश्यपके पुत्र होंगे और उस समय विरोचनके पुत्र बलि इन्द्र होंगे ॥ 34-38 ॥
हे शौनक ! विषांग, अवनीवान्, सुमन्त, धृतिमान्, वसु, सूरि, सुरा, विष्णु, राजा, सुमति – ये दस सावर्णि मनुके पुत्र होंगे। इस प्रकार आठवाँ मन्वन्तर कहा गया, अब नौवें मन्वन्तरका श्रवण कीजिये ॥ 39-40 ॥
मैं पहले दक्षसावर्णि मनुको कह रहा हूँ, उसे आप सुनिये। पुलस्त्यवंशी मेधातिथि, कश्यप वंशी वसु, भृगुवंशी ज्योतिष्मान्, धैर्यवान् अंगिरा, वसिष्ठवंशी सवन, अत्रिवंशी हव्य और पुलह-ये सात ऋषि रोहित मन्वन्तरमें होंगे। हे महामुने! इस मन्वन्तरमें देवताओंके ये तीन गण होंगे। वे दक्षपुत्र प्रजापति रोहितके पुत्र होंगे। धृष्टकेतु, दीप्तकेतु, पंचहस्त, निराकृति, पृथुश्रवा, भूरिद्युम्न, ऋचीक, बृहत, गय-ये प्रथम दक्षसावर्णिके नौ महातेजस्वी पुत्र होंगे ।। 41-45 ।।
दसवें और दूसरे [सावर्णि] मनुका जब मन्वन्तर होगा, तब पुलहवंशी हविष्मान् भृगुवंशी प्रकृति, अत्रिवंशी आपोमुक्ति, वसिष्ठवंशी अव्यय, पुलस्त्यवंशी प्रयति, कश्यपवंशी भामार, अंगिरावंशी | अनेनाके पुत्र सत्य- ये सात परमर्षि होंगे। इस मन्वन्तरमें जो द्विषिमन्त नामवाले कहे गये हैं, वे | देवता होंगे। उनमें ये महेश्वर शम्भु ही इन्द्र कहे गये हैं। अक्षत्वान्, उत्तमौजा, पराक्रमी भूरिषेण, शतानीक, निरामित्र, वृषसेन, जयद्रथ, भूरिद्युम्न, सुवर्चा और अर्चि- ये मनुके दस पुत्र होंगे ॥ 46 - 50 ॥
जब तीसरे [सावर्णि] मन्वन्तरमें ग्यारहवें | होंगे, उस समय जो सात ऋषि होंगे, उन्हें मैं कह रहा हूँ, आप सुनें। कश्यपवंशी हविष्मान्, वरुणवंशी वपुष्मान् अत्रिवंशी वसिष्ठ, अंगिरावंशी अनय, पुलस्त्यवंशी चारुधृष्य, निस्वर और तैजस अग्नि (अग्नितेजा) ये सात ऋषि कहे गये हैं और तीन देवगण कहेग हैं। ये ब्रह्माजीके पुत्र वैधृत नामवाले कहे गये हैं। सर्वग, सुशर्मा, देवानीक, क्षेमक, दृढेषु, खण्डक, दर्श, कुहु, बाहु-ये मनुके पुत्र कहे गये हैं। ये तीसरे सावर्णि मनुके नौ पुत्र कहे गये हैं । 51-55 ॥
अब चतुर्थ सावर्णिके सप्तर्षियोंको मुझसे सुनें। उनमें वसिष्ठपुत्र यति, अत्रिगोत्री सुतपा तपोमूर्ति अंगिरा, तपस्वी कश्यप, तपोधन पौलस्त्य, तपोरति पुलह और सातवें तपोनिधि भार्गव कहे गये हैं। [इस मन्वन्तरमें] ब्रह्माके पाँच मानसपुत्र देवगण कहे गये हैं। उस समय प्रजाओंको सुख देनेवाले तथा त्रिलोकीके अधिपति ऋतधामा इन्द्र होंगे ।। 56 - 58 1 / 2 ॥
हे मने! आगे आनेवाले बारहवें राज्य नामक मन्वन्तरमें धृतिमान् अंगिरा, पुलस्त्यवंशी हव्यवान्, पुलहवंशी तत्त्वदर्शी, निरुत्सव भार्गव, प्रपंचरहित आत्रेय, निर्देह कश्यप और वसिष्ठवंशी सुतपा - ये सप्तर्षि होंगे। इसमें स्वयम्भू (ब्रह्माजी) ने देवताओंके तीन गण कहे हैं। दिवस्पति उस मन्वन्तरमें इन्द्र होंगे। विचित्र, चित्र, नय, धर्म, धृतोन्ध्र, सुनेत्र, क्षत्रवृद्धक, निर्भय, सुतपा और द्रोण-ये रौच्य मनुके [दस ] पुत्र होंगे ।। 59-63 ।।
आत्मज्ञानी देवसावर्णि नामक तेरहवें मनु होंगे। चित्रसेन, विचित्र आदि उन देवसावर्णिके पुत्र होंगे। उस समय सुकर्म तथा सुत्राम नामवाले देवता होंगे, दिवस्यति नामक इन्द्र होंगे और निर्मोक, तत्त्वदर्शी आदि ऋषि होंगे। 64-65 ।।
चौदहवें भौत्य नामक मनुके कालमें कश्यपवंशी आग्नीध्र, पुलस्त्यवंशी मागध और भृगुवंशी अतिबाह्य, अंगिरागोत्रीय शुचि, अत्रिगोत्रीय युक्त, वसिष्ठगोत्रीय शुक तथा पुलहगोत्रीय अजित-ये अन्तिम मनुके सप्तर्षि होंगे। [इस मन्यन्तरमें] पवित्र चाक्षुष देवगण | होंगे और शुचि नामक इन्द्र होंगे ।। 66 - 68
अतीत तथा अनागत- इन महर्षियोंका सर्वदा प्रातः काल उठकर नाम कीर्तन करनेसे मनुष्योंके सुखोंकी वृद्धि होती है ।। 69 ।।
हे महामुने सुनिये; इसमें देवताओंके पाँच गण कहे गये हैं और तुरंगभीरु, बुध्न, तनुग्र, अनुग्र अतिमानी, प्रवीण, विष्णु संक्रन्दन, तेजस्वी तथा सबल-ये दस भौत्यमनुके पुत्र होंगे ॥ 70-71 ।।
भौत्य मनुके अधिकारकालकी पूर्णताके साथ कल्प पूर्ण हो जाता है। इस प्रकार मैंने भूत, भविष्यके इन मनुओंका वर्णन किया, जिनके विषयमें महातेजस्वी सनत्कुमारने व्यासजीसे कहा था। वे मनु एक हजार युगपर्यन्त अपने धर्मके अनुसार प्रजाओंका पालनकर तपस्यासे युक्त हो प्रजाओंके साथ ब्रह्मलोकको जाते हैं ।। 72-731/2 ॥
इकहत्तर चतुर्युगीको एक मन्वन्तरका काल कहा [जाता है। [हे महयें] इस प्रकार मैंने कीर्तिको बढानेवाले इन चौदह मनुओंका वर्णन कर दिया। सभी मन्वन्तरोंके पूर्ण हो जानेपर संहारके अन्तमें पुनः सृष्टि होती है। सैकड़ों वर्षोंमें भी उनके मन्वन्तरोंका वर्णन नहीं किया जा सकता है। सौ हजार चतुर्युगीके बीत जानेपर एक कल्पकी समाप्ति कही जाती है । 74-76 ।।
उस समय सूर्यकी किरणोंसे सभी प्राणी भस्म हो जाते हैं। हे मुने! वे समस्त प्राणी कल्पोंके अन्तमें ब्रह्मदेवको आगेकर आदित्यगणोंके साथ सभी प्राणियोंकि स्रष्टा तथा देवताओंमें श्रेष्ठ श्रीहरि नारायणमें बार बार प्रविष्ट होते रहते हैं ।। 77-78 ।।
इस प्रकार प्रत्येक कल्पके अन्तमें कालस्वरूप भगवान् रुद्र पुनः संहार करते हैं, इसका वर्णन मैं वैवस्वत मनुके प्रसंगमें करूँगा। इस प्रकार मैंने मन्वन्तरोंकी उत्पत्ति तथा विसर्गसे सम्बन्धित सम्पूर्ण आख्यान आपसे कह दिया जो पुण्यप्रद, धन्यताको देनेवाला तथा कुलकी वृद्धि करनेवाला है ।। 79-80 ।।