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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 3 (पार्वती खण्ड) , अध्याय 27 - Sanhita 2, Khand 3 (पार्वती खण्ड) , Adhyaya 27

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जटाधारी ब्राह्मणद्वारा पार्वतीके समक्ष शिवजीके स्वरूपकी निन्दा करना

पार्वती बोलीं- हे द्विजेन्द्र ! हे जटिल ! मेरा समस्त वृत्तान्त सुनें। इस समय मेरी सखीने जो कुछ है, वह सब सत्य है, कुछ भी झूठा नहीं है ॥ 1 ॥

मैंने मन, वचन एवं कर्मसे शंकरजीका ही पतिभावसे वरण किया है, यह बात मैं सत्य कहती हूँ, असत्य नहीं। मैं जानती हूँ कि दुर्लभ वस्तु मुझे कैसे प्राप्त हो सकती है, फिर भी मनकी उत्सुकतावश मैं इस समय तप कर रही हूँ ॥ 2-3 ॥ ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार उस ब्रह्मचारीसे कहकर गिरिजा चुप हो गयीं। तब वे ब्राह्मण पार्वतीकी बात सुनकर कहने लगे- ॥ 4 ॥

ब्राह्मण बोले- अभीतक मुझे यह बड़ी इच्छा थी कि यह देवी किस वस्तुको प्राप्त करनेके लिये अत्यन्त कठिन तप कर रही है ॥ 5 ॥

हे देवि तुम्हारे मुखकमलसे सारी बातें सुनकर और उसे जानकर अब मैं यहाँसे जाना चाहता हूँ, अब तुम जैसा चाहती हो, वैसा ही करो ॥ 6 ॥ यदि तुम मुझसे इन बातोंको न कहती, तो मित्रता व्यर्थ हो जाती। कार्य तो होनहारके अनुसार होता है, इसलिये सुखपूर्वक उसे कहना चाहिये ॥ 7 ब्रह्माजी बोले- [ हे नारद!] इस प्रकार कहकर ज्यों ही उस ब्राह्मणने जानेकी इच्छा की, तभी पार्वती देवी प्रणाम करके उन द्विजसे कहने लगीं- ॥ 8 ॥ पार्वती बोलीं- हे विप्रेन्द्र! आप क्यों जा रहे हैं, ठहरिये और मेरे हितकी बात कहिये। उनके ऐसा कहनेपर वे दण्डधारी रुककर कहने लगे-॥ 9 ॥

ब्राह्मण बोले- हे देवि ! यदि तुम सुननेकी इच्छा करती हो और भक्तिपूर्वक मुझे रोकती हो, तो मैं तुमसे यह सब तत्त्व कहता हूँ, जिससे [उनके विषयमें] तुम्हें भलीभाँति जानकारी हो जायगी। मैं गुरुप्रसादसे महादेवको अच्छी तरहसे जानता हूँ। जो बात सत्य है, उसको कह रहा हूँ, तुम सावधान होकर सुनो ॥ 10-11 ॥

महादेव बैलकी सवारी करते हैं, भस्म पोते रहते हैं, जटा धारण किये रहते हैं, व्याघ्रचर्म धारण करते हैं और हाथीका चमड़ा ओढ़ते हैं ॥ 12 ॥वे कपाल धारण करते हैं तथा सम्पूर्ण शरीर में साँप लपेटे रहते हैं। वे विष पीनेवाले, अभक्ष्यका भक्षण करनेवाले, विरूपाक्ष और महाभयंकर हैं। 13 ।। उनके जन्मका किसीको पता नहीं है और वे गृहस्थोचित भोगसे सर्वथा रहित हैं वे दिगम्बर, दशभुजावाले तथा भूत-प्रेतोंके साथ निवास करते हैं ॥ 14 ॥

हे देवि! तुम किस कारणसे उन्हें अपना पति बनाना चाहती हो, तुम्हारा ज्ञान कहाँ खो गया है, इसे विचारकर मुझसे इस समय कहो-मैंने पूर्व समयमें भी उनका भयंकर चरित्र सुना है। यदि तुम्हें उसे सुननेकी इच्छा हो, तो मैं कह रहा हूँ, उसे सुनो ll 15-16 ॥

पहले दक्षकन्या साध्वी सतीने वृषभवाहन शिवका वरण किया था, उसके साथ उन्होंने जैसा व्यवहार किया, वह बात भी तुमने सुनी होगी। दक्षने स्वयं अपनी कन्याको इसीलिये नहीं बुलाया कि वह कपालीकी पत्नी है और यज्ञमें शिवजीको भाग भी नहीं दिया ।। 17-18 ।।

इस अपमानसे अत्यन्त क्रुद्ध हुई सतीने अपने प्रिय प्राण त्याग दिये और उसने शंकरजीको भी छोड़ दिया ॥ 19 ॥

तुम सभी स्त्रियोंमें रत्न हो और तुम्हारे पिता भी पर्वतोंके राजा है, फिर उग्र तपस्याके द्वारा तुम इस प्रकारके पतिको क्यों प्राप्त करना चाहती हो ? ॥ 20 ॥

तुम सुवर्णकी मुद्रा देकर काँच क्यों ग्रहण करना चाहती हो और सुन्दर चन्दनको छोड़कर कीचड़ लगानेकी इच्छा क्यों कर रही हो? सूर्यका तेज छोड़कर तुम जुगनूका प्रकाश क्यों चाहती हो और रेशमी वस्त्रको त्यागकर चमड़ा क्यों पहनना चाहती हो ? ॥ 21-22 ॥

घरमें रहना छोड़कर वनमें रहना चाहती हो और हे देवेशि ! उत्तम खजानेको छोड़कर लोहेकी इच्छा करती हो। जो तुम इन्द्र आदि लोकपालोंको छोड़कर शिवमें अनुरक्त हुई हो, यह तो उचित नहीं है और यह लोकके सर्वधा विरुद्ध दिखायी पड़ता है। ll 23-24 ll

कहाँ तुम कमलके समान विशाल नेत्रवाली हो और कहाँ वे भयंकर तीन नेत्रवाले हैं। तुम चन्द्रमाके समान मुखवाली हो तथा वे शिव पाँच मुखवाले कहे गये हैं ॥ 25 ॥तुम्हारे सिरपर सर्पिणीके समान वेणी सुशोभित
है और शिवका जटाजूट तो प्रसिद्ध ही है ॥ 26 ॥ तुम्हारे शरीरमें चन्दनका लेप और शिवके शरीरमें चिताका भस्म लगा रहता है। कहाँ तुम्हारा दुकूल और कहाँ शंकरका गजचर्म! कहाँ [तुम्हारे) दिव्य आभूषण और कहाँ शंकरके सर्प कहाँ सभी देवता तुम्हारे सेवक तथा कहाँ भूतों तथा बलिको प्रिय समझनेवाला वह शिव ! ।। 27-28 ॥

कहीं [तुम्हें सुख देनेवाला) मृदंगवाद्य और कहाँ डमरू ? कहाँ तुम्हारी भेरीकी ध्वनि और कहाँ उनका अशुभदायक श्रृंगीका शब्द! कहाँ तुम्हारा ढक्का नामक बाजेका शब्द और उनका अशुभ गलेका शब्द! तुम्हारा रूप उत्तम है और शिवका रूप नहीं है । ll29-30 ॥

यदि उनके पास द्रव्य होता तो वे दिगम्बर कैसे होते, उनका वाहन भी बैल है तथा उनके पास और कोई सामग्री भी नहीं है। स्त्रियोंको सुख देनेवाले जो गुण वरोंमें बताये गये हैं, उनमेंसे एक भी गुण विरूपाक्ष शिवमें नहीं कहा गया है ।। 31-32 ॥

उन्होंने तुम्हारे अत्यन्त प्रिय कामदेवको भी भस्म कर दिया। उस समय तुमने अपना अनादर भी देख लिया कि वे तुम्हें छोड़कर अन्यत्र चले गये ll 33 ॥

उनकी जातिका पता नहीं है, उसी प्रकार उनके ज्ञान तथा विद्याका भी पता नहीं, पिशाच ही उनके सहायक हैं और उनके गलेमें विष दिखायी पड़ता है ।। 34 ।।

वे विशेष रूपसे विरक्त हैं, इसलिये अकेले रहते हैं। अत: तुम शंकरके साथ अपना मन मत जोड़ो ॥ 35 ॥

कहाँ तुम्हारा हार और कहाँ उनकी मुण्डमाला! कहाँ तुम्हारा दिव्य अंगराग और कहाँ उनके शरीरमें चिताभस्म ! ॥ 36 ॥

हे देवि! तुम्हारा और शंकरका रूप आदि सब कुछ एक-दूसरेके विपरीत है, मुझे तो यह अच्छा नहीं लगता, अब तुम जैसा चाहती हो, वैसा करो ॥ 37 ॥

जो कुछ भी असद् वस्तु है, वह सब तुम स्वयं चाह रही हो। तुम उससे अपना मन हटा लो। अन्यथा जो चाहती हो, उसे करो ॥ 38 ॥ब्रह्माजी बोले- उस ब्राह्मणके इस प्रकारके वचन सुनकर पार्वती कुपित मनसे उन शिवनिन्दक ब्राह्मणसे कहने लगीं - ॥ 39 ॥

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] पितरोंकी कन्या मेनाके साथ हिमालयके विवाहका वर्णन
  2. [अध्याय 2] पितरोंकी तीन मानसी कन्याओं-मेना, धन्या और कलावतीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त तथा सनकादिद्वारा प्राप्त शाप एवं वरदानका वर्णन
  3. [अध्याय 3] विष्णु आदि देवताओंका हिमालयके पास जाना, उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बाकी स्तुति करना
  4. [अध्याय 4] उमादेवीका दिव्यरूपमें देवताओंको दर्शन देना और अवतार ग्रहण करनेका आश्वासन देना
  5. [अध्याय 5] मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न होकर देवीका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेनासे मैनाकका जन्म
  6. [अध्याय 6] देवी उमाका हिमवान्‌के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, देवीका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे वार्तालाप तथा पुनः नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना
  7. [अध्याय 7] पार्वतीका नामकरण तथा उनकी बाललीलाएँ एवं विद्याध्ययन
  8. [अध्याय 8] नारद मुनिका हिमालयके समीप गमन, वहाँ पार्वतीका हाथ देखकर भावी लक्षणोंको बताना, चिन्तित हिमवान्‌को शिवमहिमा बताना तथा शिवसे विवाह करनेका परामर्श देना
  9. [अध्याय 9] पार्वतीके विवाहके सम्बन्धमें मेना और हिमालयका वार्तालाप, पार्वती और हिमालयद्वारा देखे गये अपने स्वप्नका वर्णन
  10. [अध्याय 10] शिवजीके ललाटसे भौमोत्पत्ति
  11. [अध्याय 11] भगवान् शिवका तपस्याके लिये हिमालयपर आगमन, वहाँ पर्वतराज हिमालयसे वार्तालाप
  12. [अध्याय 12] हिमवान्‌का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा मांगना, शिवद्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना
  13. [अध्याय 13] पार्वती और परमेश्वरका दार्शनिक संवाद, शिवका पार्वतीको अपनी सेवाके लिये आज्ञा देना, पार्वतीका महेश्वरकी सेवामें तत्पर रहना
  14. [अध्याय 14] तारकासुरकी उत्पत्तिके प्रसंगों दितिपुत्र बज्रांगकी कथा, उसकी तपस्या तथा वरप्राप्तिका वर्णन
  15. [अध्याय 15] वरांगीके पुत्र तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुरकी तपस्या एवं ब्रह्माजीद्वारा उसे वरप्राप्ति, वरदानके प्रभावसे तीनों लोकोंपर उसका अत्याचार
  16. [अध्याय 16] तारकासुरसे उत्पीड़ित देवताओंको ब्रह्माजीद्वारा सान्त्वना प्रदान करना
  17. [अध्याय 17] इन्द्रके स्मरण करनेपर कामदेवका उपस्थित होना, शिवको तपसे विचलित करनेके लिये इन्द्रद्वारा कामदेवको भेजना
  18. [अध्याय 18] कामदेवद्वारा असमयमें वसन्त ऋतुका प्रभाव प्रकट करना, कुछ क्षणके लिये शिवका मोहित होना, पुनः वैराग्य भाव धारण करना
  19. [अध्याय 19] भगवान् शिवकी नेत्रज्वालासे कामदेवका भस्म होना और रतिका विलाप, देवताओं द्वारा रतिको सान्त्वना प्रदान करना और भगवान् शिवसे कामको जीवित करनेकी प्रार्थना करना
  20. [अध्याय 20] शिवकी क्रोधाग्निका वडवारूप धारण और ब्रह्माद्वारा उसे समुद्रको समर्पित करना
  21. [अध्याय 21] कामदेवके भस्म हो जानेपर पार्वतीका अपने घर आगमन, हिमवान् तथा मेनाद्वारा उन्हें धैर्य प्रदान करना, नारदद्वारा पार्वतीको पंचाक्षर मन्त्रका उपदेश
  22. [अध्याय 22] पार्वतीकी तपस्या एवं उसके प्रभावका वर्णन
  23. [अध्याय 23] हिमालय आदिका तपस्यानिरत पार्वतीके पास जाना, पार्वतीका पिता हिमालय आदिको अपने तपके विषयमें दृढ़ निश्चयकी बात बताना, पार्वतीके तपके प्रभावसे त्रैलोक्यका संतप्त होना, सभी देवताओंका भगवान् शंकरके पास जाना
  24. [अध्याय 24] देवताओंका भगवान् शिवसे पार्वतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, भगवान्का विवाहके दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करनेपर स्वीकार कर लेना
  25. [अध्याय 25] भगवान् शंकरकी आज्ञासे सप्तर्षियोंद्वारा पार्वतीके शिवविषयक अनुरागकी परीक्षा करना और वह वृत्तान्त भगवान् शिवको बताकर स्वर्गलोक जाना
  26. [अध्याय 26] पार्वतीकी परीक्षा लेनेके लिये भगवान् शिवका जटाधारी ब्राह्मणका वेष धारणकर पार्वतीके समीप जाना, शिव-पार्वती संवाद
  27. [अध्याय 27] जटाधारी ब्राह्मणद्वारा पार्वतीके समक्ष शिवजीके स्वरूपकी निन्दा करना
  28. [अध्याय 28] पार्वतीद्वारा परमेश्वर शिवकी महत्ता प्रतिपादित करना और रोषपूर्वक जटाधारी ब्राह्मणको फटकारना, शिवका पार्वतीके समक्ष प्रकट होना
  29. [अध्याय 29] शिव और पार्वतीका संवाद, विवाहविषयक पार्वतीके अनुरोधको शिवद्वारा स्वीकार करना
  30. [अध्याय 30] पार्वतीके पिताके घरमें आनेपर महामहोत्सवका होना, महादेवजीका नटरूप धारणकर वहाँ उपस्थित होना तथा अनेक लीलाएँ दिखाना, शिवद्वारा पार्वतीकी याचना, किंतु माता-पिताके द्वारा मना करनेपर अन्तर्धान हो जाना
  31. [अध्याय 31] देवताओंके कहनेपर शिवका ब्राह्मण वेषमें हिमालयके यहाँ जाना और शिवकी निन्दा करना
  32. [अध्याय 32] ब्राह्मण वेषधारी शिवद्वारा शिवस्वरूपकी निन्दा सुनकर मेनाका कोपभवनमें गमन शिवद्वारा सप्तर्षियोंका स्मरण और उन्हें हिमालयके घर भेजना, हिमालयकी शोभाका वर्णन तथा हिमालयद्वारा सप्तर्षियोंका स्वागत
  33. [अध्याय 33] वसिष्ठपत्नी अरुन्धती reद्वारा मेना को समझाना तथा
  34. [अध्याय 34] सप्तर्षियोंद्वारा हिमालयको राजा अनरण्यका आख्यान सुनाकर पार्वतीका विवाह शिवसे करनेकी प्रेरणा देना
  35. [अध्याय 35] धर्मराजद्वारा मुनि पिप्पलादकी भार्या सती पद्माके पातिव्रत्यकी परीक्षा, पद्माद्वारा धर्मराजको शाप प्रदान करना तथा पुनः चारों युगोंमें शापकी व्यवस्था करना, पातिव्रत्यसे प्रसन्न हो धर्मराजद्वारा पद्माको अनेक वर प्रदान करना, महर्षि वसिष्ठद्वारा हिमवान्से पद्माके दृष्टान्तद्वारा अपनी पुत्री शिवको सौंपनेके लिये कहना
  36. [अध्याय 36] सप्तर्षियोंके समझानेपर हिमवान्‌का शिवके साथ अपनी पुत्रीके विवाहका निश्चय करना, सप्तर्षियोंद्वारा शिवके पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त बताकर अपने धामको जाना
  37. [अध्याय 37] हिमालयद्वारा विवाहके लिये लग्नपत्रिकाप्रेषण, विवाहकी सामग्रियोंकी तैयारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियोंका दिव्य रूपमें सपरिवार हिमालयके घर आगमन
  38. [अध्याय 38] हिमालयपुरीकी सजावट, विश्वकर्माद्वारा दिव्यमण्डप एवं देवताओंके निवासके लिये दिव्यलोकोंका निर्माण करना
  39. [अध्याय 39] भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना
  40. [अध्याय 40] शिवबरातकी शोभा भगवान् शिवका बरात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान
  41. [अध्याय 41] नारदद्वारा हिमालयगृहमें जाकर विश्वकर्माद्वारा बनाये गये विवाहमण्डपका दर्शनकर मोहित होना और वापस आकर उस विचित्र रचनाका वर्णन करना
  42. [अध्याय 42] हिमालयद्वारा प्रेषित मूर्तिमान् पर्वतों और ब्राह्मणोंद्वारा बरातकी अगवानी, देवताओं और पर्वतोंके मिलापका वर्णन
  43. [अध्याय 43] मेनाद्वारा शिवको देखनेके लिये महलकी छतपर जाना, नारदद्वारा सबका दर्शन कराना, शिवद्वारा अद्भुत लीलाका प्रदर्शन, शिवगणों तथा शिवके भयंकर वेषको देखकर मेनाका मूर्च्छित होना
  44. [अध्याय 44] शिवजीके रूपको देखकर मेनाका विलाप, पार्वती तथा नारद आदि सभीको फटकारना, शिवके साथ कन्याका विवाह न करनेका हठ, विष्णुद्वारा मेनाको समझाना
  45. [अध्याय 45] भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना
  46. [अध्याय 46] नगरमें बरातियोंका प्रवेश द्वाराचार तथा पार्वतीद्वारा कुलदेवताका पूजन
  47. [अध्याय 47] पाणिग्रहण के लिये हिमालयके घर शिवके गमनोत्सवका वर्णन
  48. [अध्याय 48] शिव-पार्वती विवाहका प्रारम्भ, हिमालयद्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तरके रूपमें शिवमाहात्म्य प्रतिपादित करना, हर्षयुक्त हिमालयद्वारा कन्यादानकर विविध उपहार प्रदान करना
  49. [अध्याय 49] अग्निपरिक्रमा करते समय पार्वतीके पदनखको देखकर ब्रह्माका मोहग्रस्त होना, बालखिल्योंकी उत्पत्ति, शिवका कुपित होना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  50. [अध्याय 50] शिवा शिवके विवाहकृत्यसम्पादनके अनन्तर देवियोंका शिवसे मधुर वार्तालाप
  51. [अध्याय 51] रतिके अनुरोधपर श्रीशंकरका कामदेवको जीवित करना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  52. [अध्याय 52] हिमालयद्वारा सभी बरातियोंको भोजन कराना, शिवका विश्वकर्माद्वारा निर्मित वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल जनवासेमें आगमन
  53. [अध्याय 53] चतुर्थीकर्म, बरातका कई दिनोंतक ठहरना, सप्तर्षियोंके समझानेसे हिमालयका बरातको विदा करनेके लिये राजी होना, मेनाका शिवको अपनी कन्या सौंपना तथा बरातका पुरीके बाहर जाकर ठहरना
  54. [अध्याय 54] मेनाकी इच्छा अनुसार एक ब्राह्मणपत्नीका पार्वतीको पातिव्रतधर्मका उपदेश देना
  55. [अध्याय 55] शिव-पार्वती तथा बरातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और शिव विवाहोपाख्यानके श्रवणकी महिमा