सनत्कुमार बोले – [ हे व्यासजी!] जलका दान सभी दानोंमें सदा अति श्रेष्ठ है; क्योंकि वह सभी जीव समुदायको तृप्त करनेवाला जीवन कहा गया है ॥ 1 ॥ अतः बिना किसी रुकावटके प्रेमपूर्वक पौसरा चलाना चाहिये। जलाशयका निर्माण इस लोक में तथा परलोकमें भी परम आनन्द प्रदान करनेवाला है। यह सत्य है, सत्य है, इसमें संशय नहीं है। इसलिये मनुष्यको बावली, तालाब तथा कूपोंका निर्माण कराना चाहिये ॥ 2-3 ॥
जल निकलते ही कूप पापपरायण दुष्कर्मशील पुरुषके आधे पापका हरण कर लेता है तथा सत्कर्मनिरत व्यक्तिके पापोंका [ तो वह ] निरन्तर हरण करता ही रहता है। जिसके द्वारा खुदवावे जलाशय में गाय, ब्राह्मण, साधु तथा अन्य मनुष्य सदा जल पीते हैं, वह [ अपने ] सम्पूर्ण कुलको तार देता है ll 4-5 ll
जिसके जलाशयमें गर्मी के समयमें भी पर्याप्त जल रहता है, वह विषम तथा अति भयंकर दुःख कभी नहीं प्राप्त करता है ॥ 6 ॥
[हे व्यास!] निर्मित कराये गये सरोवरोंके जो गुण कहे गये हैं, उन्हें मैं बताऊँगा। जो तालाबका निर्माण कराता है, वह तीनों लोकोंमें सर्वत्र पूजित | होता है अथवा सूर्यलोकमें पूजित होता है। तालाबोंका निर्माण सूर्यके तापको दूर करनेवाला, मैत्रीकारक तथा कीर्तिका उत्तम हेतु होता है ॥ 7-8 ॥
विद्वान् लोग धर्म, अर्थ तथा कामके [तो परिमित] फलका वर्णन करते हैं, परंतु जिसने सरोवरका निर्माण | कराया, उसका पुण्य अनन्त होता है ॥ 9 ॥स्वेदज, अण्डज, उद्भिज्ज तथा जरायुज-इन चारों प्रकारके प्राणियोंको तालाब महान् शरण [ कहा गया ] है। सभी प्रकारके तालाब [कूप, वापी, प्रपा] आदि [निर्माणकर्ताको ] उत्तम लक्ष्मी प्रदान करते हैं ॥ 10 ॥ देवता, मनुष्य, गन्धर्व, पितर, नाग, राक्षस और स्थावर प्राणी जलाशयका आश्रय ग्रहण करते हैं ॥ 11 ॥ वर्षाकालमें जिसके सरोवरमें जल रहता है, उसे अग्निहोत्रका फल मिलता है-ऐसा ब्रह्माजीने कहा है। शरत्कालमें जिसके सरोवरमें जल रहता है, उसे हजार गोदानका फल मिलता है, इसमें संशय नहीं है ।। 12-13 ॥
हेमन्त और शिशिर ऋतुमें जिसके सरोवरमें जल रहता है, वह बहुत सी सुवर्णदक्षिणावाले यज्ञका फल प्राप्त करता है। वसन्त और ग्रीष्मकालमें जिसके सरोवरमें जल रहता है, उसे अतिरात्र एवं अश्वमेधयज्ञका फल मिलता है-ऐसा विद्वानोंने कहा है ।। 14-15 ॥
हे व्यास मुने! जीवोंको सन्तुष्ट करनेवाले जलाशयके फलका वर्णन मैंने कर दिया, अब वृक्षोंके लगानेके महत्त्वका श्रवण कीजिये ॥ 16 ॥
जो वनमें वृक्षोंको लगाता है, वह बीती हुई पीढ़ियों और आनेवाली पीढ़ियोंके सभी पितृकुलोंका उद्धार कर देता है, इसलिये वृक्षोंको अवश्य लगाना चाहिये। लगाये गये ये वृक्ष दूसरे जन्ममें उस व्यक्तिके पुत्र होते हैं, इसमें सन्देह नहीं है। वह वृक्षारोपण करनेवाला अन्तमें परलोक जानेपर अक्षय लोकोंको प्राप्त करता है ।। 17-18 ।।
वृक्ष पुष्पोंके द्वारा देवगणोंकी, फलोंके द्वारा पितरोंकी और छायाके द्वारा सभी अतिथियोंकी पूजा करते हैं ॥ 19 ॥
किन्नर, सर्प, राक्षस, देवता, गन्धर्व, मनुष्य तथा ऋषि वृक्षोंका आश्रय लेते हैं। फूले- फले वृक्ष इस लोकमें मनुष्योंको तृप्त करते हैं, वे इस लोक एवं परलोकमें धर्मसम्बन्धसे साक्षात् पुत्र ही कहे गये हैं । ll 20-21 ॥
जो द्विज सरोवरका निर्माण करनेवाला, वृक्षोंको लगानेवाला, इष्ट तथा पूर्तकर्म करनेवाला है और भी जो दूसरे सत्य बोलनेवाले लोग हैं-ये स्वर्गसे च्युत नहीं होते हैं ॥ 22 ॥सत्य ही परब्रह्म है, सत्य ही परम तप है, सत्य ही परम यज्ञ है और सत्य ही परम शास्त्र है ॥ 23 ॥ सभीके सो जानेपर एक सत्य ही जागता रहता है। सत्य ही परम पद है, सत्यके द्वारा ही पृथ्वी टिकी हुई है, अतः सत्यमें ही सब कुछ प्रतिष्ठित है ॥ 24 ॥ तप, यज्ञ, देव, ऋषि, पितृपूजनका पुण्य, जल एवं विद्या- ये सभी तथा सब कुछ सत्यमें ही प्रतिष्ठित हैं। सत्य ही यज्ञ, तप, दान, सभी मन्त्र तथा देवी सरस्वतीरूप है। सत्य ही ब्रह्मचर्य है, सत्य ही ओंकार है ।। 25-26 ॥
सत्यसे ही वायु बहता है, सत्यसे ही सूर्य तपता है, सत्यसे ही अग्नि जलाती है और सत्यसे ही स्वर्ग स्थित है। सभी वेदोंका पालन तथा सभी तीर्थोंका स्नान सत्यसे ही होता है, सत्यसे ही प्राणी निःसन्देह सब कुछ प्राप्त कर लेता है । ll 27-28 ॥
हजारों अश्वमेधयज्ञ तथा लाखों अन्य यज्ञ तराजूके एक पलड़ेपर तथा सत्यको दूसरे पलड़े में रखनेपर सत्य भारी पड़ता है। सत्यसे देवता, पितर, मानव, सर्प तथा राक्षस प्रसन्न रहते हैं, सत्यसे ही चर- अचरसहित सम्पूर्ण लोक प्रसन्न रहते हैं ॥ 29-30 ॥
सत्यको परम धर्म कहा गया है, सत्यको परम पद कहा गया है और सत्यको परम ब्रह्म कहा गया है, इसलिये सदा सत्य बोलना चाहिये ॥ 31 ॥
सत्यपरायण मुनिगण तथा सत्यधर्ममें प्रवृत्त हुए सिद्धगण अत्यन्त कठिन तप करके अप्सराओंसे परिपूर्ण विस्तृत विमानोंके द्वारा स्वर्गको प्राप्त हुए हैं। [ इसलिये सभी लोगोंको] सत्य बोलना चाहिये; क्योंकि सत्यसे बढ़कर कुछ भी नहीं है ।। 32-33 ॥ अगाध, विपुल, सिद्ध तथा पवित्रतापूर्ण सत्यरूपी हृदमें मनोयोगसे स्नान करना चाहिये; क्योंकि वह परम पवित्र तीर्थ कहा गया है ॥ 34 ॥
जो लोग स्वयंके लिये अथवा दूसरोंके लिये यहाँतक कि अपने पुत्रके लिये भी झूठ नहीं बोलते, वे स्वर्गगामी होते हैं ॥ 35 ॥
ब्राह्मणोंमें वेदों, यज्ञों तथा मन्त्रोंके विद्यमान रहनेपर भी उनके असत्ययुक्त होनेपर वे सुशोभित नहीं होते, इसलिये भली प्रकारसे सत्यभाषण करना चाहिये ॥ 36 ॥व्यासजी बोले- हे तपोधन! सभी वर्णों एवं विशेष रूपसे ब्राह्मणोंकी तपस्याका फल पुनः मुझसे कहिये ।। 37 ।।
सनत्कुमार बोले- हे व्यासजी ! मैं द्विजातियोंके लिये सभी प्रकारकी कामनाओं एवं अर्थोको सिद्ध करनेवाले अत्यन्त कठिन तपोऽध्यायका वर्णन करूँगा, उसे कहते हुए मुझसे आप सुनें । तप सर्वश्रेष्ठ कहा गया है, सभी प्रकारके फल तपस्यासे ही प्राप्त होते हैं। जो निरन्तर तपका सेवन करते हैं, वे देवगणोंके साथ आनन्द प्राप्त करते हैं ।। 38-39 ॥
तपसे स्वर्ग मिलता है, तपसे यश मिलता है, तपस्यासे सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं और तप सभी प्रकारके अर्थोका साधन है ॥ 40 तपसे मोक्ष प्राप्त होता है, तपस्यासे परमात्मा प्राप्त होते हैं, तपस्यासे ज्ञान, विज्ञान, सम्पत्ति, सौभाग्य एवं रूप प्राप्त होता है ॥ 41 ॥
मनुष्य तपस्यासे नाना प्रकारकी वस्तुएँ प्राप्त करता है, वह मनसे जिस-जिस वस्तुकी अभिलाषा करता है, वह सब कुछ तपस्यासे प्राप्त कर लेता है ॥ 42 ॥ तप न करनेवाले कभी भी ब्रह्मलोक नहीं जा सकते हैं और तप न करनेवालोंके लिये कभी परमेश्वर शिवजी प्राप्त नहीं हो सकते हैं ॥ 43 ॥ पुरुष जिस कार्यको उद्देश्य करके तप करता है, वह उसे इस लोकमें तथा परलोकमें प्राप्त कर लेता है। मदिरा पीनेवाला, परस्त्रीगमन करनेवाला, ब्रह्महत्यारा एवं गुरुपत्नीगामी भी तपस्याके प्रभावसे अपने सभी पापोंसे मुक्त हो जाता है और तर जाता है ।। 44-45 ll
सर्वेश्वर शिव, सनातन विष्णु, ब्रह्मा, अग्नि, इन्द्र तथा अन्य लोग भी तपस्यापरायण रहते हैं ॥ 46 ॥ ऊर्ध्वरेता अट्ठासी हजार [बालखिल्य आदि ] महर्षि भी तपके प्रभावसे ही देवगणोंके साथ स्वर्गमें आनन्द प्राप्त करते हैं ॥ 47 ॥
तपस्यासे राज्य प्राप्त होता है, तपस्यासे ही वृत्रासुरका नाशकर इन्द्र देवताओंके स्वामी बने हुए और प्रतिदिन सबका पालन करते हैं। तपस्याके प्रभावसे ही सम्पूर्ण लोकोंका कल्याण करनेमें लगे हुए सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र एवं ग्रह प्रकाशित होते हैं ॥ 48-49 ।।जगत् में ऐसा कोई सुख नहीं है, जो तपके बिना प्राप्त होता हो, तपसे ही सारा सुख प्राप्त होता है ऐसा वेदवेत्ताओंने कहा है ॥ 50 ॥
ज्ञान, विज्ञान, आरोग्य, रूप, सौभाग्य तथा सुख सर्वदा तपस्यासे ही प्राप्त होते हैं ॥ 51 ॥
तपस्याके द्वारा ही ब्रह्माजी बिना श्रमके सम्पूर्ण संसारकी रचना करते हैं, विष्णु रक्षा करते हैं, शिवजी संहार करते हैं और शेषनाग सम्पूर्ण पृथ्वीको धारण करते हैं ॥ 52 ॥
हे महामुने ! गाधिपुत्र [ महर्षि] विश्वामित्र तपस्याके प्रभावसे ही क्षत्रियसे ब्राह्मण हो गये थे; यह बात त्रैलोक्यमें प्रसिद्ध है ॥ 53 ॥
हे महाप्राज्ञ ! इस प्रकार मैंने तपका श्रेष्ठ माहात्म्य आपसे कहा, अब तपसे भी श्रेष्ठ [ वेदोंके ] अध्ययनकी महिमाको सुनिये ॥ 54 ॥