सनत्कुमार बोले [हे व्यास!] इसके बाद ब्रह्मा आदि सभी देवता एवं मुनिगण सिर झुकाकर प्रिय वाणीसे देवदेवेशकी स्तुति करने लगे ॥ 1 ॥
देवता बोले-हे देवदेव! हे महादेव! हे शरणागतवत्सल! आप सदा सज्जनोंको सुख देनेवाले तथा भक्तोंका दुःख दूर करनेवाले हैं ॥ 2 ॥
आप अद्भुत उत्तम लीला करनेवाले, [एकमात्र] भक्तिसे प्राप्त होनेवाले, दुर्लभ तथा दुष्टजनोंके द्वारा दुराराध्य हैं। हे नाथ! आप सर्वदा प्रसन्न रहें ॥ 3 ॥
हे प्रभो! वेद भी यथार्थ रूपसे आपकी महिमाको नहीं जानते, महात्मालोग अपनी बुद्धिके अनुसार आपके उत्तम यशका गान करते हैं। हजार मुखोंवाले शेषनाग आदि प्रेमपूर्वक सदा आपकी अत्यन्त गूढ़ महिमाका गान करते हैं एवं वे अपनी वाणीको पवित्र करते हैं ।। 4-5 ।।
हे देवेश! आपकी कृपासे जड़ भी ब्रह्मज्ञानी हो जाता है और आप सदा भक्तिसे ही प्राप्य हैं- ऐसा वेद कहते हैं 6 हे प्रभो! आप दीनदयाल तथा सदा सर्वत्र व्यापक, निर्विकार तथा सज्जनोंके रक्षक हैं, आप सद्धकिसे आविर्भूत होते हैं। हे महेशान! आपकीभक्तिसे बहुत लोग इस लोकमें सभी प्रकारके सुखका उपभोग करके सिद्धिको प्राप्त हुए हैं और निराकार उपासनासे दुखित हुए हैं ।। 7-8 ।। हे प्रभो! पूर्व समयमें यदुवंशी भक्त दाशार्ह तथा उनकी पत्नी कलावतीने आपकी भक्तिसे ही परम सिद्धि प्राप्त कर ली थी। हे देवेश! इसी प्रकार राजा मित्रसह तथा उनकी पत्नी मदयन्तीने भी आपकी किसे ही परम कैवल्यपदको प्राप्त किया था। नरेशकी सौमिनी नामक कन्याने आपकी भक्तिसे महायोगियोंके लिये भी दुर्लभ परम सुख प्राप्त किया था ॥ 9-11 ॥
हे प्रभो! राजाओंमें श्रेष्ठ विमर्पणने आपकी भक्तिसे सात जन्मपर्यन्त अनेक प्रकारके सुखोंका उपभोग करके सद्गति प्राप्त की थी। नृपश्रेष्ठ चन्द्रसेनने आपकी भक्तिद्वारा दुःखसे छुटकारा पाया तथा इस लोकमें एवं परलोकमें नाना प्रकारके भोग प्राप्त करते हुए वे आनन्द करते रहे । ll 12-13 ॥
महावीरके शिष्य गोपीपुत्र श्रीकरने भी आपकी भक्तिसे इस लोकमें परम सुख भोगकर परलोकमें सद्गति प्राप्त की ॥ 14 ॥
आपने [प्रसन्न होकर ] सत्यरथ नामक भूपतिका दुःख हरण किया तथा उन्हें सद्गति प्रदान की । आपने राजपुत्र धर्मगुप्तको सुखी बनाया तथा उन्हें तार दिया ।। 15 ।।
हे महाप्रभो। आपने माताके उपदेशसे आपकी भक्ति करनेवाले शुचिव्रत नामक ब्राह्मणको कृपापूर्वक धनवान् तथा ज्ञानी बना दिया ॥ 16 ॥
नृपश्रेष्ठ चित्रवमने आपको भक्तिसे इस लोकमें देवदुर्लभ सुखोंको भोगकर अन्तमें सद्गति प्राप्त की ॥ 17 ॥ चन्द्रांगद नामक राजपुत्रने अपनी स्त्री सीमन्तिनीसहित आपकी भक्तिसे सारे दुःखोंको त्यागकर सुखसम्पन्न हो महागतिको प्राप्त किया। हे शिव! मन्दर नामवाला ब्राह्मण, जो वेश्यागामी, अधम तथा महाखल था, वह भी आपकी भक्तिसे युक्त होकर आपका पूजनकर उस वेश्याके साथ सद्गतिको प्राप्त हुआ। ll 18-19॥हे प्रभो! भद्रायु नामक राजपुत्रने भी आपकी भक्तिद्वारा कृपा प्राप्तकर दुःखोंसे मुक्त हो सुख प्राप्त किया और माताके साथ परम गति प्राप्त की ॥ 20 ॥
हे महेश्वर! सदा अभक्ष्यभक्षण करनेवाला तथा सभी स्त्रियोंमें सम्भोगरत दुर्जन भी आपकी सेवासे मुक्त हो गया। हे शम्भो! चिताकी भस्म धारण करनेवाला शम्बर, जो शिवका महाभक्त था, वह नियमपूर्वक सदा चिताका भस्म धारण करनेसे शंकररूप होकर अपनी स्त्रीके साथ आपके लोकको गया ।। 21-22 ।।
हे प्रभो! [ इसी प्रकार ] भद्रसेनका पुत्र तथा उसके मन्त्रीका पुत्र, जो उत्तम धर्म तथा शुभ कर्म करते थे और सदा रुद्राक्ष धारण करते थे, वे दोनों ही आपकी कृपासे इस लोकमें उत्तम सुख भोगकर मुक्त हो गये। ये दोनों ही पूर्वजन्ममें कपि तथा कुक्कुट थे और रुद्राक्ष धारण करते थे । ll 23-24 ॥
भक्तोंका उद्धार करनेमें तत्पर रहनेवाले हे नाथ! पिंगला तथा महानन्दा नामक दो वेश्याएँ भी आपकी भक्तिसे सद्गतिको प्राप्त हुई। किसी ब्राह्मणकी शारदा नामक कन्या बालविधवा हो गयी थी, वह आपकी भक्तिके प्रभावसे पुत्रवती तथा सौभाग्यवती हो गयी ।। 25-26 ।।
नाममात्रका ब्राह्मण, वेश्यागामी बिन्दुग एवं उसकी पत्नी चंचुला दोनों ही आपका यश श्रवणकर परम गतिको प्राप्त हुए। हे प्रभो! हे महेशान! हे दीनबन्धो! हे कृपालय! इस प्रकार आपकी भक्तिसे अनेक जीवोंको सिद्धि प्राप्त हुई है। हे परमेश्वर ! आप प्रकृति तथा पुरुषसे परे ब्रह्म हैं, आप निर्गुण तथा त्रिगुणके आधार हैं और ब्रह्मा-विष्णु-हरात्मक भी आप ही हैं ।। 27-29 ॥
आप निर्विकार तथा अखिलेश्वर होकर भी नाना प्रकारके कर्म करते हैं। हे महेश्वर शंकर! हम ब्रह्मा आदि सभी देवता आपके दास हैं॥ 30 ॥
हे नाथ! हे देवेश! हे शिव! हम सभी आपकी प्रजा हैं और सदा आपके शरणागत हैं, अतः आप प्रसन्न होइये और सदा हमलोगोंकी रक्षा कीजिये ॥ 31 ॥सनत्कुमार बोले- इस प्रकार ब्रह्मादि देवता तथा सभी मुनीश्वर स्तुति करके शिवजीके चरणयुगलका ध्यान करते हुए मौन हो गये। इसके बाद महेश्वर प्रभु शंकरजी देवगणोंकी शुभ स्तुति सुनकर उन्हें श्रेष्ठ वर देकर शीघ्र अन्तर्धान हो गये ।। 32-33 ।।
शत्रुओंके मारे जानेसे ब्रह्मादि सभी देवता प्रसन्न हो गये और शिवजीके उत्तम यशका गान करते हुए अपने-अपने धामको चले गये। जलन्धरवधसे सम्बन्धित भगवान् शिवका यह श्रेष्ठ आख्यान पुण्यको देनेवाला एवं पापोंको नष्ट करनेवाला है ।। 34-35 ।।
देवताओंके द्वारा की गयी यह स्तुति पुण्य देनेवाली, समस्त पापोंको नष्ट करनेवाली, सब प्रकारके सुखोंको देनेवाली तथा सर्वदा महेशको आनन्द प्रदान करनेवाली है। जो इन दोनों आख्यानोंको पढ़ता है अथवा पढ़ाता है, वह इस लोकमें महान् सुख भोगकर [ अन्तमें] गणपतित्वको प्राप्त करता है ।। 36-37 ।।