सनत्कुमार बोले- इन्द्रसहित सभी देवता उस दैत्यको पुनः आता हुआ देखकर भयसे काँप उठे और शीघ्र ही एक साथ भाग गये। प्रजापतिको आगेकर दे सब वैकुण्ठमें गये और फिर प्रजापतिसहित सभी देवता प्रणामकर विष्णुकी स्तुति करने लगे-॥ 1-2 ॥
देवता बोले- हे हृषीकेश! हे महाबाहो ! हे भगवन्! हे मधुसूदन! हे देवदेवेश! हे सर्वदैत्य विनाशक! आपको नमस्कार है। मत्स्यरूप धारणकर | सत्यव्रत राजाके साथ प्रलयाब्धिमें विहार करनेवाले तथा वेदोंको लानेवाले मत्स्यरूप हे विष्णो! आपको नमस्कार है ।। 3-4 ॥
समुद्रमन्थनके लिये देवताओंके महान् उद्योग करते समय मन्दराचल पर्वतको धारण करनेवाले कच्छपख्य आपको नमस्कार है। मनुष्योंको आश्रय देनेवाली इस वसुन्धराको दाढ़पर धारण करनेवाले यज्ञवाराहस्वरूप हे भगवन्! आपको नमस्कार है ॥ 5-6 ॥
विप्ररूपसे दैत्येन्द्र बलिको छलनेवाले उपेन्द्र नामक वामनरूपधारी हे विष्णु ! हे विभो ! आपको नमस्कार है ॥ 7 ॥
क्षत्रियोंके क्षत्रका अन्त करनेवाले, माताका हित करनेवाले, कुपित होनेवाले तथा दुष्टजनोंका विनाश करनेवाले और परशुरामके रूपसे अवतार धारण करनेवाले आपको नमस्कार है। लोकको प्रसन्न करनेवाले, मर्यादापुरुष तथा शीघ्र रावणका वध करनेवाले और सीतापति रामके रूपमें अवतार ग्रहण | करनेवाले आपको नमस्कार है ॥ 8-9 ॥
गूढ़ ज्ञानवाले, राधाके साथ विहार करनेवाले तथा विविध लीला करनेवाले कृष्णरूपधारी आप परमात्माको नमस्कार है। गुप्त शरीर धारण करनेवाले, | योगके आचार्य तथा वेदविरुद्ध जैनरूप एवं बौद्ध रूपको धारण करनेवाले आप लक्ष्मीपतिको नमस्कार है ।। 10-11 ।।सद्धर्मकी स्थापनाके लिये म्लेच्छोंका विनाश करनेवाले, अनन्त शक्तिसे सम्पन्न तथा कल्किरूप धारण करनेवाले आपको नमस्कार है। हे प्रभो! देवहूतिके लिये कपिलरूप धारणकर सांख्ययोगका उपदेश करनेवाले आप महात्मा सांख्याचार्यको नमस्कार है ॥ 12-13 ll
परमहंसरूपसे आत्ममुक्तिपरक परम उनका उपदेश करनेवाले, ज्ञानरूप विधाता आपको नमस्कार है ।। 14 ।।
समस्त लोकोंके हितके लिये पुराणोंकी रचना करनेवाले तथा वेदोंका विभाग करनेवाले वेदव्यासरूपधारी आपको नमस्कार है। इस प्रकार मत्स्यादिरूपोंसे भक्तोंके कार्य के लिये तत्पर रहनेवाले तथा सृष्टि, पालन एवं प्रलय करनेवाले ब्रह्मरूप हे प्रभो! आपको नमस्कार है ।। 15-16 ।। अपने दासोंके दुःखोंको दूर करनेवाले,
सुखद, शुभस्वरूप, गरुड़पर सवारी करनेवाले, पीताम्बरधारी आप विष्णुको नमस्कार है। सभी
क्रियाओंके एकमात्र कर्ता तथा शरणागतरक्षक आपको
बार-बार नमस्कार है ॥ 17 ॥ दैत्योंके द्वारा सन्तप्त देवताओंके दुःखका नाश करनेवाले हे वज्रस्वरूप! शेषरूपी शय्यापर शयन करनेवाले तथा सूर्यचन्द्रनेवाले आपको नमस्कार है। ll 18 ॥
हे कृपासागर हे रमानाथ हम शरणागतोंकी रक्षा कीजिये, जलन्धरने सभी देवताओंको स्वर्गसे निकाल दिया है। उसने सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्निको उनके स्थानसे हटा दिया है तथा पातालसे नागराजको और धर्मराजको भी निकाल दिया है । ll 19-20 ।।
वे देवता मनुष्योंके समान भटक रहे हैं, इससे वे शोभित नहीं हो रहे हैं। इसलिये हम आपकी शरण में आये हुए हैं, आप उसके वधका उपाय सोचिये ॥ 21 ॥
सनत्कुमार बोले- तब करुणासिन्धु मधुसूदन देवताओंका यह दीन वचन सुनकर मेघके समान गम्भीर वाणीमें कहने लगे- ॥ 22 ॥
विष्णुजी बोले- हे देवताओ! आपलोग भयका त्याग कीजिये, मैं स्वयं युद्धमें जाऊँगा और दैत्य जलन्धरसे युद्ध करूंगा। इस प्रकार कहकर दुखी मनवाले भक्तवत्सल दैत्यारि विष्णु अनुग्रहपूर्वक सहसा उठकर गरुड़पर वेगसे सवार हो गये ।। 23-24 ॥उस समय देवताओंके साथ जाते हुए अपने पति [विष्णु] को देखकर जल भरकर हाथ जोड़कर समुद्रपुत्री लक्ष्मीजीने यह वचन कहा- ।। 25 ।। लक्ष्मीजी बोलीं- हे नाथ! यदि मैं आपकी प्रिया
और सदा आपकी भक्त हूँ, तो हे कृपानाथ! आप मेरे
भाईका वध युद्धमें कैसे कर सकते हैं ? ॥ 26 ॥ विष्णुजी बोले- मैं उस जलन्धरके साथ अपना पराक्रम करूँगा, देवोंने मेरी स्तुति की है, अतः मैं शीघ्र ही युद्धके लिये जाऊँगा, किंतु रुद्रांशसे उसके उत्पन्न होने, ब्रह्माको वचन देने तथा तुम्हारी प्रीतिके कारण इस जलन्धरका वध नहीं करूँगा ll 27-28 ॥
सनत्कुमार बोले- यह कहकर विष्णु शंख, चक्र, गदा तथा तलवार धारणकर गरुड़पर सवार हो गये और इन्द्रादि देवताओंको साथ लेकर युद्ध करनेके लिये वेगपूर्वक चल पड़े। विष्णुके तेजसे प्रकाशित होते देवताओंके साथ सिंहनाद करते हुए वे [विष्णु] शीघ्र वहाँ पहुँचे, जहाँ वह जलन्धर था। उस समय अरुणके लघु भ्राता गरुड़के पंखोंके वायुवेगसे पीड़ित हुए दैत्य इस प्रकार चक्कर काटने लगे, जैसे वायुके द्वारा उड़ाये गये बादल आकाशमण्डलमें घूमने लगते हैं ॥ 29 - 31 ॥
28. तब वायुके वेगसे पीड़ित हुए दैत्योंको देखकर अमर्षयुक्त वचन कहता हुआ जलन्धर बड़ी तेजीसे विष्णुपर झपटा। इसी बीच विष्णुके तेजसे देदीप्यमान महाबलशाली देवता भी प्रसन्न होकर युद्ध करने लगे ।। 32-33 ।।
तब वहाँपर उपस्थित देवसेनाको युद्धके लिये उद्यत देखकर जलन्धरने युद्धमें दुर्मद दैत्योंको आज्ञा दी ॥ 34 ॥
जलन्धर बोला- हे श्रेष्ठ दैत्यो! तुमलोग सदासे कायर, किंतु प्रबल इन इन्द्रादि देवताओंके साथ आज अत्यन्त कठिन युद्ध करो ॥ 35 ॥
एक लाख संख्यावाले मौर्य, सौ संख्यावाले धौम्र, करोड़ोंकी संख्यावाले कालकेय, एक लाखकी संख्यावाले कालक दौर्हृद तथा कंक नामक असुर तथा अन्य असुर भी मेरी आज्ञासे अपनी-अपनीसेनाओंके साथ निकलें। सभी लोग सज्जित होकर विशाल सेनाओंसे युक्त हो अनेक प्रकारके अस्त्र शस्त्र धारण किये हुए निर्भय एवं संशयरहित होकर निकल पड़ें। हे शुम्भ एवं निशुम्भ ! महाबलवान् तुम दोनों क्षणमात्रमें युद्ध करनेमें कायर तथा तुच्छ देवताओंका विनाश कर दो ।। 36-39 ॥
सनत्कुमार बोले- जब जलन्धरने इस प्रकार दैत्योंको आज्ञा दी, तब युद्धविशारद वे समस्त असुर अपनी चतुरंगिणी सेना लेकर युद्ध करने लगे ॥ 40 ॥ वे गदा, तीक्ष्ण बाण, शूल, पट्टिश, तोमर, परशु और शूलादि अस्त्रोंसे एक-दूसरेपर प्रहार करने लगे ॥ 41 ॥
विष्णुके बलसे युक्त वे महाबलवान् देवगण सेनाओंको साथ लेकर अनेक प्रकारके श्रेष्ठ आयुधोंसे प्रहार करने लगे। वे सिंहके समान गर्जन करते हुए तथा बाणोंको छोड़ते हुए युद्ध कर रहे थे। कोई तीक्ष्ण बाणोंसे, कोई मूसलों और तोमरोंसे तथा कोई परशुसे एवं त्रिशूलसे एक-दूसरेपर प्रहार कर रहे थे। इस प्रकार देव-दानवोंमें महाभयंकर संग्राम छिड़ गया, जो मुनियों तथा सिद्धोंमें भय उत्पन्न करनेवाला था ।। 42 - 44 ॥