व्यासजी बोले- हे ब्रह्मपुत्र ! हे महाप्राज्ञ ! हे वक्ताओंमें श्रेष्ठ! अब मुझे बताइये कि उसके बाद क्या हुआ और देवगण किस प्रकार सुखी हुए ? ॥ 1 ॥
ब्रह्माजी बोले- महाबुद्धिमान् व्यासजीका यह वचन सुनकर शिवजीके चरणकमलोंका स्मरण करके सनत्कुमारजीने कहा- ॥ 2 ॥
सनत्कुमार बोले- तब उनके तेजसे दग्ध हुए इन्द्रादि देवता दुखी हो परस्पर मन्त्रणाकर ब्रह्माजीकी शरणमें गये ॥ 3 ॥
वे सभी निस्तेज देवता प्रीतिपूर्वक पितामहको प्रणाम करके अवसर देखकर उनसे अपना दुःख कहने लगे ll 4 ॥
देवता बोले- हे विधाता! तारकपुत्रोंसहित त्रिपुरनाथ मयके द्वारा सभी देवता अत्यधिक पीड़ित किये जा रहे हैं इसलिये हे ब्रह्मन्! हमलोग दुखी होकर आपकी शरणमें आये हैं; आप उनके वधका कोई उपाय कीजिये, जिससे हमलोग सुखी हो जायँ ॥ 5-6 ॥सनत्कुमार बोले- देवगणोंके इस प्रकार कहने पर सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी मयसे डरे हुए उन समस्त देवताओंसे हँसकर कहने लगे- ॥7॥
ब्रह्माजी बोले- हे देवताओ! आपलोग उन दैत्योंसे बिलकुल मत डरिये, मैं उनके वधका उपाय बता रहा हूँ; शिवजी कल्याण करेंगे। मैंने हो इस दैत्यको बढ़ाया है, अतः मेरे हाथों इसका वध होना उचित नहीं है और इस समय त्रिपुरके नगरमें निरन्तर पुण्य बढ़ हो रहा है ॥ 8-9 ॥
अतः इन्द्रसहित सभी देवता शिवजीसे प्रार्थना करें। यदि वे सर्वाधीश प्रसन्न हो जायें, तो आपलोगोंक कार्यको पूर्ण करेंगे ll 10 ॥
सनत्कुमार बोले- तब ब्रह्माजीको बात सुनकर इन्द्रसहित सभी देवता दुखी होकर वहाँ गये, जहाँ शिवजी थे हाथ जोड़कर बड़ी भक्तिसे देवेशको प्रणाम करके सिर झुकाकर वे सब लोककल्याणकारी शंकरकी स्तुति करने लगे ll 11-12 ll देवगण बोले- सम्पूर्ण सृष्टिका विधान करनेवाले हिरण्यगर्भ ब्रह्मास्वरूप आप शिवको नमस्कार है। पालन करनेवाले विष्णुस्वरूप आपको नमस्कार है ॥ 13 ll
सम्पूर्ण प्राणियोंका संहार करनेवाले हरस्वरूप आपको नमस्कार है। निर्गुण तथा अमिततेजस्वी आप शिवको नमस्कार है। अवस्थाओंसे रहित, निर्विकार, तेजस्वरूप, महाभूतोंमें आत्मस्वरूपसे वर्तमान, निर्लिप्त एवं महान् आत्मावाले आप महात्माको नमस्कार है ।। 14-15 ।।
सम्पूर्ण प्राणियोंके अधिपति, शेषरूपसे पृथ्वीका भार उठानेवाले, तृष्णाको नष्ट करनेवाले, शान्त प्रकृतिवाले तथा अमिततेजस्वी आप शिवको नमस्कार है ॥ 16 ॥ महादैत्यरूपी महावनको विनष्ट करनेके लिये दावाग्निके स्वरूप एवं दैत्यरूपी वृक्षोंके लिये कुठारस्वरूप आप शूलपाणिको नमस्कार है ॥ 17 ॥
महादैत्योंका नाश करनेवाले हे परमेश्वर! आपको नमस्कार है। हे सभी अस्त्रोंके धारणकर्ता ! आप अम्बिकापतिको नमस्कार है। हे पार्वतीनाथ! हे परमात्मन्! हे महेश्वर! आपको नमस्कार है। आप नीलकण्ठ, रुद्र तथा रुद्रस्वरूपको नमस्कार है ॥ 18-19 llवेदान्तसे जाननेयोग्य आपको नमस्कार है। सभी मार्गोसे अगम्य आपको नमस्कार है। गुणस्वरूप, गुणोंको धारण करनेवाले एवं गुणोंसे सर्वथा रहित आपको नमस्कार है त्रिलोकीको आनन्द देनेवाले हे महादेव! आपको नमस्कार है। प्रद्युम्न अनिरुद्ध एवं वासुदेवस्वरूप आपको नमस्कार है। संकर्षणदेव एवं कंसनाशक आपको नमस्कार है। चाणूरका मर्दन करनेवाले एवं विरक्त रहनेवाले हे दामोदर! आपको नमस्कार है ।। 20-22 ॥
हे हृषीकेश ! हे अच्युत हे विभो ! हे मृड! हे शंकर! हे अधोक्षज! हे गजासुरके शत्रु ! हे कामशत्रु हे विषभक्षक ! आपको नमस्कार है ॥ 23 ॥
नारायणदेव, नारायणपरायण, नारायणस्वरूप तथा सर्वरूप हे नारायणतनूद्भव! आपको नमस्कार है। महानरकसे बचानेवाले तथा पापोंको दूर करनेवाले है वृषभवाहन! आपको नमस्कार है ।। 24-25 ।।
क्षण आदि कालरूपवाले, अपने भक्तोंको बल प्रदान करनेवाले, अनेक रूपोंवाले तथा दैत्योंके समूहका नाश करनेवाले, ब्रह्मण्यदेवस्वरूप, गौ तथा ब्राह्मणोंका हित करनेवाले, सहस्रमूर्ति तथा सहस अवयवोंवाले आपको नमस्कार है ।। 26-27 ।।
धर्मरूप, सत्त्वस्वरूप तथा सत्त्वात्मरूप हे हर ! आपको नमस्कार है। वेदोंके द्वारा जाननेयोग्य स्वरूपवाले तथा वेदप्रिय आपको नमस्कार है। वेदस्वरूप एवं वेदके वक्ता आपको नमस्कार है। सदाचारके मार्ग से जाननेयोग्य एवं सदाचारके मार्गपर चलनेवाले आपको बार-बार नमस्कार है ।। 28-29 ।।
विष्टरश्रवा (विष्णु) तथा सत्यमय आपको नमस्कार है। सत्यप्रिय, सत्यस्वरूप तथा सत्यसे प्राप्त होनेवाले आपको नमस्कार है। मायाको अपने अधीन रखनेवाले आपको नमस्कार है। मायाके अधिपति आपको नमस्कार है। सामवेदस्वरूप, ब्रह्मस्वरूप तथा ब्रह्मासे उत्पन्न होनेवाले आपको नमस्कार है ॥ 30-31 ll
हे ईश! आप तपःस्वरूप, तपस्याका फल देनेवाले, स्तुतिके योग्य, स्तुतिरूप, स्तुतिसे प्रसन्नचित्त, श्रुतिके आचारसे प्रसन्न रहनेवाले, स्तुतिप्रिय, जरायुज अण्डज आदि चार स्वरूपोंवाले एवं जल-थलमें प्रकट स्वरूपवाले हैं, आपको नमस्कार है। ll 32-33 ॥हे नाथ! सभी देवता आदि श्रेष्ठ होनेसे आपकी विभूति हैं। आप सभी देवताओंमें इन्द्रस्वरूप हैं और ग्रहोंमें आप सूर्य माने गये हैं ॥ 34 ॥ आप लोकोंमें सत्यलोक, सरिताओंमें गंगा,
वर्णोंमें श्वेत वर्ण और सरोवरोंमें मानसरोवर हैं॥ 35 ॥ आप पर्वतोंमें हिमालय, गायोंमें कामधेनु, समुद्र में
क्षीरसागर एवं धातुओंमें सुवर्ण हैं ॥ 36 ॥ हे शंकर! आप वर्णोंमें ब्राह्मण, मनुष्योंमें राजा, मुक्तिक्षेत्रोंमें काशी तथा तीर्थोंमें प्रयाग हैं। हे महेश्वर ! आप समस्त पाषाणोंमें स्फटिक मणि, पुष्पोंमें कमल तथा पर्वतोंमें हिमालय हैं ।। 37-38 ।।
आप व्यवहारोंमें वाणी हैं, कवियोंमें भार्गव, पक्षियोंमें शरभ और हिंसक प्राणियोंमें सिंह कहे गये हैं ।। 39 ।। हे वृषभध्वज ! आप शिलाओंमें शालग्रामशिला और सभी पूज्योंमें नर्मदा लिंग हैं। हे परमेश्वर आप पशुओंमें नन्दीश्वर नामक वृषभ (बैल), वेदोंमें उपनिषद्रूप और यह करनेवालोंमें चन्द्रमा हैं ।। 40-41 ।।
आप तेजस्वियोंमें अग्नि, शैवोंमें विष्णु, पुराणोंमें महाभारत तथा अक्षरोंमें मकार हैं। बीजमन्त्रोंमें प्रणव
(ओंकार), दारुण पदार्थोंमें विष, व्यापक वस्तुओंमें
आकाश तथा आत्माओंमें परमात्मा हैं ॥ 42-43 ।।
आप सम्पूर्ण इन्द्रियोंमें मन, सभी प्रकारके दानोंमें अभयदान, पवित्र करनेवालोंमें जल तथा जीवित करनेवाले पदार्थोंमें अमृत हैं ॥ 44 ॥ आप लाभों में पुत्रलाभ तथा वेगवानोंमें वायु हैं। आप सभी प्रकारके नित्यकर्मोंमें सन्ध्योपासन कहे गये हैं ।। 45 ।।
आप सम्पूर्ण यज्ञोंमें अश्वमेधयज्ञ, युगोंमें सत्ययुग,
नक्षत्रोंमें पुष्य तथा तिथियोंमें अमावास्या हैं 46 आप सभी ऋतुओंमें वसन्त पर्वोंमें संक्रान्ति, तृणोंमें कुश और स्थूल वृक्षोंमें वटवृक्ष हैं 47॥ ॥ आप योगोंमें व्यतीपात, लताओंमें सोमलता, बुद्धियोंमें धर्मबुद्धि तथा सुहृदोंमें कलत्र हैं। हे महेश्वर! आप सम्पूर्ण पवित्र साधनोंमें प्राणायाम हैं तथा सभी ज्योतिर्लिंगों में विश्वेश्वर कहे गये हैं ।। 48-49 ।।आप सभी बन्धुओंमें धर्म, आश्रमोंमें संन्यासाश्रम, सभी वर्गोंमें मोक्ष तथा रुद्रोंमें नीललोहित हैं ॥ 50 ॥ आप आदित्योंमें वासुदेव, वानरोंमें हनुमान्,
यज्ञोंमें जपयज्ञ तथा शस्त्रधारियोंमें राम हैं ॥ 51 ॥ आप गन्धर्वों में चित्ररथ, वसुओंमें पावक, मासोंमें अधिमास और व्रतोंमें चतुर्दशीव्रत हैं ॥ 52 ॥
आप गजेन्द्रोंमें ऐरावत, सिद्धोंमें कपिल, नागोंमें अनन्त और पितरोंमें अर्यमा माने गये हैं। आप कलना करनेवालोंमें काल तथा दैत्योंमें बलि हैं। हे देवेश! अधिक कहनेसे क्या लाभ आप सारे जगत्को आक्रान्तकर बाहर तथा भीतर सर्वत्र एकांशरूपसे स्थित हैं ॥ 53-55 ॥ सनत्कुमार बोले - हे मुने! इस प्रकार सिर झुकाकर हाथ जोड़कर अनेक प्रकारके दिव्य स्तोत्रोंसे त्रिशूलधारी परमेश्वर, वृषभध्वज महादेवकी स्तुतिकर स्वार्थसाधनमें कुशल इन्द्र आदि सभी देवता अत्यन्त दीन हो प्रस्तुत स्वार्थकी बात कहने लगे- ॥ 56-57॥ देवता बोले- हे महादेव ! हे भगवन्! इन्द्रसहित सभी देवताओंको तारकासुरके तीनों पुत्रोंने पराजित कर दिया। उन्होंने समस्त त्रैलोक्यको अपने वशमें कर लिया है। उन लोगोंने सभी मुनिवरों तथा सिद्धोंका विध्वंस कर दिया है और सारे जगत्को तहस-नहस कर दिया है। वह भयंकर दैत्य समस्त यज्ञभागोंको स्वयं ग्रहण करता है। उन तारकपुत्रोंने वेदविरुद्ध अधर्मको बढ़ावा दे रखा है ॥ 58-60 ॥
हे शंकर! वे तारकपुत्र सभी प्राणियोंसे निश्चित रूपसे अवध्य हैं, सभी लोग उन्हींकी इच्छासे कार्य करते हैं ॥ 61 ॥
जबतक त्रिपुरवासी दैत्योंके द्वारा जगत्का विध्वंस नहीं हो जाता है, तबतक आप ऐसी नीतिका निर्धारण करें, जिससे जगत्की रक्षा हो सके ॥ 62 ॥
सनत्कुमार बोले- वार्तालाप करते हुए उन इन्द्रादि देवताओंका यह वचन सुनकर शिवजीने कहा- ।। 63 ।।