View All Puran & Books

शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 3 (पार्वती खण्ड) , अध्याय 16 - Sanhita 2, Khand 3 (पार्वती खण्ड) , Adhyaya 16

Previous Page 111 of 466 Next

तारकासुरसे उत्पीड़ित देवताओंको ब्रह्माजीद्वारा सान्त्वना प्रदान करना

ब्रह्माजी बोले- उसके बाद तारकासुरसे पीड़ित वे समस्त देवता मुझ प्रजापतिको भलीभाँति प्रणामकर परम भक्तिसे स्तुति करने लगे ॥ 1 ॥ देवताओंकी यथार्थ एवं हृदयग्राही सरस स्तुति सुनकर अत्यन्त प्रसन्न होकर मैंने उन देवताओंसे कहा- ॥ 2 ॥

हे देवताओ! आपलोगोंका स्वागत है। आपलोगोंक अधिकार निर्विघ्न तो हैं? आप सब यहाँ किस निमित्त आये हैं, मुझसे कहिये। मेरी यह बात सुनकर तारकासुरसे पीड़ित वे सभी देवता मुझे प्रणाम करके विनयी हो दीनतापूर्वक मुझसे कहने लगे- ॥ 3-4 ॥ देवता बोले- हे लोकेश ! आपके वरदानसे अभिमानमें भरे हुए तारक असुरने हठपूर्वक हमलोगों को अपने स्थानोंसे वंचितकर उन्हें बलपूर्वक स्वयं ग्रहण कर लिया है। हमलोगोंके समक्ष जो दुःख उपस्थित हुआ है, क्या आप उसे नहीं जानते हैं? हमलोग आपकी शरणमें आये हैं, उस दुःखका शीघ्र निवारण कीजिये 5-6॥ हमलोग जहाँ कहीं भी जाते हैं, वह असुर रात दिन हमलोगोंको पीड़ित करता है। हम जहाँ भी भागकर जाते हैं, वहाँ तारकको ही देखते हैं ॥ 7 ॥हे सर्वेश्वर हमलोगोंके समक्ष तारकासुरसे जैसा भय उपस्थित हो गया है, वह दुःख सहा नहीं जा रहा है। हमलोग उसी पीड़ासे अत्यन्त व्याकुल हैं॥ 8 ॥ अग्नि, यम, वरुण, निर्ऋति, वायु एवं अन्य समस्त दिक्पाल उसके वशमें हो गये हैं। सभी देवता | अपने समस्त परिकरोंसहित मनुष्यधर्मा हो गये हैं और उसकी सेवा करते हैं। वे किसी प्रकार भी स्वतन्त्र नहीं हैं ।। 9-10 ॥

इस प्रकार उससे पीड़ित होकर सभी देवता सदा उसके वशवर्ती हो गये हैं और उसकी इच्छाके अनुसार कार्य करते हैं तथा उसके अनुजीवी हो गये हैं ॥ 11 ॥ उस महाबली तारकने जितनी भी सुन्दर स्त्रियाँ हैं तथा अप्सराएँ हैं, उन सबको ग्रहण कर लिया है ॥ 12 ॥ अब यज्ञ-याग सम्पन्न नहीं होते, तपस्वी लोग तपस्या भी नहीं कर पाते। लोकोंमें दान, धर्म आदि कुछ भी नहीं हो रहा है। उसका सेनापति दानव क्रौंच अत्यन्त पापी है। वह पाताललोकमें जाकर प्रजाओंको निरन्तर पीड़ित करता है। हे जगद्धाता! उस निष्करुण तथा पापी तारकने हमारे सम्पूर्ण त्रिलोकको बलपूर्वक अपने वशमें कर लिया है। अब आप ही जो स्थान बतायें, वहाँ हमलोग जायें। हे लोकनाथ! उस देवशत्रुने हमलोगोंको अपने-अपने स्थानोंसे हटा दिया है। अब आप ही हमलोगोंके शरणदाता हैं। आप ही हमारे शासक, रक्षक तथा पोषक हैं। हम सभी लोग तारक नामक अग्निमें दग्ध होकर बहुत व्याकुल हो रहे हैं । ll 13-17 ॥

जिस प्रकार सन्निपात नामक विकारमें बलवान् औषधियाँ भी निष्फल हो जाती हैं, उसी प्रकार उसने हमारे सभी कठोर उपायोंको निष्फल कर दिया है ॥ 18 ॥

भगवान् विष्णुके जिस सुदर्शन नामक चक्रसे हमलोगोंको विजयकी आशा थी, वह उसके कण्ठमें पुष्पके समान लगकर कुण्ठित हो गया है ।। 19 ।। ब्रह्माजी बोले- हे मुने! देवताओंके इस वचनको सुनकर मैं सभी देवताओंसे समयोचित बात कहने लगा- ॥ 20 ॥ब्रह्माजी बोले- हे देवगणो। मेरे वरदानके कारण ही वह तारक नामक दैत्य बलवान् हुआ है। अतः मेरे द्वारा उसका वध उचित नहीं है। जिसके द्वारा वह वृद्धिको प्राप्त हुआ है, उसीसे उसका वध उचित नहीं है। विषवृक्षको भी बढ़ाकर उसे स्वयं काटना अनुचित है ॥ 21-22 ।।

शिवजी ही आपलोगोंका सारा कार्य कर सकनेयोग्य हैं, किंतु वे स्वयं कुछ नहीं करेंगे, प्रेरणा करनेपर वे इसका प्रतीकार करनेमें समर्थ हैं ॥ 23 ॥ तारकासुर स्वयं अपने पापसे नष्ट होगा। मैं जैसा उपदेश करता है, वैसा आपलोग करें ॥ 24 ॥

मेरे वरके प्रभावसे न मैं, न विष्णु, न शंकर, न दूसरा कोई और न सभी देवता ही तारकका वध कर सकते हैं, यह मैं सत्य कह रहा हूँ। हे देवताओ। यदि शिवजीके वीर्यसे कोई पुत्र उत्पन्न हो, तो वही तारक दैत्यका वध कर सकता है, दूसरा नहीं ॥ 25-26 ।।

हे श्रेष्ठ देवताओ! मैं जो उपाय बता रहा है, उसे आपलोग कीजिये, वह उपाय महादेवजीकी कृपासे अवश्य सिद्ध होगा। पूर्वकालमें जिन दक्षकन्या सतीने [दक्षके यज्ञमें] अपने शरीरका त्याग किया था, वे ही [इस समय ] मेनाके गर्भसे उत्पन्न हुई हैं, यह बात आपलोगोंको ज्ञात ही है । 27-28 ॥ हे देवगणो! महादेवजी उनका पाणिग्रहण अवश्य करेंगे, तथापि आपलोग भी उसका उपाय करें ॥ 29 ॥ आपलोग यत्नपूर्वक ऐसा उपाय कीजिये कि मेनाकी पुत्री पार्वतीमें शिवजीके वीर्यका आधान हो ॥ 30 ॥

ऊवरिता शंकरको च्युतवीर्य करनेमें वे ही समर्थ हैं, कोई अन्य स्त्री समर्थ नहीं है ॥ 31 ll

पूर्ण यौवनवाली वे गिरिराजपुत्री इस समय हिमालयपर तपस्या करते हुए शंकरकी नित्य सेवा करती हैं ॥ 32 ॥

अपने पिता हिमवान्के कहनेसे वे काली शिवा अपनी दो सखियोंके साथ ध्यानपरायण परमेश्वर शिवकी हठपूर्वक सेवा कर रही हैं। सेवामें तत्पर उन त्रैलोक्य सुन्दरीको सामने देखकर ध्यानमग्न महेश्वर मनसे भी विचलित नहीं होते ।। 33-34 ॥हे देवताओ वे चन्द्रशेखर जिस प्रकार कालीको भारूपमें स्वीकार करें. आपलोग शीघ्र ही वैसा प्रयत्न करें। मैं भी उस दैत्यके स्थानपर जाकर उस तारकको दुराग्रहसे रोकूंगा। हे देवताओ अब आपलोग अपने स्थानको जाइये। देवताओंसे इस प्रकार कहकर मैं शीघ्र ही तारक नामक असुरके पास जाकर उसे प्रेमपूर्वक बुलाकर कहने लगा- ॥ 35-37 ॥

ब्रह्माजी बोले- [हे तारक!] तुम तेजोंके सारस्वरूप इस स्वर्गका राज्य कर रहे हो। जिसके लिये तुमने उत्तम तपस्या की थी, उससे भी अधिककी इच्छा रखते हो ॥ 38 ॥

मैंने [तुम्हें] इससे छोटा ही वर दिया था, मैंने तुम्हें स्वर्गका राज्य नहीं दिया था, इसलिये तुम स्वर्गका राज्य छोड़कर पृथिवीपर राज्य करो ॥ 39 ॥ हे असुरश्रेष्ठ! इसमें तुम किसी प्रकार विचार मत करो, वहाँ भी बहुत-से देवताओंके योग्य कार्य हैं ॥ 40 ॥ सभीका ईश्वर मैं इस प्रकार उस असुरसे कहकर और उसे समझाकर शिवासहित शिवका ध्यान करके वहीं अन्तर्धान हो गया। उसके बाद तारक भी स्वर्गको छोड़कर पृथिवीपर आ गया और वह शोणित नामक नगरमें रहकर राज्य करने लगा। सभी देवगण भी मेरा वचन सुनकर मुझे सादर प्रणाम करके समाहितचित्त हो इन्द्रके साथ इन्द्रपुरीको गये । ll 41-43 ।।

वहाँ जाकर मिल करके आपसमें विचार करके उन सब देवताओंने इन्द्रसे प्रेमपूर्वक कहा- 44 ॥ देवता बोले- हे इन्द्र जिस प्रकार भगवान् शंकर सकाम होकर शिवाकी अभिलाषा करें, ब्रह्माजीके द्वारा बताया हुआ वह सारा प्रयत्न आपको करना चाहिये ।। 45 ।।

ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार इन्द्रसे सम्पूर्ण वृत्तान्त निवेदित करके वे देवता प्रसन्नतापूर्वक सब और अपने-अपने स्थानको चले गये॥ 46 ॥

Previous Page 111 of 466 Next

शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] पितरोंकी कन्या मेनाके साथ हिमालयके विवाहका वर्णन
  2. [अध्याय 2] पितरोंकी तीन मानसी कन्याओं-मेना, धन्या और कलावतीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त तथा सनकादिद्वारा प्राप्त शाप एवं वरदानका वर्णन
  3. [अध्याय 3] विष्णु आदि देवताओंका हिमालयके पास जाना, उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बाकी स्तुति करना
  4. [अध्याय 4] उमादेवीका दिव्यरूपमें देवताओंको दर्शन देना और अवतार ग्रहण करनेका आश्वासन देना
  5. [अध्याय 5] मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न होकर देवीका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेनासे मैनाकका जन्म
  6. [अध्याय 6] देवी उमाका हिमवान्‌के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, देवीका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे वार्तालाप तथा पुनः नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना
  7. [अध्याय 7] पार्वतीका नामकरण तथा उनकी बाललीलाएँ एवं विद्याध्ययन
  8. [अध्याय 8] नारद मुनिका हिमालयके समीप गमन, वहाँ पार्वतीका हाथ देखकर भावी लक्षणोंको बताना, चिन्तित हिमवान्‌को शिवमहिमा बताना तथा शिवसे विवाह करनेका परामर्श देना
  9. [अध्याय 9] पार्वतीके विवाहके सम्बन्धमें मेना और हिमालयका वार्तालाप, पार्वती और हिमालयद्वारा देखे गये अपने स्वप्नका वर्णन
  10. [अध्याय 10] शिवजीके ललाटसे भौमोत्पत्ति
  11. [अध्याय 11] भगवान् शिवका तपस्याके लिये हिमालयपर आगमन, वहाँ पर्वतराज हिमालयसे वार्तालाप
  12. [अध्याय 12] हिमवान्‌का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा मांगना, शिवद्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना
  13. [अध्याय 13] पार्वती और परमेश्वरका दार्शनिक संवाद, शिवका पार्वतीको अपनी सेवाके लिये आज्ञा देना, पार्वतीका महेश्वरकी सेवामें तत्पर रहना
  14. [अध्याय 14] तारकासुरकी उत्पत्तिके प्रसंगों दितिपुत्र बज्रांगकी कथा, उसकी तपस्या तथा वरप्राप्तिका वर्णन
  15. [अध्याय 15] वरांगीके पुत्र तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुरकी तपस्या एवं ब्रह्माजीद्वारा उसे वरप्राप्ति, वरदानके प्रभावसे तीनों लोकोंपर उसका अत्याचार
  16. [अध्याय 16] तारकासुरसे उत्पीड़ित देवताओंको ब्रह्माजीद्वारा सान्त्वना प्रदान करना
  17. [अध्याय 17] इन्द्रके स्मरण करनेपर कामदेवका उपस्थित होना, शिवको तपसे विचलित करनेके लिये इन्द्रद्वारा कामदेवको भेजना
  18. [अध्याय 18] कामदेवद्वारा असमयमें वसन्त ऋतुका प्रभाव प्रकट करना, कुछ क्षणके लिये शिवका मोहित होना, पुनः वैराग्य भाव धारण करना
  19. [अध्याय 19] भगवान् शिवकी नेत्रज्वालासे कामदेवका भस्म होना और रतिका विलाप, देवताओं द्वारा रतिको सान्त्वना प्रदान करना और भगवान् शिवसे कामको जीवित करनेकी प्रार्थना करना
  20. [अध्याय 20] शिवकी क्रोधाग्निका वडवारूप धारण और ब्रह्माद्वारा उसे समुद्रको समर्पित करना
  21. [अध्याय 21] कामदेवके भस्म हो जानेपर पार्वतीका अपने घर आगमन, हिमवान् तथा मेनाद्वारा उन्हें धैर्य प्रदान करना, नारदद्वारा पार्वतीको पंचाक्षर मन्त्रका उपदेश
  22. [अध्याय 22] पार्वतीकी तपस्या एवं उसके प्रभावका वर्णन
  23. [अध्याय 23] हिमालय आदिका तपस्यानिरत पार्वतीके पास जाना, पार्वतीका पिता हिमालय आदिको अपने तपके विषयमें दृढ़ निश्चयकी बात बताना, पार्वतीके तपके प्रभावसे त्रैलोक्यका संतप्त होना, सभी देवताओंका भगवान् शंकरके पास जाना
  24. [अध्याय 24] देवताओंका भगवान् शिवसे पार्वतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, भगवान्का विवाहके दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करनेपर स्वीकार कर लेना
  25. [अध्याय 25] भगवान् शंकरकी आज्ञासे सप्तर्षियोंद्वारा पार्वतीके शिवविषयक अनुरागकी परीक्षा करना और वह वृत्तान्त भगवान् शिवको बताकर स्वर्गलोक जाना
  26. [अध्याय 26] पार्वतीकी परीक्षा लेनेके लिये भगवान् शिवका जटाधारी ब्राह्मणका वेष धारणकर पार्वतीके समीप जाना, शिव-पार्वती संवाद
  27. [अध्याय 27] जटाधारी ब्राह्मणद्वारा पार्वतीके समक्ष शिवजीके स्वरूपकी निन्दा करना
  28. [अध्याय 28] पार्वतीद्वारा परमेश्वर शिवकी महत्ता प्रतिपादित करना और रोषपूर्वक जटाधारी ब्राह्मणको फटकारना, शिवका पार्वतीके समक्ष प्रकट होना
  29. [अध्याय 29] शिव और पार्वतीका संवाद, विवाहविषयक पार्वतीके अनुरोधको शिवद्वारा स्वीकार करना
  30. [अध्याय 30] पार्वतीके पिताके घरमें आनेपर महामहोत्सवका होना, महादेवजीका नटरूप धारणकर वहाँ उपस्थित होना तथा अनेक लीलाएँ दिखाना, शिवद्वारा पार्वतीकी याचना, किंतु माता-पिताके द्वारा मना करनेपर अन्तर्धान हो जाना
  31. [अध्याय 31] देवताओंके कहनेपर शिवका ब्राह्मण वेषमें हिमालयके यहाँ जाना और शिवकी निन्दा करना
  32. [अध्याय 32] ब्राह्मण वेषधारी शिवद्वारा शिवस्वरूपकी निन्दा सुनकर मेनाका कोपभवनमें गमन शिवद्वारा सप्तर्षियोंका स्मरण और उन्हें हिमालयके घर भेजना, हिमालयकी शोभाका वर्णन तथा हिमालयद्वारा सप्तर्षियोंका स्वागत
  33. [अध्याय 33] वसिष्ठपत्नी अरुन्धती reद्वारा मेना को समझाना तथा
  34. [अध्याय 34] सप्तर्षियोंद्वारा हिमालयको राजा अनरण्यका आख्यान सुनाकर पार्वतीका विवाह शिवसे करनेकी प्रेरणा देना
  35. [अध्याय 35] धर्मराजद्वारा मुनि पिप्पलादकी भार्या सती पद्माके पातिव्रत्यकी परीक्षा, पद्माद्वारा धर्मराजको शाप प्रदान करना तथा पुनः चारों युगोंमें शापकी व्यवस्था करना, पातिव्रत्यसे प्रसन्न हो धर्मराजद्वारा पद्माको अनेक वर प्रदान करना, महर्षि वसिष्ठद्वारा हिमवान्से पद्माके दृष्टान्तद्वारा अपनी पुत्री शिवको सौंपनेके लिये कहना
  36. [अध्याय 36] सप्तर्षियोंके समझानेपर हिमवान्‌का शिवके साथ अपनी पुत्रीके विवाहका निश्चय करना, सप्तर्षियोंद्वारा शिवके पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त बताकर अपने धामको जाना
  37. [अध्याय 37] हिमालयद्वारा विवाहके लिये लग्नपत्रिकाप्रेषण, विवाहकी सामग्रियोंकी तैयारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियोंका दिव्य रूपमें सपरिवार हिमालयके घर आगमन
  38. [अध्याय 38] हिमालयपुरीकी सजावट, विश्वकर्माद्वारा दिव्यमण्डप एवं देवताओंके निवासके लिये दिव्यलोकोंका निर्माण करना
  39. [अध्याय 39] भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना
  40. [अध्याय 40] शिवबरातकी शोभा भगवान् शिवका बरात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान
  41. [अध्याय 41] नारदद्वारा हिमालयगृहमें जाकर विश्वकर्माद्वारा बनाये गये विवाहमण्डपका दर्शनकर मोहित होना और वापस आकर उस विचित्र रचनाका वर्णन करना
  42. [अध्याय 42] हिमालयद्वारा प्रेषित मूर्तिमान् पर्वतों और ब्राह्मणोंद्वारा बरातकी अगवानी, देवताओं और पर्वतोंके मिलापका वर्णन
  43. [अध्याय 43] मेनाद्वारा शिवको देखनेके लिये महलकी छतपर जाना, नारदद्वारा सबका दर्शन कराना, शिवद्वारा अद्भुत लीलाका प्रदर्शन, शिवगणों तथा शिवके भयंकर वेषको देखकर मेनाका मूर्च्छित होना
  44. [अध्याय 44] शिवजीके रूपको देखकर मेनाका विलाप, पार्वती तथा नारद आदि सभीको फटकारना, शिवके साथ कन्याका विवाह न करनेका हठ, विष्णुद्वारा मेनाको समझाना
  45. [अध्याय 45] भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना
  46. [अध्याय 46] नगरमें बरातियोंका प्रवेश द्वाराचार तथा पार्वतीद्वारा कुलदेवताका पूजन
  47. [अध्याय 47] पाणिग्रहण के लिये हिमालयके घर शिवके गमनोत्सवका वर्णन
  48. [अध्याय 48] शिव-पार्वती विवाहका प्रारम्भ, हिमालयद्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तरके रूपमें शिवमाहात्म्य प्रतिपादित करना, हर्षयुक्त हिमालयद्वारा कन्यादानकर विविध उपहार प्रदान करना
  49. [अध्याय 49] अग्निपरिक्रमा करते समय पार्वतीके पदनखको देखकर ब्रह्माका मोहग्रस्त होना, बालखिल्योंकी उत्पत्ति, शिवका कुपित होना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  50. [अध्याय 50] शिवा शिवके विवाहकृत्यसम्पादनके अनन्तर देवियोंका शिवसे मधुर वार्तालाप
  51. [अध्याय 51] रतिके अनुरोधपर श्रीशंकरका कामदेवको जीवित करना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  52. [अध्याय 52] हिमालयद्वारा सभी बरातियोंको भोजन कराना, शिवका विश्वकर्माद्वारा निर्मित वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल जनवासेमें आगमन
  53. [अध्याय 53] चतुर्थीकर्म, बरातका कई दिनोंतक ठहरना, सप्तर्षियोंके समझानेसे हिमालयका बरातको विदा करनेके लिये राजी होना, मेनाका शिवको अपनी कन्या सौंपना तथा बरातका पुरीके बाहर जाकर ठहरना
  54. [अध्याय 54] मेनाकी इच्छा अनुसार एक ब्राह्मणपत्नीका पार्वतीको पातिव्रतधर्मका उपदेश देना
  55. [अध्याय 55] शिव-पार्वती तथा बरातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और शिव विवाहोपाख्यानके श्रवणकी महिमा