ब्रह्माजी बोले- विभु कार्तिकेयके इस चरित्रको देखकर विष्णु आदि देवताओंके मनमें विश्वास हो गया और वे परम प्रसन्न हो गये। शिवजीके तेजसे प्रभावित होकर वे उछलते तथा सिंहनाद करते हुए कुमारको आगेकर तारकासुरका वध करने हेतु चल पड़े ॥ 1-2 ॥
महाबली तारकासुरने भी देवताओंके उद्योगको सुनकर बड़ी सेनाके साथ देवताओंसे युद्ध करनेके लिये शीघ्र प्रस्थान किया। देवगणोंने तारकासुरकीबहुत बड़ी सेना देखकर अत्यन्त बलपूर्वक सिंहनाद करते हुए उसे आश्चर्यचकित कर दिया। उसी समय ऊपरसे बड़ी शीघ्रताके साथ शिवजीद्वारा प्रेरित आकाशवाणीने समस्त विष्णु आदि देवताओंसे शीघ्र कहा- ॥3-5॥ आकाशवाणी बोली- हे देवगण! आपलोग जो कुमारको आगे करके युद्ध करनेके लिये उद्यत हुए हैं, इससे आपलोग संग्राममें दैत्योंको जीतकर विजयी होंगे ॥ 6 ॥
ब्रह्माजी बोले- आकाशवाणीको सुनकर सभी देवताओंमें अत्यन्त उत्साह भर गया और वे वीरोंकी भाँति गर्जना करते हुए उस समय निर्भय हो गये ॥ 7 ॥
इस प्रकार भयसे रहित एवं युद्धकी इच्छावाले वे सभी देवता कुमारको आगे करके महीसागर संगमपर गये। बहुत से असुरोंसे घिरा वह तारक भी जहाँ देवता थे, वहाँपर अपनी बहुत बड़ी सेनाके साथ शीघ्र ही आ गया ।। 8-9 ।।
उसके आनेपर प्रलयकालीन बादलके समान शब्द करनेवाली रणदुन्दुभियाँ तथा अन्य कर्कश वाजे बजने लगे। उस समय तारकासुरके साथ रहनेवाले समस्त असुर कूदते फाँदते हुए पादप्रहारोंसे पृथ्वीको कँपाने लगे और गर्जना करने लगे। उस उग्र ध्वनिको सुनकर सभी देवगण अत्यन्त निर्भय हो एक साथ ही तारकासुरसे युद्ध करनेकी इच्छासे उठ खड़े हुए। स्वयं इन्द्रदेव कुमारको हाथीपर चढ़ाकर देवताओंकी बहुत बड़ी सेनाके साथ लोकपालोंसे युक्त हो आगे आगे चलने लगे ॥ 10-13 ॥
उस समय अनेक प्रकारको दुन्दुभि, भेरी, तुरही, वीणा, वेणु और मृदंग बजने लगे तथा गन्धर्व गान करने लगे ॥ 14 ॥
कुमार इन्द्रको हाथी देकर अनेक आश्चयसे युक्त तथा विविध रत्नोंसे जटित दूसरे वानपर सवार हो गये ॥ 15 ॥
उस समय सर्वगुणसम्पन्न महायशस्वी शंकरपुत्र कुमार कार्तिकेय विमानके ऊपर चढ़कर | महाकान्तिमान् चामरोंसे वीज्यमान होते हुए अत्यन्त शोभित हो रहे थे। 16 ।।उस समय प्रचेताके द्वारा दिया गया छत्र जो अनेक रत्नोंसे जटित होनेके कारण महाकान्तिमान् था तथा जिससे चन्द्रकिरणोंके समान आभा निकल रही थी, वह कुमारके द्वारा मस्तकपर धारण किया गया था ॥ 17 ॥
उस समय युद्धकी इच्छावाले महाबलवान् इन्द्रादि समस्त देवता अपनी-अपनी सेनाके साथ सम्मिलित हुए ॥ 18 ॥
इस प्रकार देवता एवं दानव व्यूहकी रचनाकर बहुत बड़ी सेनाके साथ युद्धकी इच्छासे रणभूमिमें आ डटे ॥ 19 ॥
उस समय एक-दूसरेको मारनेकी इच्छावाली देवताओं तथा दैत्योंकी वे दोनों सेनाएँ चारणोंके द्वारा स्तुति की जाती हुई अत्यन्त सुशोभित हो रही थीं ॥ 20 कायरोंके लिये भयंकर तथा वीरोंके लिये सुखद समुद्रतुल्य उनकी दोनों सेनाएँ गरजने लगीं ॥ 21 ॥ इसी बीच बलसे उन्मत्त महावीर दैत्य एवं देवता क्रोधसे अधीर हो परस्पर युद्ध करने लगे ॥ 22 ॥ उस समय देवों एवं दानवोंमें महाभयंकर युद्ध आरम्भ हो गया और क्षणमात्रमें पृथ्वी रुण्ड-मुण्डोंसे व्याप्त हो गयी ॥ 23 ॥
सैकड़ों तथा हजारों वीरसम्मत योद्धा महाशस्त्रोंके प्रहारसे छिन्न-भिन्न होकर पृथ्वीपर | गिरने लगे । युद्धमें अत्यन्त कठोर खड्गके प्रहारसे किसीकी भुजा छिन्न-भिन्न हो गयी और किन्हीं मानी | वीरोंकी जाँघें कट गयीं। गदाओं तथा मुद्गरोंसे कुछ वीरोंके सभी अंग विदीर्ण हो गये। भालोंसे कुछ वीरोंकी छाती छिद गयी और कुछ पाशोंसे बाँध दिये गये। कुछ वीर पीठपर भाला, ऋष्टि एवं अंकुशके प्रहारसे घायल हो गये। किन्हींके सिर कटकर पृथ्वीपर गिर गये ॥ 24-27 ॥
वहाँ बहुत से कबन्ध (सिर कटे हुए धड़) नाच रहे थे तथा कुछ लोग अपने हाथोंमें शस्त्र लिये हुए एक दूसरेको ललकार रहे थे ॥ 28 ॥
वहाँ रक्तकी सैकड़ों नदियाँ बह चलीं और सैकड़ोंकी संख्यामें भूत-प्रेत वहाँ आ गये ॥ 29 ॥वहाँपर सियार सियारिनें मांस खाने लगी। गृध्रवट, श्येन तथा कौवे एवं अनेक मांसभक्षी जानवर युद्ध में गिरे हुए योद्धाओंके मांसका भक्षण करने लगे ॥ 30 ॥ इसी बीच महाबली तारकासुर बहुत बड़ी सेनाके साथ देवताओंसे युद्ध करनेके लिये वहाँ शीघ्र आ पहुँचा ॥ 31 ॥
युद्धमें दुर्मद तारकासुरको युद्ध करनेके लिये आता हुआ देखकर इन्द्र आदि देवता भी शीघ्र ही वहाँ पहुँच गये। उस समय दोनों सेनाओंमें घोर गर्जना होने लगी ॥ 32 ॥
उस समय देवता तथा दैत्योंका विनाशकारी द्वन्द्व-युद्ध होने लगा, जिसे देखकर वीर हर्षित होते थे तथा कायर भयभीत हो जाते थे ॥ 33 ॥
रणमें दितिपुत्र बलवान् तारक इन्द्रके साथ, संहाद अग्निके साथ, यमराज जम्भके साथ, महाप्रभु निर्ऋतिके साथ, वरुण बलके साथ, सुवीर वायुके साथ तथा गुह्यराट् पवमानके साथ युद्ध करने लगा। रणकुशल शम्भु ईशानके साथ युद्ध करने लगा। शुम्भका शेषके साथ और दानव कुम्भका चन्द्रमाके साथ युद्ध होने लगा। उस युद्धमें महाबली, पराक्रमी तथा अनेक युद्धोंमें प्रवीण कुंजर मिहिरके साथ परम अस्त्रोंसे युद्ध करने लगा ॥ 34-37 ॥
इस प्रकार देवता तथा राक्षस अपनी-अपनी सेना लेकर महान् द्वन्द्वयुद्धके द्वारा रणभूमिमें विजयकी आशासे परस्पर युद्ध करने लगे। हे मुने! महाबली वे दैत्य तथा देवता उस देवासुरसंग्राममें परस्पर स्पर्धा करते हुए एक-दूसरेके लिये दुर्जेय हो गये ॥ 38-39॥
विजयकी इच्छा रखनेवाले उन देवगणों तथा दानवोंका घनघोर युद्ध छिड़ गया, जो मनस्वी वीरोंके लिये
सुखदायक तथा कायरोंके लिये भयदायक था ॥ 40 युद्धमें घायल हुए अनेक देवता तथा दानवोंके | गिरनेसे वह रणभूमि अत्यन्त भयानक हो उठी। उस समय वह कायरोंके लिये अगम्य एवं भयंकर हो गयी और मनस्वियोंको प्रसन्न करनेवाली हुई ॥ 41 ॥