व्यासजी बोले- हे महाबुद्धिमान् ब्रह्मपुत्र ! हे मुने! आप चिरकालतक जीवित रहें, आपने शिवजीका बड़ा विचित्र चरित्र वर्णन किया। अब आप विस्तारपूर्वक बताइये कि शिवजीके दूतके चले जानेपर प्रतापी शंखचूडने क्या किया ? ॥ 1-2 ॥सनत्कुमार बोले- शिवदूतके चले जानेपर प्रतापी शंखचूडने भीतर जाकर तुलसीसे उस बातको कहा- ॥ 3 ॥
शंखचूड बोला- हे देवि ! शिवदूतके मुखसे युद्धका सन्देश प्राप्त होनेके कारण मैं युद्धके लिये तैयार होकर जा रहा हूँ, अब तुम मेरे शासनका कार्य सँभालना ॥ 4 ॥
इस प्रकार यह कहकर उस ज्ञानी शंखचूडने नाना प्रकारके वाक्योंसे अपनी प्रियतमाको समझाया और शंकरका अनादरकर हर्षपूर्वक उसके साथ क्रीड़ा की ॥ 5 ॥
अनेक प्रकारकी कामकलाओं तथा मधुर वचनोंसे परस्पर संलाप करते हुए वे पति-पत्नी सुखसागरमें निमग्न हो रातमें क्रीडा करते रहे । ll 6 ॥
ब्राह्ममुहूर्तमें उठकर प्रातः कालीन कृत्य करके नित्य कर्म सम्पन्नकर उसने बहुत दान दिया ॥ 7 ॥ इसके बाद अपने पुत्रको सभी दानवोंका राजा बनाकर सारी सम्पत्ति एवं राज्य, पुत्र तथा भार्यांको समर्पितकर उस राजाने बारंबार रोती हुई तथा अनेक बातें कहकर युद्धमें जानेसे मना करनेवाली अपनी भार्याको आश्वस्त किया। उसके बाद उसने अपने वीर सेनापतिको आदरपूर्वक बुलाकर उसे आज्ञा दी और स्वयं सन्नद्ध होकर संग्राम करनेके लिये उद्यत हुआ । ll 8-10 ॥
शंखचूड बोला- हे सेनापते युद्ध करनेमें ! कुशल सभी वीर सभी प्रकारसे सुसज्जित होकर युद्धके लिये चलें ॥ 11 ॥
बलशाली कंकोंकी सेना, जिसमें छियासी महाबलवान् दैत्य एवं दानव हैं, आयुधोंसे युक्त हो शीघ्र निर्भय होकर निकलें ॥ 12 ll
असुरोंके पचास कुल, जिसमें करोड़ों महावीर हैं, वे भी देवपक्षपाती शंकरसे युद्ध करनेके लिये निकलें ॥ 13 ॥
धूम्रनामक दैत्योंके सौ कुल शिवसे युद्ध करनेके लिये मेरी आज्ञासे शीघ्र निकलें। इसी प्रकार कालकेय, मौर्य, दौर्हृद तथा कालक तैयार होकर मेरी आज्ञासे रुद्रके साथ संग्रामके लिये निकलें ll 14-15 llसनत्कुमार बोले- [ हे व्यास!] महाबली असुरराज दानवेन्द्र शंखचूड इस प्रकार आज्ञा देकर सहस्रों सेनाओंको लेकर चल पड़ा ॥ 16 ॥
युद्धशास्त्रमें प्रवीण, महारथी, महावीर, रथियों में श्रेष्ठ तथा वीरोंमें भयंकर उसके सेनापतिने भी तीन लाख अक्षौहिणी सेनासे युक्त होकर मण्डल बनाया और वह युद्ध करनेके लिये शिविरसे बाहर निकला ॥ 17-18॥
शंखचूड भी उत्तम रत्नोंसे बने हुए विमानपर चढ़कर गुरुजनोंको आगेकर संग्रामके लिये चला। पुष्पभद्रा नदीके किनारे सिद्धक्षेत्रमें सिद्धोंका आश्रम एवं श्रेष्ठ अक्षयवट है। वह सिद्धिप्रद सिद्धक्षेत्र है। पुण्यक्षेत्र भारतमें कपिलकी तपोभूमि है। यह स्थान पश्चिम सागरके पूर्व तथा मलय पर्वतके पश्चिममें, श्रीपर्वतके उत्तर भागमें तथा गन्धमादनके दक्षिणमें पाँच योजन चौड़ा एवं पाँच सौ योजन लम्बा है ॥ 19-22॥
भारतमें शुद्ध स्फटिकके समान जलवाली, उत्तम पुण्य प्रदान करनेवाली, जलपूर्ण तथा रम्य पुष्पभद्रा तथा सरस्वती नदी है, जो क्षारसमुद्रकी प्रिय भार्या है, वह पुष्पभद्रा निरन्तर सौभाग्ययुक्त होकर हिमालयसे निकलकर सरस्वती नदीमें मिलती है और गोमन्तक पर्वतको बायेंकर पश्चिम सागरमें गिरती है। वहाँ जाकर | शंखचूडने शिवकी सेनाको देखा ॥ 23-25 ॥