सूतजी बोले- हे द्विजो ! उस समय स्त्रीसहित गौतमके द्वारा इस प्रकार प्रायश्चित्त करनेपर शिवजी प्रसन्न होकर पार्वतीजी तथा अपने गणोंके साथ प्रकट हो गये। इसके बाद प्रसन्न हुए कृपानिधि शिवजीने कहा- हे महामुने। मैं आपकी उत्तम भक्तिसे अत्यन्त प्रसन्न हूँ, आप वर माँगिये ॥ 1-2 ॥
तब महात्मा शिवके उस सुन्दर रूपको देखकर शंकरजीको प्रणामकर प्रसन्न हो गौतम ऋषि उनकी भक्तिपूर्वक स्तुति करने लगे ॥ 3 ॥
बहुत प्रकारसे स्तुति करके एवं शिवको प्रणामकर हाथ जोड़कर महर्षि गौतम स्थित हो गये और कहने लगे हे देव! आप मुझे पापरहित करें ॥ 4 सूतजी बोले- उन महात्मा गौतमका यह वचन सुनकर शिवजीने अत्यन्त प्रसन्न हो यह वचन कहा- ॥ 5 ॥शिवजी बोले- हे मुने। आप सदा धन्य हैं, कृतकृत्य हैं तथा निष्पाप हैं, इन दुष्टात्मा पापी ऋषियोंने निश्चय ही आपके साथ छल किया है ॥ 6 ॥
जब आपके दर्शनमात्रसे लोग निष्पाप हो जाते हैं, तब मेरी भक्तिमें निरत रहनेवाले आप किस प्रकार पापी हो सकते हैं? ॥ 7 ॥
हे मुने! जिन दुष्टोंने आपके प्रति उपद्रव किया है, वे ही पापी, दुराचारी और हत्यारे हैं। इनके दर्शनसे दूसरे लोग पापी हो जायँगे, ये लोग कृतघ्न हैं, इनका कोई प्रायश्चित्त नहीं है ll 8-9 ll
सूतजी बोले- हे विप्रो ! ऐसा कहकर सज्जनोंको सुख देनेवाले तथा असज्जनोंको दण्ड देनेवाले शिवजीने उनसे ऋषियोंके बहुतसे दुश्चरित्रोंका वर्णन किया ॥ 10 ॥ शिवजीकी बात सुनकर महर्षि गौतम अत्यन्त आश्चर्यचकित हो गये और उन्होंने हाथ जोड़कर शिवजीको भक्तिपूर्वक प्रणाम करके पुनः कहा- ॥ 11 ॥
गौतम बोले- हे महेश्वर उन ऋषियोंने मेरा बहुत बड़ा उपकार किया है, यदि वे ऐसा न करते, तो आपका दर्शन कैसे होता ? वे ऋषि धन्य हैं, जिन्होंने मेरा अत्यन्त कल्याण किया, उनके दुराचारके कारण ही मेरा बहुत बड़ा स्वार्थ सिद्ध हुआ है ॥ 12-13 ॥
सूतजी बोले- उनकी यह बात सुनकर अति प्रसन्न हुए शिवजीने कृपादृष्टिसे गौतमकी और देखकर शीघ्र ही उनसे कहा- ॥ 14 ॥
शिवजी बोले- हे विप्रेन्द्र! आप धन्य हैं। आप सर्वश्रेष्ठ ऋषि हैं। मुझे परम प्रसन्न जानकर आप उत्तम वरदान माँगिये ॥ 15 ll
सूतजी बोले - [हे द्विजो!] उसके बाद गौतमने भी [ अपने मनमें] विचार किया कि [ अब मेरे पापकी] प्रसिद्धि लोकमें हो चुकी है, इसलिये वह जिस प्रकार झूठ न हो, उन ऋषियोंकी कही बात सत्य करनी चाहिये। ऐसा निश्चय करके शिवभक्त मुनिश्रेष्ठ गौतमने हाथ जोड़कर सिर झुका करके शिवजीसे यह वचन कहा- ॥ 16-17 ॥
गौतम बोले- हे नाथ! आप सत्य कहते हैं, किंतु जैसा पंचोंने निर्णय दिया है, वह अन्यथा न हो। जैसा उन लोगोंने निर्णय दिया है, वही होने दीजिये ॥ 18 ॥हे देवेश! यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे गंगा प्रदान कीजिये और इस प्रकार लोकका उपकार कीजिये, आपको नमस्कार है, आपको बारंबार नमस्कार है ॥ 19 ॥
सूतजी बोले- ऐसा कहकर लोककल्याणकी इच्छासे गौतमने उनके चरणकमल पकड़कर देवेशको [पुनः] प्रणाम किया ॥ 20 ॥
उसके बाद पृथ्वी तथा स्वर्गके सारभूत जिस जलको निकालकर पूर्वमें रख लिया था और विवाहकालमें ब्रह्माजीके द्वारा दिया गया जो कुछ शेष जल बचा था, उसे भक्तवत्सल भगवान् शिवने उन मुनिको प्रदान किया। उस समय वह गंगाजल परम सुन्दरी स्त्रीके रूपमें परिणत हो गया। तत्पश्चात् ऋषिवरने उस [स्त्रीरूप जल] की स्तुतिकर उसे प्रणाम किया ।। 21-23 ॥
गौतम बोले हे गंगे आप धन्य हैं, कृतकृत्य है, - आपने जगत्को पवित्र कर दिया है, अतएव निश्चय ही नरकमें गिरते हुए मुझे भी आप पवित्र कीजिये ॥ 24 ll
सूतजी बोले- तब सबका हित करनेवाले शिवजीने भी कहा- हे गंगे! सुनो, तुम मेरी आज्ञासे इन गौतम मुनिको पवित्र करो तब उन शिव तथा गौतमके वचनको सुनकर भगवान् शिवकी शक्ति परमपावनी गंगाजीने शिवजीसे कहा- ।। 25-26 ॥
गंगाजी बोली- हे प्रभो! मैं मुनिको परिवारसहित पवित्रकर अपने स्थानको जाऊँगी, मैं सत्य वचन कहती हूँ ॥ 27 ॥ सूतजी बोले- जब गंगाजीने ऐसा कहा, तब भक्तवत्सल शिवजीने लोकोपकारके निमित्त गंगाजी
पुनः यह वचन कहा- ॥ 28 ॥ शिवजी बोले- हे देवि! वैवस्वत मन्वन्तरके अट्ठाईसवें कलियुगतक तुम यहीं निवास करो ॥ 29 ॥
सूतजी बोले- उन स्वामी शिवका यह वचन सुनकर नदियोंमें श्रेष्ठ उन पावनी गंगाने पुनः कहा-॥ 30 ॥
गंगाजी बोलीं- हे स्वामिन् । हे महेश्वर! हे त्रिपुरान्तक! यदि सबकी अपेक्षा मेरा माहात्म्य अधिक रहेगा, तभी मैं पृथ्वीपर निवास करूँगी ॥ 31 ॥हे स्वामिन्! हे प्रभो! एक और बात सुनिये, आप अपने गणों एवं पार्वतीसहित अपने सुन्दर स्वरूपसे मेरे समीप निवास कीजिये ॥ 32 ॥
सूतजी बोले- उनका यह वचन सुनकर भक्तवत्सल शंकरने लोकोपकारके लिये गंगाजीसे पुनः यह वचन कहा- ॥ 33 ॥
शिवजी बोले- हे गंगे। तुम धन्य हो, सुनो! मैं तुमसे पृथक नहीं हूँ, फिर भी मैं यहाँ निवास करता हूँ और तुम भी निवास करो ।। 34 ।।
सूतजी बोले- इस प्रकार स्वामी सदाशिवकी बात सुनकर गंगाने प्रसन्नचित्त होकर उनकी आज्ञा | स्वीकार कर ली ।। 35 ।।
इसी बीच देवता, प्राचीन ऋषि, पितर, अनेक सुन्दर तीर्थ एवं विविध क्षेत्र- सभीने वहाँ आकर गौतम, गंगा तथा गिरीशकी जय जयकार करते हुए आदरपूर्वक उनका पूजन किया ।। 36-37 ll
इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु आदि उन सभी देवताओंने हाथ जोड़कर सिर झुका करके प्रसन्नतापूर्वक उनकी स्तुति की। उस समय उन देवताओंपर प्रसन्न हुई गंगाजी तथा शिवजीने कहा- हे सुरश्रेष्ठो! आपलोग वर माँगिये। आपलोगोंका हित करनेकी इच्छासे हम दोनों उसे प्रदान करेंगे ॥ 38-39 ॥
देवता बोले- हे देवेश! यदि आप प्रसन्न हैं और हे गंगे यदि आप भी प्रसन्न हैं, तो हमलोगों के तथा मनुष्योंके हितके लिये कृपापूर्वक यहीं निवास करें ।। 40 ।।
गंगाजी बोलीं- हे देवताओ! तुमलोग स्वयं ही लोकोपकारके निमित्त यहाँ निवास क्यों नहीं करते, मैं तो गौतमको पवित्रकर जहाँसे आयी है वहीं चली जाऊँगी। आप लोगों में मेरा वैशिष्ट्य किस प्रकार जाना जा सके यदि उसे प्रमाणित करो, तब मैं निश्चय ही यहाँ निवास कर सकती हूँ ॥ 41-42 ॥
सभी [ देवगण] बोले- जब सबके परम सुहृद् बृहस्पति सिंहराशिपर स्थित रहेंगे, तब हम सभी लोग आपके समीप आयेंगे, इसमें संशय नहीं है ।। 43 ।।हे सरिद्वरे। इस लोकमें ग्यारह वर्षपर्यन्त लोगों का जो पाप प्रक्षालित होगा, उससे जब हमलोग मलिन हो जायेंगे, तब हे प्रिये! उस पापको धोनेके लिये हमलोग निश्चित रूपसे आपके पास आयेंगे, हे महादेवि ! हमलोग आदरपूर्वक सत्य कह रहे हैं ॥। 44-45 ॥ हे सरिद्वरे! लोकोंपर अनुग्रह करने तथा हमलोगोंका हित करनेके लिये आपको एवं शंकरजीको भी यहीं रहना चाहिये ॥ 46 ॥
जबतक बृहस्पति सिंहराशिपर रहेंगे, तबतक हमलोग भी यहीं निवास करेंगे और तीनों समय आप [के जल] में स्नान करके तथा शिवजीका दर्शन करके अपने सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त होंगे और पुनः आपकी आज्ञासे अपने- अपने स्थानको चले जायँगे, इसमें सन्देह नहीं है ।। 47-48 ।।
सूतजी बोले - इस प्रकार महर्षि गौतम तथा उन देवताओंके द्वारा प्रार्थना किये जानेपर वे शंकरजी प्रेमपूर्वक वहीं स्थित हो गये और वे गंगाजी भी स्थित हो गयीं। वहाँपर वे गंगाजी गौतमी नामसे प्रसिद्ध हुई तथा वह शिवलिंग त्र्यम्बक नामसे विश्वमें विख्यात हुआ, जो महापातकका भी नाश करनेवाला है ।। 49-50 ॥
उस दिनसे लेकर जब जब बृहस्पति सिंहराशिपर आते हैं, तब सभी देवता, तीर्थ तथा क्षेत्र यहाँ आते हैं। पुष्कर आदि समस्त सरोवर, गंगा आदि सभी नदियाँ एवं विष्णु आदि देवगण गौतमीतटपर निवास करते हैं ।। 51-52 ll
ये जबतक वहाँ रहते हैं, तबतक [अपने स्थानपर उनके सेवनका] फल प्राप्त नहीं होता और जब वे अपने- अपने निवासपर चले जाते हैं, तभी [उनकी उपासनाका] फल प्राप्त होता है ll 53 ॥
यह त्र्यम्बक नामसे प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग गौतमीके तटपर स्थित है और महान पापका नाश करनेवाला है। जो इस त्र्यम्बकेश्वर नामक ज्योतिर्लिंगका भक्तिपूर्वक दर्शन, पूजन, प्रणाम एवं स्तवन करता है, वह सभी प्रकारके पापोंसे मुक्त हो जाता है ॥ 54-55 ॥
गौतमके द्वारा पूजित यह त्र्यम्बक नामक ज्योतिलिंग इस लोक में सम्पूर्ण कामनाओंको देनेवाला तथा परलोकमें उत्तम मुक्ति प्रदान करनेवाला है । ll 56॥ हे मुनीश्वरो ! जो आपलोगोंने मुझसे पूछा था, उसे मैंने कह दिया, अब आपलोग और क्या सुनना चाहते हैं? उसे मैं कहूँगा, इसमें सन्देह नहीं है ॥ 57 ॥