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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 4, अध्याय 24 - Sanhita 4, Adhyaya 24

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त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंगके माहात्म्य प्रसँगमें गौतमऋषिकी परोपकारी प्रवृत्तिका वर्णन

सूतजी बोले- हे श्रेष्ठ ऋषियो मैं पापोंका नाश करनेवाली कथा कहता हूँ, जैसा कि मैंने [[अपने] श्रेष्ठ गुरु व्यासजीसे सुना है आपलोग सुनिये ॥ 1 ॥

पूर्वकालमें प्रसिद्ध गौतम नामक श्रेष्ठ ऋषि थे, उनकी परम धार्मिक अहल्या नामकी पत्नी थी॥ 2 ॥ दक्षिण दिशामें जो ब्रह्मगिरि नामक पर्वत है, वहाँ उन्होंने दस हजार वर्षतक तप किया ॥ 3 ॥ हे सुव्रतो! किसी समय वहाँपर सौ वर्षतक भयानक अनावृष्टि हुई, जिससे सभी लोग संकटमें पड़ गये। पृथ्वीतलपर [ एक भी] हरा पत्ता नहीं दिखायी पड़ता था, तब फिर प्राणियोंको जिलानेवाला | पानी कहाँसे दिखायी दे सकता था! ॥ 4-5 ॥

उस समय वे मुनिगण, मनुष्य, पशु, पक्षी और मृग उस स्थानको छोड़कर]] दसों दिशाओंमें चले गये ॥ 6 ॥

हे विप्रो ! तब उस [अनावृष्टि ] को देखकर कुछ ऋषि प्राणायाममें तत्पर होकर ध्यानपूर्वक उस भयंकर कालको बिताने लगे ॥ 7 ॥ महर्षि गौतमने स्वयं भी वरुणदेवताको प्रसन्न करनेके लिये प्राणायामपरायण होकर छः महीनेतक उस स्थानपर उत्तम तप किया ॥ 8 ॥

[उनकी तपस्यासे प्रसन्न हुए] वरुणदेव उन्हें वर देनेके लिये आये और यह वचन बोले- मैं प्रसन्न हूँ, वर माँगो, मैं तुम्हें [वर] दूँगा ॥ 9 ॥

तब गौतम ऋषिने उनसे वर्षाके लिये प्रार्थना की। हे द्विजो! इसपर उन वरुणने मुनिसे कहा- ॥ 10 ॥वरुण बोले- [हे महर्षे!] मैं दैवकी आज्ञाका | उल्लंघनकर किस प्रकार वृष्टि करूँ ? आप तो | बुद्धिमान् हैं, अतः कोई अन्य प्रार्थना कीजिये, जिसे मैं आपके लिये [ प्रदान ] कर सकूँ ॥ 11 ॥

सूतजी बोले- उन महात्मा वरुणका यह वचन सुनकर परोपकार करनेवाले महर्षि गौतमने यह वाक्य कहा- ॥ 12 ॥

गौतम बोले- हे देवेश ! यदि आप [मुझपर प्रसन्न हैं और मुझे वर देना ही चाहते हैं, तो मैं आज जो प्रार्थना करता हूँ, उसे पूर्ण कीजिये। चूँकि आप जलराशिके स्वामी हैं, इसलिये हे सर्वदेवेश मुझे अक्षय, दिव्य तथा नित्य फल प्रदान करनेवाला जल दीजिये ।। 13-14 ll

सूतजी बोले- उन गौतमके इस प्रकार प्रार्थना करनेपर वरुणने उनसे कहा-आप एक गड्ढा खोदिये ॥ 15 ॥

उनके ऐसा कहनेपर गौतमने एक हाथका गड्ढा खोदा, तब वरुणने उस गड्ढेको दिव्य जलसे भर दिया। इसके बाद जलके स्वामी वरुणदेवने परोपकारी तथा मुनियोंमें श्रेष्ठ गौतम ऋषिसे कहा- ll 16-17 ll

वरुण बोले- हे महामुने! यह जल आपके लिये अक्षय एवं तीर्थस्वरूप होगा और पृथ्वीपर आपके नामसे प्रसिद्ध होगा। इस स्थानपर दान, होम, तप, देवताओंके लिये किया गया यज्ञ-पूजन तथा पितरोंके लिये किया गया श्राद्ध - यह सब अक्षय होगा 18- 19 ॥ सूतजी बोले- ऐसा कहकर उन महर्षिसे स्तुत होकर वरुणदेव अन्तर्धान हो गये और महर्षि गौतमने भी दूसरोंका उपकारकर सुख प्राप्त किया ॥ 20 ॥ बड़े लोगों का आश्रय मनुष्योंके गौरवका हेतु होता है, इसलिये महापुरुष ही उनके स्वरूपको देख पाते हैं, नीच लोग नहीं ॥ 21 ॥

मनुष्य जिस प्रकारके पुरुषका सेवन करता है, | वह वैसा ही फल प्राप्त करता है, बड़ोंकी सेवासे बड़प्पन तथा छोटोंकी सेवासे लघुता प्राप्त होती है ॥ 22 ॥

सिंहकी गुफाके पास रहना गजमुक्ताकी प्राप्ति करानेवाला कहा गया है और सियारकी माँदके पास | रहना अस्थिलाभ करानेवाला कहा गया है ॥ 23 ॥सज्जन पुरुषोंका ऐसा स्वभाव होता है कि वे दूसरोंका दुःख सह नहीं सकते। वे स्वयं अपने दुःख सह लेते हैं, किंतु दूसरोंके दुःखको दूर करते हैं ॥ 24 ॥

वृक्ष, सोना, चन्दन और ईख - ये पृथ्वीपर दूसरोंके उपकारमें कुशल होते हैं, ऐसे अन्य कोई नहीं हैं ॥ 25 ॥ दयालु, अभिमानरहित, उपकारी एवं जितेन्द्रिय इन चार पुण्यस्तम्भोंने पृथ्वीको धारण किया है ॥ 26 ॥ [ हे महर्षियो!] तदनन्तर गौतमने अत्यन्त | दुर्लभ जल प्राप्तकर विधिपूर्वक नित्य- नैमित्तिक कर्म सम्पन्न किये ॥ 27 ॥

तत्पश्चात् मुनीश्वरने वहाँपर हवनके लिये व्रीहि, यव, नीवार आदि अनेक प्रकारके धान्योंको बोवाया। इस प्रकार विविध धान्य, अनेक प्रकारके वृक्ष, भिन्न-भिन्न प्रकारके पुष्प एवं फल आदि भी वहाँ उत्पन्न हो गये ॥ 28-29 ॥

यह सुनकर वहाँ अन्य हजारों ऋषि भी आ गये। अनेक पशु- पक्षी एवं बहुत-से जीव भी पहुँच गये ॥ 30 ॥

इस प्रकार पृथ्वीमण्डलपर वह वन अत्यन्त सुन्दर प्रतीत होने लगा, जलके अक्षय होनेके कारण वहाँ दुःख देनेवाली अनावृष्टि नहीं रह गयी ॥ 31 ॥ उस वनमें अनेक ऋषिलोग भी उत्तम कर्मोंमें तत्पर होकर शिष्य, भार्या तथा पुत्रादिके साथ वहाँ निवास करने लगे ॥ 32 ॥ उन्होंने अपना जीवन बितानेके लिये धान्योंका वपन किया। इस प्रकार [महर्षि] गौतमके प्रभावसे उस वनमें पूर्ण आनन्द व्याप्त हो गया ॥ 33 ॥

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