ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार गणसहित वीरभद्र के प्रस्थान करनेपर दक्ष तथा देवताओंको अनेक प्रकारके अशुभ लक्षण दिखायी पड़ने लगे ॥ 1 ll
गणों सहित वीरभद्रके चल देनेपर वहाँ अनेक प्रकारके उत्पात होने लगे और हे देवर्षे यज्ञविध्वंसकी सूचना देनेवाले तीनों प्रकार (आध्यात्मिक, आधिदैविक एवं आधिभौतिक) के अपशकुन होने लगे ॥ 2 ॥
हे तात! दक्षकी बाँयीं आँख, बाँय भुजा और बाँयी जाँघ फड़कने लगी, जो अनेक प्रकारके कष्ट | देनेवाली तथा सर्वथा अशुभकी सूचक थी ॥ 3 ॥
उस समय दक्षके यज्ञस्थलमें भूकम्प उत्पन्न हो गया। दक्षको दोपहरमें अनेक अद्भुत नक्षत्र दीखने लगे। दिशाएँ मलिन हो गयीं, सूर्य चितकबरा हो गया। सूर्यपर हजारों घेरे पड़ गये, जिससे वह भयंकर दिखायी पड़ने लगा ।। 4-5 ।।
बिजली तथा अग्निके समान दीप्तिमान् तारे टूटकर गिरने लगे। नक्षत्रोंकी गति टेढ़ी और नीचेकी ओर हो गयी। हजारों गोध दक्षके सिरको छूकर उड़ने लगे और उन गीधोंके पंखोंकी छायासे यज्ञमण्डप ढँक गया ॥ 6-7 ॥
यज्ञभूमिमें सियार तथा उल्लू शब्द करने लगे। [आकाशमण्डलसे] श्वेत बिच्छुओंकी उल्कावृष्टि होने लगी। धूलिकी वर्षाके साथ तेज हवाएं चलने लगीं और विवर्त [घूमती हुई] वायुसे कम्पित होकर टिड्डियाँ सब जगह उड़ने लगीं ॥ 8-9 ॥
दक्षने देवताओंके साथ जिस नवीन तथा अद्भुत | यज्ञमण्डपका निर्माण किया था, उसे वायुने ऊपरकी ओर उड़ा दिया। दक्ष आदि सभी लोग अद्भुत प्रकारसे रक्तका वमन करने लगे और हड्डीसे समन्वित मांसखण्ड बार-बार उगलने लगे ।। 10-11 ॥
वे सभी लोग वायुके झोंकेसे हिलते हुए दीपकके समान काँपने लगे और शस्त्रोंसे आहत हुए प्राणियोंके समान दुःखित हो गये। जिस प्रकार वनमेंप्रातः कालके समय कमलपुष्पों पर तुषार (ओस) की वर्षा हुई हो, उसी प्रकार शब्द करते हुए वाणकी वर्षा होने लगी ।। 12-13 ।।
जिस प्रकार रात्रिमें कमल तथा दिनमें कुमुद बन्द हो जाते हैं, उसी प्रकार दक्ष आदिकी विशाल आँखें भी अचानक बन्द हो गयीं ॥ 14 ॥
आकाशसे रक्तकी वर्षा होने लगी, दिशाएँ अन्धकारसे ढँक गयीं तथा सभी प्राणियोंको सन्त्रस्त करता हुआ दिग्दाह होने लगा ॥ 15 ॥
हे मुने। जब विष्णु आदि देवताओंने इस प्रकारके उत्पात देखे, तब वे अत्यन्त भयभीत हो उठे ॥ 16 ॥
हाय, अब हमलोग मारे गये इस प्रकार कहते हुए वे मूर्च्छित होकर पृथिवीपर इस प्रकार गिर पड़े. जैसे नदीके वेगसे किनारेपर वृक्ष गिर जाते हैं ॥ 17 ॥
वे पृथिवीपर इस प्रकार गिरकर अचेत हो जाते थे जैसे काटनेके बाद विषैला सर्प अचेत हो जाता है और कभी गेंदके समान पृथिवीपर गिरकर पुनः उठ जाते थे। तदनन्तर वे तापसे व्याकुल होकर कुररी पक्षीकी भाँति विलाप करते थे एवं उक्ति तथा प्रत्युक्तिका शब्द करते हुए रो रहे थे । ll 18-19 ।।
उस समय विष्णुसहित सभी लोगोंकी शक्ति कुण्ठित हो गयी और वे आपसमें एक दूसरेके समीप कण्ठपर्यन्त कछुएके समान लोटने लगे ll 20 ll इसी बीच वहाँ समस्त देवताओं और विशेषकर दक्षको सुनाते हुए आकाशवाणी हुई ॥ 21 ॥ आकाशवाणी बोली हे दक्ष तुम्हारे जन्मको धिक्कार है। तुम महामूढ़ और पापात्मा हो। शिवजीके
कारण आज तुम्हें महान् दुःख प्राप्त होगा, जिसका
निवारण नहीं हो सकता ॥ 22 ॥ यहाँ जो तुम्हारे सहायक मूर्ख देवता उपस्थित है. उन्हें भी महान् दुःख होगा, इसमें संशय नहीं है । ll 233 ll
ब्रह्माजी बोले [हे मुने ।] उस आकाशवाणीको सुनकर और उन उपद्रवोंको देखकर दक्ष तथा अन्य देवता आदि भी अत्यन्त भयभीत हो उठे ॥ 24 ॥
उस समय दा मन ही मन अत्यन्त व्याकुल हो काँपने लगे और अपने प्रभु लक्ष्मीपति भगवान् | विष्णुको शरणमें गये ॥ 25 llभयभीत तथा बेसुध वे दक्ष उन स्वजनवत्सल | देवाधिदेव विष्णुको प्रणाम करके तथा उनको स्तुति करके कहने लगे- 26 ॥