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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 2 (सती खण्ड) , अध्याय 30 - Sanhita 2, Khand 2 (सती खण्ड) , Adhyaya 30

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दक्षयज्ञमें सतीका योगाग्निसे अपने शरीरको भस्म कर देना, भृगुद्वारा यज्ञकुण्डसे ऋभुओंको प्रकट करना, ऋभुओं और शंकरके गणोंका युद्ध, भयभीत गणोंका पलायित होना

नारदजी बोले - हे विधे! जब [ दक्षको सम्बोधित कर] शिवप्रिया सतीने मौन धारण कर लिया, तब वहाँ क्या चरित्र हुआ, मुझसे उसे आदरपूर्वक कहिये ॥ 1 ॥ ब्रह्माजी बोले- हे नारद! मौन होकर सतीदेवी अपने पतिका सादर स्मरण करके और शान्तचित्त होकर सहसा उत्तर दिशामें भूमिपर बैठ गयीं ॥ 2 ॥उन्होंने विधिपूर्वक जलका आचमन करके वस्त्र ओढ़ लिया और पवित्रभावसे आँखें मूंदकर पतिका चिन्तन करके वे योगमार्गमें प्रविष्ट हो गयीं ॥ 3 ॥

गौर मुखवाली शंकरकी प्राणप्रिया सती [प्राणायाम द्वारा] प्राण और अपान वायुको समान करके उदान | वायुको यत्नपूर्वक नाभिचक्रसे ऊपर उठाकर बुद्धिपूर्वक हृदयमें स्थापित करनेके पश्चात् उस हृदयस्थित वायुको कण्ठमार्गसे भ्रुकुटियोंके बीचमें ले गयीं ॥ 4-5 ॥

इस प्रकार दक्षपर कुपित हो सहसा अपने शरीरको | त्यागने की इच्छासे सतीने योगमार्गसे शरीरके दग्ध हो जानेपर पवित्र वायुमय रूप धारण किया। तदनन्तर अपने पतिके चरणका चिन्तन करती हुई सतीने अन्य सब वस्तुओंका ध्यान भुला दिया। उनका चित्त योगमार्गमें स्थित हो गया था, इसलिये वहाँ उन्हें [पतिके चरणोंके अतिरिक्त ] और कुछ दिखायी नहीं दिया ॥ 6-7 ॥

हे मुनिश्रेष्ठ! उनका निष्पाप शरीर [यज्ञाग्निमें ] गिरा और उनकी इच्छा अनुसार अग्निसे जलकर उसी क्षण भस्म हो गया ॥ 8 ॥

उस समय [ वहाँ आये हुए] देवता आदिने जब यह घटना देखी, तब वे बड़े जोरसे हाहाकार करने लगे। उनका वह अद्भुत, विचित्र एवं भयंकर हाहाकार आकाशमें और पृथिवीतलपर सर्वत्र व्याप्त हो गया ॥ 9 ॥

[ लोग कह रहे थे] हाय! भगवान् शंकरकी परम प्रेयसी तथा देवतास्वरूपिणी सतीदेवीने किस दुष्टके दुर्व्यवहारसे कुपित होकर अपने प्राण त्याग दिये ! ॥ 10 ॥ अहो! चराचर जिनकी प्रजा है और जो ब्रह्माजीके पुत्र हैं, ऐसे इन दक्षकी बड़ी भारी दुष्टता तो देखो ! ॥ 11 ॥ अहो, शिवप्रिया मनस्विनी सतीदेवी, जो सदा ही सज्जनोंके लिये मानयोग्य थीं, आज इतनी दुःखित हो गयीं ॥ 12 ॥ वास्तवमें उन दक्षका हृदय बड़ा ही असहिष्णु है। वे ब्राह्मणद्रोही हैं, इसलिये सारे संसारमें उन्हें महान् अपयश प्राप्त होगा ॥ 13 ॥

इन शम्भुद्रोही दक्षने प्राणत्याग करनेको उद्यत अपनी पुत्रीको रोकातक नहीं। इस अपराधके कारण इन्हें महान् नरक भोगना पड़ेगा ॥ 14 ॥सतीके प्राणत्यागको देखकर जिस समय लोग ऐसा कह रहे थे, उसी समय शिवजीके पार्षद शीघ्र ही क्रोधपूर्वक अस्त्र-शस्त्र लेकर उठ खड़े हुए ।। 15 ।।

[ यज्ञमण्डपके] द्वारपर खड़े हुए वे भगवान् शंकरके समस्त साठ हजार महाबली पार्षद शंकरजीके प्रभावसे कुपित हो उठे थे ॥ 16 ॥

हमें धिक्कार है, धिक्कार है-ऐसा कहते हुए शंकरके सभी वीर गणाधिप बारम्बार उच्च स्वरसे हाहाकार करने लगे ॥ 17 ॥

शिवगणोंके महान् हाहाकारसे सभी दिशाएँ व्याप्त हो गयीं। सभी देवता, मुनिगण तथा जो भी अन्य लोग वहाँ उपस्थित थे, वे भयभीत हो गये ॥ 18 ॥

क्रुद्ध हुए उन समस्त रुद्रगणोंने आपसमें विचार | विमर्श करके वाद्योंसे प्रलय मचाते हुए [लड़नेके लिये] शस्त्रास्त्र उठा लिये ॥ 19 ॥

हे देवर्षे कितने ही पार्षद तो वहाँ शोकसे ऐसे व्याकुल हो गये कि वे अत्यन्त तीखे प्राणनाशक शस्त्रोंद्वारा अपने ही मस्तक और मुख आदि अंगोंपर आघात करने लगे ॥ 20 ॥

इस प्रकार बीस हजार पार्षद उस समय दक्षकन्या सतीके साथ ही नष्ट हो गये, वह एक अद्भुत-सी बात हुई ॥ 21 ॥

महात्मा शंकरके जो गण नष्ट होनेसे बच गये, वे क्रोधयुक्त होकर दक्षको मारनेके लिये हथियार उठाकर खड़े हो गये ॥ 22 ॥

हे मुने! आक्रमणकारी उन पार्षदोंका वेग देखकर भगवान् भृगुने हमें विघ्न डालनेवालोंका नाश करनेवाले [ अपहता असुरा रक्षाः सि वेदिषदः ] इस यजुर्मन्त्रसे दक्षिणाग्निमें आहुति दी 23 ॥ भृगुके आहुति देते ही कुण्ड ऋभु नामक हजारों महान् देवता, जो बड़े प्रबल वीर थे, वहाँ प्रकट हो गये ।। 24 ।।

हे मुनीश्वर हाथमें जलती हुई लकड़ियोंको आयुधके रूपमें धारण करनेवाले उन सभीके साथ प्रमथगणोंका अत्यन्त विकट युद्ध हुआ, जो सुननेवालोंके भी रोंगटे खड़े कर देनेवाला था ॥ 25 ॥उन ब्रह्मतेजसे सम्पन्न महावीर ऋभुओंके द्वारा सभी ओरसे मारे जाते हुए प्रमथगण बिना अधिक प्रयासके ही भाग खड़े हुए। इस प्रकार उन देवताओंने उन शिवगणोंको तुरंत मार भगाया। यह अद्भुत-सी घटना भगवान् शिवकी इच्छारूपी महाशक्तिसे ही हुई थी ।। 26-27 ।।

उसे देखकर ऋषि, इन्द्र आदि देवता, मरुद्गण, विश्वेदेव, दोनों अश्विनीकुमार और लोकपाल चुप ही रहे ॥ 28 ॥

कुछ लोग सब ओरसे वहाँ भगवान् विष्णु प्रार्थना करते थे और उद्विग्न हो बारम्बार विघ्ननिवारणके लिये आपसमें मन्त्रणा करने लगे ॥ 29 ॥

प्रमथगणोंके नाश होने और भगाये जानेसे जो परिणाम होनेवाला था, उसका भलीभाँति विचार | करके उत्तम बुद्धिवाले विष्णु आदि देवता अत्यन्त उद्विग्न हो उठे ॥ 30 ॥

हे मुने! दुरात्मा, शंकरद्रोही तथा ब्रह्मबन्धु (पतित ब्राह्मण) दक्षके यज्ञमें उस समय इस प्रकारका विघ्न उपस्थित हो गया ॥ 31 ॥

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] सतीचरित्रवर्णन, दक्षयज्ञविध्वंसका संक्षिप्त वृत्तान्त तथा सतीका पार्वतीरूपमें हिमालयके यहाँ जन्म लेना
  2. [अध्याय 2] सदाशिवसे त्रिदेवोंकी उत्पत्ति, ब्रह्माजीसे देवता आदिकी सृष्टिके पश्चात् देवी सन्ध्या तथा कामदेवका प्राकट्य
  3. [अध्याय 3] कामदेवको विविध नामों एवं वरोंकी प्राप्ति कामके प्रभावसे ब्रह्मा तथा ऋषिगणोंका मुग्ध होना, धर्मद्वारा स्तुति करनेपर भगवान् शिवका प्राकट्य और ब्रह्मा तथा ऋषियोंको समझाना, ब्रह्मा तथा ऋषियोंसे अग्निष्वात्त आदि पितृगणोंकी उत्पत्ति, ब्रह्माद्वारा कामको शापकी प्राप्ति तथा निवारणका उपाय
  4. [अध्याय 4] कामदेवके विवाहका वर्णन
  5. [अध्याय 5] ब्रह्माकी मानसपुत्री कुमारी सन्ध्याका आख्यान
  6. [अध्याय 6] सन्ध्याद्वारा तपस्या करना, प्रसन्न हो भगवान् शिवका उसे दर्शन देना, सन्ध्याद्वारा की गयी शिवस्तुति, सन्ध्याको अनेक वरोंकी प्राप्ति तथा महर्षि मेधातिथिके यज्ञमें जानेका आदेश प्राप्त होना
  7. [अध्याय 7] महर्षि मेधातिथिकी यज्ञाग्निमें सन्ध्याद्वारा शरीरत्याग, पुनः अरुन्धतीके रूपमें ज्ञाग्नि उत्पत्ति एवं वसिष्ठमुनिके साथ उसका विवाह
  8. [अध्याय 8] कामदेवके सहचर वसन्तके आविर्भावका वर्णन
  9. [अध्याय 9] कामदेवद्वारा भगवान् शिवको विचलित न कर पाना, ब्रह्माजीद्वारा कामदेवके सहायक मारगणोंकी उत्पत्ति; ब्रह्माजीका उन सबको शिवके पास भेजना, उनका वहाँ विफल होना, गणोंसहित कामदेवका वापस अपने आश्रमको लौटना
  10. [अध्याय 10] ब्रह्मा और विष्णुके संवादमें शिवमाहात्म्यका वर्णन
  11. [अध्याय 11] ब्रह्माद्वारा जगदम्बिका शिवाकी स्तुति तथा वरकी प्राप्ति
  12. [अध्याय 12] दक्षप्रजापतिका तपस्याके प्रभावसे शक्तिका दर्शन और उनसे रुद्रमोहनकी प्रार्थना करना
  13. [अध्याय 13] ब्रह्माकी आज्ञासे दक्षद्वारा मैथुनी सृष्टिका आरम्भ, अपने पुत्र हर्यश्वों तथा सबलाश्वोंको निवृत्तिमार्गमें भेजने के कारण दक्षका नारदको शाप देना
  14. [अध्याय 14] दक्षकी साठ कन्याओंका विवाह, दक्षके यहाँ देवी शिवा (सती) - का प्राकट्य, सतीकी बाललीलाका वर्णन
  15. [अध्याय 15] सतीद्वारा नन्दा व्रतका अनुष्ठान तथा देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  16. [अध्याय 16] ब्रह्मा और विष्णुद्वारा शिवसे विवाहके लिये प्रार्थना करना तथा उनकी इसके लिये स्वीकृति
  17. [अध्याय 17] भगवान् शिवद्वारा सतीको वरप्राप्ति और शिवका ब्रह्माजीको दक्ष प्रजापतिके पास भेजना
  18. [अध्याय 18] देवताओं और मुनियोंसहित भगवान् शिवका दक्षके घर जाना, दक्षद्वारा सबका सत्कार एवं सती तथा शिवका विवाह
  19. [अध्याय 19] शिवका सतीके साथ विवाह, विवाहके समय शम्भुकी मायासे ब्रह्माका मोहित होना और विष्णुद्वारा शिवतत्त्वका निरूपण
  20. [अध्याय 20] ब्रह्माजीका 'रुद्रशिर' नाम पड़नेका कारण, सती एवं शिवका विवाहोत्सव, विवाहके अनन्तर शिव और सतीका वृषभारूढ़ हो कैलासके लिये प्रस्थान
  21. [अध्याय 21] कैलास पर्वत पर भगवान् शिव एवं सतीकी मधुर लीलाएँ
  22. [अध्याय 22] सती और शिवका बिहार- वर्णन
  23. [अध्याय 23] सतीके पूछनेपर शिवद्वारा भक्तिकी महिमा तथा नवधा भक्तिका निरूपण
  24. [अध्याय 24] दण्डकारण्यमें शिवको रामके प्रति मस्तक झुकाते देख सतीका मोह तथा शिवकी आज्ञासे उनके द्वारा रामकी परीक्षा
  25. [अध्याय 25] श्रीशिवके द्वारा गोलोकधाममें श्रीविष्णुका गोपेशके पदपर अभिषेक, श्रीरामद्वारा सतीके मनका सन्देह दूर करना, शिवद्वारा सतीका मानसिक रूपसे परित्याग
  26. [अध्याय 26] सतीके उपाख्यानमें शिवके साथ दक्षका विरोधवर्णन
  27. [अध्याय 27] दक्षप्रजापतिद्वारा महान् यज्ञका प्रारम्भ, यज्ञमें दक्षद्वारा शिवके न बुलाये जानेपर दधीचिद्वारा दक्षकी भर्त्सना करना, दक्षके द्वारा शिव-निन्दा करनेपर दधीचिका वहाँसे प्रस्थान
  28. [अध्याय 28] दक्षयज्ञका समाचार पाकर एवं शिवकी आज्ञा प्राप्तकर देवी सतीका शिवगणोंके साथ पिताके यज्ञमण्डपके लिये प्रस्थान
  29. [अध्याय 29] यज्ञशाला में शिवका भाग न देखकर तथा दक्षद्वारा शिवनिन्दा सुनकर क्रुद्ध हो सतीका दक्ष तथा देवताओंको फटकारना और प्राणत्यागका निश्चय
  30. [अध्याय 30] दक्षयज्ञमें सतीका योगाग्निसे अपने शरीरको भस्म कर देना, भृगुद्वारा यज्ञकुण्डसे ऋभुओंको प्रकट करना, ऋभुओं और शंकरके गणोंका युद्ध, भयभीत गणोंका पलायित होना
  31. [अध्याय 31] यज्ञमण्डपमें आकाशवाणीद्वारा दक्षको फटकारना तथा देवताओंको सावधान करना
  32. [अध्याय 32] सतीके दग्ध होनेका समाचार सुनकर कुपित हुए शिवका अपनी जटासे वीरभद्र और महाकालीको प्रकट करके उन्हें यज्ञ विध्वंस करनेकी आज्ञा देना
  33. [अध्याय 33] गणोंसहित वीरभद्र और महाकालीका दक्षयज्ञ विध्वंसके लिये प्रस्थान
  34. [अध्याय 34] दक्ष तथा देवताओंका अनेक अपशकुनों एवं उत्पात सूचक लक्षणोंको देखकर भयभीत होना
  35. [अध्याय 35] दक्षद्वारा यज्ञकी रक्षाके लिये भगवान् विष्णुसे प्रार्थना, भगवान्‌का शिवद्रोहजनित संकटको टालनेमें अपनी असमर्थता बताते हुए दक्षको समझाना तथा सेनासहित वीरभद्रका आगमन
  36. [अध्याय 36] युद्धमें शिवगणोंसे पराजित हो देवताओंका पलायन, इन्द्र आदिके पूछनेपर बृहस्पतिका रुद्रदेवकी अजेयता बताना, वीरभद्रका देवताओंको बुद्धके लिये ललकारना, श्रीविष्णु और वीरभद्रकी बातचीत
  37. [अध्याय 37] गणसहित वीरभद्रद्वारा दक्षयज्ञका विध्वंस, दक्षवध, वीरभद्रका वापस कैलास पर्वतपर जाना, प्रसन्न भगवान् शिवद्वारा उसे गणाध्यक्ष पद प्रदान करना
  38. [अध्याय 38] दधीचि मुनि और राजा ध्रुवके विवादका इतिहास, शुक्राचार्यद्वारा दधीचिको महामृत्युंजयमन्त्रका उपदेश, मृत्युंजयमन्त्र के अनुष्ठानसे दधीचिको अवध्यताकी प्राप्ति
  39. [अध्याय 39] श्रीविष्णु और देवताओंसे अपराजित दधीचिद्वारा देवताओंको शाप देना तथा राजा ध्रुवपर अनुग्रह करना
  40. [अध्याय 40] देवताओंसहित ब्रह्माका विष्णुलोकमें जाकर अपना दुःख निवेदन करना, उन सभीको लेकर विष्णुका कैलासगमन तथा भगवान् शिवसे मिलना
  41. [अध्याय 41] देवताओं द्वारा भगवान् शिवकी स्तुति
  42. [अध्याय 42] भगवान् शिवका देवता आदिपर अनुग्रह, दक्षयज्ञ मण्डपमें पधारकर दक्षको जीवित करना तथा दक्ष और विष्णु आदिद्वारा शिवकी स्तुति
  43. [अध्याय 43] भगवान् शिवका दक्षको अपनी भक्तवत्सलता, ज्ञानी भक्तकी श्रेष्ठता तथा तीनों देवोंकी एकता बताना, दक्षका अपने यज्ञको पूर्ण करना, देवताओंका अपने-अपने लोकोंको प्रस्थान तथा सतीखण्डका उपसंहार और माहात्म्य