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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 3 (पार्वती खण्ड) , अध्याय 6 - Sanhita 2, Khand 3 (पार्वती खण्ड) , Adhyaya 6

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देवी उमाका हिमवान्‌के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, देवीका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे वार्तालाप तथा पुनः नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना

ब्रह्माजी बोले - [ हे नारद!] कुछ समय बीतनेके पश्चात् उन पति-पत्नी दोनोंने देवताओंके कार्यके लिये जन्महेतु भक्तिपूर्वक जगदम्बाका स्मरण किया ॥ 1 ॥इधर, अपने पिताके यज्ञमें योगद्वारा शरीरत्याग करने वाली भगवती चण्डिकाने हिमालयपत्नी मेनाके गर्भसे जन्म लेनेका विचार किया। प्रसन्न होनेपर सम्पूर्ण कामनाओंको देनेवाली वे महेश्वरी अपने वचनको सत्य करनेके लिये पूर्ण अंशसे हिमवान के चित्तमें प्रविष्ट हुई ॥ 2-3 ॥

उस समय महामनस्वी वे हिमालय प्रसन्नता से अपूर्व कान्तिसम्पन्न होकर अग्निके समान अधृष्य तथा तेजसमूहसे युक्त हो गये ॥ 4 ॥

तत्पश्चात् समाधिसम्पन्न होनेसे गिरिराज हिमालयने सुन्दर कल्याणकारी समयमें अपनी प्रिया मेनाके उदरमें शिवाके उस परिपूर्ण अंशका ध्यान किया ॥ 5 ॥

इस तरह हिमालयको पत्नीने हिमवान्‌के हृदयमें विराजमान करुणा करनेवाली देवीकी कृपासे सुखदायक गर्भ धारण किया। सम्पूर्ण जगत्को आश्रय देनेवाली उन देवीके गर्भ में आने से गिरिप्रिया मेना सदा तेजोमण्डलके बीचमें स्थित होकर अधिक शोभा पाने लगी ।। 6-7 ।।

मेनाने अपने पतिको सुख देनेवाले तथा देवताओंके आनन्दके कारणभूत शुभ अभीष्ट गर्भलक्षणको धारण किया शरीरके अधिक दुर्बल होनेके कारण उन्होंने सभी आभूषणोंको उतार दिया, उनका मुखमण्डल लोधके समान [ श्वेत वर्ण] हो गया और वे प्रभात कालीन चन्द्रमाके प्रकाशके क्षीण हो जानेसे अल्प तारागणोंवाली रात्रिके समान दीखने लगीं ॥ 8-9 ll

गिरिराज मिट्टी के समान सुगन्धित उनके मुखमण्डलको एकान्तमें सूपकर तृप्त नहीं होते थे और [गर्भवती होनेके कारण दिनानुदिन] मेनामें उनका प्रेमाधिक्य होने लगा। वे हिमालय मेनाकी सखियोंसे सदा यह पूछते रहते थे कि मेनाको किन वस्तुओंकी इच्छा है। वह लज्जाके कारण अपना कुछ भी इष्ट मुझसे नहीं बताती है ॥ 10-11 ॥

कष्टप्रद गर्भलक्षण प्राप्त कर लेनेपर वे मेना जिस वस्तुके लिये कहती थीं, उसे अपने सामने गिरिराजके द्वारा उपस्थित हुआ देखती थीं क्योंकि उनको इच्छित | कोई भी वस्तु तीनों लोकोंमें दुर्लभ नहीं थी ॥ 12 ॥धीरे-धीरे गर्भजन्य व्यथाको पारकर पुष्ट अंगोंवाली वह मेना पत्तोंसे समन्वित बाललताके समान शोभित होने लगी। हिमालयने अपनी सगर्भा पत्नीको रत्नभण्डारको अपने भीतर छिपाये रखनेवाली पृथ्वी और अग्निको अपने भीतर छिपाये रखनेवाले शमी वृक्षके समान समझा ।। 13-14 ॥

महाबुद्धिमान् हिमालयने अपनी प्रियाके प्रीतियोग्य, अपने द्वारा अर्जित द्रव्योंके अनुसार, राजसी प्रवृत्ति एवं अपने शास्त्रज्ञानके अनुरूप संस्कार किये ll 15 ll

उन्होंने प्रसवोन्मुखी अपनी प्रियाको वैद्योंके द्वारा निर्दिष्ट गर्भगृहमें मेघमण्डलसे आच्छादित आकाशके समान देखा। शुभ लक्षणोंवाली, गर्भमें जगदम्बाको धारण करनेवाली, महातेजयुक्त तथा सुन्दर अंगोंवाली प्रिया मेनाको देखकर गिरिराज हिमवान् बड़ी प्रसन्नताका अनुभव करने लगे ॥ 16-17 ।।

हे मुने! उस समय विष्णु आदि देवता तथा मुनिगण आकर गर्भमें स्थित शिवाकी स्तुति करने लगे ॥ 18 ॥ देवगण बोले- हे दुर्गे! हे प्राज्ञे! हे जगदम्बे ! हे महेश्वरि ! हे सत्यव्रते हे सत्यपरे हे त्रिसत्ये! हे सत्य-स्वरूपिणि! आपकी जय हो, आपकी जय हो। हे सत्यस्थे! हे सत्यसुप्रीते! हे सत्ययोने ! हे सत्यवक्त्रे! हे सत्यनेत्रे ! हम सभी आपकी शरणमें प्राप्त हुए हैं ॥ 19-20 ll

हे शिवप्रिये! हे महेश्वरि देवताओंके दुःखको दूर करनेवाली ! आप तीनों लोकोंकी माता, शर्वाणी, सर्वव्यापिनी तथा भक्तोंसे स्नेह रखनेवाली हैं। हे त्रिलोकेशि! आप प्रकट होकर देवगणोंके कार्यको पूर्ण करें। हे महेश्वरि हम सभी देवगण आपकी कृपासे सनाथ हो जायँगे ॥ 21-22 ॥

इस संसारके सभी सुखी मनुष्य आपके द्वारा ही उत्तम सुख प्राप्त करते हैं, आपके बिना इस त्रिलोकमें कुछ भी शोभा नहीं देता ॥ 23 ॥

ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार सभी देवगण प्रसन्न चित्त होकर गर्भस्थित महेश्वरीकी बहुत स्तुति करके अपने-अपने धामको चले गये। जब नौवाँ महीना बीत गया और दसवाँ भी पूरा हो चला, तब गर्भस्थित जगदम्बा महाकालीने गर्भसे बाहर आनेकी इच्छा की ॥ 24-25 ॥वह समय बड़ा सुहावना हो गया, नक्षत्र, तारे तथा ग्रह शान्त हो गये, आकाश निर्मल हो गया और सभी दिशाओंमें प्रकाश फैल गया। वन, ग्राम तथा सागरके सहित पृथ्वीपर नाना प्रकारके मंगल होने लगे। तालाब, नदियों एवं बावलियोंमें कमल खिल उठे ।। 26-27 ॥ हे मुनीश्वर ! अनेक प्रकारकी सुखस्पशी वायु बहने लगी, सभी साधुजन आनन्दित हो गये तथा दुर्जन शीघ्र ही दुखी हो गये ॥ 28 ॥

"देवता आकाशमें आकर दुन्दुभियाँ बजाने लगे वहाँ फूलोंकी वर्षा होने लगी तथा श्रेष्ठ गन्धर्व गान | करने लगे। अप्सराएँ और विद्याधरोंकी स्त्रियाँ आकाशमें नाचने लगीं, इस प्रकार आकाशमण्डलमें देवताओं आदिका महान् उत्सव होने लगा ॥ 29-30 ॥

उसी अवसरपर आद्याशक्ति सती शिवा देवी मेनाके सामने अपने रूपमें प्रकट हुई ॥ 31 ॥

वे वसन्त ऋतुके चैत्रमासमें नवमी तिथिको मृगशिरा नक्षत्रमें आधी रातके समय चन्द्रमण्डलसे गंगाकी भाँति प्रकट हुईं। वे शिवा मेनाके गर्भसे अपने स्वरूपसे इस प्रकार प्रकट हुईं, जैसे समुद्रसे महालक्ष्मीका आविर्भाव हुआ था ॥ 32-33 ।।

उस समय भगवतीके प्रकट होनेपर शंकरजी प्रसन्न हो गये और अनुकूल, गम्भीर, सुगन्धित तथा शुभ वायु बहने लगी। उस समय जलकी वर्षाक साथ पुष्पवृष्टि होने लगी, [अग्निहोत्रकी] शान्त अग्नि प्रज्वलित हो उठी और बादल गरजने लगे ॥ 34-35 ।।

उनके प्रकट होते ही हिमालयके नगरमें समस्त सम्पत्ति स्वतः आ गयी तथा [लोगोंका] सारा दुःख दूर हो गया ll 36 ॥

उस अवसरपर विष्णु आदि समस्त देवगण सुखी होकर वहाँ आ गये और प्रेमसे जगदम्बाका दर्शन करने लगे। वे शिवलोकमें निवास करनेवाली शिवप्रिया महाकाली दिव्यरूपधारिणी उन महामाया जगदम्बाकी स्तुति करने लगे ॥ 37-38 ॥ देवता बोले- हे जगदम्ब! हे महादेवि!
हे सर्वसिद्धिविधायिनि ! आप देवताओंका कार्य पूर्ण करनेवाली हैं, इसलिये हम सभी आपको सदा प्रणाम करते हैं ॥ 39 ॥हे भक्तवत्सले । आप हर प्रकारसे देवताओंका कल्याण करें। आपने मेनाका मनोरथ पूर्ण किया है, अब शिवका भी मनोरथ पूर्ण करें ll 40 ll

ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार विष्णु आदि देवता शिवाकी स्तुतिकर उन्हें प्रणाम करके उनकी परम गतिकी प्रशंसा करते हुए अपने-अपने धामको चले गये॥ 41 ll हे नारद। नीलकमलके दलके समान कान्तिमयी उन श्यामा भगवतीको उत्पन्न हुआ देखकर मेना परम प्रसन्न हो गयीं। उस दिव्य रूपको देखकर गिरिप्रिया मेनाको ज्ञान प्राप्त हो गया। वे उन्हें परमेश्वरी जानकर अत्यन्त हर्षित होकर उनकी स्तुति करने लगीं ॥42-43 ll

मेना बोली- हे जगदम्बे हे महेश्वरि हे अम्बिके। आपने बड़ी कृपा की, जो सुशोभित होती हुई मेरे सामने प्रकट हुई। हे शिवे आप सम्पूर्ण शक्तियोंमें आद्याशक्ति तथा तीनों लोकोंकी जननी हैं। हे देवि! आप भगवान् शिवको सदा ही प्रिय हैं तथा सम्पूर्ण देवताओंसे स्तुत पराशक्ति हैं। हे महेश्वरि आप कृपा करें और इसी रूपसे मेरे ध्यानमें स्थित हो जायँ और अब मेरी पुत्रीके समान प्रत्यक्ष रूप धारण करें ।। 44-46 ॥

ब्रह्माजी बोले- [हे नारद!] पर्वतपत्नी उन | मेनाकी यह बात सुनकर शिवा देवी अत्यन्त प्रसन्न होकर उन गिरिप्रियासे कहने लगीं ॥। 47 ।।

देवी बोलीं- हे मेने आपने पहले तत्पर होकर मेरी बड़ी सेवा की थी, [उस समय] आपकी भक्तिसे अत्यन्त प्रसन्न होकर वर देनेके लिये मैं आपके पास गयी थी। वर माँगिये मेरी इस वाणीको सुनकर आपने वह वर माँगा था- हे महादेवि! आप मेरी पुत्री हो जायें और देवताओंका हित साधन करें। तब मैं आपको आदरपूर्वक वह वर देकर अपने धामको चली गयी। हे गिरिकामिनि! अब समय | पाकर मैं आपकी पुत्री हुई हूँ। ll 48- 50 ॥

आज मैंने जो दिव्य रूप धारण किया है, वह इसलिये कि आपको मेरा स्मरण हो जाय, अन्यथा मनुष्यरूपमें प्रकट होनेपर मेरे विषयमें आप अनजान ही बनी रहतीं ॥ 51 ॥अब आप दोनों पुत्रीभावसे अथवा दिव्य भावसे स्नेहपूर्वक मेरा निरन्तर चिन्तन करते हुए मेरे परम पदको प्राप्त होओगे। मैं पृथ्वीपर अद्भुत लीला करके देवताओंका कार्य सिद्ध करूँगी, भगवान् शम्भुकी पत्नी होऊँगी और सज्जनोंका उद्धार करूँगी ॥ 52-53 ॥ ब्रह्माजी बोले- -ऐसा कहकर अम्बिका शिवा.मौन हो गयीं और उसी क्षण माताके देखते-देखते अपनी मायासे प्रसन्नतापूर्वक [नवजात] पुत्रीरूपमें हो गयीं ॥ 54 ॥

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] पितरोंकी कन्या मेनाके साथ हिमालयके विवाहका वर्णन
  2. [अध्याय 2] पितरोंकी तीन मानसी कन्याओं-मेना, धन्या और कलावतीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त तथा सनकादिद्वारा प्राप्त शाप एवं वरदानका वर्णन
  3. [अध्याय 3] विष्णु आदि देवताओंका हिमालयके पास जाना, उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बाकी स्तुति करना
  4. [अध्याय 4] उमादेवीका दिव्यरूपमें देवताओंको दर्शन देना और अवतार ग्रहण करनेका आश्वासन देना
  5. [अध्याय 5] मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न होकर देवीका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेनासे मैनाकका जन्म
  6. [अध्याय 6] देवी उमाका हिमवान्‌के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, देवीका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे वार्तालाप तथा पुनः नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना
  7. [अध्याय 7] पार्वतीका नामकरण तथा उनकी बाललीलाएँ एवं विद्याध्ययन
  8. [अध्याय 8] नारद मुनिका हिमालयके समीप गमन, वहाँ पार्वतीका हाथ देखकर भावी लक्षणोंको बताना, चिन्तित हिमवान्‌को शिवमहिमा बताना तथा शिवसे विवाह करनेका परामर्श देना
  9. [अध्याय 9] पार्वतीके विवाहके सम्बन्धमें मेना और हिमालयका वार्तालाप, पार्वती और हिमालयद्वारा देखे गये अपने स्वप्नका वर्णन
  10. [अध्याय 10] शिवजीके ललाटसे भौमोत्पत्ति
  11. [अध्याय 11] भगवान् शिवका तपस्याके लिये हिमालयपर आगमन, वहाँ पर्वतराज हिमालयसे वार्तालाप
  12. [अध्याय 12] हिमवान्‌का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा मांगना, शिवद्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना
  13. [अध्याय 13] पार्वती और परमेश्वरका दार्शनिक संवाद, शिवका पार्वतीको अपनी सेवाके लिये आज्ञा देना, पार्वतीका महेश्वरकी सेवामें तत्पर रहना
  14. [अध्याय 14] तारकासुरकी उत्पत्तिके प्रसंगों दितिपुत्र बज्रांगकी कथा, उसकी तपस्या तथा वरप्राप्तिका वर्णन
  15. [अध्याय 15] वरांगीके पुत्र तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुरकी तपस्या एवं ब्रह्माजीद्वारा उसे वरप्राप्ति, वरदानके प्रभावसे तीनों लोकोंपर उसका अत्याचार
  16. [अध्याय 16] तारकासुरसे उत्पीड़ित देवताओंको ब्रह्माजीद्वारा सान्त्वना प्रदान करना
  17. [अध्याय 17] इन्द्रके स्मरण करनेपर कामदेवका उपस्थित होना, शिवको तपसे विचलित करनेके लिये इन्द्रद्वारा कामदेवको भेजना
  18. [अध्याय 18] कामदेवद्वारा असमयमें वसन्त ऋतुका प्रभाव प्रकट करना, कुछ क्षणके लिये शिवका मोहित होना, पुनः वैराग्य भाव धारण करना
  19. [अध्याय 19] भगवान् शिवकी नेत्रज्वालासे कामदेवका भस्म होना और रतिका विलाप, देवताओं द्वारा रतिको सान्त्वना प्रदान करना और भगवान् शिवसे कामको जीवित करनेकी प्रार्थना करना
  20. [अध्याय 20] शिवकी क्रोधाग्निका वडवारूप धारण और ब्रह्माद्वारा उसे समुद्रको समर्पित करना
  21. [अध्याय 21] कामदेवके भस्म हो जानेपर पार्वतीका अपने घर आगमन, हिमवान् तथा मेनाद्वारा उन्हें धैर्य प्रदान करना, नारदद्वारा पार्वतीको पंचाक्षर मन्त्रका उपदेश
  22. [अध्याय 22] पार्वतीकी तपस्या एवं उसके प्रभावका वर्णन
  23. [अध्याय 23] हिमालय आदिका तपस्यानिरत पार्वतीके पास जाना, पार्वतीका पिता हिमालय आदिको अपने तपके विषयमें दृढ़ निश्चयकी बात बताना, पार्वतीके तपके प्रभावसे त्रैलोक्यका संतप्त होना, सभी देवताओंका भगवान् शंकरके पास जाना
  24. [अध्याय 24] देवताओंका भगवान् शिवसे पार्वतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, भगवान्का विवाहके दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करनेपर स्वीकार कर लेना
  25. [अध्याय 25] भगवान् शंकरकी आज्ञासे सप्तर्षियोंद्वारा पार्वतीके शिवविषयक अनुरागकी परीक्षा करना और वह वृत्तान्त भगवान् शिवको बताकर स्वर्गलोक जाना
  26. [अध्याय 26] पार्वतीकी परीक्षा लेनेके लिये भगवान् शिवका जटाधारी ब्राह्मणका वेष धारणकर पार्वतीके समीप जाना, शिव-पार्वती संवाद
  27. [अध्याय 27] जटाधारी ब्राह्मणद्वारा पार्वतीके समक्ष शिवजीके स्वरूपकी निन्दा करना
  28. [अध्याय 28] पार्वतीद्वारा परमेश्वर शिवकी महत्ता प्रतिपादित करना और रोषपूर्वक जटाधारी ब्राह्मणको फटकारना, शिवका पार्वतीके समक्ष प्रकट होना
  29. [अध्याय 29] शिव और पार्वतीका संवाद, विवाहविषयक पार्वतीके अनुरोधको शिवद्वारा स्वीकार करना
  30. [अध्याय 30] पार्वतीके पिताके घरमें आनेपर महामहोत्सवका होना, महादेवजीका नटरूप धारणकर वहाँ उपस्थित होना तथा अनेक लीलाएँ दिखाना, शिवद्वारा पार्वतीकी याचना, किंतु माता-पिताके द्वारा मना करनेपर अन्तर्धान हो जाना
  31. [अध्याय 31] देवताओंके कहनेपर शिवका ब्राह्मण वेषमें हिमालयके यहाँ जाना और शिवकी निन्दा करना
  32. [अध्याय 32] ब्राह्मण वेषधारी शिवद्वारा शिवस्वरूपकी निन्दा सुनकर मेनाका कोपभवनमें गमन शिवद्वारा सप्तर्षियोंका स्मरण और उन्हें हिमालयके घर भेजना, हिमालयकी शोभाका वर्णन तथा हिमालयद्वारा सप्तर्षियोंका स्वागत
  33. [अध्याय 33] वसिष्ठपत्नी अरुन्धती reद्वारा मेना को समझाना तथा
  34. [अध्याय 34] सप्तर्षियोंद्वारा हिमालयको राजा अनरण्यका आख्यान सुनाकर पार्वतीका विवाह शिवसे करनेकी प्रेरणा देना
  35. [अध्याय 35] धर्मराजद्वारा मुनि पिप्पलादकी भार्या सती पद्माके पातिव्रत्यकी परीक्षा, पद्माद्वारा धर्मराजको शाप प्रदान करना तथा पुनः चारों युगोंमें शापकी व्यवस्था करना, पातिव्रत्यसे प्रसन्न हो धर्मराजद्वारा पद्माको अनेक वर प्रदान करना, महर्षि वसिष्ठद्वारा हिमवान्से पद्माके दृष्टान्तद्वारा अपनी पुत्री शिवको सौंपनेके लिये कहना
  36. [अध्याय 36] सप्तर्षियोंके समझानेपर हिमवान्‌का शिवके साथ अपनी पुत्रीके विवाहका निश्चय करना, सप्तर्षियोंद्वारा शिवके पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त बताकर अपने धामको जाना
  37. [अध्याय 37] हिमालयद्वारा विवाहके लिये लग्नपत्रिकाप्रेषण, विवाहकी सामग्रियोंकी तैयारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियोंका दिव्य रूपमें सपरिवार हिमालयके घर आगमन
  38. [अध्याय 38] हिमालयपुरीकी सजावट, विश्वकर्माद्वारा दिव्यमण्डप एवं देवताओंके निवासके लिये दिव्यलोकोंका निर्माण करना
  39. [अध्याय 39] भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना
  40. [अध्याय 40] शिवबरातकी शोभा भगवान् शिवका बरात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान
  41. [अध्याय 41] नारदद्वारा हिमालयगृहमें जाकर विश्वकर्माद्वारा बनाये गये विवाहमण्डपका दर्शनकर मोहित होना और वापस आकर उस विचित्र रचनाका वर्णन करना
  42. [अध्याय 42] हिमालयद्वारा प्रेषित मूर्तिमान् पर्वतों और ब्राह्मणोंद्वारा बरातकी अगवानी, देवताओं और पर्वतोंके मिलापका वर्णन
  43. [अध्याय 43] मेनाद्वारा शिवको देखनेके लिये महलकी छतपर जाना, नारदद्वारा सबका दर्शन कराना, शिवद्वारा अद्भुत लीलाका प्रदर्शन, शिवगणों तथा शिवके भयंकर वेषको देखकर मेनाका मूर्च्छित होना
  44. [अध्याय 44] शिवजीके रूपको देखकर मेनाका विलाप, पार्वती तथा नारद आदि सभीको फटकारना, शिवके साथ कन्याका विवाह न करनेका हठ, विष्णुद्वारा मेनाको समझाना
  45. [अध्याय 45] भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना
  46. [अध्याय 46] नगरमें बरातियोंका प्रवेश द्वाराचार तथा पार्वतीद्वारा कुलदेवताका पूजन
  47. [अध्याय 47] पाणिग्रहण के लिये हिमालयके घर शिवके गमनोत्सवका वर्णन
  48. [अध्याय 48] शिव-पार्वती विवाहका प्रारम्भ, हिमालयद्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तरके रूपमें शिवमाहात्म्य प्रतिपादित करना, हर्षयुक्त हिमालयद्वारा कन्यादानकर विविध उपहार प्रदान करना
  49. [अध्याय 49] अग्निपरिक्रमा करते समय पार्वतीके पदनखको देखकर ब्रह्माका मोहग्रस्त होना, बालखिल्योंकी उत्पत्ति, शिवका कुपित होना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  50. [अध्याय 50] शिवा शिवके विवाहकृत्यसम्पादनके अनन्तर देवियोंका शिवसे मधुर वार्तालाप
  51. [अध्याय 51] रतिके अनुरोधपर श्रीशंकरका कामदेवको जीवित करना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  52. [अध्याय 52] हिमालयद्वारा सभी बरातियोंको भोजन कराना, शिवका विश्वकर्माद्वारा निर्मित वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल जनवासेमें आगमन
  53. [अध्याय 53] चतुर्थीकर्म, बरातका कई दिनोंतक ठहरना, सप्तर्षियोंके समझानेसे हिमालयका बरातको विदा करनेके लिये राजी होना, मेनाका शिवको अपनी कन्या सौंपना तथा बरातका पुरीके बाहर जाकर ठहरना
  54. [अध्याय 54] मेनाकी इच्छा अनुसार एक ब्राह्मणपत्नीका पार्वतीको पातिव्रतधर्मका उपदेश देना
  55. [अध्याय 55] शिव-पार्वती तथा बरातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और शिव विवाहोपाख्यानके श्रवणकी महिमा