ब्रह्माजी बोले - [ हे नारद!] कुछ समय बीतनेके पश्चात् उन पति-पत्नी दोनोंने देवताओंके कार्यके लिये जन्महेतु भक्तिपूर्वक जगदम्बाका स्मरण किया ॥ 1 ॥इधर, अपने पिताके यज्ञमें योगद्वारा शरीरत्याग करने वाली भगवती चण्डिकाने हिमालयपत्नी मेनाके गर्भसे जन्म लेनेका विचार किया। प्रसन्न होनेपर सम्पूर्ण कामनाओंको देनेवाली वे महेश्वरी अपने वचनको सत्य करनेके लिये पूर्ण अंशसे हिमवान के चित्तमें प्रविष्ट हुई ॥ 2-3 ॥
उस समय महामनस्वी वे हिमालय प्रसन्नता से अपूर्व कान्तिसम्पन्न होकर अग्निके समान अधृष्य तथा तेजसमूहसे युक्त हो गये ॥ 4 ॥
तत्पश्चात् समाधिसम्पन्न होनेसे गिरिराज हिमालयने सुन्दर कल्याणकारी समयमें अपनी प्रिया मेनाके उदरमें शिवाके उस परिपूर्ण अंशका ध्यान किया ॥ 5 ॥
इस तरह हिमालयको पत्नीने हिमवान्के हृदयमें विराजमान करुणा करनेवाली देवीकी कृपासे सुखदायक गर्भ धारण किया। सम्पूर्ण जगत्को आश्रय देनेवाली उन देवीके गर्भ में आने से गिरिप्रिया मेना सदा तेजोमण्डलके बीचमें स्थित होकर अधिक शोभा पाने लगी ।। 6-7 ।।
मेनाने अपने पतिको सुख देनेवाले तथा देवताओंके आनन्दके कारणभूत शुभ अभीष्ट गर्भलक्षणको धारण किया शरीरके अधिक दुर्बल होनेके कारण उन्होंने सभी आभूषणोंको उतार दिया, उनका मुखमण्डल लोधके समान [ श्वेत वर्ण] हो गया और वे प्रभात कालीन चन्द्रमाके प्रकाशके क्षीण हो जानेसे अल्प तारागणोंवाली रात्रिके समान दीखने लगीं ॥ 8-9 ll
गिरिराज मिट्टी के समान सुगन्धित उनके मुखमण्डलको एकान्तमें सूपकर तृप्त नहीं होते थे और [गर्भवती होनेके कारण दिनानुदिन] मेनामें उनका प्रेमाधिक्य होने लगा। वे हिमालय मेनाकी सखियोंसे सदा यह पूछते रहते थे कि मेनाको किन वस्तुओंकी इच्छा है। वह लज्जाके कारण अपना कुछ भी इष्ट मुझसे नहीं बताती है ॥ 10-11 ॥
कष्टप्रद गर्भलक्षण प्राप्त कर लेनेपर वे मेना जिस वस्तुके लिये कहती थीं, उसे अपने सामने गिरिराजके द्वारा उपस्थित हुआ देखती थीं क्योंकि उनको इच्छित | कोई भी वस्तु तीनों लोकोंमें दुर्लभ नहीं थी ॥ 12 ॥धीरे-धीरे गर्भजन्य व्यथाको पारकर पुष्ट अंगोंवाली वह मेना पत्तोंसे समन्वित बाललताके समान शोभित होने लगी। हिमालयने अपनी सगर्भा पत्नीको रत्नभण्डारको अपने भीतर छिपाये रखनेवाली पृथ्वी और अग्निको अपने भीतर छिपाये रखनेवाले शमी वृक्षके समान समझा ।। 13-14 ॥
महाबुद्धिमान् हिमालयने अपनी प्रियाके प्रीतियोग्य, अपने द्वारा अर्जित द्रव्योंके अनुसार, राजसी प्रवृत्ति एवं अपने शास्त्रज्ञानके अनुरूप संस्कार किये ll 15 ll
उन्होंने प्रसवोन्मुखी अपनी प्रियाको वैद्योंके द्वारा निर्दिष्ट गर्भगृहमें मेघमण्डलसे आच्छादित आकाशके समान देखा। शुभ लक्षणोंवाली, गर्भमें जगदम्बाको धारण करनेवाली, महातेजयुक्त तथा सुन्दर अंगोंवाली प्रिया मेनाको देखकर गिरिराज हिमवान् बड़ी प्रसन्नताका अनुभव करने लगे ॥ 16-17 ।।
हे मुने! उस समय विष्णु आदि देवता तथा मुनिगण आकर गर्भमें स्थित शिवाकी स्तुति करने लगे ॥ 18 ॥ देवगण बोले- हे दुर्गे! हे प्राज्ञे! हे जगदम्बे ! हे महेश्वरि ! हे सत्यव्रते हे सत्यपरे हे त्रिसत्ये! हे सत्य-स्वरूपिणि! आपकी जय हो, आपकी जय हो। हे सत्यस्थे! हे सत्यसुप्रीते! हे सत्ययोने ! हे सत्यवक्त्रे! हे सत्यनेत्रे ! हम सभी आपकी शरणमें प्राप्त हुए हैं ॥ 19-20 ll
हे शिवप्रिये! हे महेश्वरि देवताओंके दुःखको दूर करनेवाली ! आप तीनों लोकोंकी माता, शर्वाणी, सर्वव्यापिनी तथा भक्तोंसे स्नेह रखनेवाली हैं। हे त्रिलोकेशि! आप प्रकट होकर देवगणोंके कार्यको पूर्ण करें। हे महेश्वरि हम सभी देवगण आपकी कृपासे सनाथ हो जायँगे ॥ 21-22 ॥
इस संसारके सभी सुखी मनुष्य आपके द्वारा ही उत्तम सुख प्राप्त करते हैं, आपके बिना इस त्रिलोकमें कुछ भी शोभा नहीं देता ॥ 23 ॥
ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार सभी देवगण प्रसन्न चित्त होकर गर्भस्थित महेश्वरीकी बहुत स्तुति करके अपने-अपने धामको चले गये। जब नौवाँ महीना बीत गया और दसवाँ भी पूरा हो चला, तब गर्भस्थित जगदम्बा महाकालीने गर्भसे बाहर आनेकी इच्छा की ॥ 24-25 ॥वह समय बड़ा सुहावना हो गया, नक्षत्र, तारे तथा ग्रह शान्त हो गये, आकाश निर्मल हो गया और सभी दिशाओंमें प्रकाश फैल गया। वन, ग्राम तथा सागरके सहित पृथ्वीपर नाना प्रकारके मंगल होने लगे। तालाब, नदियों एवं बावलियोंमें कमल खिल उठे ।। 26-27 ॥ हे मुनीश्वर ! अनेक प्रकारकी सुखस्पशी वायु बहने लगी, सभी साधुजन आनन्दित हो गये तथा दुर्जन शीघ्र ही दुखी हो गये ॥ 28 ॥
"देवता आकाशमें आकर दुन्दुभियाँ बजाने लगे वहाँ फूलोंकी वर्षा होने लगी तथा श्रेष्ठ गन्धर्व गान | करने लगे। अप्सराएँ और विद्याधरोंकी स्त्रियाँ आकाशमें नाचने लगीं, इस प्रकार आकाशमण्डलमें देवताओं आदिका महान् उत्सव होने लगा ॥ 29-30 ॥
उसी अवसरपर आद्याशक्ति सती शिवा देवी मेनाके सामने अपने रूपमें प्रकट हुई ॥ 31 ॥
वे वसन्त ऋतुके चैत्रमासमें नवमी तिथिको मृगशिरा नक्षत्रमें आधी रातके समय चन्द्रमण्डलसे गंगाकी भाँति प्रकट हुईं। वे शिवा मेनाके गर्भसे अपने स्वरूपसे इस प्रकार प्रकट हुईं, जैसे समुद्रसे महालक्ष्मीका आविर्भाव हुआ था ॥ 32-33 ।।
उस समय भगवतीके प्रकट होनेपर शंकरजी प्रसन्न हो गये और अनुकूल, गम्भीर, सुगन्धित तथा शुभ वायु बहने लगी। उस समय जलकी वर्षाक साथ पुष्पवृष्टि होने लगी, [अग्निहोत्रकी] शान्त अग्नि प्रज्वलित हो उठी और बादल गरजने लगे ॥ 34-35 ।।
उनके प्रकट होते ही हिमालयके नगरमें समस्त सम्पत्ति स्वतः आ गयी तथा [लोगोंका] सारा दुःख दूर हो गया ll 36 ॥
उस अवसरपर विष्णु आदि समस्त देवगण सुखी होकर वहाँ आ गये और प्रेमसे जगदम्बाका दर्शन करने लगे। वे शिवलोकमें निवास करनेवाली शिवप्रिया महाकाली दिव्यरूपधारिणी उन महामाया जगदम्बाकी स्तुति करने लगे ॥ 37-38 ॥ देवता बोले- हे जगदम्ब! हे महादेवि!
हे सर्वसिद्धिविधायिनि ! आप देवताओंका कार्य पूर्ण करनेवाली हैं, इसलिये हम सभी आपको सदा प्रणाम करते हैं ॥ 39 ॥हे भक्तवत्सले । आप हर प्रकारसे देवताओंका कल्याण करें। आपने मेनाका मनोरथ पूर्ण किया है, अब शिवका भी मनोरथ पूर्ण करें ll 40 ll
ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार विष्णु आदि देवता शिवाकी स्तुतिकर उन्हें प्रणाम करके उनकी परम गतिकी प्रशंसा करते हुए अपने-अपने धामको चले गये॥ 41 ll हे नारद। नीलकमलके दलके समान कान्तिमयी उन श्यामा भगवतीको उत्पन्न हुआ देखकर मेना परम प्रसन्न हो गयीं। उस दिव्य रूपको देखकर गिरिप्रिया मेनाको ज्ञान प्राप्त हो गया। वे उन्हें परमेश्वरी जानकर अत्यन्त हर्षित होकर उनकी स्तुति करने लगीं ॥42-43 ll
मेना बोली- हे जगदम्बे हे महेश्वरि हे अम्बिके। आपने बड़ी कृपा की, जो सुशोभित होती हुई मेरे सामने प्रकट हुई। हे शिवे आप सम्पूर्ण शक्तियोंमें आद्याशक्ति तथा तीनों लोकोंकी जननी हैं। हे देवि! आप भगवान् शिवको सदा ही प्रिय हैं तथा सम्पूर्ण देवताओंसे स्तुत पराशक्ति हैं। हे महेश्वरि आप कृपा करें और इसी रूपसे मेरे ध्यानमें स्थित हो जायँ और अब मेरी पुत्रीके समान प्रत्यक्ष रूप धारण करें ।। 44-46 ॥
ब्रह्माजी बोले- [हे नारद!] पर्वतपत्नी उन | मेनाकी यह बात सुनकर शिवा देवी अत्यन्त प्रसन्न होकर उन गिरिप्रियासे कहने लगीं ॥। 47 ।।
देवी बोलीं- हे मेने आपने पहले तत्पर होकर मेरी बड़ी सेवा की थी, [उस समय] आपकी भक्तिसे अत्यन्त प्रसन्न होकर वर देनेके लिये मैं आपके पास गयी थी। वर माँगिये मेरी इस वाणीको सुनकर आपने वह वर माँगा था- हे महादेवि! आप मेरी पुत्री हो जायें और देवताओंका हित साधन करें। तब मैं आपको आदरपूर्वक वह वर देकर अपने धामको चली गयी। हे गिरिकामिनि! अब समय | पाकर मैं आपकी पुत्री हुई हूँ। ll 48- 50 ॥
आज मैंने जो दिव्य रूप धारण किया है, वह इसलिये कि आपको मेरा स्मरण हो जाय, अन्यथा मनुष्यरूपमें प्रकट होनेपर मेरे विषयमें आप अनजान ही बनी रहतीं ॥ 51 ॥अब आप दोनों पुत्रीभावसे अथवा दिव्य भावसे स्नेहपूर्वक मेरा निरन्तर चिन्तन करते हुए मेरे परम पदको प्राप्त होओगे। मैं पृथ्वीपर अद्भुत लीला करके देवताओंका कार्य सिद्ध करूँगी, भगवान् शम्भुकी पत्नी होऊँगी और सज्जनोंका उद्धार करूँगी ॥ 52-53 ॥ ब्रह्माजी बोले- -ऐसा कहकर अम्बिका शिवा.मौन हो गयीं और उसी क्षण माताके देखते-देखते अपनी मायासे प्रसन्नतापूर्वक [नवजात] पुत्रीरूपमें हो गयीं ॥ 54 ॥