शौनकजी बोले- हे सूतपुत्र! आप देवगणों, दैत्यों, गन्धर्वों, सर्पों एवं राक्षसोंकी इस सृष्टिका वर्णन विस्तारपूर्वक करें ॥ 1 ॥सूतजी बोले- जब प्रजापति दक्षकी [मानसी ] प्रजाकी वृद्धि नहीं हुई, तब वे तपस्यामें निरत रहनेवाली प्रजापति वीरणकी पुत्री [असिवनी] को विवाहकर ले आये ॥ 2 ॥
हे महाप्राज्ञ ! उन्होंने मैथुनके द्वारा धर्मपूर्वक विविध प्रजाओंका सृजन किया, मैं संक्षेपमें उन्हें बता रहा हूँ, आप सुनिये। उस वीरिणीका आश्रय लेकर दक्ष प्रजापतिने पाँच हजार पुत्रोंको उत्पन्न किया ॥ 3-4 ॥
परमेष्ठी ब्रह्माजीके सृष्टिसत्रमें उत्पन्न हुए नारद मुनिने कश्यपजीसे यह जानकर कि दक्षकी पुत्रियोंसे ही सृष्टिका विस्तार होगा, उत्पन्न हुए उन दक्ष पुत्रोंको देखकर उनसे कहा- हे अबोध बालको! तुमलोग पृथ्वीका विस्तार बिना जाने भला किस प्रकार सृष्टि करोगे? दिशाको जाने बिना कोई अपने लक्ष्यको कैसे प्राप्त करेगा, इसलिये तुमलोग पृथ्वीकी दिशाओंका पता लगाओ ॥ 5-7 ॥
उनके द्वारा ऐसा कहे जानेपर वे सभी अपनी | शक्तिसे दिशाका ज्ञान करनेके लिये चल दिये। उसका अन्त न पाकर वे पुनः अपने पिताके घर नहीं लौटे। यह जानकर दक्षने पुनः पाँच सौ पुत्रोंको उत्पन्न किया। इसके बाद सर्वदर्शी उन नारदने उनसे भी कहा- ॥ 8-9 ॥
नारदजी बोले- तुमलोग पृथ्वीका प्रमाण जाने बिना किस प्रकार सृष्टि करोगे ? हे मूर्खो! तुम सब सृष्टि करनेके लिये भला कैसे उद्यत हो गये हो ? ॥ 10 ॥
सूतजी बोले- वह वचन सुनकर वे सभी दिशाओंमें चले गये, जैसे पहले वे दक्षपुत्र सुबलाश्व तथा हर्यश्व चले गये थे ॥ 11 ॥
दिशाओंको बिना अन्तवाला पाकर वे पराभवको प्राप्त हुए और आजतक नहीं लौटे, जिस प्रकार समुद्रको प्राप्तकर नदियाँ पुनः नहीं लौटती हैं ॥ 12 ॥ हे मुने। उसी समयसे कोई भी भाई अपने भाईकी खोज में नहीं जाता, यदि चला भी जाय तो नष्ट हो जाता है ऐसा सोचकर बुद्धिमानोंको भाईको खोज प्रवृत्त नहीं होना चाहिये ॥ 13 ॥उसके अनन्तर उन पुत्रोंको नष्ट हुआ जानकर उन दक्ष प्रजापतिने क्रोधपूर्वक महात्मा नारदजीको यह शाप दे दिया। हे कलहप्रिय ! आप कहीं भी स्थिति प्राप्त नहीं करेंगे, आपके सान्निध्यसे लोकमें सदा कलह होगा । ll 14-15 ।।
तब ब्रह्माजीने दक्ष प्रजापतिको शान्त किया, उसके बाद उन्होंने वीरिणीसे साठ कन्याओंको उत्पन्न किया- ऐसा हमने सुना है ॥ 16 ॥
उन्होंने दस कन्याएँ धर्मराजको, तेरह कश्यपको, सत्ताईस सोमको, चार कन्याएँ अरिष्टनेमिको, दो कन्याएँ ब्रह्मपुत्रको, दो अंगिराको तथा दो कन्याएँ विद्वान् कृशाश्वको दीं। उन सभीके नाम मुझसे सुनिये ॥ 17-18 ।।
हे मुने! अरुन्धती, वसु, यामि, लम्बा, भानु, मरुत्वती, संकल्पा, मुहूर्ता, सन्ध्या और विश्वा-ये दस धर्मकी पत्नियाँ हैं। हे मुने! अब उनसे उत्पन्न सन्तानोंके नाम मुझसे सुनिये। विश्वासे विश्वेदेव उत्पन्न हुए। साध्याने साध्योंको उत्पन्न किया। मरुत्वतीसे मरुत्वान्, वसुसे [अष्ट] वसु, भानुसे [द्वादश] भानु, मुहूर्तासे सभी मुहूर्तज, लम्बासे घोष, यामिसे नागवीथी एवं उस अरुन्धतीसे पृथिवीविषम उत्पन्न हुए। संकल्पासे सत्यवादी संकल्प नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। हे शौनक ! वसुके अय आदि आठ पुत्र हैं, उनके नाम सुनिये। अय, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष तथा प्रभास नामवाले आठ वसुपुत्र हैं ।। 19 - 24 ॥
अयके पुत्र वैतण्ड, श्रम, शान्त एवं मुनि हुए। | समस्त लोकोंको प्रभावित करनेवाले भगवान् काल ध्रुवके पुत्र थे ॥ 25 ॥
सोमके पुत्र भगवान् वर्चा हुए, जिनसे मनुष्य वर्चस्वी होता है। धरके पुत्र द्रविण, हुत एवं हव्यवह हुए। मनोहरासे शिशिर, प्राण एवं रमण उत्पन्न हुए। अनिलकी शिवा नामक भार्या थी, जिसके अनिलसे दो पुत्र उत्पन्न हुए-पुरोजव एवं अविज्ञातगति अग्निके पुत्र कुमार हुए, जिनकी उत्पत्ति श्रीयुक्त सरकण्डोंके वनमें हुई। उन कुमारके पृष्ठदेशसे भी पुत्र शाख, विशाख एवं नैगमेय हुए। वे कार्तिकेय कृत्तिकाओंके पुत्र भी कहे गये हैं । ll 26 - 29॥प्रत्यूषके पुत्र देवल नामक ऋषि हुए, उन | देवलके भी महाबुद्धिमान् तथा सन्तानशील दो पुत्र | उत्पन्न हुए ॥ 30 ॥
बृहस्पतिकी बहन ब्रह्मचारिणी थी, जो स्त्रियों में श्रेष्ठ थी, वह योगमें सिद्ध होकर समस्त संसारमें भ्रमण करनेवाली थी। वह आठवें वसु प्रभासकी पत्नी हुई। हे महाभाग ! उस प्रभासके प्रजापति विश्वकर्मा [ नामक पुत्र] उत्पन्न हुए, जो हजारों शिल्पोंके कर्ता, देवताओंके कारीगर, सभी प्रकारके आभूषणोंके निर्माता एवं शिल्प कारोंमें श्रेष्ठ हुए, जिन्होंने सभी देवताओंके विमानोंका निर्माण किया और जिन महात्माके शिल्पद्वारा [ आज भी] मनुष्य आजीविका प्राप्त करते हैं । 31-34॥ रैवत, अज, भव, भीम, वाम, उग्र, वृषाकपि, अजैकपाद्, अहिर्बुध्न्य, बहुरूप, महान् एवं अन्य करोड़ों रुद्र प्रसूतकी स्त्री सरूपामें उत्पन्न हुए, जिनमें ग्यारह रुद्र प्रमुख हैं। हे मुने! मुझसे उनके नामोंका श्रवण कीजिये ll 35-36 ॥
अजैकपाद्, अहिर्बुध्न्य, त्वष्टा, वीर्यवान् रुद्र, हर, बहुरूप, अपराजित, त्र्यम्बक, वृषाकपि, शम्भु, कपर्दी एवं रैवत- ये तीनों लोकोंके स्वामी ग्यारह रुद्र कहे गये हैं ।। 37-38 ।।
इसी प्रकार अमित तेजवाले सौ रूद्र कहे गये हैं। हे मुनिश्रेष्ठ! अब कश्यपकी पत्नियोंके नामका श्रवण कीजिये ॥ 39 ॥