ब्रह्माजी बोले- तदनन्तर शिवजी प्रसन्नचित्त होकर अपने गणों, देवताओं, दूतों तथा अन्य सभी लोगोंके साथ कुतूहलपूर्वक हिमालयके घर गये ॥ 1 हिमालयकी श्रेष्ठ प्रिया मेना भी सभी स्त्रियोंके साथ उठकर अपने घरके अन्दर गर्यो ॥ 2 ॥
इसके बाद वे सती शिवजीकी आरतीके लिये हाथमें दीपक लेकर सभी ऋषियोंकी स्त्रियोंको साथ लेकर आदरपूर्वक द्वारपर आयीं ॥ 3 ॥ वहाँ मेनाने द्वारपर आये हुए, सभी देवताओंसे सेवित गिरिजापति महेश्वर शिवको बड़े प्रेमसे देखा ll 4 ll
सुन्दर चम्पक पुष्पके वर्णके समान आभावाले, पाँच मुखवाले, तीन नेत्रवाले, मन्द मुसकान तथा प्रसन्नतायुक्त मुखवाले, रत्न तथा सुवर्ण आदिसे शोभित, मालतीकी मालासे युक्त, उत्तम रत्नोंसे जटित मुकुटसे प्रकाशित, गलेमें सुन्दर हार धारण किये हुए, सुन्दर कंगन तथा बाजूबन्दसे सुशोभित, अग्निके समान देदीप्यमान, अनुपम, अत्यन्त सूक्ष्म, मनोहर, बहुमूल्य तथा विचित्र युग्म वस्त्र धारण किये हुए, चन्दन अगरु कस्तूरी तथा सुन्दर कुमकुमके लेपसे शोभित, हाथमें रत्नमय दर्पण लिये हुए, कज्जलके कारण कान्तिमान् नेत्रवाले, सम्पूर्ण प्रभासे आच्छन्न, अत्यन्त मनोहर, पूर्ण यौवनवाले, रम्य, सजे हुए अंगोंसे विभूषित, स्त्रियोंको सुन्दर लगनेवाले, व्यग्रतासे रहित, करोड़ों चन्द्रमाके समान मुखकमलवाले, करोड़ों कामदेवसे भी अधिक शरीरकी छविवाले तथा सर्वांगसुन्दर- इस प्रकारके अपने जामाता सुन्दर देव प्रभु शिवको अपने आगे स्थित देखकर मेनाने अपना शोक त्याग दिया और वे आनन्दमें भर गर्यो । ll 5- 11 ॥
वे अपने भाग्य, गिरिजा तथा पर्वतके कुलकी प्रशंसा करने लगीं। उन्होंने अपनेको कृतार्थ माना और वे बार-बार प्रसन्न होने लगीं ॥ 12 ॥तब वे सती मेना प्रसन्नमुख होकर आरती करने लग और आनन्दपूर्वक उन्हें देखने लगीं। ये मेना गिरिजाकी कही हुई बातका स्मरणकर विस्मित हो गयीं। उनका मुखकमल हर्षके कारण खिल उठा | और वे अपने मनमें कहने लगी- उस पार्वतीने मुझसे पूर्वमें जो कहा था, मैं तो उससे भी अधिक सौन्दर्य परमेश्वरका देख रही हूँ। इस समय महेश्वरका सौन्दर्य तो वर्णनसे परे है। इस प्रकार विस्मित हुई मेना अपने घरके भीतर गयीं ॥। 13 - 16 ॥
युवतियाँ प्रशंसा करने लगीं कि गिरिजा धन्य हैं, धन्य हैं और कुछ कन्याओंने तो यह कहा कि ये साक्षात् भगवती दुर्गा हैं ॥ 17 ॥
कुछ कन्याएँ तो इस प्रकार कहने लगीं कि ये गिरिजा धन्य हैं, जो इन्हें मनोहर पति प्राप्त हुआ। हमलोगोंने तो इस प्रकारके मनोहर वरका दर्शन ही नहीं किया है ॥ 18ll
[उस समय ] श्रेष्ठ गन्धर्व गाने लगे, अप्सराएँ नृत्य करने लगीं। सभी देवता शंकरजीके रूपको देखकर अत्यन्त हर्षित हो गये ॥ 19 ॥
बाजा बजानेवाले अनेक प्रकारके कौशलसे मधुर ध्वनिमें आदरपूर्वक अनेक प्रकारके वाद्य बजाने लगे ॥ 20 ॥
इसके बाद हिमालयने भी प्रसन्न होकर द्वाराचार किया। मेनाने भी आनन्दित होकर सभी स्त्रियोंके साथ महोत्सवपूर्वक परिछन किया। फिर वे अपने घरमें चली गयीं। इसके बाद शिवजी भी अपने गणों और देवताओंके साथ निर्दिष्ट स्थानपर चले गये । ll 21-22 ॥
इसी बीच हिमालयके अन्तःपुरको परिचारिकाएँ | दुर्गाको साथ लेकर कुलदेवताकी पूजा करनेके लिये बाहर गयीं ॥ 23 ॥
वहाँपर देवताओंने प्रेमपूर्वक अपलक दृष्टिसे नील अंजनके समान वर्णवाली, अपने अंगोंसे विभूषित शिवजीके द्वारा आदृत, तीन नेत्रोंवाली, [शिवजीके अतिरिक्त] अन्यके ऊपरसे हटे हुए नेत्रवाली, मन्द मन्दहासयुक्त तथा प्रसन्न मुखमण्डलवाली, कटाक्षयुक्त, | मनोहर, सुन्दर केशपाशवाली, सुन्दर पत्र-रचनासेशोभित, कस्तूरी-बिन्दुसहित सिन्दूरबिन्दुसे शोभित, वक्षःस्थलपर श्रेष्ठ रत्नोंके हारसे सुशोभित, रत्ननिर्मित बाजूबन्द धारण करनेवाली, रत्नमय कंकणोंसे मण्डित, श्रेष्ठ रत्नोंके कुण्डलोंसे प्रकाशित, सुन्दर कपोलवाली, मणि एवं रत्नोंकी कान्तिको फीकी कर देनेवाली दन्तपंक्तिसे सुशोभित, मनोहर विम्बफलके समान अधरोष्ठवाली, रत्नोंके यावक (महावर) से युक्त, हाथमें रत्नमय दर्पण धारण की हुई, क्रीड़ाके लिये कमलसे विभूषित, चन्दन अगरु कस्तूरी तथा कुमकुमके लेपसे सुशोभित, मधुर शब्द करते हुए घुँघरूओंसे युक्त चरणोंवाली तथा रक्तवर्णके पादतलसे शोभित उन देवीको देखा ।। 24-30 ॥
उस समय सभी देवता आदिने जगत्की आदिस्वरूपा तथा जगत्को उत्पन्न करनेवाली देवीको | देखकर भक्तियुक्त हो सिर झुकाकर मेनासहित उन्हें प्रणाम किया ॥ 31 ॥
त्रिनेत्र शंकरने भी उन्हें अपने नेत्रके कोणसे देखा और सतीके रूपको देखकर विरहज्वरको त्याग दिया ॥ 32 ॥
शिवापर टिकाये हुए नेत्रवाले शिव सब कुछ भूल गये। गौरीको देखनेसे हर्षके कारण उनके सभी अंग पुलकित हो उठे। इस प्रकार कालीने नगरके बाहर जाकर कुलदेवीका पूजनकर द्विजपत्नियोंके साथ अपने पिताके रम्य घरमें प्रवेश किया ।। 33-34 ।।
शंकरजी भी देवताओं, ब्रह्मा तथा विष्णुके साथ हिमालयके द्वारा निर्दिष्ट अपने स्थानपर प्रसन्नतापूर्वक चले गये ॥ 35 ॥
वहाँपर सभी लोग गिरीशके द्वारा नाना प्रकारकी सम्पत्तिसे सम्मानित होकर शंकरजीकी सेवा करते हुए सुखपूर्वक ठहर गये ॥ 36 ॥