सनत्कुमार बोले [हे नन्दीश्वर!] आप महादेवके अंशसे किस प्रकार उत्पन्न हुए और किस प्रकार शिवत्वको प्राप्त हुए ? हे प्रभो ! मैं वह सब सुनना चाहता हूँ, अतः आप मुझे बतानेकी कृपा करें ॥ 1 ॥
नन्दीश्वर बोले- हे सनत्कुमार! हे सर्वज्ञ! है मुने! जिस प्रकार शिवजीके अंशसे उत्पन्न होकर मैंने शिवत्वको प्राप्त किया है, उसको आप सावधानीपूर्वक सुनिये ॥ 2 ॥
किसी समय उद्धारको अभिलाषावाले पितरोंने [[महर्षि] शिलादसे आदरपूर्वक कहा कि सन्तान उत्पन्न करनेका प्रयत्न करें, तब शिलादने भक्तिपूर्वक उनका उद्धार करनेकी इच्छासे पुत्रोत्पत्ति करनेका विचार किया ॥ 3 ॥
परम धर्मात्मा तथा तेजस्वी उन शिलादमुनिने अधोदृष्टि एवं मुनिवृत्ति धारण कर ली और वे शिवलोकको गये। उन शिलादमुनिने स्थिर मन तथा दृढ़ व्रतवाला होकर इन्द्रको उद्देश्य करके बहुत समयतक अति कठोर तप किया ।। 4-5 ll
तब तपोनिरत उनके तपसे सर्वदेवप्रभु इन्द्र सन्तुष्ट हो गये और वर देनेहेतु गये तथा अत्यन्त प्रेमपूर्वक शिलादसे बोले - हे अनघ! मैं आपपर प्रसन्न हूँ। अतः हे मुनिशार्दूल! आप वर माँगें ॥ 6-7 ll
तब शिलादमुनि देवेश इन्द्रको प्रणामकर स्तोत्रोंके द्वारा आदरपूर्वक स्तुति करके हाथ जोड़कर उनसे कहने लगे - ॥ 8 ॥ शिलाद बोले- हे इन्द्र हे सुरेशान हे प्रभो! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं, तो मैं आपसे अयोनिज, अमर तथा उत्तम व्रतवाले पुत्रकी कामना करता हूँ ॥ 9 ॥ शक्र बोले- हे पुत्रार्थिन् ! मैं आपको योनिसे उत्पन्न तथा मृत्युको प्राप्त होनेवाला पुत्र दे सकता हूँ. इसके विपरीत नहीं; क्योंकि मृत्युहीन तो कोई नहीं है। मैं आपको अयोनिज तथा मृत्युरहित पुत्र नहीं दे सकता, हे महामुने। [अयोनिज एवं अमर पुत्र तो ] भगवान् विष्णु, ब्रह्मा तथा कोई अन्य भी नहीं दे सकते हैं ।। 10-11 ।।वे दोनों भी शिवके शरीरसे उत्पन्न होते हैं और मरते रहते हैं एवं उन दोनोंकी आयुका प्रमाण भी वेदमें अलग कहा गया है ।। 12 ।।
इसलिये हे विप्रवर! मृत्युहीन एवं अयोनिज पुत्रकी कामना प्रयत्नपूर्वक छोड़ें और अपने सामर्थ्याला पुत्र प्राप्त करें ॥ 13 ॥ हाँ, यदि देवाधिदेव महादेव रुद्र आपपर प्रसन्न हो जाये, तो आपको अत्यन्त दुर्लभ, मृत्युहीन और अयोनिज पुत्र प्राप्त हो सकता है ।। 14 ।।
हे महामुने! मैं भगवान् विष्णु एवं ब्रह्मा भी अयोनिज तथा मृत्युहीन पुत्र नहीं दे सकते। यदि इस प्रकारके पुत्रको प्राप्त करनेकी कामनासे आप महादेवकी आराधना कीजिये, तो महान् सामर्थ्यवाले वे सर्वेश्वर आपको इस प्रकारका पुत्र देंगे ।। 15-16 ॥
नन्दीश्वर बोले- हे मुने! परम दयालु इन्द्र उन विप्रेन्द्रको इस प्रकारसे कहकर तथा उनपर अनुग्रह करके देवताओंके साथ अपने लोकको चले गये ॥ 17 ॥ वरदाता इन्द्रके चले जानेपर वे शिलादमुनि महादेवकी आराधना करते हुए अपनी तपस्यासे शिवको प्रसन्न करने लगे ॥ 18 ॥
इस प्रकार रात-दिन तत्परतापूर्वक तपस्या करते हुए उन द्विज [शिलादमुनि] के दिव्य एक हजार वर्ष एक क्षणके समान बीत गये, यह आश्चर्यजनक था ॥ 19 ॥
उनका समस्त शरीर वज्रसूचीके समान मुखवाले एवं अन्यान्य रुधिरपान करनेवाले लाखों कीड़ोंसे तथा वल्मीकसे ढँक गया। उनका शरीर त्वचा, रुधिर एवं मांससे रहित हो गया, बाँबीमें स्थित उन मुनिश्रेष्ठ शिलादकी हड्डियाँ ही बची रह गयी थीं ॥ 20-21 ॥
तब शिवजीने प्रसन्न होकर उन्हें दिव्य गुणोंसे युक्त अपना दिव्य शरीर दिखलाया, जिसे कुटिल बुद्धि रखनेवाले नहीं प्राप्त कर सकते हैं ॥ 22 ॥
तब सभी देवताओंके स्वामी शूलधारी शिवने देवताओंके एक हजार वर्षसे तप करते हुए उन शिलादमुनिसे कहा कि मैं आपको वर देनेहेतु आया ll ૨૨ ll
महासमाधिमें लीन वे महामुनि शिलाद भक्तिके अधीन रहनेवाले शिवजीकी उस वाणीको नहीं सुन सके ।। 24 ।।जब शिवजीने अपने हाथसे मुनिका स्पर्श किया, तब मुनिश्रेष्ठ शिलादने तपस्या छोड़ी ॥ 25 ॥ हे मुने! तदनन्तर नेत्र खोलकर पार्वतीसहित शिवका दर्शन प्राप्तकर शीघ्रतासे आनन्दपूर्वक प्रणाम करके शिलादमुनि उनके चरणोंपर गिर पड़े ॥ 26 ॥ तत्पश्चात् प्रसन्नचित्त वे शिलाद कंधा झुकाकर हाथ जोड़कर हर्षके कारण गद्गद वाणीमें परमेश्वरको स्तुति करने लगे ॥ 27 ॥
तदनन्तर प्रसन्न हुए देवाधिदेव त्रिलोचन भगवान् शिवने उन मुनिश्रेष्ठ शिलादसे [पुनः] कहा- मैं आपको वर देने आया हूँ। है महामते! इस तपस्यासे आपको क्या करना है? मैं आपको सर्वज्ञ तथा सर्वशास्त्रार्थवेत्ता पुत्र दे रहा हूँ ॥ 28-29 ।।
तब यह सुनकर शिलादने शिवजीको प्रणामकर हर्षके कारण गद्गद वाणीमें उन चन्द्रशेखरसे कहा- ॥30॥
शिलाद बोले- हे महेश्वर! यदि आप [ मुझपर ] प्रसन्न हैं और मुझे वर देना चाहते हैं, तो मैं आपके समान हो अयोनिज और मृत्युहीन पुत्र चाहता हूँ ll 31 ॥ नन्दीश्वर बोले- [ हे सनत्कुमार!] तब उनके ऐसा कहनेपर त्रिनेत्र भगवान् शिव प्रसन्नचित्त होकर मुनिश्रेष्ठ शिलादसे कहने लगे- ll 32 ॥
शिवजी बोले- हे विप्र ! हे तपोधन! पूर्वकालमें ब्रह्मा, देवताओं तथा मुनियोंने [मेरे] अवतारके लिये तपस्याके द्वारा मेरी आराधना की थी, इसलिये मैं नन्दी नामसे आपके अयोनिज पुत्रके रूपमें अवतरित होऊँगा और हे मुने। तब आप मुझ तीनों लोकोंके पिताके भी पिता बन जायेंगे ।। 33-34 ।।
नन्दीश्वर बोले- ऐसा कहकर प्रणाम करके स्थित मुनिकी ओर देखकर उन्हें आज्ञा देकर उमासहित दयालु शिव वहाँ अन्तर्हित हो गये ।। 35 ।।
तब उन महादेवके अन्तर्धान हो जानेपर अपने आश्रम में आकर उन महामुनि शिलादने ऋषियोंको [ वह वृत्तान्त ] बताया ॥ 36 ॥
[हे सनत्कुमार!] कुछ समय बाद यज्ञवेत्ताओंमें श्रेष्ठ मेरे पिता शिलादमुनि यज्ञ करनेके लिये यज्ञस्थलका शीघ्रतासे कर्षण करने लगे ॥ 37 ॥उसी समय [ यज्ञारम्भसे पूर्व ही] शिवजीकी आज्ञासे प्रलयाग्निके सदृश देदीप्यमान होकर मैं उनके शरीरसे पुत्ररूपमें प्रकट हुआ ॥ 38 ॥
उस समय शिलादमुनिके पुत्ररूपमें मेरे अवतरित होनेपर पुष्करावर्त आदि मेघ वर्षा करने लगे; आकाशचारी किन्नर, सिद्ध और साध्यगण गान करने लगे और ऋषिगण चारों ओरसे पुष्पवृष्टि करने लगे। इसके बाद ब्रह्मा आदि देवगण, देवपलियाँ, विष्णु, शिव, अम्बिका – ये सब अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक वहाँ आये ।। 39-40 ॥
उस समय वहाँपर बहुत बड़ा उत्सव हुआ। अप्सराएँ नाचने लगीं। वे सभी देवगण हर्षित होकर | मेरा समादर तथा आलिंगन करके स्तुति करने लगे । वे लोग उन शिलादमुनिकी प्रशंसाकर तथा उत्तम स्तोत्रोंसे शिव एवं पार्वतीकी स्तुतिकर अपने-अपने धामोंको चले गये, अखिलेश्वर शिव-शिवा भी अपने धामको चले गये ॥ 41-42 ।।
[महर्षि] शिलाद भी प्रलयकालीन सूर्य और अग्निके समान कान्तिमान्, तीन नेत्रोंसे युक्त, चार भुजावाले, जटामुकुटधारी, त्रिशूल आदि शस्त्र धारण करनेवाले, देदीप्यमान रुद्रके समान रूपवाले तथा सब प्रकारसे प्रणम्य मुझ नन्दीश्वरको बालकके रूपमें देखकर परम आनन्दसे परिपूर्ण होकर प्रेमपूर्वक प्रणाम करने लगे ।। 43-44 ।।
शिलाद बोले- हे सुरेश्वर ! आपने मुझे आनन्दित किया है, अतः आपका नाम नन्दी होगा और इसलिये आनन्दस्वरूप आप प्रभु जगदीश्वरको मैं प्रणाम करता हूँ ॥ 45 ॥
नन्दीश्वर बोले - [हे सनत्कुमार!] पिताजी उन महेश्वरको भलीभाँति प्रणाम करके मुझे साथ लेकर शीघ्रतापूर्वक पर्णकुटीमें चले गये। वे इतने प्रसन्न हुए, मानो किसी निर्धनको निधि मिल गयी हो ॥ 46 ॥
हे महामुने! जब मैं [ महर्षि] शिलादकी कुटीमें गया, तब मैंने उस प्रकारके रूपको त्यागकर मनुष्य शरीर धारण कर लिया ll 47 llतदनन्तर मुझे मनुष्य-शरीर धारण किया हुआ देखकर लोकपूजित मेरे पिता अपने कुटुम्बियों सहित दुखी होकर विलाप करने लगे। शालंकायनमुनिके पुत्र पुत्रवत्सल शिलादने मेरा समस्त जातकर्मादि संस्कार सम्पादित किया ।। 48-49 ।।
पाँच वर्षमें मेरे पिताने मुझे सांगोपांग वेदों तथा सम्पूर्ण शास्त्रोंका भी अध्ययन कराया। सातवें वर्षके सम्पूर्ण होनेपर मित्र और वरुण नामवाले दो मुनि शिवजीकी आज मुझे देखनेके लिये उनके आश्रमपर आये ।। 50-51 ॥
उन मुनि [शिलाद] के द्वारा सत्कृत होकर सुखपूर्वक बैठे हुए दोनों महात्मा महामुनि मुझे बार बार देखकर कहने लगे- ॥ 52 ॥
मित्र और वरुण बोले- हे तात! आपके पुत्र नन्दी जैसा सम्पूर्ण शास्त्रोंमें पारंगत मुझे अभीतक कोई दिखायी या सुनायी नहीं पड़ा, किंतु [दुःख है कि] यह अल्पायु है। अब इस वर्षसे अधिक इसकी आयु हमलोग देख नहीं पा रहे हैं ॥ 53 ॥
उन विप्रोंके ऐसा कहनेपर पुत्रवत्सल शिलाद उसका आलिंगनकर दुःखसे व्याकुल होकर ऊँचे स्वरमें अत्यधिक विलाप करने लगे ॥ 54 ॥
तदनन्तर मृतकके समान गिरे हुए पिता एवं पितामहको देखकर वह बालक शिवके चरणकमलका ध्यानकर प्रसन्नचित्त होकर कहने लगा-हे तात! आप किस दुःखसे दुखी होकर काँपते हुए रो रहे हैं. आपको यह दुःख कहाँसे उत्पन्न हुआ, मैं उसको यथार्थ रूपसे जानना चाहता हूँ ।। 55-56 ॥
पिता बोले- हे पुत्र ! तुम्हारी अल्पावस्था में मृत्युकं दुःखसे मैं अत्यधिक दुखी हूँ। मेरे दुःखको कौन दूर करेगा, मैं उसकी शरण में जाऊँ ॥ 57 ॥
पुत्र बोला - [ हे पिताजी!] देवता, दानव, | यमराज, काल अथवा अन्य कोई भी प्राणी यदि मुझे मारना चाहें, तो भी मेरी अल्पमृत्यु नहीं होगी, आप दुखी न हों। हे पिताजी! मैं आपकी सौगन्ध खाता हूँ, यह सच कह रहा हूँ ।। 58-59 ।।
पिता बोले हे पुत्र वह कौन-सा तप है, ज्ञान है अथवा योग है या कौन तुम्हारा प्रभु | जिससे तुम मेरे इस दारुण दुःखको दूर करोगे ? ॥ 60 ॥पुत्र बोला- हे तात! मैं न तो तपसे और न विद्यासे ही मृत्युको रोक सकूँगा, मैं तो केवल महादेवके भजनसे मृत्युको जीतूंगा, इसमें सन्देह नहीं है ॥ 61 ॥
नन्दीश्वर बोले - हे मुने! ऐसा कहकर मैं सिर झुकाकर पिताके चरणोंमें प्रणामकर उनकी प्रदक्षिणा करके उत्तम वनकी ओर चला गया ॥ 62 ॥