सनत्कुमार बोले- [ हे व्यास!] इन नरकाग्नियोंमें पापीजन अनेक प्रकारकी विचित्र यातनाओंके द्वारा कर्मोंके विनष्ट होनेतक सताये तथा सुखाये जाते हैं ॥ 1 ॥ जिस प्रकार मल दूर होनेतक धातुएँ अग्निमें तपायी जाती हैं, उसी प्रकार पापके क्षयपर्यन्त पापी मनुष्य भी अपने कर्मोंके अनुरूप सन्तप्त किये जाते हैं ॥ 2 ॥
यमराजके दूत लोहेकी जंजीरमें [पापी] मनुष्योंके दोनों हाथ दृढ़तापूर्वक बाँधकर महावृक्षकी शाखाओं में लटका देते हैं ॥ 3 ॥
उसके बाद यत्नपूर्वक यमकिंकरोंद्वारा फेंके गये मनुष्य बड़े वेगसे काँपते हुए मूच्छित होकर योजनों दूरीतक [ उनके द्वारा ] ले जाये जाते हैं ॥ 4 ॥इसके बाद महाबलवान् यमराजके दूत आकाशमें स्थित उन मनुष्योंके पैरोंमें सौ भारका लोहा बाँध देते हैं। उस महान् भारसे अत्यधिक पीड़ित मनुष्य अपने कमका स्मरण करते हैं और चेष्टाविहीन होकर चुपचाप खड़े रहते हैं ॥ 5-6 ॥
तदनन्तर अतिभयंकर यमदूत उन पापियोंको चारों ओरसे भयानक अंकुशों एवं अग्निके समान वर्णवाले लोहदण्डोंसे मारते हैं। उसके पश्चात् अग्निसे भी तेज खारे नमकसे चारों ओरसे उनके ऊपर बार बार लेप करते हैं ।। 7-8 ॥
उस लेपसे शीघ्र उनका शरीर जर्जर होकर छिन्न- भिन्न हो जाता है, पुनः सिरसे लेकर क्रमश: सारे अंग काट-काटकर अत्यन्त प्रतप्त लोहेके कड़ाहोंमें बैगनके समान पकाये जाते हैं। इसके बाद विष्ठासे पूरित कूपमें, कीड़ोंके ढेरमें तथा पुनः चर्बी, रक्त तथा मवादसे भरी हुई बावलीमें [पापियोंके शरीरावयव] फेंक दिये जाते हैं । वहाँपर कीड़े तथा लौहके समान तीक्ष्ण चोंचोंवाले कौए, कुत्ते, मच्छर, भेड़िये एवं भयानक तथा विकृत मुख वाले व्याघ्र उनका भक्षण करते हैं और वे जलते अंगारोंकी राशिमें मछलीके समान भूँजे जाते हैं ll 9-12 ॥
वे मनुष्य अपने पापकर्मके फलस्वरूप अत्यन्त तीक्ष्ण भालोंसे वेधे जाते हैं। मनुष्योंके [वे] यातना शरीर अपने घोर कर्मोंके कारण तेलयन्त्रोंमें डालकर तिलोंके समान पीसे जाते हैं। पुनः [अत्यन्त तीक्ष्ण] धूपमें तथा तपे हुए लोहेके पात्रोंमें अनेक प्रकारसे भूजे जाते हैं। इसके बाद तेलसे पूर्ण अत्यन्त तप्त कड़ाहोंमें हृदय तथा पैरोंको दबाकर उनकी जीभको पकाया जाता है ।। 13-15 ll
इस प्रकार शरीरसे नाना प्रकारकी भयंकर यातना प्राप्त करते हुए [पापी] मनुष्य क्रमश: सभी नरकोंमें घूमते रहते हैं। हे व्यासजी ! यमदूत सभी नरकोंमें [पापियोंके] सभी अंगोंमें विचित्र एवं अत्यन्त पीड़ादायिनी यातनाएँ देते हैं ॥ 16-17 ॥
जलता हुआ अंगार लेकर उनके मुखमें भरकर उन्हें पीटा जाता है, इसके बाद क्षारद्रव्यसे तथा तप्त [[पिघले हुए] ताम्रसे उन्हें बार- बार पीड़ित कियाजाता है। तत्पश्चात् अत्यधिक तपे हुए घी तथा तेलको उनके मुखमें भरकर इधर उधर पीड़ा देकर बहुत मारा जाता है ॥ 18- 19 ।।
[यमदूत] कभी- कभी उनके मुखमें कीड़े तथा विष्ठा भरकर अति भयानक तथा प्रदीप्त लोहशलाकासे उन्हें दागते हैं ॥ 20 ॥
वे पीठपर जलते हुए विशाल घनोंसे मारे जाते हैं और अपने घोर पापकर्मोंके कारण दाँतोंवाले, वेदनाप्रद तथा सुदृढ़ आरेसे सिरतक चीरे जाते हैं। वे अपना ही मांस खाते हैं तथा अपना ही रक्त पीते हैं ।। 21-22 ॥ सर्वदा अपने ही पोषणमें तत्पर रहनेवाले जिन्होंने अन्न अथवा पेय वस्तुका दान नहीं किया है, वे मुद्गरोंद्वारा जर्जर बनाकर ईखके समान पेरे जाते हैं ॥ 23 ॥
उसके अनन्तर वे घोर असितालवनमें खण्ड खण्ड करके छिन्न- भिन्न किये जाते हैं और उनके सारे अंगोंमें सुइयाँ चुभोयी जाती हैं एवं वे तप्त शूलीके अग्रभागपर लटकाये जाते हैं। उसपर हिला | डुलाकर वे बहुत पीड़ित किये जाते हैं, किंतु मरते नहीं, इस प्रकार उनके वे [ यातना] शरीर सुख दुःखको सहन करते हैं ।। 24-25 ।।
महाबलशाली तथा बड़े- बड़े दाँतोंवाले भयंकर यमदूत उनके शरीरसे मांस निकालकर उन्हें मुद्गरोंसे पीटते हैं। उन मनुष्योंको निरुच्छ्वास नामक नरकमें बहुत समयतक बिना श्वासके रहना पड़ता है और उच्छ्वास नामक नरकमें बालूके घरमें उन्हें अत्यधिक पीटा जाता है॥ 26-27॥
रौरव नरकमें रोते हुए जीव अनेक आघातोंसे पीड़ित किये जाते हैं और महारौरव नरककी यातनाओंसे बड़े-बड़े [धैर्यवान् ] भी रोने लगते हैं ॥ 28 ॥
चरण, मुख, गुदा, सिर, नेत्रों और मस्तकपर वे तीक्ष्ण घनोंसे तथा अत्यधिक तपी हुई लोहेकी छड़ोंसे मारे जाते हैं। वे अत्यन्त तपती हुई रेतोंमें बार-बार गिराये जाते हैं और अत्यन्त तपे हुए | जन्तुपंकमें फेंके जानेपर वे विकृत स्वरमें क्रन्दन करने लगते हैं । 29-30 ॥हे मुने क्रूर कर्म करनेवाले पापी कुम्भीपाक । नरकोंमें असह्य तप्त तेलोंमें पूर्णरूपसे पकाये जाते हैं। उन पापियोंको दुःखदायक लालाभक्ष नामक नरकोंमें गिराया जाता है। इसी प्रकार वे अनेक प्रकारके नरकोंमें बार- बार गिराये जाते हैं ।। 31-32 ॥
यमदूतोंद्वारा पुण्यहीन पापी मनुष्य अत्यन्त कष्टदायक सूचीमुख नरकमें गिराया जाता है तथा मारा जाता है। अपने पापोंके कारण लोहकुम्भ नरकमें डाले गये मनुष्य धीरे- धीरे श्वास लेते हुए महान् अग्निसे पकाये जाते हैं ।। 33- 34 ॥
रस्सी आदिसेतापूर्वक बाँधकर उन्हें पत्थरोंपर पटका जाता है, अन्धकूप नरकोंमें फेंका जाता है, जहाँ भौरे उन्हें बहुत हँसते हैं ॥ 35 ॥
कीड़ोंके द्वारा काटे गये सभी अंगोंवाले तथा पूर्णरूपसे जर्जर कर दिये गये वे बादमें अत्यन्त तीक्ष्ण क्षारकूपोंमें फेंक दिये जाते हैं ॥ 36 ॥
पापीलोग महाज्वाल नामक इस नरकमें दुखी होकर क्रन्दन करते रहते हैं और उसकी ज्वालासे दग्ध होते हुए इधर उधर भागते हैं ॥ 37 ॥
तुण्डोंके द्वारा पीठपर लाकर कन्धोंका सहारा लेकर बा तथा पीठके बीचसे दृढ़तापूर्वक खींचकर पाश तथा रस्सियोंसे अति कठोरतापूर्वक बाँधे गये सभी पापी महाज्वाल नामक नरकमें एक- दूसरेकी यातना देखते रहते हैं ।। 38-39 ॥
रस्सियोंसे बँधे हुए तथा कीचड़से लिपटे हुए वे कण्डा तथा भूसीकी आगमें पकाये जाते हैं, किंतु मरते नहीं। अति दुश्चरित्र पापियोंको कठोर शिलाओंपर बड़े जोरसे पटककर तृणके समान सैकड़ों खण्डों में फाड़ दिया जाता है ॥ 40-41 ।।
शरीर के भीतर प्रविष्ट हुए तीखे मुखवाले बहुत से कोड़ोंके द्वारा वे मनुष्य यातना शरीरके नाशपर्यन्त निरन्तर भक्षण किये जाते हैं ॥ 42 ॥
कीड़ों के समूहमें और पीब, मांस एवं हड्डियोंके समूहमें फेंके गये वे पापी दो पत्थरोंके बीचमें दबे हुए व्यथितचित्त होकर वहाँ पड़े रहते हैं ॥ 43उनका शरीर कभी तपे हुए वज्रलेपसे लिप्त होता है और वे कभी नीचेकी ओर मुख तथा ऊपरको पैर करके अग्निसे तपाये जाते हैं ॥ 44 ॥
वे मुखके भीतर डाली हुई अतिशय तप्त लोहेकी गदाको विवश होकर निगलते रहते हैं और यमदूत उन्हें मुद्गरोंसे पीटते रहते हैं ॥ 45 ॥
हे व्यासजी ! इस प्रकार पापकर्म करनेवाले लोग नरकोंमें दुःख भोगते हैं, अब मैं आपके जाननेके लिये उन पापियोंके विकृतस्वरूपका वर्णन करता हूँ ॥ 46 ॥