नन्दीश्वर बोले – हे प्राज्ञ ! हे मुने! अब मैं परमात्मा शिवके परम आनन्दप्रद यतिनाथ नामक अवतारका वर्णन करूँगा, आप सुनें ॥ 1 ॥
हे मुनीश्वर ! [ पूर्वकालमें] अर्बुदाचल नामक पर्वतके समीप भिल्लवंशमें उत्पन्न आहुक नामक एक भील रहता था ॥ 2 ॥
उसकी पत्नीका नाम आहुका था, जो अत्यन्त पतिव्रता थी। वे दोनों प्रतिदिन भक्तिपूर्वक शिवजीकी पूजा करते थे। वे दोनों महाशिवभक्त थे ॥ 3 ॥हे मुने। किसी समय सदा शिवभक्तिमें तत्पर रहनेवाला वह भील अपने तथा स्त्रीके लिये आहारकी व्यवस्थाहेतु बहुत दूर चला गया ॥ 4 ॥
इसी बीच शिवजी संन्यासीका रूप धारणकर उसकी परीक्षा लेनेके लिये सायंकाल उस भीलके घर आये ॥ 5 ll
उसी समय वह गृहपति [ आहुक] भी वहाँ आ गया और उस महाबुद्धिमान् भीलने प्रेमपूर्वक उन यतीश्वरकी पूजा की ॥ 6 ॥ उसके भावकी परीक्षा करनेके लिये महालीला करनेवाले संन्यासीरूपधारी उन शिवजीने डरते हुए प्रेमपूर्वक दीनवचन कहा- ॥ 7 ॥ यतिनाथ बोले- हे भिल्ल! तुम मुझे आज रहनेके लिये स्थान दो और प्रातःकाल होते ही मैं सर्वथा चला जाऊँगा, तुम्हारा सर्वदा कल्याण हो ॥ 8 ॥
भिल्ल बोला- हे स्वामिन्! आपने सत्य कहा, किंतु मेरी बात सुनिये, मेरा स्थान तो बहुत थोड़ा है, फिर यहाँ आपका निवास किस प्रकार सम्भव है ? ॥ 9 ॥
नन्दीश्वर बोले हे सनत्कुमार। उसके द्वारा इस प्रकार कहे जानेपर वह संन्यासी जानेका विचार करने लगा, तबतक भीलनीने विचारकर अपने स्वामीसे कहा- ll 10 ॥
भीलनी बोली- हे स्वामिन्! गृहस्थधर्मका विचार करके आप संन्यासीको स्थान दे दीजिये, अतिथिको निराश मत कीजिये अन्यथा आपके धर्मका क्षय होगा ॥ 11 ॥
आप घरके भीतर संन्यासीके साथ निवास करें और मैं सभी बड़े अस्त्र-शस्त्रोंको बाहर रखकर वहीं रहूँगी ॥ 12 ॥ नन्दीश्वर बोले- अपनी पत्नी उस भीलनीके धर्मयुक्त कल्याणकारी वचनको सुनकर वह भील अपने मनमें विचार करने लगा ॥ 13 ॥ स्त्रीको घरके बाहर रखकर मेरा घरमें निवास करना उचित प्रतीत नहीं होता है, फिर इस यतिका दूसरी जगह गमन भी अपने अधर्मका कारण होगा ll 14 ॥
गृहस्थधर्मका आचरण करनेवालोंके लिये ये दोनों बातें सर्वथा उचित नहीं हैं। अतः जो होनहार है, वह हो, मैं घरके बाहर ही रहूँगा ।। 15 ।।इस प्रकार आग्रहकर उन दोनोंको घरके भीतर रखकर अपने अस्त्रोंको लेकर वह भील प्रसन्नतासे घरसे बाहर स्थित हो गया ॥ 16 ॥ रात्रिमें उस भीलको क्रूर एवं हिंसक पशु सताने लगे, उसने भी अपनी रक्षाके लिये उस समय यथाशक्ति
महान् प्रयत्न किया ॥ 17 ॥ इस प्रकार [अपनी शक्तिके अनुसार] यत्न करते रहनेपर भी प्रारब्धप्रेरित हिंसक पशुओंने बलपूर्वक उस बलवान् भीलको खा लिया ॥ 18 ॥ प्रातः काल उठकर संन्यासी हिंस्र जन्तुओंसे भक्षित उस वनेचर भीलको देखकर बड़ा दुखी हुआ ।। 19 ॥ संन्यासीको दुखी देखकर वह भीलनी भी बहुत दुःखित हुई, किंतु धैर्यसे अपने दुःखको दबाकर यह वचन कहने लगी- ॥ 20 ॥
भीलनी बोली- हे यते! आप शोक क्यों कर रहे हैं? इनका कल्याण हो गया, ये धन्य हो गये, कृतकृत्य हो गये। जो इस प्रकार इनकी मृत्यु हुई ॥ 21 ॥
हे यते! अब मैं भी इन्हींके साथ अग्निमें भस्म होकर सती हो जाऊँगी, आप प्रेमपूर्वक चिता तैयार कराइये; क्योंकि यही स्त्रियोंका सनातनधर्म है॥ 22 ॥
उसकी यह बात सुनकर और इसीमें उसका कल्याण समझकर उस संन्यासीने तत्क्षण ही चिता तैयार कर दी और वह अपने धर्मके अनुसार उसीमें प्रविष्ट होनेके लिये उद्यत हुई ॥ 23 ॥
इसी अवसरपर साक्षात् शिवजी सामने प्रकट हो गये। धन्य हो, धन्य हो - इस प्रकारसे प्रेमपूर्वक प्रशंसा करते हुए शिवजी उस भीलनी से कहने लगे ॥ 24 ॥
हर बोले- हे अनथे! मैं तुम्हारे आचरणसे प्रसन्न हूँ, तुम वर माँगो, मुझे तुम्हारे लिये कुछ भी अदेय नहीं है। मैं इस समय विशेष रूपसे तुम्हारे समें ॥ 25 ॥
नन्दीश्वर बोले- शिवजीके उस परमानन्ददायक वचनको सुनकर वह विशेष रूपसे सुखी हुई और उसको कुछ भी स्मरण नहीं रहा ॥ 26 ॥
उसकी इस अवस्थाको देखकर शिवजी बहुत प्रसन्न हुए प्रभु शिवने उससे पुन: कहा कि वर माँगो ॥ 27 ॥शिवजी बोले- यह मेरे रूपवाला यति अगले जन्ममें हंस होगा और तुम दोनोंका पुनः संयोग करायेगा ॥ 28 ॥
यह भील निषधनगरके राजा वीरसेनका नल नामक महाप्रतापी पुत्र होगा, इसमें संशय नहीं है और हे अनघे! तुम विदर्भनगरमें भीमराजकी कन्या होकर परम गुणवती दमयन्ती नामसे विख्यात होओगी ।। 29-30 ।।
तुम दोनों ही बहुत कालपर्यन्त यथेष्ट राज्यसुखका भोग करके योगीश्वरोंके लिये दुर्लभ मुक्तिको निश्चित रूपसे प्राप्त करोगे ॥ 31 ॥
नन्दीश्वर बोले- ऐसा कहकर शिवजी उसी समय लिंगरूपमें प्रकट हो गये। [ उनके द्वारा परीक्षा करनेपर ] भील धर्मसे विचलित नहीं हुआ, इसलिये वह लिंग अचलेश- इस नामसे प्रसिद्ध हुआ ।। 32 ।।
हे तात! वह आहुक भील निषधनगरमें वीरसेनका |पुत्र नल नामवाला महान् राजा हुआ। उसकी पत्नी आहुका भीलनी विदर्भनगरके राजा भीमसेनकी पुत्री दमयन्ती नामसे प्रसिद्ध हुई वे शिवावतार यतीश्वर भी हंसरूपमें अवतरित हुए, जिन्होंने दमयन्तीका विवाह नलके साथ करवाया ॥ 33-35 ॥
पूर्व समयमें उनके द्वारा किये गये [अतिथिके] | सत्काररूप महापुण्यके कारण प्रभु शिवजीने हंसरूप धारणकर [ इस जीवनमें] दोनोंको महान् सुख प्रदान किया ॥ 36 ॥
अनेक प्रकारका वार्तालाप करनेमें निपुण हंसावतार शिवजीने दमयन्ती तथा नलको महान् सुख प्रदान किया ।। 37 ।।
पवित्र कीर्तिवाले यतीश्वर नामक तथा हंस नामक शिवावतारका यह चरित्र अत्यन्त पवित्र, परम अद्भुत तथा निश्चय ही मुक्तिदायक है ॥ 38 ॥
जो यतीश तथा ब्रह्महंस नामक अवतारके शुभ चरित्रको सुनता है अथवा सुनाता है, वह परम गति प्राप्त करता है। यह आख्यान निष्पाप, सभी कामनाओंको पूर्ण करनेवाला, स्वर्गकी प्राप्ति करानेवाला, यश तथा आयु प्रदान करनेवाला, भक्तिको बढ़ानेवाला एवं उत्तम है ।। 39-40 ।।यतीश्वर तथा हंसरूप शिवका यह चरित्र सुनकर मनुष्य इस लोकमें सभी सुखोंको भोगकर अन्तमें शिवलोकको प्राप्त करता है ॥ 41 ॥