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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 3 (पार्वती खण्ड) , अध्याय 8 - Sanhita 2, Khand 3 (पार्वती खण्ड) , Adhyaya 8

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नारद मुनिका हिमालयके समीप गमन, वहाँ पार्वतीका हाथ देखकर भावी लक्षणोंको बताना, चिन्तित हिमवान्‌को शिवमहिमा बताना तथा शिवसे विवाह करनेका परामर्श देना

ब्रह्माजी बोले- हे नारद! एक समयकी बात है, आप शिवजीसे प्रेरित होकर प्रसन्नतापूर्वक हिमालयके घर गये। आप शिवतत्त्वके ज्ञाता और शिवकी लीलाके जानकारोंमें श्रेष्ठ हैं। हे मुने! गिरिराज हिमालयने आपको देखकर प्रणाम करके आपकी पूजा की और अपनी पुत्रीको बुलाकर उनसे आपके चरणोंमें प्रणाम करवाया ॥ 1-2 ॥

हे मुनीश्वर ! तत्पश्चात् स्वयं नमस्कार करके हिमाचल अपने सौभाग्यकी सराहना करके मस्तक झुकाकर हाथ जोड़कर आपसे कहने लगे- ॥ 3 ॥ हिमालय बोले- हे मुने! हे नारद! हे ज्ञानिन् ! हे ब्रह्माके पुत्रोंमें श्रेष्ठ! हे प्रभो! आप सर्वज्ञ हैं, दयामय हैं और दूसरोंके उपकारमें लगे रहनेवाले हैं। गुण-दोषको प्रकट करनेवाले आप मेरी पुत्रीके जन्मफलका वर्णन कीजिये, मेरी सौभाग्यवती पुत्री किसकी पत्नी होगी ? ।। 4-5 ॥ब्रह्माजी बोले- हे मुनिश्रेष्ठ। हे तात! गिरिराज हिमालयके ऐसा कहनेपर कालिकाके हाथ और विशेष रूपसे उसके सम्पूर्ण अंगोंको देखकर कौतुकी, बोलनेमें चतुर, ज्ञानी और सभी वृत्तान्तोंको जाननेवाले आप नारद प्रसन्नचित्त होकर पर्वतराजसे कहने लगे- ॥ 6-7 ॥

नारद बोले- हे शैलराज! हे मेने आपकी यह पुत्री चन्द्रमाकी आदि कलाके समान बढ़ रही है, यह समस्त शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न है ॥ 8 ॥ यह अपने पतिके लिये अत्यन्त सुखदायिनी, माता-पिताकी कीर्तिको बढानेवाली, समस्त नारियोंमें परम साध्वी और [ स्वजनोंको] सदा महान् आनन्द देनेवाली होगी ॥ 9 ॥

हे गिरे ! आपकी पुत्रीके हाथमें उत्तम लक्षण विद्यमान हैं, केवल एक रेखा विलक्षण है, उसका फल यथार्थरूपसे सुनिये। इसे ऐसा पति प्राप्त होगा, जो योगी, नग्न, निर्गुण, निष्काम, माता-पितासे रहित, मानविहीन और अमंगल वेषवाला होगा ॥ 10-11 ॥ ब्रह्माजी बोले- [हे नारद!] आपकी इस बातको सुनकर और सत्य मानकर वे मेना तथा हिमालय - दोनों पति-पत्नी बहुत दुखी हुए ॥ 12 ॥

परंतु हे मुने! जगदम्बा शिवा आपके उस प्रकारके वचनको सुनकर और इन लक्षणोंसे युक्त उन शिवको मानकर मन-ही-मन अत्यन्त हर्षित हुईं ॥ 13 ॥

नारदजीकी बात कभी झूठ नहीं हो सकती यह सोचकर वे शिवा शिवके युगलचरणोंमें सम्पूर्ण हृदयसे अत्यन्त स्नेह करने लगीं ॥ 14 ॥

हे नारद! उस समय मन-ही-मन दुखी हो हिमवान्ने आपसे कहा -मुने! [उस रेखाका फल सुनकर ] मुझे बड़ा दुःख हुआ है, मैं क्या उपाय करूँ ? ॥ 15 ॥ हे मुने! यह सुनकर महान् कौतुक करनेवाले और वार्तालापविशारद आप मंगलकारी वचनोंद्वारा हिमाचलको हर्षित करते हुए कहने लगे- ॥ 16 ॥

नारदजी बोले - हे गिरिराज ! आप स्नेहपूर्वक सुनिये। मेरी बात सच्ची है, वह झूठ नहीं होगी। हाथकी रेखा ब्रह्माजीकी लिपि है। निश्चय ही वह मिथ्या नहीं होती है ॥ 17 ॥हे शैल! इसका पति वैसा ही होगा, इसमें संशय नहीं है, परंतु आप इसके उपायको प्रेमपूर्वक सुनिये, जिसे करके आप सुख प्राप्त करेंगे 18 ॥ उस प्रकारके वर तो लीलारूपधारी प्रभु शिव ही हैं, उनमें समस्त कुलक्षण सद्गुणों के समान ही है ॥ 19 ॥ समर्थ पुरुषमें दोष दुःखका कारण नहीं होता, असमर्थमें ही वह दुःखदायक होता है। इस विषय में सूर्य, अग्नि और गंगाका दृष्टान्त जानना चाहिये ॥ 20 ॥

इसलिये आप विवेकपूर्वक अपनी कन्या शिवाको | शिवको अर्पण कीजिये। भगवान् शिव सर्वेश्वर, | सबके सेव्य, निर्विकार, सामर्थ्यशाली और अविनाशी हैं। विशेषतः वे तपस्यासे वशमें हो जाते हैं। अतः यदि शिवा तप करे, तो शीघ्र ही प्रसन्न होनेवाले वे शिव उसे अवश्य ग्रहण कर लेंगे ।। 21-22 ।।

सर्वेश्वर शिव सब प्रकारसे समर्थ तथा वह [-लेख] का भी विनाश करनेवाले हैं। ब्रह्माजी उनके अधीन हैं तथा वे सबको सुख देनेवाले हैं ॥ 23 ॥

ब्रह्माजी बोले- हे तात! हे ब्रह्मवित्। हे मुने! ऐसा कहकर कौतुक करनेवाले आपने शुभ वचनोंसे गिरिराजको हर्षित करते हुए पुनः कहा- ॥ 24 ॥

पार्वती भगवान् शंकरकी पत्नी होगी और वह सदा रुद्रदेवके अनुकूल रहेगी; क्योंकि यह महासाध्वी और उत्तम व्रतका पालन करनेवाली है तथा माता पिताके सुखको बढ़ानेवाली है ॥ 25 ॥

यह तपस्विनी भगवान् शिवके मनको अपने वशमें कर लेगी और वे भी इसके सिवा किसी दूसरी स्त्रीसे विवाह नहीं करेंगे ॥ 26 ॥

इन दोनोंका जैसा प्रेम है, वैसा प्रेम न तो किसीका हुआ है, न इस समय है और न आगे होगा ॥ 27 ॥ हे गिरिश्रेष्ठ! इन्हें देवताओंके कार्य करने हैं, उनके जो-जो कार्य नष्टप्राय हो गये हैं, उन सबका इनके द्वारा पुनः उद्धार होगा ॥ 28 ॥

हे गिरे। आपकी इस कन्यासे भगवान् हर अर्धनारीश्वर होंगे, इन दोनों का पुनः हर्षपूर्वक मिलन होगा ।। 29 ।।

आपकी यह पुत्री तपस्याके प्रभावसे सर्वेश्वर | महेश्वरको सन्तुष्ट करके उनके शरीरके आधे भागको अपने अधिकारमें कर लेगी ॥ 30 ॥यह आपकी कन्या अपनी तपस्यासे उन शिवको सन्तुष्टकर विद्युत् तथा सुवर्णके समान गौरवर्णकी होगी ॥ 31 ॥

इसीलिये यह कन्या गौरी नामसे विख्यात होगी और ब्रह्मा, विष्णु तथा समस्त देवगण इसका पूजन करेंगे ॥ 32 ॥

हे गिरिश्रेष्ठ! आप इस कन्याको किसी दूसरेके लिये नहीं देना और इस रहस्यको देवताओंसे कभी प्रकट नहीं करना ॥ 33 ॥

ब्रह्माजी बोले- हे देवर्षे हे नारद हे मुने। आपका यह वचन सुनकर वाक्यविशारद हिमालय आपसे यह वाक्य कहने लगे ॥ 34 ॥

हिमालय बोले- हे मुने! हे नारद! हे प्राज्ञ। मैं आपसे कुछ निवेदन कर रहा हूँ, आप उसे प्रेमपूर्वक सुनिये और आनन्दका अनुभव कीजिये ॥ 35 ॥

सुना जाता है कि वे महादेवजी आसक्तियोंका त्याग करके अपने मनको संगममें रखते हुए नित्य तपस्या करते हैं और देवताओंकी भी दृष्टिमें नहीं आते ॥ 36 ॥

हे देवर्षे! ध्यानमार्गमें स्थित हुए वे [भगवान् शंकर] परब्रह्ममें लगाये हुए अपने मनको किस प्रकार विचलित करेंगे, इस विषयमें मुझे महान् संशय है ॥ 37 ॥

दीपककी लौके समान प्रकाशमान, अविनाशी, प्रकृतिसे परे, निर्विकार, निर्गुण, सगुण, निर्विशेष और निरीह जो परब्रह्म है, वही उनका अपना सदाशिव नामक स्वरूप है, अतः वे उसीका सर्वत्र साक्षात्कार करते हैं। किसी बाह्य वस्तुपर दृष्टिपात नहीं करते ।। 38-39 ।।

हे मुने! यहाँ आये हुए किन्नरोंके मुखसे उनके विषयमें नित्य ऐसा सुना जाता है, क्या यह बात मिथ्या ही है ॥ 40 ॥

विशेषतः यह बात भी सुननेमें आती है कि उन भगवान् हरने पूर्व समयमें [सतीके समक्ष] प्रतिज्ञा की थी, उसे मैं कहता हूँ, आप सुनें ॥ 41 ॥

[उन्होंने कहा था-] हे दाक्षायणि हे सति ! हे प्रिये! मैं तुम्हारे अतिरिक्त दूसरी स्त्रीका न तो वरण करूँगा और न तो उसे पत्नीरूपमें ग्रहण करूँगा, यह मैं तुमसे सत्य कहता हूँ ॥ 42 ॥इस प्रकार सती के साथ उन्होंने पहले ही प्रतिज्ञा कर ली है। अब सतीके मर जानेपर वे स्वयं दूसरी स्त्रीको कैसे ग्रहण करेंगे ? ॥ 43 ॥


ब्रह्माजी बोले- हे देवर्षे! यह कहकर उन गिरिने आपके सामने मौन धारण कर लिया, तब इसे सुनकर आप तत्वपूर्वक यह बात कहने लगे- ॥44॥ नारदजी बोले हे गिरिराज! हे महामते। आपको चिन्ता नहीं करनी चाहिये, आपकी यह कन्या काली पूर्व समयमें दक्षकी पुत्री थी ॥ 45 ॥

उस समय उसका नाम सती था, जो सदा मंगल प्रदान करनेवाला है। वह सती दक्षकन्या होकर रुद्रकी प्रिया बनी थी ॥ 46 ॥

उस सतीने अपने पिताके यज्ञमें अनादर पाकर तथा भगवान् शंकरका भी अपमान हुआ देखकर कोप करके अपने शरीरको त्याग दिया था ll 47 ll

ये ही अम्बिका शिवा आपके घरमें उत्पन्न हुई हैं। यह पार्वती भगवान् शंकरकी पत्नी होगी, इसमें सन्देह नहीं है ll 48 ll

[ब्रह्माजीने कहा-] हे मुने! उस समय आपने पार्वतीका यह सब प्रीतिवर्धक पूर्वजन्म तथा चरित्र विस्तारपूर्वक गिरिराजसे कहा था ll 49 ll

मुनिके मुखसे कालीके सम्पूर्ण पूर्व वृत्तान्तको सुनकर पुत्र-स्त्रीसहित वे गिरि सन्देहरहित हो गये ॥ 50 ll

तत्पश्चात् कालीने नारदजीके मुखसे उस कथाको सुनकर लज्जासे मुख नीचे कर लिया और उनके मुखपर मुसकान छा गयी ॥ 51 ॥ उसके चरित्रको सुनकर, हाथसे उसका स्पर्श करके और बार-बार उसका मस्तक सूंघकर हिमालयने उसे अपने आसनके पास बैठाया ॥ 52 ॥

तब हे मुने! आप वहाँ बैठी हुई उस कालीको देखकर पुत्रसहित गिरिराज एवं मेनाको प्रसन्न करते हुए कहने लगे-हे शैलराज! इस पार्वतीके बैठनेके लिये यह सिंहासन क्या है? इसका आसन तो सदा शम्भुका ऊरुदेश होगा। यह तुम्हारी तनया शिवजीके उस्का आसन प्राप्त करेगी, जहाँ किसीकी दृष्टि अथवा मनतक नहीं जा सकेगा ।। 53-55 ॥ब्रह्माजी बोले- हे नारद! इस प्रकार
आप गिरिराजसे उदार वचन कहकर वहाँसे स्वर्ग चले गये और वे गिरिराज भी चित्तमें प्रसन्न होकर सम्पूर्ण समृद्धियोंसे युक्त अपने घर चले गये ॥ 56 ॥

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] पितरोंकी कन्या मेनाके साथ हिमालयके विवाहका वर्णन
  2. [अध्याय 2] पितरोंकी तीन मानसी कन्याओं-मेना, धन्या और कलावतीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त तथा सनकादिद्वारा प्राप्त शाप एवं वरदानका वर्णन
  3. [अध्याय 3] विष्णु आदि देवताओंका हिमालयके पास जाना, उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बाकी स्तुति करना
  4. [अध्याय 4] उमादेवीका दिव्यरूपमें देवताओंको दर्शन देना और अवतार ग्रहण करनेका आश्वासन देना
  5. [अध्याय 5] मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न होकर देवीका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेनासे मैनाकका जन्म
  6. [अध्याय 6] देवी उमाका हिमवान्‌के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, देवीका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे वार्तालाप तथा पुनः नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना
  7. [अध्याय 7] पार्वतीका नामकरण तथा उनकी बाललीलाएँ एवं विद्याध्ययन
  8. [अध्याय 8] नारद मुनिका हिमालयके समीप गमन, वहाँ पार्वतीका हाथ देखकर भावी लक्षणोंको बताना, चिन्तित हिमवान्‌को शिवमहिमा बताना तथा शिवसे विवाह करनेका परामर्श देना
  9. [अध्याय 9] पार्वतीके विवाहके सम्बन्धमें मेना और हिमालयका वार्तालाप, पार्वती और हिमालयद्वारा देखे गये अपने स्वप्नका वर्णन
  10. [अध्याय 10] शिवजीके ललाटसे भौमोत्पत्ति
  11. [अध्याय 11] भगवान् शिवका तपस्याके लिये हिमालयपर आगमन, वहाँ पर्वतराज हिमालयसे वार्तालाप
  12. [अध्याय 12] हिमवान्‌का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा मांगना, शिवद्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना
  13. [अध्याय 13] पार्वती और परमेश्वरका दार्शनिक संवाद, शिवका पार्वतीको अपनी सेवाके लिये आज्ञा देना, पार्वतीका महेश्वरकी सेवामें तत्पर रहना
  14. [अध्याय 14] तारकासुरकी उत्पत्तिके प्रसंगों दितिपुत्र बज्रांगकी कथा, उसकी तपस्या तथा वरप्राप्तिका वर्णन
  15. [अध्याय 15] वरांगीके पुत्र तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुरकी तपस्या एवं ब्रह्माजीद्वारा उसे वरप्राप्ति, वरदानके प्रभावसे तीनों लोकोंपर उसका अत्याचार
  16. [अध्याय 16] तारकासुरसे उत्पीड़ित देवताओंको ब्रह्माजीद्वारा सान्त्वना प्रदान करना
  17. [अध्याय 17] इन्द्रके स्मरण करनेपर कामदेवका उपस्थित होना, शिवको तपसे विचलित करनेके लिये इन्द्रद्वारा कामदेवको भेजना
  18. [अध्याय 18] कामदेवद्वारा असमयमें वसन्त ऋतुका प्रभाव प्रकट करना, कुछ क्षणके लिये शिवका मोहित होना, पुनः वैराग्य भाव धारण करना
  19. [अध्याय 19] भगवान् शिवकी नेत्रज्वालासे कामदेवका भस्म होना और रतिका विलाप, देवताओं द्वारा रतिको सान्त्वना प्रदान करना और भगवान् शिवसे कामको जीवित करनेकी प्रार्थना करना
  20. [अध्याय 20] शिवकी क्रोधाग्निका वडवारूप धारण और ब्रह्माद्वारा उसे समुद्रको समर्पित करना
  21. [अध्याय 21] कामदेवके भस्म हो जानेपर पार्वतीका अपने घर आगमन, हिमवान् तथा मेनाद्वारा उन्हें धैर्य प्रदान करना, नारदद्वारा पार्वतीको पंचाक्षर मन्त्रका उपदेश
  22. [अध्याय 22] पार्वतीकी तपस्या एवं उसके प्रभावका वर्णन
  23. [अध्याय 23] हिमालय आदिका तपस्यानिरत पार्वतीके पास जाना, पार्वतीका पिता हिमालय आदिको अपने तपके विषयमें दृढ़ निश्चयकी बात बताना, पार्वतीके तपके प्रभावसे त्रैलोक्यका संतप्त होना, सभी देवताओंका भगवान् शंकरके पास जाना
  24. [अध्याय 24] देवताओंका भगवान् शिवसे पार्वतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, भगवान्का विवाहके दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करनेपर स्वीकार कर लेना
  25. [अध्याय 25] भगवान् शंकरकी आज्ञासे सप्तर्षियोंद्वारा पार्वतीके शिवविषयक अनुरागकी परीक्षा करना और वह वृत्तान्त भगवान् शिवको बताकर स्वर्गलोक जाना
  26. [अध्याय 26] पार्वतीकी परीक्षा लेनेके लिये भगवान् शिवका जटाधारी ब्राह्मणका वेष धारणकर पार्वतीके समीप जाना, शिव-पार्वती संवाद
  27. [अध्याय 27] जटाधारी ब्राह्मणद्वारा पार्वतीके समक्ष शिवजीके स्वरूपकी निन्दा करना
  28. [अध्याय 28] पार्वतीद्वारा परमेश्वर शिवकी महत्ता प्रतिपादित करना और रोषपूर्वक जटाधारी ब्राह्मणको फटकारना, शिवका पार्वतीके समक्ष प्रकट होना
  29. [अध्याय 29] शिव और पार्वतीका संवाद, विवाहविषयक पार्वतीके अनुरोधको शिवद्वारा स्वीकार करना
  30. [अध्याय 30] पार्वतीके पिताके घरमें आनेपर महामहोत्सवका होना, महादेवजीका नटरूप धारणकर वहाँ उपस्थित होना तथा अनेक लीलाएँ दिखाना, शिवद्वारा पार्वतीकी याचना, किंतु माता-पिताके द्वारा मना करनेपर अन्तर्धान हो जाना
  31. [अध्याय 31] देवताओंके कहनेपर शिवका ब्राह्मण वेषमें हिमालयके यहाँ जाना और शिवकी निन्दा करना
  32. [अध्याय 32] ब्राह्मण वेषधारी शिवद्वारा शिवस्वरूपकी निन्दा सुनकर मेनाका कोपभवनमें गमन शिवद्वारा सप्तर्षियोंका स्मरण और उन्हें हिमालयके घर भेजना, हिमालयकी शोभाका वर्णन तथा हिमालयद्वारा सप्तर्षियोंका स्वागत
  33. [अध्याय 33] वसिष्ठपत्नी अरुन्धती reद्वारा मेना को समझाना तथा
  34. [अध्याय 34] सप्तर्षियोंद्वारा हिमालयको राजा अनरण्यका आख्यान सुनाकर पार्वतीका विवाह शिवसे करनेकी प्रेरणा देना
  35. [अध्याय 35] धर्मराजद्वारा मुनि पिप्पलादकी भार्या सती पद्माके पातिव्रत्यकी परीक्षा, पद्माद्वारा धर्मराजको शाप प्रदान करना तथा पुनः चारों युगोंमें शापकी व्यवस्था करना, पातिव्रत्यसे प्रसन्न हो धर्मराजद्वारा पद्माको अनेक वर प्रदान करना, महर्षि वसिष्ठद्वारा हिमवान्से पद्माके दृष्टान्तद्वारा अपनी पुत्री शिवको सौंपनेके लिये कहना
  36. [अध्याय 36] सप्तर्षियोंके समझानेपर हिमवान्‌का शिवके साथ अपनी पुत्रीके विवाहका निश्चय करना, सप्तर्षियोंद्वारा शिवके पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त बताकर अपने धामको जाना
  37. [अध्याय 37] हिमालयद्वारा विवाहके लिये लग्नपत्रिकाप्रेषण, विवाहकी सामग्रियोंकी तैयारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियोंका दिव्य रूपमें सपरिवार हिमालयके घर आगमन
  38. [अध्याय 38] हिमालयपुरीकी सजावट, विश्वकर्माद्वारा दिव्यमण्डप एवं देवताओंके निवासके लिये दिव्यलोकोंका निर्माण करना
  39. [अध्याय 39] भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना
  40. [अध्याय 40] शिवबरातकी शोभा भगवान् शिवका बरात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान
  41. [अध्याय 41] नारदद्वारा हिमालयगृहमें जाकर विश्वकर्माद्वारा बनाये गये विवाहमण्डपका दर्शनकर मोहित होना और वापस आकर उस विचित्र रचनाका वर्णन करना
  42. [अध्याय 42] हिमालयद्वारा प्रेषित मूर्तिमान् पर्वतों और ब्राह्मणोंद्वारा बरातकी अगवानी, देवताओं और पर्वतोंके मिलापका वर्णन
  43. [अध्याय 43] मेनाद्वारा शिवको देखनेके लिये महलकी छतपर जाना, नारदद्वारा सबका दर्शन कराना, शिवद्वारा अद्भुत लीलाका प्रदर्शन, शिवगणों तथा शिवके भयंकर वेषको देखकर मेनाका मूर्च्छित होना
  44. [अध्याय 44] शिवजीके रूपको देखकर मेनाका विलाप, पार्वती तथा नारद आदि सभीको फटकारना, शिवके साथ कन्याका विवाह न करनेका हठ, विष्णुद्वारा मेनाको समझाना
  45. [अध्याय 45] भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना
  46. [अध्याय 46] नगरमें बरातियोंका प्रवेश द्वाराचार तथा पार्वतीद्वारा कुलदेवताका पूजन
  47. [अध्याय 47] पाणिग्रहण के लिये हिमालयके घर शिवके गमनोत्सवका वर्णन
  48. [अध्याय 48] शिव-पार्वती विवाहका प्रारम्भ, हिमालयद्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तरके रूपमें शिवमाहात्म्य प्रतिपादित करना, हर्षयुक्त हिमालयद्वारा कन्यादानकर विविध उपहार प्रदान करना
  49. [अध्याय 49] अग्निपरिक्रमा करते समय पार्वतीके पदनखको देखकर ब्रह्माका मोहग्रस्त होना, बालखिल्योंकी उत्पत्ति, शिवका कुपित होना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  50. [अध्याय 50] शिवा शिवके विवाहकृत्यसम्पादनके अनन्तर देवियोंका शिवसे मधुर वार्तालाप
  51. [अध्याय 51] रतिके अनुरोधपर श्रीशंकरका कामदेवको जीवित करना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  52. [अध्याय 52] हिमालयद्वारा सभी बरातियोंको भोजन कराना, शिवका विश्वकर्माद्वारा निर्मित वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल जनवासेमें आगमन
  53. [अध्याय 53] चतुर्थीकर्म, बरातका कई दिनोंतक ठहरना, सप्तर्षियोंके समझानेसे हिमालयका बरातको विदा करनेके लिये राजी होना, मेनाका शिवको अपनी कन्या सौंपना तथा बरातका पुरीके बाहर जाकर ठहरना
  54. [अध्याय 54] मेनाकी इच्छा अनुसार एक ब्राह्मणपत्नीका पार्वतीको पातिव्रतधर्मका उपदेश देना
  55. [अध्याय 55] शिव-पार्वती तथा बरातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और शिव विवाहोपाख्यानके श्रवणकी महिमा