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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 8, अध्याय 12 - Sanhita 8, Adhyaya 12

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पंचाक्षर मन्त्र के माहात्म्यका वर्णन

श्रीकृष्ण बोले- सर्वज्ञ महर्षिप्रवर! आप सम्पूर्ण ज्ञानके महासागर हैं। अब मैं [आपके मुखसे ] पंचाक्षर मन्त्र के माहात्म्यका तत्त्वतः वर्णन सुनना चाहता हूँ ॥ 1 ॥

उपमन्युने कहा- देवकीनन्दन ! पंचाक्षर मन्त्रके माहात्म्यका विस्तारपूर्वक वर्णन तो सौ करोड़ वर्षोंमें भी नहीं किया जा सकता; अतः संक्षेपसे इसकी महिमा सुनो-वेदमें तथा शैवागममें दोनों जगह यह षडक्षर (प्रणवसहित पंचाक्षर) -मन्त्र समस्त शिवभक्तोंके सम्पूर्ण अर्थका साधक कहा गया है ।। 2-3 ।।

इस मन्त्रमें अक्षर तो थोड़े ही हैं, परंतु यह महान् अर्थसे सम्पन्न है। यह वेदका सारतत्त्व है। मोक्ष देनेवाला है, शिवकी आज्ञासे सिद्ध है, संदेहशून्य है तथा शिवस्वरूप वाक्य है। यह नाना प्रकारकी सिद्धियोंसे युक्त, दिव्य, लोगोंके मनको प्रसन्न एवं निर्मल करनेवाला, सुनिश्चित अर्थवाला (अथवा निश्चय ही मनोरथको पूर्ण करनेवाला) तथा परमेश्वरका गम्भीर वचन है । ll 4-5 ।।

इस मन्त्रका मुखसे सुखपूर्वक उच्चारण होता है। सर्वज्ञ शिवने सम्पूर्ण देहधारियोंके सारे मनोरथोंकी सिद्धिके लिये इस 'ॐ नमः शिवाय' मन्त्रका प्रतिपादन किया है ॥ 6 ॥यह आदि षडक्षर मन्त्र सम्पूर्ण विद्याओं (मन्त्र). का बीज (मूल) है। जैसे वटके बीजमें महान् वृक्ष छिपा हुआ है, उसी प्रकार अत्यन्त सूक्ष्म होनेपर भी इस मन्त्रको महान् अर्थसे परिपूर्ण समझना चाहिये। 'ॐ' इस एकाक्षर मन्त्रमें तीनों गुणोंसे अतीत, सर्वज्ञ, सर्वकर्ता, द्युतिमान्, सर्वव्यापी प्रभु शिव प्रतिष्ठित हैं ॥ 7-8 ।।

ईशान आदि जो सूक्ष्म एकाक्षररूप ब्रह्म हैं, वे सब 'नमः शिवाय' इस मन्त्रमें क्रमशः स्थित हैं। | सूक्ष्म षडक्षर मन्त्रमें पंचब्रह्मरूपधारी साक्षात् भगवान् शिव स्वभावतः वाच्यवाचक- भावसे विराजमान हैं। अप्रमेय होनेके कारण शिव वाच्य हैं और मन्त्र उनका वाचक माना गया है ॥ 9-10 ॥

शिव और मन्त्रका यह वाच्य वाचकभाव अनादिकाल से चला आ रहा है जैसे यह घोर संसारसागर अनादिकालसे प्रवृत्त है, उसी प्रकार संसारसे छुड़ानेवाले भगवान् शिव भी अनादिकाल से ही नित्य विराजमान हैं। जैसे औषध रोगोंका स्वभावतः शत्रु है, उसी प्रकार भगवान् शिव संसार- दोषोंके स्वाभाविक शत्रु माने गये हैं । ll 11-121 / 2 ॥

यदि ये भगवान् विश्वनाथ न होते तो यह जगत् अन्धकारमय हो जाता; क्योंकि प्रकृति जड है और जीवात्मा अज्ञानी। [अतः इन्हें प्रकाश देनेवाले परमात्मा ही हैं] ॥ 131/2 ॥

प्रकृति से लेकर परमाणुपर्यन्त जो कुछ भी जडरूप तत्व है, वह किसी बुद्धिमान् (चेतन) कारणके बिना स्वयं 'कर्ता' नहीं देखा गया है। जीवोंके लिये धर्म करने और अधर्मसे बचनेका उपदेश दिया जाता है। उनके बन्धन और मोक्ष भी देखे जाते हैं। अतः विचार करनेसे सर्वज्ञ परमात्मा शिवके बिना प्राणियोंके आदिसर्गकी सिद्धि नहीं होती। जैसे रोगी | वैद्यके बिना सुखसे रहित हो क्लेश उठाते हैं, [उसी प्रकार सर्वज्ञ शिवका आश्रय न लेनेसे संसारी जीव नाना प्रकारके क्लेश भोगते हैं ] ॥ 14- 16 ॥

अतः यह सिद्ध हुआ कि जीवोंका संसारसागरसे उद्धार करनेवाले स्वामी अनादि सर्वज्ञ परिपूर्ण सदाशिव विद्यमान हैं। वे प्रभु आदि, मध्य और अन्तसे रहित हैं। स्वभावसे ही निर्मल हैं तथा सर्वज्ञ एवं परिपूर्ण हैं।उन्हें 'शिव' नामसे जानना चाहिये। शिवागममें उनके | स्वरूपका विशदरूपसे वर्णन है। यह पंचाक्षर मन्त्र उनका अभिधान (वाचक) है और वे शिव अभिधेय (वाच्य) हैं। अभिधान और अभिधेय (वाचक और वाच्य) रूप होनेके कारण परमशिव-स्वरूप यह मन्त्र 'सिद्ध' माना गया है ॥ 17-19 ॥

'ॐ नमः शिवाय' यह जो पडक्षर शिववाक्य है, इतना ही शिवज्ञान है और इतना ही परमपद है। यह शिवका विधि-वाक्य है. अर्थवाद नहीं है। यह उन्हीं शिवका स्वरूप है, जो सर्वज्ञ, परिपूर्ण और स्वभावतः निर्मल हैं ॥। 20-21 ॥

जो समस्त लोकोंपर अनुग्रह करनेवाले हैं, वे भगवान् शिव झूठी बात कैसे कह सकते हैं? जो सर्वज्ञ हैं, वे तो मन्त्रसे जितना फल मिल सकता है, उतना पूरा का पूरा बतायेंगे। परंतु जो राग और अज्ञान आदि दोषोंसे ग्रस्त हैं, वे झूठी ही बात कह सकते हैं। वे राग और अज्ञान आदि दोष ईश्वरमें नहीं हैं; अतः ईश्वर कैसे झूठ बोल सकते हैं? जिनका सम्पूर्ण दोषोंसे कभी परिचय ही नहीं हुआ, उन सर्वज्ञ शिवने जिस निर्मल वाक्य- पंचाक्षर मन्त्रका प्रणयन किया है, वह प्रमाणभूत ही है, इसमें संशय नहीं है । ll 22-24 ॥

इसलिये विद्वान् पुरुषको चाहिये कि वह ईश्वरके वचनोंपर श्रद्धा करे। यथार्थ पुण्य-पापके विषयमें ईश्वरके वचनोंपर श्रद्धा न करनेवाला पुरुष नरकमें जाता है ॥ 25 ॥

शान्त स्वभाववाले श्रेष्ठ मुनियोंने स्वर्ग और मोक्षकी सिद्धिके लिये जो सुन्दर बात कही है, उसे सुभाषित समझना चाहिये ॥ 26 ॥ जो वाक्य राग, द्वेष, असत्य, काम, क्रोध और तृष्णाका अनुसरण करनेवाला हो, वह नरकका हेतु होनेके कारण दुर्भाषित कहलाता है ॥ 27 ॥

अविद्या एवं रामसे युक्त वाक्य जन्म-मरणरूप संसार- क्लेशकी प्राप्तिमें कारण होता है। अतः वह कोमल, ललित अथवा संस्कृत (संस्कारयुक्त) हो तो भी उससे क्या लाभ? जिसे सुनकर कल्याणकी प्राप्ति हो तथा राग आदि दोषोंका नाश हो जाय, वह वाक्य सुन्दर शब्दावलीसे युक्त न हो तो भी शोभन तथा समझनेयोग्य है। 28-29 ।।मन्त्रोंकी संख्या बहुत होनेपर भी जिस विमल षडक्षर मन्त्रका निर्माण सर्वज्ञ शिवने किया है, उसके समान कहीं कोई दूसरा मन्त्र नहीं है ॥ 30 ॥

षडक्षर मन्त्रमें छहों अंगोंसहित सम्पूर्ण वेद और शास्त्र विद्यमान हैं; अतः उसके समान दूसरा कोई मन्त्र कहीं नहीं है। सात करोड़ महामन्त्रों और अनेकानेक उपमन्त्रोंसे यह षडक्षर-मन्त्र उसी प्रकार भिन्न है, जैसे वृत्तिसे सूत्र ॥ 31-32 ॥

जितने शिवज्ञान हैं और जो-जो विद्यास्थान हैं, वे सब षडक्षर मन्त्ररूपी सूत्रके संक्षिप्त भाष्य हैं ll 33 ॥ जिसके हृदयमें 'ॐ नमः शिवाय' यह षडक्षर मन्त्र प्रतिष्ठित है, उसे दूसरे बहुसंख्यक मन्त्रों और अनेक विस्तृत शास्त्रोंसे क्या प्रयोजन है? जिसने ॐ नमः शिवाय' इस मन्त्रका जप दृढ़तापूर्वक अपना लिया है, उसने सम्पूर्ण शास्त्र पढ़ लिया और समस्त शुभ कृत्योंका अनुष्ठान पूरा कर लिया। आदिमें 'नमः' पदसे युक्त 'शिवाय'- ये तीन अक्षर जिसकी जिह्वाके अग्रभागमें विद्यमान हैं, उसका जीवन सफल हो गया। पंचाक्षर मन्त्र जपमें लगा हुआ पुरुष यदि पण्डित, मूर्ख, अन्त्यज अथवा अधम भी हो तो वह पापपंजरसे मुक्त हो जाता है ॥ 34-37 ॥ देवी [पार्वती ] के द्वारा पूछे जानेपर शूलधारी परमेश [शिव] ने सभी मनुष्यों और विशेष रूपसे | द्विजोंके हितके लिये इसे कहा था ॥ 38 ॥

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