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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 4, अध्याय 8 - Sanhita 4, Adhyaya 8

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पश्चिम दिशाके शिवलिंगोंके वर्णन क्रममें महाबलेश्वरलिंग का माहात्म्य कथन

सूतजी बोले- हे ब्राह्मणो! अब पश्चिम दिशामें जो जो लिंग भूतलपर प्रसिद्ध हैं, उन शिवलिंगोंको सदभक्तिपूर्वक सुनिये कपिला नगरीमें कालेश्वर एवं रामेश्वर नामक दो महादिव्य लिंग हैं, जो दर्शनमात्रसे पापोंको नष्ट करनेवाले हैं। पश्चिम सागरके तटपर महासिद्धेश्वर लिंग बताया गया है, जो धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्षतक प्रदान करनेवाला है ll 2-3 ll

पश्चिम समुद्रके तटपर गोकर्ण नामक उत्तम क्षेत्र है, जो ब्रह्महत्या आदि पापको नष्ट करनेवाला और सम्पूर्ण कामनाओंका फल प्रदान करनेवाला है। गोकर्ण क्षेत्रमें करोड़ों शिवलिंग हैं और पद-पदपर असंख्य तीर्थ हैं। इस विषयमें अधिक क्या कहें, गोकर्णक्षेत्रमें स्थित सभी लिंग शिवस्वरूप हैं एवं वहाँका समस्त जल तीर्थस्वरूप है ll 4-6 ll

हे तात! महर्षियोंके द्वारा गोकर्णमें स्थित सभी लिंगों एवं तीर्थोंकी महिमाका वर्णन पुराणोंमें किया गया है। [ गोकर्णक्षेत्रमें स्थित] महाबलेश्वर शिवलिंग कृतयुग श्वेता तामें तीन लोहितवर्ण द्वापरमें पीतवर्ण तथा कलियुगमें श्यामवर्णका हो जाता है । ll 7-8 ॥सातों पातालोंको आक्रान्त करनेवाला वह महाबलेश्वरलिंग घोर कलियुग प्राप्त होनेपर कोमल हो जायगा महापाप करनेवाले लोग भी यहाँ गोकर्णक्षेत्र [विराजमान] महाबलेश्वर लिंगकी पूजाकर शिवपदको प्राप्त हुए हैं।॥ 1.10 ॥

हे मुनिगण जो लोग गोकर्णक्षेत्रों जाकर उत्तम नक्षत्रयुक्त दिनमें भक्तिपूर्वक उनकी पू करते हैं, वे [साक्षात्] शिवस्वरूप ही है। इसमें सन्देह नहीं है ll 11 ॥

जिस किसी भी समयमें जो कोई भी मनुष्य गोकर्णक्षेत्रमें स्थित उस शिवलिंगका पूजन करता है, वह ब्रहापदको प्राप्त कर लेता है वहाँपर शिवजी ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओंका हित करनेकी इच्छा महाबल नामसे सदा निवास करते हैं ।। 12-13 ॥

रावण नामक राक्षसने कठोर तपके द्वारा उस लिंगको प्राप्तकर गोकर्णमें स्थापित किया था। गोकर्ण में गणेश, विष्णु, ब्रह्मा, महेन्द्र, विश्वेदेव, मरुद्गण, सभी आदित्य, सभी वसु, दोनों अश्विनीकुमार, नक्षत्रोंके सहित चन्द्रमा विमानसे चलनेवाले ये सभी देवता अपने- अपने पार्षदोंके साथ उन [महाबलेश्वर शिव] को प्रसन्न करनेके लिये पूर्वद्वारपर विराजमान रहते हैं । ll 14 - 16 ॥

यम, स्वयं मृत्यु, साक्षात् चित्रगुप्त तथा अग्निदेव, सभी पितरों एवं रुद्रोंके साथ दक्षिण द्वारपर स्थित रहते हैं। नदियोंके स्वामी वरुण गंगा आदि नदियोंके साथ पश्चिम द्वारपर स्थित होकर महाबलकी सेवा करते हैं ।। 17-18 ॥

वायु, कुबेर, देवेश्वरी भद्रकाली, चण्डिका आदि देवता तथा देवियाँ मातृकाओंके साथ उत्तर द्वारपर स्थित रहती हैं ॥ 19 ॥

सभी देवता, गन्धर्व, पितर, सिद्ध, चारण, विद्याधर, किंपुरुष, किन्नर, गुझक, खग, नानाविध पिशाच, वेताल, महाबली दैत्य, शेष आदि नाग, सिद्ध एवं मुनिगण उन महाबलेश्वर देवका स्तवन करते हैं और उनसे इच्छित मनोरथोंको प्राप्तकर सुखपूर्वक रमण करते हैं 20-22 ॥वहाँ बहुतसे लोगोंने घोर तप किया और उन प्रभुकी पूजाकर इस लोक तथा परलोकमें भी सुख देनेवाली सिद्धि प्राप्त की है। हे द्विजो ! गोकर्णक्षेत्रमें स्थित यह महाबलेश्वर नामक शिवलिंग भलीभाँति पूजा तथा स्तवन किये जानेपर [साक्षात्] मोक्षद्वार ही है - ऐसा कहा गया है । ll 23-24 ॥

माघमासमें कृष्णपक्षकी चतुर्दशीके दिन महाबलेश्वरका पूजन विशेषरूपसे मुक्ति प्रदान करता है, इस दिन तो पूजा करनेपर पापियोंका भी समुद्धार हो जाता है ॥ 25 ॥

इस शिवचतुर्दशीमें महोत्सवको देखनेकी इच्छावाले चारों वर्णोंके मनुष्य सभी देशोंसे यहाँ आते हैं। [ब्रह्मचारी आदि] चारों आश्रमोंके लोग, स्त्री, वृद्ध तथा बालक वहाँ आकर देवेश्वरका दर्शनकर महाबलेश्वरके प्रभावसे कृतकृत्य हो जाते हैं। भगवान् शिवके उस महाबलेश्वर नामक लिंगका पूजन करके एक चाण्डाली भी तत्क्षण शिवलोकको प्राप्त हो गयी थी । ll 26 - 28 ।।

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] ऋषियोंके पूछनेपर वायुदेवका श्रीकृष्ण और उपमन्युके मिलनका प्रसंग सुनाना, श्रीकृष्णको उपमन्यसे ज्ञानका और भगवान् शंकरसे पुत्रका लाभ
  2. [अध्याय 2] उपमन्युद्वारा श्रीकृष्णको पाशुपत ज्ञानका उपदेश
  3. [अध्याय 3] भगवान् शिवकी ब्रह्मा आदि पंचमूर्तियों, ईशानादि ब्रह्ममूर्तियों तथा पृथ्वी एवं शर्व आदि अष्टमूर्तियोंका परिचय और उनकी सर्वव्यापकताका वर्णन
  4. [अध्याय 4] शिव और शिवाकी विभूतियोंका वर्णन
  5. [अध्याय 5] परमेश्वर शिवके यथार्थ स्वरूपका विवेचन तथा उनकी शरणमें जानेसे जीवके कल्याणका कथन
  6. [अध्याय 6] शिवके शुद्ध, बुद्ध, मुक्त, सर्वमय, सर्वव्यापक एवं सर्वातीत स्वरूपका तथा उनकी प्रणवरूपताका प्रतिपादन
  7. [अध्याय 7] परमेश्वरकी शक्तिका ऋषियोंद्वारा साक्षात्कार, शिवके प्रसादसे प्राणियोंकी मुक्ति, शिवकी सेवा-भक्ति तथा पाँच प्रकारके शिवधर्मका वर्णन
  8. [अध्याय 8] शिव-ज्ञान, शिवकी उपासनासे देवताओंको उनका दर्शन, सूर्यदेवमें शिवकी पूजा करके अर्घ्यदानकी विधि तथा व्यासावतारोंका वर्णन
  9. [अध्याय 9] शिवके अवतार योगाचार्यों तथा उनके शिष्योंकी नामावली
  10. [अध्याय 10] भगवान् शिवके प्रति श्रद्धा-भक्तिकी आवश्यकताका प्रतिपादन, शिवधर्मके चार पादोंका वर्णन एवं ज्ञानयोगके साधनों तथा शिवधर्मके अधिकारियोंका निरूपण, शिवपूजनके अनेक प्रकार एवं अनन्यचित्तसे भजनकी महिमा
  11. [अध्याय 11] वर्णाश्रम धर्म तथा नारी-धर्मका वर्णन; शिवके भजन, चिन्तन एवं ज्ञानकी महत्ताका प्रतिपादन
  12. [अध्याय 12] पंचाक्षर मन्त्र के माहात्म्यका वर्णन
  13. [अध्याय 13] पंचाक्षर मन्त्रकी महिमा, उसमें समस्त वाङ्मयकी स्थिति, उसकी उपदेशपरम्परा, देवीरूपा पंचाक्षरीविद्याका ध्यान, उसके समस्त और व्यस्त अक्षरोंके ऋषि, छन्द, देवता, बीज, शक्ति तथा अंगन्यास आदिका विचार
  14. [अध्याय 14] गुरु मन्त्र लेने तथा उसके जप करनेकी विधि, पाँच प्रकारके जप तथा उनकी महिमा, मन्त्रगणना के लिये विभिन्न प्रकारकी मालाओंका महत्त्व तथा अंगुलियोंके उपयोगका वर्णन, जपके लिये उपयोगी स्थान तथा दिशा, जपमें वर्जनीय बातें, सदाचारका महत्त्व, आस्तिकताकी प्रशंसा तथा पंचाक्षर मन्त्रकी विशेषताका वर्णन
  15. [अध्याय 15] त्रिविध दीक्षाका निरूपण, शक्तिपातकी आवश्यकता तथा उसके लक्षणोंका वर्णन, गुरुका महत्त्व, ज्ञानी गुरुसे ही मोक्षकी प्राप्ति तथा गुरुके द्वारा शिष्यकी परीक्षा
  16. [अध्याय 16] समय- संस्कार या समयाचारकी दीक्षाकी विधि
  17. [अध्याय 17] पध्वशोधनका निरूपण
  18. [अध्याय 18] षडध्वशोधनकी विधि
  19. [अध्याय 19] साधक-संस्कार और मन्त्र-माहात्म्यका वर्णन
  20. [अध्याय 20] योग्य शिष्यके आचार्यपदपर अभिषेकका वर्णन तथा संस्कारके विविध प्रकारोंका निर्देश
  21. [अध्याय 21] शिवशास्त्रोक्त नित्य नैमित्तिक कर्मका वर्णन
  22. [अध्याय 22] शिवशास्त्रोक्त न्यास आदि कर्मोंका वर्णन
  23. [अध्याय 23] अन्तर्याग अथवा मानसिक पूजाविधिका वर्णन
  24. [अध्याय 24] शिवपूजन विधि
  25. [अध्याय 25] शिवपूजाकी विशेष विधि तथा शिव भक्तिकी महिमा
  26. [अध्याय 26] सांगोपांगपूजाविधानका वर्णन
  27. [अध्याय 27] शिवपूजनमें अग्निकर्मका वर्णन
  28. [अध्याय 28] शिवाश्रमसेवियोंके लिये नित्य नैमित्तिक कर्मकी विधिका वर्णन
  29. [अध्याय 29] काम्यकर्मका वर्णन
  30. [अध्याय 30] आवरणपूजाकी विस्तृत विधि तथा उक्त विधिसे पूजनकी महिमाका वर्णन
  31. [अध्याय 31] शिवके पाँच आवरणोंमें स्थित सभी देवताओंकी स्तुति तथा उनसे अभीष्टपूर्ति एवं मंगलकी कामना
  32. [अध्याय 32] ऐहिक फल देनेवाले कर्मों और उनकी विधिका वर्णन, शिव पूजनकी विधि, शान्ति-पुष्टि आदि विविध काम्य कर्मोमें विभिन्न हवनीय पदार्थोंके उपयोगका विधान
  33. [अध्याय 33] पारलौकिक फल देनेवाले कर्म- शिवलिंग महाव्रतकी विधि और महिमाका वर्णन
  34. [अध्याय 34] मोहवश ब्रह्मा तथा विष्णुके द्वारा लिंगके आदि और अन्तको जाननेके लिये किये गये प्रयत्नका वर्णन
  35. [अध्याय 35] लिंगमें शिवका प्राकट्य तथा उनके द्वारा ब्रह्मा-विष्णुको दिये गये ज्ञानोपदेशका वर्णन
  36. [अध्याय 36] शिवलिंग एवं शिवमूर्तिकी प्रतिष्ठाविधिका वर्णन
  37. [अध्याय 37] योगके अनेक भेद, उसके आठ और छः अंगोंका विवेचनयम, नियम, आसन, प्राणायाम, दशविध प्राणोंको जीतनेकी महिमा, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधिका निरूपण
  38. [अध्याय 38] योगमार्गके विघ्न, सिद्धि-सूचक उपसर्ग तथा पृथ्वीसे लेकर बुद्धितत्त्वपर्यन्त ऐश्वर्यगुणों का वर्णन, शिव-शिवाके ध्यानकी महिमा
  39. [अध्याय 39] ध्यान और उसकी महिमा, योगधर्म तथा शिवयोगीका महत्त्व, शिवभक्त या शिवके लिये प्राण देने अथवा शिवक्षेत्रमें मरणसे तत्काल मोक्ष-लाभका कथन
  40. [अध्याय 40] वायुदेवका अन्तर्धान होना, ऋषियोंका सरस्वतीमें अवभूथ-स्नान और काशीमें दिव्य तेजका दर्शन करके ब्रह्माजीके पास जाना, ब्रह्माजीका उन्हें सिद्धि प्राप्तिकी सूचना देकर मेरुके कुमारशिखरपर भेजना
  41. [अध्याय 41] मेरुगिरिके स्कन्द-सरोवर के तटपर मुनियोंका सनत्कुमारजीसे मिलना, भगवान् नन्दीका वहाँ आना और दृष्टिपातमात्रसे पाशछेदन एवं ज्ञानयोगका उपदेश करके चला जाना, शिवपुराणकी महिमा तथा ग्रन्थका उपसंहार
  42. [अध्याय 42] सदाशिवके विभिन्न स्वरूपोंका ध्यान
  43. [अध्याय 43] दारिद्र्यदहन शिवस्तोत्रम्