सूतजी बोले- हे ब्राह्मणो! अब पश्चिम दिशामें जो जो लिंग भूतलपर प्रसिद्ध हैं, उन शिवलिंगोंको सदभक्तिपूर्वक सुनिये कपिला नगरीमें कालेश्वर एवं रामेश्वर नामक दो महादिव्य लिंग हैं, जो दर्शनमात्रसे पापोंको नष्ट करनेवाले हैं। पश्चिम सागरके तटपर महासिद्धेश्वर लिंग बताया गया है, जो धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्षतक प्रदान करनेवाला है ll 2-3 ll
पश्चिम समुद्रके तटपर गोकर्ण नामक उत्तम क्षेत्र है, जो ब्रह्महत्या आदि पापको नष्ट करनेवाला और सम्पूर्ण कामनाओंका फल प्रदान करनेवाला है। गोकर्ण क्षेत्रमें करोड़ों शिवलिंग हैं और पद-पदपर असंख्य तीर्थ हैं। इस विषयमें अधिक क्या कहें, गोकर्णक्षेत्रमें स्थित सभी लिंग शिवस्वरूप हैं एवं वहाँका समस्त जल तीर्थस्वरूप है ll 4-6 ll
हे तात! महर्षियोंके द्वारा गोकर्णमें स्थित सभी लिंगों एवं तीर्थोंकी महिमाका वर्णन पुराणोंमें किया गया है। [ गोकर्णक्षेत्रमें स्थित] महाबलेश्वर शिवलिंग कृतयुग श्वेता तामें तीन लोहितवर्ण द्वापरमें पीतवर्ण तथा कलियुगमें श्यामवर्णका हो जाता है । ll 7-8 ॥सातों पातालोंको आक्रान्त करनेवाला वह महाबलेश्वरलिंग घोर कलियुग प्राप्त होनेपर कोमल हो जायगा महापाप करनेवाले लोग भी यहाँ गोकर्णक्षेत्र [विराजमान] महाबलेश्वर लिंगकी पूजाकर शिवपदको प्राप्त हुए हैं।॥ 1.10 ॥
हे मुनिगण जो लोग गोकर्णक्षेत्रों जाकर उत्तम नक्षत्रयुक्त दिनमें भक्तिपूर्वक उनकी पू करते हैं, वे [साक्षात्] शिवस्वरूप ही है। इसमें सन्देह नहीं है ll 11 ॥
जिस किसी भी समयमें जो कोई भी मनुष्य गोकर्णक्षेत्रमें स्थित उस शिवलिंगका पूजन करता है, वह ब्रहापदको प्राप्त कर लेता है वहाँपर शिवजी ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओंका हित करनेकी इच्छा महाबल नामसे सदा निवास करते हैं ।। 12-13 ॥
रावण नामक राक्षसने कठोर तपके द्वारा उस लिंगको प्राप्तकर गोकर्णमें स्थापित किया था। गोकर्ण में गणेश, विष्णु, ब्रह्मा, महेन्द्र, विश्वेदेव, मरुद्गण, सभी आदित्य, सभी वसु, दोनों अश्विनीकुमार, नक्षत्रोंके सहित चन्द्रमा विमानसे चलनेवाले ये सभी देवता अपने- अपने पार्षदोंके साथ उन [महाबलेश्वर शिव] को प्रसन्न करनेके लिये पूर्वद्वारपर विराजमान रहते हैं । ll 14 - 16 ॥
यम, स्वयं मृत्यु, साक्षात् चित्रगुप्त तथा अग्निदेव, सभी पितरों एवं रुद्रोंके साथ दक्षिण द्वारपर स्थित रहते हैं। नदियोंके स्वामी वरुण गंगा आदि नदियोंके साथ पश्चिम द्वारपर स्थित होकर महाबलकी सेवा करते हैं ।। 17-18 ॥
वायु, कुबेर, देवेश्वरी भद्रकाली, चण्डिका आदि देवता तथा देवियाँ मातृकाओंके साथ उत्तर द्वारपर स्थित रहती हैं ॥ 19 ॥
सभी देवता, गन्धर्व, पितर, सिद्ध, चारण, विद्याधर, किंपुरुष, किन्नर, गुझक, खग, नानाविध पिशाच, वेताल, महाबली दैत्य, शेष आदि नाग, सिद्ध एवं मुनिगण उन महाबलेश्वर देवका स्तवन करते हैं और उनसे इच्छित मनोरथोंको प्राप्तकर सुखपूर्वक रमण करते हैं 20-22 ॥वहाँ बहुतसे लोगोंने घोर तप किया और उन प्रभुकी पूजाकर इस लोक तथा परलोकमें भी सुख देनेवाली सिद्धि प्राप्त की है। हे द्विजो ! गोकर्णक्षेत्रमें स्थित यह महाबलेश्वर नामक शिवलिंग भलीभाँति पूजा तथा स्तवन किये जानेपर [साक्षात्] मोक्षद्वार ही है - ऐसा कहा गया है । ll 23-24 ॥
माघमासमें कृष्णपक्षकी चतुर्दशीके दिन महाबलेश्वरका पूजन विशेषरूपसे मुक्ति प्रदान करता है, इस दिन तो पूजा करनेपर पापियोंका भी समुद्धार हो जाता है ॥ 25 ॥
इस शिवचतुर्दशीमें महोत्सवको देखनेकी इच्छावाले चारों वर्णोंके मनुष्य सभी देशोंसे यहाँ आते हैं। [ब्रह्मचारी आदि] चारों आश्रमोंके लोग, स्त्री, वृद्ध तथा बालक वहाँ आकर देवेश्वरका दर्शनकर महाबलेश्वरके प्रभावसे कृतकृत्य हो जाते हैं। भगवान् शिवके उस महाबलेश्वर नामक लिंगका पूजन करके एक चाण्डाली भी तत्क्षण शिवलोकको प्राप्त हो गयी थी । ll 26 - 28 ।।