ब्रह्माजी बोले- तदनन्तर शैलराजने प्रसन्नतापूर्वक बड़े उत्साहसे वेदमन्त्रोंके द्वारा शिवा एवं शिवजीका उपनयन संस्कार सम्पन्न कराया। तदनन्तर विष्णु आदि देवताओं एवं मुनियोंने हिमालयके द्वारा प्रार्थना किये जानेपर उनके घरके भीतर प्रवेश किया ॥ 1-2 ॥
उन लोगोंने लोक तथा वेदरीतिको यथार्थ रूपसे सम्पन्नकर शिवके द्वारा दिये गये आभूषणोंसे पार्वतीको अलंकृत किया। सखियों और ब्राह्मणोंकी पत्नियोंने | पहले पार्वतीको स्नान कराकर पुनः सभी प्रकारसे सजाकर उनकी आरती उतारी। शंकरप्रिया तथा गिरिराजसुता वरवर्णिनी पार्वती उस समय दो नूतन वस्त्र धारण किये हुए अत्यन्त शोभित हो रही थीं ॥ 3-5 ॥
हे मुने! उन देवीने अनेक प्रकारके रत्नोंसे जटित परम दिव्य तथा अद्भुत कंचुकी धारण की, जिससे वे अधिक शोभा पाने लगीं। तदनन्तर उन्होंने दिव्य रत्नोंसे जड़ा हुआ हार तथा शुद्ध सुवर्णके बने हुए बहुमूल्य कंकणोंको भी धारण किया ॥ 6-7 ॥
तीनों जगत्को उत्पन्न करनेवाली तथा महाशैलकी कन्या सौभाग्यवती वे पार्वती मनमें शिवजीका ध्यान करते हुए वहीं पर बैठी हुई अत्यन्त शोभित होने लगीं ॥ 8 ॥ उस समय दोनों पक्षोंमें आनन्ददायक महान् उत्सव हुआ और [ उभयपक्षसे] नाना प्रकारके अवर्णनीय दान ब्राह्मणोंको दिये गये। इसी प्रकार लोगोंको भी अनेक प्रकारके दान दिये गये और वहाँ उत्सवपूर्वक गीत, वाद्य एवं विनोद सम्पन्न हुए ॥ 9-10 ॥
तब मैं ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र आदि सभी देवगण तथा सभी मुनिलोग बड़ी प्रसन्नता के साथ आनन्दपूर्वक उत्सव मनाकर भक्तिपूर्वक पार्वतीको प्रणामकर तथा शिवजीके चरणकमलोंका ध्यानकर हिमालयकी आज्ञा प्राप्त करके अपने-अपने स्थानपर बैठ गये। इसी समय वहाँ ज्योतिःशास्त्रके पारंगत विद्वान् गर्गाचार्य उन गिरिराज हिमालयसे यह वचन | कहने लगे- ॥ 11-13 ॥गर्म बोले हे हिमालय हे धराधीश हे स्वामिन् हे कालीके पिता हे प्रभो अब आप पाणिग्रहणके निमित्त शिवजीको अपने घरपर ले आइये ।। 14 ।।
ब्रह्माजी बोले- तत्पश्चात् गर्गके द्वारा निर्देश किये गये कन्यादानके लिये उचित समयको जानकर हिमालय मनमें अत्यन्त प्रसन्न हुए ।। 15 ।।
हिमालयने आनन्दित होकर [उसी समय ] पर्वतों, द्विजों तथा अन्य लोगोंको भी अत्यन्त प्रेमके साथ शिवजीको बुलानेकी इच्छासे भेजा। वे पर्वत तथा ब्राह्मण हाथोंमें सभी मांगलिक वस्तुएँ लेकर महान् उत्सव करते हुए प्रेमपूर्वक वहाँ गये, जहाँ भगवान् महेश्वर थे ।। 16-17 ।।
उस समय गीत-नृत्यसहित वाद्यध्वनि तथा वेदध्वनिसे महान् उत्सव होने लगा ॥ 18 ॥
वाचक शब्दको सुनकर शंकरजीके सभी सेवक, देवता, ऋषि तथा गण आनन्दित होकर एक साथ ही उठ खड़े हुए और वे हर्षसे परिपूर्ण होकर परस्पर | कहने लगे- शिवजीको बुलानेकी इच्छासे [गिरिराजके द्वारा भेजे गये] पर्वत यहाँ आ रहे हैं । ll 19-20 ॥ निश्चय ही पाणिग्रहणका काल शीघ्र उपस्थित हो गया है, अतः सभीका महाभाग्य उपस्थित हो गया है ऐसा हमलोग मानते हैं। हमलोग विशेष रूपसे धन्य हैं, क्योंकि हमलोग संसारके मंगलोंके स्थानस्वरूप शिवा शिवके विवाहको अत्यन्त प्रेमसे देखेंगे ॥ 21-22 ।। ब्रह्माजी बोले- जब आदरपूर्वक उनका यह संवाद हो रहा था, उसी समय गिरिराजके सभी मन्त्री वहाँ आ गये। उन लोगोंने जा करके विष्णु आदि तथा शंकरसे प्रार्थना की कि कन्यादानका उचित समय उपस्थित हो गया है, अब आप लोग चलें ॥ 23-24 ॥
यह सुनकर वे विष्णु आदि सभी देवता मन-ही मन अत्यन्त प्रसन्न हुए और जोर जोरसे गिरिराज हिमालयकी जय-जयकार करने लगे ॥ 25 ॥
इधर, शिवजी भी कालीको प्राप्त करनेकी लालसासे अत्यन्त प्रसन्न हो उठे, किंतु अद्भुत रूपवाले उन शिवने उसके लक्षणको मनमें गुप्त रखा।इसके उपरान्त लोकपर कृपा करनेवाले शूलधारीने परम प्रसन्न होकर मांगलिक द्रव्योंसे युक्त [जलसे ] स्नान किया ।। 26-27 ।।
सभी लोकपालोंने स्नान किये हुए तथा सुन्दर वस्त्रसे युक्त उन शिवको चारों ओरसे घेरकर उनकी | सेवा की तथा उन्हें वृषभके स्कन्धपर बैठाया। इसके बाद प्रभुको आगे करके सभी लोग हिमालयके घरकी ओर चल पड़े। वे वाद्य बजाते हुए कुतूहल कर रहे थे ।। 28-29 ।।
उस समय हिमालयके द्वारा भेजे गये ब्राह्मण तथा श्रेष्ठ पर्वतगण कुतूहलसे युक्त होकर शिवजीके आगे-आगे चल रहे थे। मस्तकपर विशाल छत्र लगाये हुए, चंवर डुलाये जाते एवं वितानसे युक्त वे महेश्वर अत्यन्त सुशोभित हो रहे थे। उस समय आगे-आगे चलते हुए मैं, विष्णु, इन्द्र तथा समस्त लोकपाल परम ऐश्वर्यसे युक्त होकर सुशोभित हो रहे थे ॥ 30-32 ॥
उस महोत्सवमें शंख, भेरियाँ, नगाड़े, बड़े-बड़े ढोल तथा गोमुख आदि बाजे बार-बार बज रहे थे॥ 33 सभी गायक भी मंगलगीत गा रहे थे तथा सभी नर्तकियाँ अनेक प्रकारके तालोंके साथ नाच रही थीं ll 34 ll
उस समय इन सभीके साथ जगत्के एकमात्र बन्धु शिव परम तेजसे युक्त होकर समस्त हर्षित सुरेश्वरोंके द्वारा सेवित होते हुए तथा अपने ऊपर पुष्प विकीर्ण किये जाते हुए चल रहे थे ॥ 35 ॥
तत्पश्चात् सभी लोगोंसे भली-भाँति पूजित होकर शम्भुने यज्ञमण्डपमें प्रवेश किया, उस समय सभी लोग उन परमेश्वरकी नाना प्रकारके स्तोत्रोंसे स्तुति कर रहे थे ॥ 36
श्रेष्ठपर्वतोंने शिवजीको वृषभसे उतारा और प्रेमके साथ महोत्सवपूर्वक उन्हें घरके भीतर ले गये ll 37 ॥
हिमालयने भी देवताओं तथा गणसहित आये हुए ईश्वरको विधिवत् भक्तिपूर्वक प्रणाम किया और उनकी आरती उतारी ॥ 38 ॥[ इसी प्रकार ] उत्साहयुक्त होकर उन्होंने सभी देवताओं, मुनियों तथा अन्य लोगोंको प्रणामकर अपने भाग्यकी प्रशंसा करते हुए प्रेमपूर्वक उन सबका सम्मान किया ॥ 39 ॥
वे हिमालय विष्णु और प्रमुख देवसमुदाय सहित ईशानको उत्तम पाद्य तथा अर्घ्य प्रदानकर उन्हें अपने घरमें ले गये और उन्होंने आँगनमें रत्नके सिंहासनपर विशेष विशेष देवताओंको, मुझे, विष्णुको, ईशको तथा सभी विशिष्ट लोगोंको आदरपूर्वक बैठाया ll 40-41 ll
मेनाने भी बड़े प्रेमसे अपनी सखियों, ब्राह्मणस्त्रियों तथा अन्य पुरन्ध्रियोंके साथ मुदित होकर शिवजीकी आरती उतारी। कर्मकाण्डके ज्ञाता पुरोहितने मधुपर्क दान आदि जो जो कृत्य था, वह सब महात्मा शंकरके लिये सम्पन्न किया ।। 42-43 ll
हे मुने! पुरोहितने मेरे द्वारा प्रेरित होकर प्रस्तावके अनुकूल जो मांगलिक कार्य था, उसे किया ॥ 44 ॥
उसके बाद अन्तर्वेदीमें बड़े प्रेमसे प्रविष्ट होकर हिमालय वेदीके ऊपर समस्त आभूषणोंसे विभूषित तन्वंगी कन्या पार्वती जहाँ विराजमान थीं, वहाँ विष्णु तथा मेरे साथ महादेवजीको ले गये। उस समय वहाँ बृहस्पति आदि देवता कन्यादानोचित लग्नकी प्रतीक्षा करते हुए अत्यन्त आनन्दित हो रहे थे ll 45-47 ॥
जहाँ घटिकायन्त्र स्थापित था, वहींपर गर्गाचार्य बैठे हुए थे। विवाहकी घड़ी आनेतक वे प्रणवका जप कर रहे थे। गर्गाचार्यने पुण्याहवाचन करते हुए अक्षतोंको पार्वतीकी अंजलिमें दिया, तब पार्वतीने प्रेमपूर्वक शिवके ऊपर अक्षतोंकी वर्षा की। इसके बाद परम उदार तथा सुन्दर मुखवाली उन पार्वतीने दही, अक्षत तथा कुशके जलसे शिवजीकी पूजा की ।। 48- 50 ll
जिनके लिये उन शिवाने पूर्वकालसे अत्यन्त कठोर तप किया था, उन शम्भुको प्रेमपूर्वक देखती हुई वे अत्यन्त शोभित हो रही थीं। हे मुने! तदनन्तर मेरे एवं गर्ग आदि मुनियोंके कहनेपर सदाशिवने लौकिक विधिका आश्रयणकर पार्वतीका पूजन किया। | इस प्रकार जगन्मय पार्वती तथा परमेश्वर परस्परएक-दूसरेका सत्कार करते हुए परम शोभाको प्राप्त हो रहे थे। लक्ष्मी आदि देवियोंने त्रैलोक्यकी शोभासे समन्वित होकर एक-दूसरेकी ओर देखते हुए उन दोनोंकी विशेषरूपसे आरती उतारी ॥ 51-54॥
तत्पश्चात् ब्राह्मणोंकी स्त्रियों तथा नगरकी अन्य स्त्रियोंने उनकी आरती की। उस समय शिवा तथा शिवको उत्सुकतापूर्वक देखती हुई वे सब बहुत आनन्दित हुईं ॥ 55 ॥