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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 3 (पार्वती खण्ड) , अध्याय 47 - Sanhita 2, Khand 3 (पार्वती खण्ड) , Adhyaya 47

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पाणिग्रहण के लिये हिमालयके घर शिवके गमनोत्सवका वर्णन

ब्रह्माजी बोले- तदनन्तर शैलराजने प्रसन्नतापूर्वक बड़े उत्साहसे वेदमन्त्रोंके द्वारा शिवा एवं शिवजीका उपनयन संस्कार सम्पन्न कराया। तदनन्तर विष्णु आदि देवताओं एवं मुनियोंने हिमालयके द्वारा प्रार्थना किये जानेपर उनके घरके भीतर प्रवेश किया ॥ 1-2 ॥

उन लोगोंने लोक तथा वेदरीतिको यथार्थ रूपसे सम्पन्नकर शिवके द्वारा दिये गये आभूषणोंसे पार्वतीको अलंकृत किया। सखियों और ब्राह्मणोंकी पत्नियोंने | पहले पार्वतीको स्नान कराकर पुनः सभी प्रकारसे सजाकर उनकी आरती उतारी। शंकरप्रिया तथा गिरिराजसुता वरवर्णिनी पार्वती उस समय दो नूतन वस्त्र धारण किये हुए अत्यन्त शोभित हो रही थीं ॥ 3-5 ॥

हे मुने! उन देवीने अनेक प्रकारके रत्नोंसे जटित परम दिव्य तथा अद्भुत कंचुकी धारण की, जिससे वे अधिक शोभा पाने लगीं। तदनन्तर उन्होंने दिव्य रत्नोंसे जड़ा हुआ हार तथा शुद्ध सुवर्णके बने हुए बहुमूल्य कंकणोंको भी धारण किया ॥ 6-7 ॥

तीनों जगत्को उत्पन्न करनेवाली तथा महाशैलकी कन्या सौभाग्यवती वे पार्वती मनमें शिवजीका ध्यान करते हुए वहीं पर बैठी हुई अत्यन्त शोभित होने लगीं ॥ 8 ॥ उस समय दोनों पक्षोंमें आनन्ददायक महान् उत्सव हुआ और [ उभयपक्षसे] नाना प्रकारके अवर्णनीय दान ब्राह्मणोंको दिये गये। इसी प्रकार लोगोंको भी अनेक प्रकारके दान दिये गये और वहाँ उत्सवपूर्वक गीत, वाद्य एवं विनोद सम्पन्न हुए ॥ 9-10 ॥

तब मैं ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र आदि सभी देवगण तथा सभी मुनिलोग बड़ी प्रसन्नता के साथ आनन्दपूर्वक उत्सव मनाकर भक्तिपूर्वक पार्वतीको प्रणामकर तथा शिवजीके चरणकमलोंका ध्यानकर हिमालयकी आज्ञा प्राप्त करके अपने-अपने स्थानपर बैठ गये। इसी समय वहाँ ज्योतिःशास्त्रके पारंगत विद्वान् गर्गाचार्य उन गिरिराज हिमालयसे यह वचन | कहने लगे- ॥ 11-13 ॥गर्म बोले हे हिमालय हे धराधीश हे स्वामिन् हे कालीके पिता हे प्रभो अब आप पाणिग्रहणके निमित्त शिवजीको अपने घरपर ले आइये ।। 14 ।।

ब्रह्माजी बोले- तत्पश्चात् गर्गके द्वारा निर्देश किये गये कन्यादानके लिये उचित समयको जानकर हिमालय मनमें अत्यन्त प्रसन्न हुए ।। 15 ।।

हिमालयने आनन्दित होकर [उसी समय ] पर्वतों, द्विजों तथा अन्य लोगोंको भी अत्यन्त प्रेमके साथ शिवजीको बुलानेकी इच्छासे भेजा। वे पर्वत तथा ब्राह्मण हाथोंमें सभी मांगलिक वस्तुएँ लेकर महान् उत्सव करते हुए प्रेमपूर्वक वहाँ गये, जहाँ भगवान् महेश्वर थे ।। 16-17 ।।

उस समय गीत-नृत्यसहित वाद्यध्वनि तथा वेदध्वनिसे महान् उत्सव होने लगा ॥ 18 ॥

वाचक शब्दको सुनकर शंकरजीके सभी सेवक, देवता, ऋषि तथा गण आनन्दित होकर एक साथ ही उठ खड़े हुए और वे हर्षसे परिपूर्ण होकर परस्पर | कहने लगे- शिवजीको बुलानेकी इच्छासे [गिरिराजके द्वारा भेजे गये] पर्वत यहाँ आ रहे हैं । ll 19-20 ॥ निश्चय ही पाणिग्रहणका काल शीघ्र उपस्थित हो गया है, अतः सभीका महाभाग्य उपस्थित हो गया है ऐसा हमलोग मानते हैं। हमलोग विशेष रूपसे धन्य हैं, क्योंकि हमलोग संसारके मंगलोंके स्थानस्वरूप शिवा शिवके विवाहको अत्यन्त प्रेमसे देखेंगे ॥ 21-22 ।। ब्रह्माजी बोले- जब आदरपूर्वक उनका यह संवाद हो रहा था, उसी समय गिरिराजके सभी मन्त्री वहाँ आ गये। उन लोगोंने जा करके विष्णु आदि तथा शंकरसे प्रार्थना की कि कन्यादानका उचित समय उपस्थित हो गया है, अब आप लोग चलें ॥ 23-24 ॥

यह सुनकर वे विष्णु आदि सभी देवता मन-ही मन अत्यन्त प्रसन्न हुए और जोर जोरसे गिरिराज हिमालयकी जय-जयकार करने लगे ॥ 25 ॥

इधर, शिवजी भी कालीको प्राप्त करनेकी लालसासे अत्यन्त प्रसन्न हो उठे, किंतु अद्भुत रूपवाले उन शिवने उसके लक्षणको मनमें गुप्त रखा।इसके उपरान्त लोकपर कृपा करनेवाले शूलधारीने परम प्रसन्न होकर मांगलिक द्रव्योंसे युक्त [जलसे ] स्नान किया ।। 26-27 ।।

सभी लोकपालोंने स्नान किये हुए तथा सुन्दर वस्त्रसे युक्त उन शिवको चारों ओरसे घेरकर उनकी | सेवा की तथा उन्हें वृषभके स्कन्धपर बैठाया। इसके बाद प्रभुको आगे करके सभी लोग हिमालयके घरकी ओर चल पड़े। वे वाद्य बजाते हुए कुतूहल कर रहे थे ।। 28-29 ।।

उस समय हिमालयके द्वारा भेजे गये ब्राह्मण तथा श्रेष्ठ पर्वतगण कुतूहलसे युक्त होकर शिवजीके आगे-आगे चल रहे थे। मस्तकपर विशाल छत्र लगाये हुए, चंवर डुलाये जाते एवं वितानसे युक्त वे महेश्वर अत्यन्त सुशोभित हो रहे थे। उस समय आगे-आगे चलते हुए मैं, विष्णु, इन्द्र तथा समस्त लोकपाल परम ऐश्वर्यसे युक्त होकर सुशोभित हो रहे थे ॥ 30-32 ॥

उस महोत्सवमें शंख, भेरियाँ, नगाड़े, बड़े-बड़े ढोल तथा गोमुख आदि बाजे बार-बार बज रहे थे॥ 33 सभी गायक भी मंगलगीत गा रहे थे तथा सभी नर्तकियाँ अनेक प्रकारके तालोंके साथ नाच रही थीं ll 34 ll

उस समय इन सभीके साथ जगत्के एकमात्र बन्धु शिव परम तेजसे युक्त होकर समस्त हर्षित सुरेश्वरोंके द्वारा सेवित होते हुए तथा अपने ऊपर पुष्प विकीर्ण किये जाते हुए चल रहे थे ॥ 35 ॥

तत्पश्चात् सभी लोगोंसे भली-भाँति पूजित होकर शम्भुने यज्ञमण्डपमें प्रवेश किया, उस समय सभी लोग उन परमेश्वरकी नाना प्रकारके स्तोत्रोंसे स्तुति कर रहे थे ॥ 36

श्रेष्ठपर्वतोंने शिवजीको वृषभसे उतारा और प्रेमके साथ महोत्सवपूर्वक उन्हें घरके भीतर ले गये ll 37 ॥

हिमालयने भी देवताओं तथा गणसहित आये हुए ईश्वरको विधिवत् भक्तिपूर्वक प्रणाम किया और उनकी आरती उतारी ॥ 38 ॥[ इसी प्रकार ] उत्साहयुक्त होकर उन्होंने सभी देवताओं, मुनियों तथा अन्य लोगोंको प्रणामकर अपने भाग्यकी प्रशंसा करते हुए प्रेमपूर्वक उन सबका सम्मान किया ॥ 39 ॥

वे हिमालय विष्णु और प्रमुख देवसमुदाय सहित ईशानको उत्तम पाद्य तथा अर्घ्य प्रदानकर उन्हें अपने घरमें ले गये और उन्होंने आँगनमें रत्नके सिंहासनपर विशेष विशेष देवताओंको, मुझे, विष्णुको, ईशको तथा सभी विशिष्ट लोगोंको आदरपूर्वक बैठाया ll 40-41 ll

मेनाने भी बड़े प्रेमसे अपनी सखियों, ब्राह्मणस्त्रियों तथा अन्य पुरन्ध्रियोंके साथ मुदित होकर शिवजीकी आरती उतारी। कर्मकाण्डके ज्ञाता पुरोहितने मधुपर्क दान आदि जो जो कृत्य था, वह सब महात्मा शंकरके लिये सम्पन्न किया ।। 42-43 ll

हे मुने! पुरोहितने मेरे द्वारा प्रेरित होकर प्रस्तावके अनुकूल जो मांगलिक कार्य था, उसे किया ॥ 44 ॥

उसके बाद अन्तर्वेदीमें बड़े प्रेमसे प्रविष्ट होकर हिमालय वेदीके ऊपर समस्त आभूषणोंसे विभूषित तन्वंगी कन्या पार्वती जहाँ विराजमान थीं, वहाँ विष्णु तथा मेरे साथ महादेवजीको ले गये। उस समय वहाँ बृहस्पति आदि देवता कन्यादानोचित लग्नकी प्रतीक्षा करते हुए अत्यन्त आनन्दित हो रहे थे ll 45-47 ॥

जहाँ घटिकायन्त्र स्थापित था, वहींपर गर्गाचार्य बैठे हुए थे। विवाहकी घड़ी आनेतक वे प्रणवका जप कर रहे थे। गर्गाचार्यने पुण्याहवाचन करते हुए अक्षतोंको पार्वतीकी अंजलिमें दिया, तब पार्वतीने प्रेमपूर्वक शिवके ऊपर अक्षतोंकी वर्षा की। इसके बाद परम उदार तथा सुन्दर मुखवाली उन पार्वतीने दही, अक्षत तथा कुशके जलसे शिवजीकी पूजा की ।। 48- 50 ll

जिनके लिये उन शिवाने पूर्वकालसे अत्यन्त कठोर तप किया था, उन शम्भुको प्रेमपूर्वक देखती हुई वे अत्यन्त शोभित हो रही थीं। हे मुने! तदनन्तर मेरे एवं गर्ग आदि मुनियोंके कहनेपर सदाशिवने लौकिक विधिका आश्रयणकर पार्वतीका पूजन किया। | इस प्रकार जगन्मय पार्वती तथा परमेश्वर परस्परएक-दूसरेका सत्कार करते हुए परम शोभाको प्राप्त हो रहे थे। लक्ष्मी आदि देवियोंने त्रैलोक्यकी शोभासे समन्वित होकर एक-दूसरेकी ओर देखते हुए उन दोनोंकी विशेषरूपसे आरती उतारी ॥ 51-54॥

तत्पश्चात् ब्राह्मणोंकी स्त्रियों तथा नगरकी अन्य स्त्रियोंने उनकी आरती की। उस समय शिवा तथा शिवको उत्सुकतापूर्वक देखती हुई वे सब बहुत आनन्दित हुईं ॥ 55 ॥

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] पितरोंकी कन्या मेनाके साथ हिमालयके विवाहका वर्णन
  2. [अध्याय 2] पितरोंकी तीन मानसी कन्याओं-मेना, धन्या और कलावतीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त तथा सनकादिद्वारा प्राप्त शाप एवं वरदानका वर्णन
  3. [अध्याय 3] विष्णु आदि देवताओंका हिमालयके पास जाना, उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बाकी स्तुति करना
  4. [अध्याय 4] उमादेवीका दिव्यरूपमें देवताओंको दर्शन देना और अवतार ग्रहण करनेका आश्वासन देना
  5. [अध्याय 5] मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न होकर देवीका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेनासे मैनाकका जन्म
  6. [अध्याय 6] देवी उमाका हिमवान्‌के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, देवीका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे वार्तालाप तथा पुनः नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना
  7. [अध्याय 7] पार्वतीका नामकरण तथा उनकी बाललीलाएँ एवं विद्याध्ययन
  8. [अध्याय 8] नारद मुनिका हिमालयके समीप गमन, वहाँ पार्वतीका हाथ देखकर भावी लक्षणोंको बताना, चिन्तित हिमवान्‌को शिवमहिमा बताना तथा शिवसे विवाह करनेका परामर्श देना
  9. [अध्याय 9] पार्वतीके विवाहके सम्बन्धमें मेना और हिमालयका वार्तालाप, पार्वती और हिमालयद्वारा देखे गये अपने स्वप्नका वर्णन
  10. [अध्याय 10] शिवजीके ललाटसे भौमोत्पत्ति
  11. [अध्याय 11] भगवान् शिवका तपस्याके लिये हिमालयपर आगमन, वहाँ पर्वतराज हिमालयसे वार्तालाप
  12. [अध्याय 12] हिमवान्‌का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा मांगना, शिवद्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना
  13. [अध्याय 13] पार्वती और परमेश्वरका दार्शनिक संवाद, शिवका पार्वतीको अपनी सेवाके लिये आज्ञा देना, पार्वतीका महेश्वरकी सेवामें तत्पर रहना
  14. [अध्याय 14] तारकासुरकी उत्पत्तिके प्रसंगों दितिपुत्र बज्रांगकी कथा, उसकी तपस्या तथा वरप्राप्तिका वर्णन
  15. [अध्याय 15] वरांगीके पुत्र तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुरकी तपस्या एवं ब्रह्माजीद्वारा उसे वरप्राप्ति, वरदानके प्रभावसे तीनों लोकोंपर उसका अत्याचार
  16. [अध्याय 16] तारकासुरसे उत्पीड़ित देवताओंको ब्रह्माजीद्वारा सान्त्वना प्रदान करना
  17. [अध्याय 17] इन्द्रके स्मरण करनेपर कामदेवका उपस्थित होना, शिवको तपसे विचलित करनेके लिये इन्द्रद्वारा कामदेवको भेजना
  18. [अध्याय 18] कामदेवद्वारा असमयमें वसन्त ऋतुका प्रभाव प्रकट करना, कुछ क्षणके लिये शिवका मोहित होना, पुनः वैराग्य भाव धारण करना
  19. [अध्याय 19] भगवान् शिवकी नेत्रज्वालासे कामदेवका भस्म होना और रतिका विलाप, देवताओं द्वारा रतिको सान्त्वना प्रदान करना और भगवान् शिवसे कामको जीवित करनेकी प्रार्थना करना
  20. [अध्याय 20] शिवकी क्रोधाग्निका वडवारूप धारण और ब्रह्माद्वारा उसे समुद्रको समर्पित करना
  21. [अध्याय 21] कामदेवके भस्म हो जानेपर पार्वतीका अपने घर आगमन, हिमवान् तथा मेनाद्वारा उन्हें धैर्य प्रदान करना, नारदद्वारा पार्वतीको पंचाक्षर मन्त्रका उपदेश
  22. [अध्याय 22] पार्वतीकी तपस्या एवं उसके प्रभावका वर्णन
  23. [अध्याय 23] हिमालय आदिका तपस्यानिरत पार्वतीके पास जाना, पार्वतीका पिता हिमालय आदिको अपने तपके विषयमें दृढ़ निश्चयकी बात बताना, पार्वतीके तपके प्रभावसे त्रैलोक्यका संतप्त होना, सभी देवताओंका भगवान् शंकरके पास जाना
  24. [अध्याय 24] देवताओंका भगवान् शिवसे पार्वतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, भगवान्का विवाहके दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करनेपर स्वीकार कर लेना
  25. [अध्याय 25] भगवान् शंकरकी आज्ञासे सप्तर्षियोंद्वारा पार्वतीके शिवविषयक अनुरागकी परीक्षा करना और वह वृत्तान्त भगवान् शिवको बताकर स्वर्गलोक जाना
  26. [अध्याय 26] पार्वतीकी परीक्षा लेनेके लिये भगवान् शिवका जटाधारी ब्राह्मणका वेष धारणकर पार्वतीके समीप जाना, शिव-पार्वती संवाद
  27. [अध्याय 27] जटाधारी ब्राह्मणद्वारा पार्वतीके समक्ष शिवजीके स्वरूपकी निन्दा करना
  28. [अध्याय 28] पार्वतीद्वारा परमेश्वर शिवकी महत्ता प्रतिपादित करना और रोषपूर्वक जटाधारी ब्राह्मणको फटकारना, शिवका पार्वतीके समक्ष प्रकट होना
  29. [अध्याय 29] शिव और पार्वतीका संवाद, विवाहविषयक पार्वतीके अनुरोधको शिवद्वारा स्वीकार करना
  30. [अध्याय 30] पार्वतीके पिताके घरमें आनेपर महामहोत्सवका होना, महादेवजीका नटरूप धारणकर वहाँ उपस्थित होना तथा अनेक लीलाएँ दिखाना, शिवद्वारा पार्वतीकी याचना, किंतु माता-पिताके द्वारा मना करनेपर अन्तर्धान हो जाना
  31. [अध्याय 31] देवताओंके कहनेपर शिवका ब्राह्मण वेषमें हिमालयके यहाँ जाना और शिवकी निन्दा करना
  32. [अध्याय 32] ब्राह्मण वेषधारी शिवद्वारा शिवस्वरूपकी निन्दा सुनकर मेनाका कोपभवनमें गमन शिवद्वारा सप्तर्षियोंका स्मरण और उन्हें हिमालयके घर भेजना, हिमालयकी शोभाका वर्णन तथा हिमालयद्वारा सप्तर्षियोंका स्वागत
  33. [अध्याय 33] वसिष्ठपत्नी अरुन्धती reद्वारा मेना को समझाना तथा
  34. [अध्याय 34] सप्तर्षियोंद्वारा हिमालयको राजा अनरण्यका आख्यान सुनाकर पार्वतीका विवाह शिवसे करनेकी प्रेरणा देना
  35. [अध्याय 35] धर्मराजद्वारा मुनि पिप्पलादकी भार्या सती पद्माके पातिव्रत्यकी परीक्षा, पद्माद्वारा धर्मराजको शाप प्रदान करना तथा पुनः चारों युगोंमें शापकी व्यवस्था करना, पातिव्रत्यसे प्रसन्न हो धर्मराजद्वारा पद्माको अनेक वर प्रदान करना, महर्षि वसिष्ठद्वारा हिमवान्से पद्माके दृष्टान्तद्वारा अपनी पुत्री शिवको सौंपनेके लिये कहना
  36. [अध्याय 36] सप्तर्षियोंके समझानेपर हिमवान्‌का शिवके साथ अपनी पुत्रीके विवाहका निश्चय करना, सप्तर्षियोंद्वारा शिवके पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त बताकर अपने धामको जाना
  37. [अध्याय 37] हिमालयद्वारा विवाहके लिये लग्नपत्रिकाप्रेषण, विवाहकी सामग्रियोंकी तैयारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियोंका दिव्य रूपमें सपरिवार हिमालयके घर आगमन
  38. [अध्याय 38] हिमालयपुरीकी सजावट, विश्वकर्माद्वारा दिव्यमण्डप एवं देवताओंके निवासके लिये दिव्यलोकोंका निर्माण करना
  39. [अध्याय 39] भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना
  40. [अध्याय 40] शिवबरातकी शोभा भगवान् शिवका बरात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान
  41. [अध्याय 41] नारदद्वारा हिमालयगृहमें जाकर विश्वकर्माद्वारा बनाये गये विवाहमण्डपका दर्शनकर मोहित होना और वापस आकर उस विचित्र रचनाका वर्णन करना
  42. [अध्याय 42] हिमालयद्वारा प्रेषित मूर्तिमान् पर्वतों और ब्राह्मणोंद्वारा बरातकी अगवानी, देवताओं और पर्वतोंके मिलापका वर्णन
  43. [अध्याय 43] मेनाद्वारा शिवको देखनेके लिये महलकी छतपर जाना, नारदद्वारा सबका दर्शन कराना, शिवद्वारा अद्भुत लीलाका प्रदर्शन, शिवगणों तथा शिवके भयंकर वेषको देखकर मेनाका मूर्च्छित होना
  44. [अध्याय 44] शिवजीके रूपको देखकर मेनाका विलाप, पार्वती तथा नारद आदि सभीको फटकारना, शिवके साथ कन्याका विवाह न करनेका हठ, विष्णुद्वारा मेनाको समझाना
  45. [अध्याय 45] भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना
  46. [अध्याय 46] नगरमें बरातियोंका प्रवेश द्वाराचार तथा पार्वतीद्वारा कुलदेवताका पूजन
  47. [अध्याय 47] पाणिग्रहण के लिये हिमालयके घर शिवके गमनोत्सवका वर्णन
  48. [अध्याय 48] शिव-पार्वती विवाहका प्रारम्भ, हिमालयद्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तरके रूपमें शिवमाहात्म्य प्रतिपादित करना, हर्षयुक्त हिमालयद्वारा कन्यादानकर विविध उपहार प्रदान करना
  49. [अध्याय 49] अग्निपरिक्रमा करते समय पार्वतीके पदनखको देखकर ब्रह्माका मोहग्रस्त होना, बालखिल्योंकी उत्पत्ति, शिवका कुपित होना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  50. [अध्याय 50] शिवा शिवके विवाहकृत्यसम्पादनके अनन्तर देवियोंका शिवसे मधुर वार्तालाप
  51. [अध्याय 51] रतिके अनुरोधपर श्रीशंकरका कामदेवको जीवित करना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  52. [अध्याय 52] हिमालयद्वारा सभी बरातियोंको भोजन कराना, शिवका विश्वकर्माद्वारा निर्मित वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल जनवासेमें आगमन
  53. [अध्याय 53] चतुर्थीकर्म, बरातका कई दिनोंतक ठहरना, सप्तर्षियोंके समझानेसे हिमालयका बरातको विदा करनेके लिये राजी होना, मेनाका शिवको अपनी कन्या सौंपना तथा बरातका पुरीके बाहर जाकर ठहरना
  54. [अध्याय 54] मेनाकी इच्छा अनुसार एक ब्राह्मणपत्नीका पार्वतीको पातिव्रतधर्मका उपदेश देना
  55. [अध्याय 55] शिव-पार्वती तथा बरातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और शिव विवाहोपाख्यानके श्रवणकी महिमा