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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 1, अध्याय 20 - Sanhita 1, Adhyaya 20

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पार्थिव शिवलिंगके निर्माणकी रीति तथा वेद-मन्त्रोंद्वारा उसके पूजनकी विस्तृत एवं संक्षिप्त विधिका वर्णन

सूतजी बोले- हे महर्षियो! अब मैं वैदिक कर्मके प्रति श्रद्धा भक्ति रखनेवाले लोगोंके लिये वेदोक्त मार्गसे ही पार्थिव पूजाको पद्धतिका वर्णन करता हूँ। यह पूजा भोग और मोक्ष दोनोंको देनेवाली है। आनिकसूत्रोंमें बतायी हुई विधिके अनुसार स्नान और सन्ध्योपासना करके पहले ब्रह्मयज्ञ करे। तत्पश्चात् देवताओं, ऋषियों, सनकादि मनुष्यों और पितरोंका तर्पण करे। मनुष्यको चाहिये कि अपनी रुचिके अनुसार सम्पूर्ण नित्यकर्मको पूर्ण करके शिवस्मरणपूर्वक भस्म तथा रुद्राक्ष धारण करे। तत्पश्चात् सम्पूर्ण मनोवांछित फलकी सिद्धिके लिये ऊँची भक्तिभावनाके साथ उत्तम पार्थिव लिंगको | वेदोक्त विधिसे भलीभाँति पूजा करे ॥ 1-4 ॥

नदी या तालाबके किनारे, पर्वतपर, वनमें, शिवालयमें अथवा और किसी पवित्र स्थानमें पार्थिव पूजा करनेका विधान हैं। हे ब्राह्मणो शुद्ध स्थानसे निकाली हुई मिट्टीको यत्नपूर्वक लाकर बड़ी सावधानीके साथ शिवलिंगका निर्माण करे। ब्राह्मणके लिये श्वेत, क्षत्रियके लिये लाल, वैश्यके लिये पीली और शूद्रके लिये काली मिट्टीसे शिवलिंग बनानेका विधान है अथवा जहाँ जो मिट्टी मिल जाय, उसीसे शिवलिंग बनाये ll 5-7 ।।

शिवलिंग बनानेके लिये प्रयत्नपूर्वक मिट्टीका संग्रह करके उस शुभ मृत्तिकाको अत्यन्त शुद्ध स्थानमें रखे। फिर उसकी शुद्धि करके जलसे सानकर पिण्ड बना ले और वेदोक्त मार्गसे धीरे-धीरे सुन्दर पार्थिव लिंगकी रचना करे। तत्पश्चात् भोग और मोक्षरूप फलकी प्राप्तिके लिये भक्तिपूर्वक उसका पूजन करे। उस पार्थिवलिंगके पूजनकी जो विधि है, उसे मैं विधानपूर्वक बता रहा हूँ, आप लोग सुनिये ll 8-10 ॥
'ॐ नमः शिवाय' इस मन्त्रका उच्चारण करते हुए समस्त पूजन-सामग्रीका प्रोक्षण करे उसपर जल छिड़के। इसके बाद 'भूरसि" इत्यादि मन्त्रसे क्षेत्रसिद्धि करे ॥ 11 ॥

फिर 'आपो अस्मान्02 इस मन्त्रसे जलकासंस्कार करे। इसके बाद 'नमस्ते रुद्र0 इस मन्त्र स्फाटिकाबन्ध (स्फटिक शिलाका घेरा) बनानेकी बात कही गयी है। 'नमः शम्भवाय0 इस मन्त्र क्षेत्रशुद्धि और पंचामृतका प्रोक्षण करे। तत्पश्चात् शिवभक्त पुरुष 'नमः' पूर्वक 'नीलग्रीवाय0 " मन्त्रसे शिवलिंगकी उत्तम प्रतिष्ठा करे। इसके बाद वैदिक 16 ते रुद्र0 रीतिसे पूजन-कर्म करनेवाला उपासक भक्तिपूर्वक 'एतत्ते रुद्राव0' इस मन्त्रसे रमणीय आसन दे। ' मा नो महान्तम् o" इस मन्त्रसे आवाहन करे, 'या इस मन्त्रसे भगवान् शिवको आसनपर समासीन करे । 'यामिषु0" असौ योऽवसर्पति0 ll 12 ll इस मन्त्रसे शिवके अंगोंमें न्यास करे 'अध्यवोचत्0' प्रेमपूर्वक अधिवासन करे । इस मन्त्रसे शिवलिंगमें इष्टदेवता शिवका न्यास करे। | 'असौ योऽवसर्पति0 12 इस मन्त्रसे उपसर्पण (देवताकेसमीप गमन) करे। इसके बाद 'नमोऽस्तु नीलग्रीवाय 0" इस मन्त्रसे इष्टदेवको पाद्य समर्पित करे । 'रुद्रगायत्री 2 से अर्घ्य दे। 'त्र्यम्बकं0 मन्त्रसे आचमन कराये। 'पयः पृथिव्याम्0 इस मन्त्रसे दुग्धस्नान कराये। 'दधिक्राव्णो0 इस मन्त्रसे दधिस्नान कराये। 'घृतं घृतपावा0 ' इस मन्त्रसे घृतस्नान कराये। 'मधु वाता0 'मधु नक्तंo", 'मधुमान्नो” – इन तीन ऋचाओंसे मधुस्नान और शर्करा - स्नान कराये। इन दुग्ध आदि पाँच वस्तुओंको पंचामृत कहते हैं अथवा पाद्यसमर्पणके लिये कहे गये 'नमोऽस्तु नीलग्रीवाय0' इत्यादि मन्त्रद्वारा पंचामृत से स्नान कराये। तदनन्तर 'मा नस्तोके0 इस मन्त्रसे प्रेमपूर्वक भगवान् शिवको कटिबन्ध (करधनी) अर्पित करे। 'नमो धृष्णवे0 11 |इस मन्त्रका उच्चारण करके आराध्य देवताको उत्तरीय धारण कराये। 'या ते हेतिः 0 इत्यादि चार ऋचाओंको पढ़कर वेदज्ञ भक्त प्रेमसे विधिपूर्वक भगवान् शिवके लिये वस्त्र [एवं यज्ञोपवीत ] समर्पित करे। इसके बाद 'नमः श्वभ्य0 इत्यादि मन्त्रकोपढ़कर शुद्ध बुद्धिवाला भक्त पुरुष भगवान्‌को प्रेमपूर्वक गन्ध (सुगन्धित चन्दन एवं रोली) चढ़ाये। | 'नमस्तक्षभ्यो0 इस मन्त्रसे अक्षत अर्पित करे। 'नमः पार्याय02 इस मन्त्रसे फूल चढ़ाये । 'नमः पर्णाय03 इस मन्त्रसे बिल्वपत्र समर्पण करे। 'नमः कपर्दिने च0" इत्यादि मन्त्रसे विधिपूर्वक धूप दे । 'नम आशवे0 " इस ऋचासे शास्त्रोक्त विधिके अनुसार दीप निवेदित करे। तत्पश्चात् [हाथ धोकर] 'नमो ज्येष्ठाय06 इस मन्त्रसे उत्तम नैवेद्य अर्पित करे। फिर पूर्वोक्त त्र्यम्बक मन्त्रसे आचमन कराये इस ऋचासे इस ऐसा कहा गया है । 'इमा रुद्राय0 फल समर्पण करे। फिर 'नमो व्रज्याय 0 | मन्त्रसे भगवान् शिवको अपना सब कुछ समर्पित कर दे। तदनन्तर 'मा नो महान्तम्0' तथा 'मा नस्तोके0 '–इन पूर्वोक्त दो मन्त्रोंद्वारा केवल अक्षतोंसे ग्यारह रुद्रोंका पूजन करे। फिर 'हिरण्यगर्भः0 इत्यादि मन्त्रसे जो तीन ऋचाओंके रूपमें पठित है, दक्षिणा चढ़ाये। 'देवस्य त्वा0' इस मन्त्रसे विद्वान् पुरुष आराध्यदेवका अभिषेक करे। दीपके लियेबताये हुए 'नम आशवे0 ' इत्यादि मन्त्रसे भगवान् शिवकी नीराजना (आरती) करे। तत्पश्चात् 'इमा रुद्राय0' इत्यादि तीन ऋचाओंसे भक्तिपूर्वक रुद्रदेवको पुष्पांजलि अर्पित करे । 'मा नो महान्तम्0' इस मन्त्रसे विज्ञ उपासक पूजनीय देवताकी परिक्रमा करे। फिर उत्तम बुद्धिवाला उपासक 'मा नस्तोके0 ' इस मन्त्रसे भगवान्को साष्टांग प्रणाम करे । 'एष ते0 " इस मन्त्रसे शिवमुद्राका प्रदर्शन करे। 'यतो यतः 0 | इस मन्त्रसे अभय नामक मुद्राका, 'त्र्यम्बकं' मन्त्रसे ज्ञान नामक मुद्राका तथा 'नमः सेना0 इत्यादि मन्त्रसे महामुद्राका प्रदर्शन करे। 'नमो गोभ्य0 " इस ऋचाद्वारा धेनुमुद्रा दिखाये। इस तरह पाँच मुद्राओंका प्रदर्शन करके शिवसम्बन्धी मन्त्रोंका जप करे अथवा वेदज्ञ पुरुष 'शतरुद्रिय मन्त्रकी आवृत्ति करे । तत्पश्चात् वेदज्ञ पुरुष पंचांग पाठ करे। तदनन्तर 'देवा गातु06 इत्यादि मन्त्रसे भगवान् शंकरका विसर्जन करे। इस प्रकार शिवपूजाकी वैदिक विधिका विस्तारसे प्रतिपादन किया गया । ll 12 - 371 / 2 ॥

[हे महर्षियो!] अब संक्षेपमें पार्थिवपूजनकी वैदिक विधिको सुनें। 'सद्योजातम् 0" इस ऋचासे पार्थिवलिंग बनानेके लिये मिट्टी ले आये। 'वामदेवाय0' मन्त्र पढ़कर उसमें जल डाले। [जब मिट्टी सनकर तैयार हो जाय, तब] 'अघोर0 19 10 मन्त्रसे लिंग निर्माण करे। फिर 'तत्पुरुषाय0 मन्त्रसे उसमें भगवान् शिवका विधिवत् आवाहनकरे। तदनन्तर 'ईशान0 मन्त्रसे भगवान् शिवको वेदीपर स्थापित करे। इनके सिवाय अन्य सब विधानों को भी शुद्ध बुद्धिवाला उपासक संक्षेपसे ही सम्पन्न करे। इसके बाद विद्वान् पुरुष पंचाक्षर मन्त्रसे अथवा गुरुके द्वारा दिये हुए अन्य किसी शिवसम्बन्धी मन्त्रसे सोलह उपचारोंद्वारा विधिवत् पूजन करे अथवा- 'भवाय भवनाशाय महादेवाय धीमहि। उग्राय उग्रनाशाय शर्वाय शशिमौलिने ॥'

-इस मन्त्रद्वारा विद्वान् उपासक भगवान् शंकरकी पूजा करे। वह भ्रम छोड़कर उत्तम भक्तिसे शिवकी आराधना करे; क्योंकि भगवान् शिव भक्तिसे ही [मनोवांछित] फल देते हैं ॥ 38-44 ॥

हे ब्राह्मणो! यह जो वैदिक विधिसे पूजनका क्रम बताया गया है, इसका पूर्णरूपसे आदर करता हुआ मैं पूजाकी एक दूसरी विधि भी बता रहा हूँ, जो उत्तम होनेके साथ ही सर्वसाधारणके लिये उपयोगी है। हे मुनिवरो पार्थिवलिंगकी पूजा भगवान् शिवके नामोंसे बतायी गयी है। वह पूजा सम्पूर्ण अभीष्टोंको देनेवाली है, मैं उसे बताता हूँ, सुनो! हर, महेश्वर, शम्भु, शूलपाणि, पिनाकधृक्, शिव, पशुपति और महादेव - [ ये क्रमशः शिवके आठ नाम कहे गये हैं।] इनमेंसे प्रथम नामके द्वारा अर्थात् 'ॐ हराय नमः' का उच्चारण करके पार्थिवलिंग बनाने के लिये मिट्टी लाये। दूसरे नाम अर्थात् 'ॐ महेश्वराय नमः' का उच्चारण करके लिंगनिर्माण करे। फिर 'ॐ शम्भवे नमः 'बोलकर उस पार्थिवलिंगको | प्रतिष्ठा करे। तत्पश्चात् 'ॐ शूलपाणये नमः' कहकर उस पार्थिवलिंगमें भगवान् शिवका आवाहन करे। 'ॐ पिनाकभूषे नमः' कहकर उस शिवलिंगको नहलाये। 'ॐ शिवाय नमः' बोलकर उसकी पूजा करे। फिर 'ॐ पशुपतये नमः' कहकर क्षमा प्रार्थना करे और अन्तमें 'ॐ महादेवाय नमः' कहकर आराध्यदेवका विसर्जन कर दे। इस प्रकार प्रत्येक नामके आदिमें 'ॐ' कार और अन्तमें चतुर्थी विभक्तिके साथ 'नमः' पद लगाकर बड़े आनन्द और भक्तिभावसे [पूजनसम्बन्धी] सारे कार्य करने चाहिये ।। 45-49॥षडक्षरमन्त्रसे अंगन्यास और करन्यासकी विधि भलीभाँति सम्पन्न करके नीचे लिखे अनुसार ध्यान करे l

कैलास पर्वतपर एक सुन्दर सिंहासनके मध्यभागमें विराजमान, सनन्द आदि भक्तोंसे पूजित, भक्तोंके दुःखरूप दावानलको नष्ट कर देनेवाले, अप्रमेय, उमाके साथ समासीन तथा विश्वके भूषणस्वरूप भगवान् शिवका चिन्तन करना चाहिये। भगवान् महेश्वरका प्रतिदिन इस प्रकार ध्यान करे-उनकी अंगकान्ति चाँदीके पर्वतकी भाँति गौर है, वे अपने मस्तकपर मनोहर चन्द्रमाका मुकुट धारण करते हैं, रत्नोंके आभूषण धारण करनेसे उनका श्रीअंग और भी उद्भासित हो उठा है, उनके चार हाथोंमें क्रमश: परशु, मृगमुद्रा, वर एवं अभयमुद्रा सुशोभित हैं, वे सदा प्रसन्न रहते हैं। कमलके आसनपर बैठे हुए हैं, देवतालोग चारों ओर खड़े होकर उनकी स्तुति कर रहे हैं, उन्होंने वस्त्रके रूपमें व्याघ्रचर्म धारण कर रखा है, वे इस विश्वके आदि हैं, बीज (कारण) रूप हैं, सबका समस्त भय हर लेनेवाले हैं, उनके पाँच मुख हैं और प्रत्येक मुखमण्डलमें तीन-तीन नेत्र हँ ॥ 50-52 ll

इस प्रकार ध्यान करके तथा उत्तम पार्थिव लिंगका पूजन करके गुरुके दिये हुए पंचाक्षरमन्त्रका विधिपूर्वक जप करे हे विप्रवरो विद्वान् पुरुषको चाहिये कि वह देवेश्वर शिवको प्रणाम करते हुए नाना प्रकारकी स्तुतियोंद्वारा उनका स्तवन करे तथा शतरुद्रिय (यजु0 16वें अध्यायके मन्त्रों) का पाठ करे तत्पश्चात् अंजलिमें अक्षत और फूल लेकर | उत्तम भक्तिभावसे निम्नांकित मन्त्रोंको पढ़ते हुए प्रेम और प्रसन्नताके साथ भगवान् शंकरसे इस प्रकार प्रार्थना करे- ॥ 53-55॥

'सबको सुख देनेवाले हे कृपानिधान! हे भूतनाथ ! हे शिव! मैं आपका है, आपके गुणोंमें ही मेरे प्राण बसते हैं अथवा आपके गुण ही मेरे प्राण- मेरे जीवनसर्वस्व हैं, मेरा चित्त सदा आपके ही चिन्तनमें | लगा हुआ है-यह जानकर मुझपर प्रसन्न होइये,कृपा कीजिये। हे शंकर! मैंने अनजानमें अथवा जानबूझकर यदि कभी आपका जप और पूजन आदि किया हो, तो आपकी कृपासे वह सफल हो जाय। हे गौरीनाथ! मैं इस समय महान् पापी हूँ और आप सदासे ही परम महान् पतितपावन हैं- इस बातका विचार करके आप जैसा चाहें, वैसा करें। हे महादेव! हे सदाशिव ! वेदों, पुराणों, नाना प्रकारके शास्त्रीय सिद्धान्तों और विभिन्न महर्षियोंने भी अबतक आपको पूर्णरूपसे नहीं जाना है, तो फिर मैं कैसे जान सकता हूँ। हे महेश्वर ! मैं जैसा हूँ, वैसा ही, उसी रूपमें सम्पूर्ण भावसे आपका हूँ, आपके आश्रित हूँ, इसलिये आपसे रक्षा पानेके योग्य हूँ। हे परमेश्वर! आप मुझपर प्रसन्न होइये।' हे मुने! इस प्रकार प्रार्थना करके हाथमें लिये हुए अक्षत और पुष्पको भगवान् शिवके ऊपर चढ़ाकर उन शम्भुदेवको भक्तिभावसे विधिपूर्वक साष्टांग प्रणाम करे। तदनन्तर शुद्ध बुद्धिवाला उपासक शास्त्रोक्त विधिसे इष्टदेवकी परिक्रमा करे। फिर श्रद्धापूर्वक स्तुतियोंद्वारा देवेश्वर शिवकी स्तुति करे। इसके बाद गला बजाकर (गलेसे अव्यक्त शब्दका उच्चारण करके) पवित्र एवं विनीत चित्तवाला साधक भगवान्‌को प्रणाम करे। फिर आदरपूर्वक विज्ञप्ति करे और उसके बाद विसर्जन करे ।। 56-63 ।।

हे मुनिवरो! इस प्रकार विधिपूर्वक पार्थिवपूजा बतायी गयी, जो भोग और मोक्ष देनेवाली तथा भगवान् शिवके प्रति भक्तिभावको बढ़ानेवाली है। जो मनुष्य इस अध्यायका शुद्धचित्तसे पाठ अथवा श्रवण करता है, वह सभी पापोंसे मुक्त होकर सभी कामनाओंको | प्राप्त करता है। यह उत्तम कथा दीर्घायुष्य, आरोग्य, यश, स्वर्ग, पुत्र-पौत्र आदि सभी सुखोंको प्रदान करनेवाली है ।। 64-66 ।।

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] प्रयागमें सूतजीसे मुनियों का शीघ्र पापनाश करनेवाले साधनके विषयमें प्रश्न
  2. [अध्याय 2] शिवपुराणका माहात्म्य एवं परिचय
  3. [अध्याय 3] साध्य-साधन आदिका विचार
  4. [अध्याय 4] श्रवण, कीर्तन और मनन इन तीन साधनोंकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन
  5. [अध्याय 5] भगवान् शिव लिंग एवं साकार विग्रहकी पूजाके रहस्य तथा महत्त्वका वर्णन
  6. [अध्याय 6] ब्रह्मा और विष्णुके भयंकर युद्धको देखकर देवताओंका कैलास शिखरपर गमन
  7. [अध्याय 7] भगवान् शंकरका ब्रह्मा और विष्णु के युद्धमें अग्निस्तम्भरूपमें प्राकट्य स्तम्भके आदि और अन्तकी जानकारीके लिये दोनोंका प्रस्थान
  8. [अध्याय 8] भगवान् शंकरद्वारा ब्रह्मा और केतकी पुष्पको शाप देना और पुनः अनुग्रह प्रदान करना
  9. [अध्याय 9] महेश्वरका ब्रह्मा और विष्णुको अपने निष्कल और सकल स्वरूपका परिचय देते हुए लिंगपूजनका महत्त्व बताना
  10. [अध्याय 10] सृष्टि, स्थिति आदि पाँच कृत्योंका प्रतिपादन, प्रणव एवं पंचाक्षर मन्त्रकी महत्ता, ब्रह्मा-विष्णुद्वारा भगवान् शिवकी स्तुति तथा उनका अन्तर्धान होना
  11. [अध्याय 11] शिवलिंगकी स्थापना, उसके लक्षण और पूजनकी विधिका वर्णन तथा शिवपदकी प्राप्ति करानेवाले सत्कर्मोका विवेचन
  12. [अध्याय 12] मोक्षदायक पुण्यक्षेत्रोंका वर्णन, कालविशेषमें विभिन्न नदियोंके जलमें स्नानके उत्तम फलका निर्देश तथा तीर्थों में पापसे बचे रहनेकी चेतावनी
  13. [अध्याय 13] सदाचार, शौचाचार, स्नान, भस्मधारण, सन्ध्यावन्दन, प्रणव- जप, गायत्री जप, दान, न्यायतः धनोपार्जन तथा अग्निहोत्र आदिकी विधि एवं उनकी महिमाका वर्णन
  14. [अध्याय 14] अग्नियज्ञ, देवयज्ञ और ब्रह्मयज्ञ आदिका वर्णन, भगवान् शिवके द्वारा सातों वारोंका निर्माण तथा उनमें देवाराधनसे विभिन्न प्रकारके फलोंकी प्राप्तिका कथन
  15. [अध्याय 15] देश, काल, पात्र और दान आदिका विचार
  16. [अध्याय 16] मृत्तिका आदिसे निर्मित देवप्रतिमाओंके पूजनकी विधि, उनके लिये नैवेद्यका विचार, पूजनके विभिन्न उपचारोंका फल, विशेष मास, बार, तिथि एवं नक्षत्रोंके योगमें पूजनका विशेष फल तथा लिंगके वैज्ञानिक स्वरूपका विवेचन
  17. [अध्याय 17] लिंगस्वरूप प्रणवका माहात्म्य, उसके सूक्ष्म रूप (अकार) और स्थूल रूप (पंचाक्षर मन्त्र) का विवेचन, उसके जपकी विधि एवं महिमा, कार्यब्रह्मके लोकोंसे लेकर कारणरुद्रके लोकोंतकका विवेचन करके कालातीत, पंचावरणविशिष्ट शिवलोकके अनिर्वचनीय वैभवका निरूपण तथा शिवभक्तोंके सत्कारकी महत्ता
  18. [अध्याय 18] बन्धन और मोक्षका विवेचन, शिवपूजाका उपदेश, लिंग आदिमें शिवपूजनका विधान, भस्मके स्वरूपका निरूपण और महत्त्व, शिवके भस्मधारणका रहस्य, शिव एवं गुरु शब्दकी व्युत्पत्ति तथा विघ्नशान्तिके उपाय और शिवधर्मका निरूपण
  19. [अध्याय 19] पार्थिव शिवलिंगके पूजनका माहात्म्य
  20. [अध्याय 20] पार्थिव शिवलिंगके निर्माणकी रीति तथा वेद-मन्त्रोंद्वारा उसके पूजनकी विस्तृत एवं संक्षिप्त विधिका वर्णन
  21. [अध्याय 21] कामनाभेदसे पार्थिवलिंगके पूजनका विधान
  22. [अध्याय 22] शिव- नैवेद्य-भक्षणका निर्णय एवं बिल्वपत्रका माहात्म्य
  23. [अध्याय 23] भस्म, रुद्राक्ष और शिवनामके माहात्म्यका वर्णन
  24. [अध्याय 24] भस्म-माहात्म्यका निरूपण
  25. [अध्याय 25] रुद्राक्षधारणकी महिमा तथा उसके विविध भेदोंका वर्णन