ऋषिगण बोले- हे सूतजी! आप चिरंजीवी हों। आप धन्य हैं, जो परम शिवभक्त हैं। आपने शुभ फलको देनेवाली शिवलिंगकी महिमा सम्यक् प्रकारसे बतायी। अब आप व्यासजीद्वारा वर्णित भगवान् शिवके सर्वोत्कृष्ट पार्थिव लिंगको महिमाका वर्णन करें ॥ 1-2 ॥
सूतजी बोले- हे ऋषियो! मैं शिवके पार्थिव लिंगकी महिमा बता रहा हूँ, आप लोग भक्ति और आदरसहित इसका श्रवण करें। हे द्विजो! अभीतक बताये हुए सभी शिवलिंगोंमें पार्थिव लिंग सर्वोत्तम है। उसकी पूजा करनेसे अनेक भक्तोंको सिद्धि प्राप्त हुई है ।। 3-4 ll
हे ब्राह्मणो! ब्रह्मा, विष्णु, प्रजापति तथा अनेक ऋषियोंने पार्थिव लिंगकी पूजा करके अपना सम्पूर्ण अभीष्ट प्राप्त किया है। देव, असुर, मनुष्य, गन्धर्व, नाग, राक्षसगण और अन्य प्राणियोंने भी उसकी पूजा करके परम सिद्धि प्राप्त की है ।। 5-6 ।।
सत्ययुगमें मणिलिंग, त्रेतायुगमें स्वर्णलिंग, द्वापरयुगमें पारदलिंग और कलियुगमें पार्थिवलिंगको श्रेष्ठ कहा गया है। भगवान् शिवकी सभी आठ मूर्तियोंमें पार्थिव मूर्ति श्रेष्ठ है। किसी अन्यद्वारा न पूजी हुई (नवनिर्मित) पार्थिव मूर्तिकी पूजा करनेसे तपस्यासे भी अधिक फल मिलता है । ll 7-8 ।।
जैसे सभी देवताओंमें शंकर ज्येष्ठ और श्रेष्ठ कहे जाते हैं, उसी प्रकार सभी लिंगमूर्तियोंमें पार्थिवलिंग श्रेष्ठ कहा जाता है। जैसे सभी नदियोंमें गंगा ज्येष्ठ और श्रेष्ठ कही जाती है, वैसे ही सभी लिंगमूर्तियों पार्थिव लिंग श्रेष्ठ कहा जाता है। जैसे सभी मन्त्रों में प्रणव (ॐ) महान् कहा गया है, उसी प्रकार शिवका यह पार्थिवलिंग श्रेष्ठ, आराध्य तथा पूजनीय होता है। जैसे सभी वर्णोंमें ब्राह्मण श्रेष्ठ कहा जाता है, उसीप्रकार सभी लिंगमूर्तियों में पार्थिवलिंग श्रेष्ठ कहा जाता है। जैसे सभी पुरियोंमें काशीको श्रेष्ठतम कहा गया है, वैसे ही सभी शिवलिंगोंमें पार्थिवलिंग श्रेष्ठ कहा जाता है। जैसे सभी व्रतोंमें शिवरात्रिका व्रत सर्वोपरि है, उसी प्रकार सभी शिवलिंगों में पार्थिवलिंग सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है। जैसे सभी देवियोंमें शैवी शक्ति प्रधान मानी जाती है, उसी प्रकार सभी शिवलिंगोंमें पार्थिवलिंग प्रधान माना जाता है । ll 9 - 15 ॥
जो पार्थिवलिंगका निर्माण करनेके बाद किसी अन्य देवताकी पूजा करता है, उसकी वह पूजा तथा स्नान-दान आदिकी क्रियाएँ व्यर्थ हो जाती हैं। पार्थिव पूजन अत्यन्त पुण्यदायी तथा सब प्रकारसे धन्य करनेवाला, दीर्घायुष्य देनेवाला है। यह तुष्टि, पुष्टि और लक्ष्मी प्रदान करनेवाला है, अतः श्रेष्ठ साधकोंको पूजन अवश्य करना चाहिये ।। 16-17 ।।
उपलब्ध उपचारोंसे भक्ति श्रद्धापूर्वक पार्थिव लिंगका पूजन करना चाहिये; यह सभी कामनाओंकी सिद्धि देनेवाला है जो सुन्दर वेदीसहित पार्थिव लिंगका निर्माण करके उसकी पूजा करता है, वह इस लोकमें धन-धान्यसे सम्पन्न होकर अन्तमें रुद्रलोकको प्राप्त करता है। जो पार्थिवलिंगका निर्माण करके बिल्वपत्रोंसे ग्यारह वर्षतक उसका त्रिकाल पूजन करता है, उसके पुण्यफलको सुनिये। वह अपने इसी शरीरसे रुद्रलोकमें प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। उसके दर्शन और स्पर्शसे मनुष्योंके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह जीवन्मुक्त ज्ञानी और शिवस्वरूप है इसमें संशय नहीं है। उसके दर्शनमात्रसे भोग और मोक्षकी प्राप्ति होती है ॥ 18-22॥
जो पार्थिव शिवलिंगका निर्माण करके जीवनपर्यन्त नित्य उसका पूजन करता है, वह शिवलोक प्राप्त करता है। वह असंख्य वर्षोंतक भगवान् शिवके सान्निध्य में शिवलोक में वास करता है और कोई कामना शेष रहनेपर वह भारतवर्षमें सम्राट् बनता है। | जो निष्कामभावसे नित्य उत्तम पार्थिवलिंगका पूजन करता है, वह सदाके लिये शिवलोकमें वास करता है और शिवसायुज्यको प्राप्त कर लेता है ॥ 23-25 ॥यदि ब्राह्मण पार्थिव शिवलिंगका पूजन नहीं करता है, तो वह अत्यन्त दारुण शूलप्रोत नामक घोर नरकमे जाता है। किसी भी विधिसे सुन्दर पार्थिवलिंगका निर्माण करना चाहिये, किंतु उसमें पंचसूत्रविधान नहीं करना चाहिये ।। 26-27 ॥
उसे अखण्ड रूपमें बनाना चाहिये, खण्डितरूपमें नहीं खण्डित लिंगका निर्माण करनेवाला पूजाका फल नहीं प्राप्त करता है। मणिलिंग, स्वर्णलिंग पारदलिंग, स्फटिकलिंग, पुष्परागलिंग और पार्थिवलिंगको अखण्ड ही बनाना चाहिये ॥ 28-29 ।।
अखण्ड लिंग चरलिंग होता है और दो खण्डवाला अचरलिंग कहा गया है। इस प्रकार चर और अचर लिंगका यह खण्ड अखण्ड विधान कहा गया है। स्थावरलिंगमें वेदिका भगवती महाविद्याका रूप है और लिंग भगवान् महेश्वरका स्वरूप है। इसलिये स्थावर (अचर) - लिंगोंमें वेदिकायुक्त द्विखण्ड लिंग ही श्रेष्ठ माना गया है ।। 30-31 ।।
द्विखण्ड (वेदिकायुक्त) स्थावर लिंगका विधानपूर्वक निर्माण करना चाहिये शिवसिद्धान्तके जाननेवालोंने अखण्ड लिंगको जंगम (चर)-लिंग माना है। अज्ञानतावश ही कुछ लोग चरलिंगको दो खण्डोंमें (वेदिका और लिंग) बना लेते हैं, शास्त्रोंको जाननेवाले सिद्धान्तमर्मज्ञ मुनिजन ऐसा नहीं करते। जो मूजन अचरलिंगको अखण्ड तथा चरलिंगको द्विखण्ड रूपमें बनाते हैं, उन्हें शिवपूजाका फल नहीं प्राप्त होता ॥ 32-34 ॥
इसलिये अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक शास्त्रोक्तविधि चरलिंगको अखण्ड तथा अचरलिंगको द्विखण्ड बनाना चाहिये। अखण्ड चरलिंगमें की गयी पूजासे सम्पूर्ण फलकी प्राप्ति होती है। द्विखण्ड चरलिंगकी पूजा महान् अनिष्टकर कही गयी है। उसी प्रकार अखण्ड अचरलिंगकी पूजासे कामना सिद्ध नहीं होती; उससे तो अनिष्ट प्राप्त होता है ऐसा शास्त्रज्ञ विद्वानोंने कहा है ।। 35-37 ॥