ब्रह्माजी बोले- [ हे नारद!] तदनन्तर मेनाके सामने महातेजस्वी कन्या होकर वे लौकिक गतिका आश्रय लेकर रोने लगीं। हे मुने! उस समय प्रसूति गृहकी शय्याके चारों ओर फैले हुए उनके महान् तेजसे रात्रिके दीपक शीघ्र ही कान्तिहीन हो गये ॥ 1-2 ॥ उनका मनोहर रुदन सुनकर घरकी सब स्त्रियाँ प्रसन्न हो गयीं और शीघ्र ही प्रेमपूर्वक वहाँ चली आयीं ॥ 3 ॥
तब अन्तःपुरके दूतने देवकार्य सम्पन्न करनेवाले, कल्याणकारक तथा सुख देनेवाले पार्वतीजन्मको शीघ्र ही पर्वतराजको बताया। पुत्रीजन्मका समाचार सुनानेवाले अन्तःपुरके दूतको [न्योछावररूपमें] देनेहेतु उन पर्वतराजके लिये श्वेतछत्रतक अदेय नहीं रहा। तत्पश्चात् पुरोहित और ब्राह्मणोंके साथ गिरिराज वहाँ गये और उन्होंने अपूर्व कान्तिसे सुशोभित हुई उस कन्याको देखा ॥ 4-6 ॥
नीलकमलके समान श्यामवर्ण, सुन्दर कान्तिसे युक्त तथा अत्यन्त मनोरम उस कन्याको देखकर ही गिरिराज अत्यन्त प्रसन्न हो गये ॥ 7 ॥
नगरमें रहनेवाले समस्त स्त्री एवं पुरुष परम प्रसन्न हुए। इस समय नगरमें अनेक प्रकारके बाजे बजने लगे और बहुत बड़ा उत्सव होने लगा।मंगलगान होने लगा और वारांगनाएँ नृत्य करने लगीं। गिरिराजने [कन्याका] जातकर्म संस्कारकर द्विजातियोंको दान दिया ।। 8-9 ।।
उसके बाद दरवाजेपर आकर हिमाचलने महान् उत्सव मनाया और प्रसन्नचित्त होकर भिक्षुकको बहुत सा धन दिया ॥ 10 ॥
तदनन्तर हिमवान्ने शुभ मुहूर्तमें मुनियोंके साथ उस कन्याके काली आदि सुखदायक नाम रखे ॥ 11 ll
उन्होंने उस समय ब्राह्मणोंको प्रेम तथा आदरपूर्वक बहुत सा धन प्रदान किया और गानपूर्वक अनेक प्रकारका उत्सव कराया। इस प्रकार उत्सव मनाकर बार-बार कालीको देखते हुए सपत्नीक हिमालय अनेक पुत्रोंवाले होनेपर भी बहुत आनन्दित हुए ।। 12-13 ।।
देवी शिवा गिरिराजके घरमें वर्षा के समय गंगाके समान तथा शरद् ऋतुकी चाँदनीके समान बढ़ने लगीं। इस प्रकार परम सुन्दरी तथा दिव्य दर्शनवाली कालिका देवी प्रतिदिन चन्द्रकलाके समान शोभायुक्त हो बढ़ने लगीं ।। 14-15 ।।
सुशीलता आदि गुणोंसे संयुक्त तथा बन्धुजनोंकी प्रिय उस कन्याको कुटुम्बके लोग अपनी कुलपरम्पराके अनुसार 'पार्वती' इस नामसे पुकारने लगे ॥ 16 ॥
हे मुने! माताने उन कालिकाको 'उमा' कहकर तपस्या करनेसे मना किया था, अतः बादमें वे सुमुखी लोकमें उमा नामसे विख्यात हुईं ॥ 17 ॥
पुत्रवान् होते हुए भी पर्वतराज हिमालय सर्वसौभाग्ययुक्त उस पार्वती नामक अपनी सन्तानको देखते हुए तृप्त नहीं होते थे, क्योंकि हे मुनीश्वर वसन्त ऋतु नाना प्रकारके पुष्पोंमें रस होनेपर भी भ्रमरावली आमके बौरपर ही विशेष रूपसे आसक्त होती है। ll 18-19।।
वे पर्वतराज हिमालय उस पार्वतीसे उसी प्रकार पवित्र तथा विभूषित हुए, जिस प्रकार संस्कारसे युक्त वाणीसे विद्वान् पवित्र तथा विभूषित होता है ॥ 20 ॥
जिस प्रकार महान् प्रभावशाली शिखासे भवनका दीपक एवं त्रिमार्गगामिनी गंगासे सन्मार्ग शोभित होता है, उसी प्रकार पार्वतीद्वारा पर्वतराज |सुशोभित हुए ॥ 21 ॥वे पार्वती बचपनमें अपनी सहेलियोंके साथ कन्दुक (गेंद), कृत्रिम पुत्रों [पुतला] तथा गंगाकी बालुका बनायी गयी वेदियोंद्वारा क्रीड़ा करती थीं ॥ 22 ॥
उसके अनन्तर हे मुने! वे शिवा देवी उपदेशके समय एकाग्रचित्त होकर सद्गुरुसे अत्यन्त प्रीतिपूर्वक सभी विद्याएँ पढ़ने लगीं। जिस प्रकार शरद् ऋतुमें हंसपंक्ति गंगाको तथा रात्रिमें अमृतमयी चन्द्र किरणें औषधियोंको प्राप्त होती हैं, उसी प्रकार उन पार्वतीको पूर्वजन्मकी विद्याएँ स्वयं प्राप्त हो गयीं। हे मुने! इस प्रकार मैंने शिवाकी कुछ लीलाका ही आपसे वर्णन किया, अब अन्य लीलाका भी वर्णन करूँगा, आप प्रेमपूर्वक सुनें ॥ 23 - 25 ॥