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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 3 (पार्वती खण्ड) , अध्याय 9 - Sanhita 2, Khand 3 (पार्वती खण्ड) , Adhyaya 9

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पार्वतीके विवाहके सम्बन्धमें मेना और हिमालयका वार्तालाप, पार्वती और हिमालयद्वारा देखे गये अपने स्वप्नका वर्णन

नारदजी बोले - हे विधे हे तात हे शिवभक्तोंमें श्रेष्ठ! हे प्राज्ञ ! आपने करुणा करके [भगवान् शिवकी] यह अद्भुत कथा कही, उससे [मेरे मनमें] बहुत प्रीति बढ़ी है। हे विधे जब दिव्य दृष्टिवाला मैं अपने स्थानको चला गया, तब हे तात! क्या हुआ? अब कृपाकर उसे मुझे बतलाइये ॥ 1-2 ॥

ब्रह्माजी बोले- हे मुने! आपके स्वर्ग चले जानेपर कुछ समय बीतने पर मेनाने हिमालयके पास आकर उन्हें प्रणाम किया। तत्पश्चात् पुत्रीको प्राणोंसे भी अधिक चाहनेवाली साध्वी गिरिप्रिया मेना वहां बैठकर अपने पति गिरिराजसे विनयपूर्वक कहने लगीं ।। 3-4 ॥

मेना बोलीं- स्त्री स्वभावके कारण मुनिकी बातको मैंने अच्छी तरह नहीं समझा, [मेरी तो यह प्रार्थना है कि] आप कन्याका विवाह किसी सुन्दर वरके साथ कर दीजिये। यह विवाह सर्वथा अपूर्व सुख देनेवाला होना चाहिये। गिरिजाका वर शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न और कुलीन होना चाहिये। मेरी पुत्री मुझे प्राणोंसे भी अधिक प्रिय है। वह प्रिया उत्तम वर पाकर जिस प्रकार भी प्रसन्न और सुखी हो सके, वैसा कीजिये, आपको मेरा नमस्कार है। 5-7॥

ब्रह्माजी बोले- ऐसा कहकर अश्रुयुक्त मुखवाली मेना पतिके चरणोंमें गिर पड़ीं, तब बुद्धिमानोंमें श्रेष्ठ हिमवान् उन्हें उठाकर यथोचित बात कहने लगे-॥ 8 ॥हिमालय बोले- हे देवि ! हे मेनके! मैं यथार्थ और तत्त्वकी बात बताता हूँ, सुनिये। आप भ्रम छोड़िये। मुनिकी बात कभी झूठ नहीं हो सकती। यदि आपको पुत्रीके प्रति स्नेह है, तो उसे सादर शिक्षा दीजिये कि वह भक्तिपूर्वक सुस्थिर चित्तसे शंकरके लिये तप करें। हे मेनके! यदि शिव प्रसन्न होकर कालीका पाणिग्रहण कर लेते हैं, तो सब शुभ ही होगा और नारदजीका बताया हुआ अमंगल नष्ट हो जायगा। शिवके समीप सारे अमंगल सदा मंगलरूप हो जाते हैं, इसलिये आपको शिवकी प्राप्तिके लिये पुत्रीको तपस्या करनेकी शीघ्र शिक्षा देनी चाहिये ॥ 9-12 ॥

ब्रह्माजी बोले [हे नारद।] हिमवान्की यह बात सुनकर मेना परम प्रसन्न हुईं। वे तपस्यामें रुचिका | उपदेश देनेके लिये पुत्रीके पास गयीं। पुत्रीके सुकुमार शरीरपर दृष्टिपात करके मेनाको बड़ी व्यथा हुई और उनके दोनों नेत्रोंमें शीघ्र ही आँसू भर आये ।। 13-14 ।।

तब गिरिप्रिया मेना पुत्रीको उपदेश न दे सकीं, किंतु माताकी उस चेष्टाको वे पार्वती शीघ्र ही समझ गयीं। तदनन्तर वे सर्वज्ञ परमेश्वरी कालिका देवी माताको बार-बार आश्वासन देकर शीघ्र कहने लगीं ॥। 15-16 ॥

पार्वती बोलीं- हे मातः! हे महाप्राज्ञे! सुनिये, आजकी रात्रिके ब्राह्ममुहूर्तमें मैंने एक स्वप्न देखा है, उसे बताती हूँ, आप कृपा करें। हे मातः ! एक दयालु एवं तपस्वी ब्राह्मणने मुझे शिवके निमित्त उत्तम तपस्या करनेका प्रसन्नतापूर्वक उपदेश दिया है ।। 17-18 ।।

ब्रह्माजी बोले – [ हे नारद!] यह सुनकर मेनकाने वहाँ शीघ्र अपने पतिको बुलाकर पुत्रीके देखे हुए उस स्वप्नको पूर्णरूपसे बताया। तब मेनकासे पुत्रीके स्वप्नको सुनकर गिरिराज बड़े प्रसन्न हुए और वाणीसे पत्नीको | समझाते हुए कहने लगे - ॥ 19-20 ॥

गिरिराज बोले- हे प्रिये मैंने भी रातके अन्तिम प्रहरमें एक स्वप्न देखा है, मैं आदरपूर्वक उसे बताता हूँ, आप प्रेमपूर्वक सुनें। नारदजीके द्वारा बताये गये वरके अंगों [ लक्षणों] को धारण करनेवाले एक | परम तपस्वी प्रसन्नताके साथ तपस्या करनेके लिये मेरे नगरके निकट आये। तब मैं भी अति प्रसन्न होकरअपनी पुत्रीको साथ लेकर वहाँ गया। [ उस समय ] मुझे ज्ञात हुआ कि नारदजीके द्वारा बताये हुए वर भगवान् शम्भु ये ही हैं। मैंने उन तपस्वीकी सेवाके लिये अपनी पुत्रीको उपदेश देकर उनसे भी प्रार्थना की कि वे इसकी सेवा स्वीकार करें, परंतु उस समय उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया। इतनेमें वहाँ सांख्य और वेदान्तके अनुसार बहुत बड़ा विवाद छिड़ गया। | तदनन्तर उनकी आज्ञासे मेरी पुत्री वहीं रह गयी और अपने हृदयमें उन्हींकी कामना रखकर भक्तिपूर्वक उनकी सेवा करने लगी। हे सुमुखि! मैंने यही स्वप्न देखा था, जिसे तुम्हें बता दिया। अतः हे मेने हे प्रिये ! कुछ समयतक इस स्वप्नके फलकी परीक्षा करनी चाहिये, इस समय यही उचित जान पड़ता है, अब आप इसीको मेरा निश्चित मत समझिये ॥ 21-27॥ ब्रह्माजी बोले- हे मुनीश्वर यह कहकर वे गिरिराज तथा मेना शुद्धचित हो (कुछ कालपर्यन्त ] स्वप्नफलकी प्रतीक्षा करने लगे ॥ 28 ॥

इसके अनन्तर अभी कुछ ही काल बीता था कि सृष्टिकर्ता तथा सज्जनोंको गति देनेवाले परमेश्वर शिवजी सतीके विरहसे अत्यन्त व्याकुल होकर सर्वत्र घूमते हुए गणोंके साथ तप करनेके लिये प्रेमपूर्वक वहाँ आये सतीके प्रेमविरहमें व्याकुल चित्तवाले वे वहीं अपना तप करने लगे। उस समय पार्वती अपनी दो सखियोंके साथ उन्हें प्रसन्न करनेके लिये उनकी सेवामें लगी रहती थीं ॥ 29-31 ॥

[उस समय ] उन आत्मस्वरूप शिवको मोहित करनेके लिये देवताओंके द्वारा भेजे गये कामदेवके बाणोंसे विद्ध होकर भी भगवान् शम्भु विचलित नहीं हुए ॥ 32 ॥

अपनी नेत्राग्निसे कामदेवको जलाकर मेरे वचनका स्मरणकर वे वहीं अन्तर्धान हो गये ॥ 33 ॥ तत्पश्चात् कुछ समय बीतनेके बाद गिरिजाके अभिमानका नाश करके पुनः उनकी कठोर तपस्यासे प्रसन्न किये गये महेश्वर प्रसन्न हुए ॥ 34 ॥

उसके बाद विष्णुके द्वारा प्रसन्न किये गये रुद्रने लोकाचारका आश्रय लेकर पार्वतीके साथ विवाह किया। उस अवसरपर बहुत मंगल हुआ ॥ 35 ॥पुनः ब्रह्माजी बोले- हे तात! इस प्रकार मैंने संक्षेपमें विभु शंकरका अत्यन्त दिव्य चरित्र [आपसे ] कहा, अब आप और क्या सुनना चाहते हैं ? ॥ 36 ॥

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] पितरोंकी कन्या मेनाके साथ हिमालयके विवाहका वर्णन
  2. [अध्याय 2] पितरोंकी तीन मानसी कन्याओं-मेना, धन्या और कलावतीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त तथा सनकादिद्वारा प्राप्त शाप एवं वरदानका वर्णन
  3. [अध्याय 3] विष्णु आदि देवताओंका हिमालयके पास जाना, उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बाकी स्तुति करना
  4. [अध्याय 4] उमादेवीका दिव्यरूपमें देवताओंको दर्शन देना और अवतार ग्रहण करनेका आश्वासन देना
  5. [अध्याय 5] मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न होकर देवीका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेनासे मैनाकका जन्म
  6. [अध्याय 6] देवी उमाका हिमवान्‌के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, देवीका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे वार्तालाप तथा पुनः नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना
  7. [अध्याय 7] पार्वतीका नामकरण तथा उनकी बाललीलाएँ एवं विद्याध्ययन
  8. [अध्याय 8] नारद मुनिका हिमालयके समीप गमन, वहाँ पार्वतीका हाथ देखकर भावी लक्षणोंको बताना, चिन्तित हिमवान्‌को शिवमहिमा बताना तथा शिवसे विवाह करनेका परामर्श देना
  9. [अध्याय 9] पार्वतीके विवाहके सम्बन्धमें मेना और हिमालयका वार्तालाप, पार्वती और हिमालयद्वारा देखे गये अपने स्वप्नका वर्णन
  10. [अध्याय 10] शिवजीके ललाटसे भौमोत्पत्ति
  11. [अध्याय 11] भगवान् शिवका तपस्याके लिये हिमालयपर आगमन, वहाँ पर्वतराज हिमालयसे वार्तालाप
  12. [अध्याय 12] हिमवान्‌का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा मांगना, शिवद्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना
  13. [अध्याय 13] पार्वती और परमेश्वरका दार्शनिक संवाद, शिवका पार्वतीको अपनी सेवाके लिये आज्ञा देना, पार्वतीका महेश्वरकी सेवामें तत्पर रहना
  14. [अध्याय 14] तारकासुरकी उत्पत्तिके प्रसंगों दितिपुत्र बज्रांगकी कथा, उसकी तपस्या तथा वरप्राप्तिका वर्णन
  15. [अध्याय 15] वरांगीके पुत्र तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुरकी तपस्या एवं ब्रह्माजीद्वारा उसे वरप्राप्ति, वरदानके प्रभावसे तीनों लोकोंपर उसका अत्याचार
  16. [अध्याय 16] तारकासुरसे उत्पीड़ित देवताओंको ब्रह्माजीद्वारा सान्त्वना प्रदान करना
  17. [अध्याय 17] इन्द्रके स्मरण करनेपर कामदेवका उपस्थित होना, शिवको तपसे विचलित करनेके लिये इन्द्रद्वारा कामदेवको भेजना
  18. [अध्याय 18] कामदेवद्वारा असमयमें वसन्त ऋतुका प्रभाव प्रकट करना, कुछ क्षणके लिये शिवका मोहित होना, पुनः वैराग्य भाव धारण करना
  19. [अध्याय 19] भगवान् शिवकी नेत्रज्वालासे कामदेवका भस्म होना और रतिका विलाप, देवताओं द्वारा रतिको सान्त्वना प्रदान करना और भगवान् शिवसे कामको जीवित करनेकी प्रार्थना करना
  20. [अध्याय 20] शिवकी क्रोधाग्निका वडवारूप धारण और ब्रह्माद्वारा उसे समुद्रको समर्पित करना
  21. [अध्याय 21] कामदेवके भस्म हो जानेपर पार्वतीका अपने घर आगमन, हिमवान् तथा मेनाद्वारा उन्हें धैर्य प्रदान करना, नारदद्वारा पार्वतीको पंचाक्षर मन्त्रका उपदेश
  22. [अध्याय 22] पार्वतीकी तपस्या एवं उसके प्रभावका वर्णन
  23. [अध्याय 23] हिमालय आदिका तपस्यानिरत पार्वतीके पास जाना, पार्वतीका पिता हिमालय आदिको अपने तपके विषयमें दृढ़ निश्चयकी बात बताना, पार्वतीके तपके प्रभावसे त्रैलोक्यका संतप्त होना, सभी देवताओंका भगवान् शंकरके पास जाना
  24. [अध्याय 24] देवताओंका भगवान् शिवसे पार्वतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, भगवान्का विवाहके दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करनेपर स्वीकार कर लेना
  25. [अध्याय 25] भगवान् शंकरकी आज्ञासे सप्तर्षियोंद्वारा पार्वतीके शिवविषयक अनुरागकी परीक्षा करना और वह वृत्तान्त भगवान् शिवको बताकर स्वर्गलोक जाना
  26. [अध्याय 26] पार्वतीकी परीक्षा लेनेके लिये भगवान् शिवका जटाधारी ब्राह्मणका वेष धारणकर पार्वतीके समीप जाना, शिव-पार्वती संवाद
  27. [अध्याय 27] जटाधारी ब्राह्मणद्वारा पार्वतीके समक्ष शिवजीके स्वरूपकी निन्दा करना
  28. [अध्याय 28] पार्वतीद्वारा परमेश्वर शिवकी महत्ता प्रतिपादित करना और रोषपूर्वक जटाधारी ब्राह्मणको फटकारना, शिवका पार्वतीके समक्ष प्रकट होना
  29. [अध्याय 29] शिव और पार्वतीका संवाद, विवाहविषयक पार्वतीके अनुरोधको शिवद्वारा स्वीकार करना
  30. [अध्याय 30] पार्वतीके पिताके घरमें आनेपर महामहोत्सवका होना, महादेवजीका नटरूप धारणकर वहाँ उपस्थित होना तथा अनेक लीलाएँ दिखाना, शिवद्वारा पार्वतीकी याचना, किंतु माता-पिताके द्वारा मना करनेपर अन्तर्धान हो जाना
  31. [अध्याय 31] देवताओंके कहनेपर शिवका ब्राह्मण वेषमें हिमालयके यहाँ जाना और शिवकी निन्दा करना
  32. [अध्याय 32] ब्राह्मण वेषधारी शिवद्वारा शिवस्वरूपकी निन्दा सुनकर मेनाका कोपभवनमें गमन शिवद्वारा सप्तर्षियोंका स्मरण और उन्हें हिमालयके घर भेजना, हिमालयकी शोभाका वर्णन तथा हिमालयद्वारा सप्तर्षियोंका स्वागत
  33. [अध्याय 33] वसिष्ठपत्नी अरुन्धती reद्वारा मेना को समझाना तथा
  34. [अध्याय 34] सप्तर्षियोंद्वारा हिमालयको राजा अनरण्यका आख्यान सुनाकर पार्वतीका विवाह शिवसे करनेकी प्रेरणा देना
  35. [अध्याय 35] धर्मराजद्वारा मुनि पिप्पलादकी भार्या सती पद्माके पातिव्रत्यकी परीक्षा, पद्माद्वारा धर्मराजको शाप प्रदान करना तथा पुनः चारों युगोंमें शापकी व्यवस्था करना, पातिव्रत्यसे प्रसन्न हो धर्मराजद्वारा पद्माको अनेक वर प्रदान करना, महर्षि वसिष्ठद्वारा हिमवान्से पद्माके दृष्टान्तद्वारा अपनी पुत्री शिवको सौंपनेके लिये कहना
  36. [अध्याय 36] सप्तर्षियोंके समझानेपर हिमवान्‌का शिवके साथ अपनी पुत्रीके विवाहका निश्चय करना, सप्तर्षियोंद्वारा शिवके पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त बताकर अपने धामको जाना
  37. [अध्याय 37] हिमालयद्वारा विवाहके लिये लग्नपत्रिकाप्रेषण, विवाहकी सामग्रियोंकी तैयारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियोंका दिव्य रूपमें सपरिवार हिमालयके घर आगमन
  38. [अध्याय 38] हिमालयपुरीकी सजावट, विश्वकर्माद्वारा दिव्यमण्डप एवं देवताओंके निवासके लिये दिव्यलोकोंका निर्माण करना
  39. [अध्याय 39] भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना
  40. [अध्याय 40] शिवबरातकी शोभा भगवान् शिवका बरात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान
  41. [अध्याय 41] नारदद्वारा हिमालयगृहमें जाकर विश्वकर्माद्वारा बनाये गये विवाहमण्डपका दर्शनकर मोहित होना और वापस आकर उस विचित्र रचनाका वर्णन करना
  42. [अध्याय 42] हिमालयद्वारा प्रेषित मूर्तिमान् पर्वतों और ब्राह्मणोंद्वारा बरातकी अगवानी, देवताओं और पर्वतोंके मिलापका वर्णन
  43. [अध्याय 43] मेनाद्वारा शिवको देखनेके लिये महलकी छतपर जाना, नारदद्वारा सबका दर्शन कराना, शिवद्वारा अद्भुत लीलाका प्रदर्शन, शिवगणों तथा शिवके भयंकर वेषको देखकर मेनाका मूर्च्छित होना
  44. [अध्याय 44] शिवजीके रूपको देखकर मेनाका विलाप, पार्वती तथा नारद आदि सभीको फटकारना, शिवके साथ कन्याका विवाह न करनेका हठ, विष्णुद्वारा मेनाको समझाना
  45. [अध्याय 45] भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना
  46. [अध्याय 46] नगरमें बरातियोंका प्रवेश द्वाराचार तथा पार्वतीद्वारा कुलदेवताका पूजन
  47. [अध्याय 47] पाणिग्रहण के लिये हिमालयके घर शिवके गमनोत्सवका वर्णन
  48. [अध्याय 48] शिव-पार्वती विवाहका प्रारम्भ, हिमालयद्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तरके रूपमें शिवमाहात्म्य प्रतिपादित करना, हर्षयुक्त हिमालयद्वारा कन्यादानकर विविध उपहार प्रदान करना
  49. [अध्याय 49] अग्निपरिक्रमा करते समय पार्वतीके पदनखको देखकर ब्रह्माका मोहग्रस्त होना, बालखिल्योंकी उत्पत्ति, शिवका कुपित होना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  50. [अध्याय 50] शिवा शिवके विवाहकृत्यसम्पादनके अनन्तर देवियोंका शिवसे मधुर वार्तालाप
  51. [अध्याय 51] रतिके अनुरोधपर श्रीशंकरका कामदेवको जीवित करना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  52. [अध्याय 52] हिमालयद्वारा सभी बरातियोंको भोजन कराना, शिवका विश्वकर्माद्वारा निर्मित वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल जनवासेमें आगमन
  53. [अध्याय 53] चतुर्थीकर्म, बरातका कई दिनोंतक ठहरना, सप्तर्षियोंके समझानेसे हिमालयका बरातको विदा करनेके लिये राजी होना, मेनाका शिवको अपनी कन्या सौंपना तथा बरातका पुरीके बाहर जाकर ठहरना
  54. [अध्याय 54] मेनाकी इच्छा अनुसार एक ब्राह्मणपत्नीका पार्वतीको पातिव्रतधर्मका उपदेश देना
  55. [अध्याय 55] शिव-पार्वती तथा बरातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और शिव विवाहोपाख्यानके श्रवणकी महिमा