नारदजी बोले - हे ब्रह्मन्! अपने पिताके यज्ञमें शरीरका त्यागकर दक्षकन्या सती देवी जगदम्बा किस प्रकार हिमालयकी पुत्री बनीं और किस तरह अत्यन्त उग्र तपस्या करके उन्होंने शिवजीको पतिरूपमें प्राप्त किया? मैं यह आपसे पूछ रहा हूँ, आप विशेष रूपसे बताइये 1-2 ॥
ब्रह्माजी बोले- हे मुनिश्रेष्ठ! आप शिवाके परम पावन, दिव्य, सभी पापोंको दूर करनेवाले, | कल्याणकारी तथा उत्तम चरित्रको सुनिये ॥ 3 ॥
दक्षकन्या सती देवी जब प्रसन्नचित्त होकर शिवजीके साथ हिमालय पर्वतपर लीलापूर्वक क्रीड़ा करती थीं, उस समय मातृप्रेमसे भरी हुई हिमालयकी प्रिया मेना 'सम्पूर्ण सिद्धियोंसे युक्त यह मेरी पुत्री है' ऐसा समझकर उनकी सेवामें संलग्न रहती थीं ॥। 4-5 ।।
हे मुने! दक्षकन्या सती देवीने जब पिता दक्षके द्वारा अपमानित होकर क्रोधित हो यज्ञमें अपना शरीर त्याग दिया, उस समय हिमालयप्रिया मेना शिवलोकमें स्थित उन भगवती सतीकी आराधना करना चाह रही थीं ॥ 6-7 ॥
उन्होंके गर्भसे मैं पुत्रीके रूपमें उत्पन्न होऊँ- ऐसा हृदयमें विचार करके शरीरका त्याग करनेवाली सतीने हिमालयकी पुत्री होनेके लिये मनमें निश्चय किया ॥ 8 ॥
देहत्यागके अनन्तर समय आनेपर सभी देवताओंके द्वारा स्तुत वे भगवती सती प्रसन्नतापूर्वक मेनका (मेना) की पुत्रीके रूपमें उत्पन्न हुई ॥ 9 ॥
उन देवीका नाम पार्वती हुआ। उन्होंने नारदके | उपदेशसे अत्यन्त कठोर तपस्याकर पुनः शिवजीको | पतिरूपमें प्राप्त किया ॥ 10 ॥नारदजी बोले - हे ब्रह्मन् ! हे विधे! हे महाप्राज्ञ ! हे वक्ताओंमें श्रेष्ठ! आप मुझसे मेनकाकी उत्पत्ति, उनके विवाह तथा चरित्रका वर्णन कीजिये ॥ 11 ॥ जिनसे भगवती सतीने पुत्रीके रूपमें जन्म लिया, वे मेनका देवी धन्य हैं। इसीलिये वे पतिव्रता मेना सभी लोगोंकी मान्य और धन्य हैं ॥ 12 ॥ ब्रह्माजी बोले- हे नारद! हे मुने! आप पार्वतीकी माताके जन्म, विवाह एवं अन्य भक्तिवर्धक पावन चरित्रको सुनिये। हे मुनिश्रेष्ठ! उत्तर दिशामें पर्वतोंका राजा हिमालय नामक महान् पर्वत है। जो महातेजस्वी और समृद्धिशाली है ॥ 13-14 ॥
जंगम तथा स्थावरभेदसे उसके दो रूप प्रसिद्ध मैं उसके सूक्ष्म स्वरूपका संक्षेपमें वर्णन कर रहा हूँ। वह पर्वत रमणीय एवं अनेक प्रकारके रत्नोंका आकर (खान) हैं, जो पूर्व तथा पश्चिम समुद्रके भीतर प्रवेश करके पृथ्वीके मानदण्डकी भाँति स्थित है ।। 15-16 ।।
वह नाना प्रकारके वृक्षोंसे व्याप्त है, अनेक शिखरोंके कारण विचित्र शोभासे सम्पन्न है और सुखी सिंह, व्याघ्र आदि पशुओंसे सदा सेवित रहता है ॥ 17 ॥
वह हिमका भण्डार है, अत्यन्त उग्र है, अनेक आश्चर्यजनक दृश्योंके कारण विचित्र है; देवता, ऋषि, सिद्ध और मुनि उसपर रहते हैं तथा वह भगवान् शिवको बहुत ही प्रिय है ।। 18 ।।
वह तप करनेका स्थान है, अत्यन्त पावन है, | महात्माओं को भी पवित्र करनेवाला है, तपस्या में अत्यन्त शीघ्र सिद्धि प्रदान करता है, अनेक प्रकारकी धातुओंकी खान है और शुभ है। वह दिव्य रूपवाला है, सर्वांगसुन्दर है, रमणीय है, शैलराजोंका भी राजा है, विष्णुका अंश है, विकाररहित एवं सज्जन पुरुषोंका प्रिय है ।। 19-20 ।।
उस पर्वतने अपनी कुलपरम्पराकी स्थितिके लिये, धर्मकी अभिवृद्धिके लिये और देवताओं तथा | पितरोंका हित करनेकी अभिलाषासे अपना विवाह करनेकी इच्छा की। हे मुनीश्वर! उसी समय देवतागण । | अपने पूर्ण स्वार्थका विचार करके दिव्य पितरोंके पास | आकर उनसे प्रसन्नतापूर्वक कहने लगे- ।। 21-22 ।।देवता बोले- हे पितरो! आप सभी प्रसन्नचित्त होकर हमारी बात सुनें और यदि आपलोगोंको | देवताओंका कार्य करना अभीष्ट हो, तो शीघ्र वैसा ही करें ।। 23 ।।
आपलोगोंकी मेना नामक जो ज्येष्ठ पुत्री प्रसिद्ध है, वह मंगलरूपिणी है, उसका विवाह आपलोग अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक हिमालय नामक पर्वतसे कर दीजिये। ऐसा करनेपर सभी लोगोंका महान् लाभ होगा और आपलोगोंके तथा देवताओंके दुःखोंका निवारण भी पग-पगपर होता रहेगा ।। 24-25 ॥
ब्रह्माजी बोले- देवताओंकी यह बात सुनकर पितरोंने परस्पर विचार करके कन्याओंके शापका स्मरण करके इस बातको स्वीकार कर लिया ॥ 26 ॥ उन लोगोंने अपनी कन्या मेनाका विवाह विधिपूर्वक हिमालयके साथ कर दिया; उस मंगलमय विवाहमें महान् उत्सव हुआ ॥ 27 ॥ वामदेव शंकरका स्मरणकर विष्णु आदि देवता तथा समस्त मुनिगण उस विवाहमें आये ॥ 28 ॥
उन लोगोंने अनेक प्रकारके दान देकर उत्सव करवाया, तदनन्तर वे दिव्य पितरोंकी प्रशंसा करके हिमालयकी प्रशंसा करने लगे ॥ 29 ॥
इसके बाद परम आनन्दसे युक्त वे सभी देवता तथा मुनीश्वर शिवा एवं शिवका स्मरण करते हुए अपने- अपने निवासस्थानको चले गये॥ 30 ॥ उधर, पर्वतराज हिमालय भी अनेक प्रकारके उपहार प्राप्तकर उस प्रिया मेनाके साथ विवाह करके अपने घर आये और परम प्रसन्न हुए ॥ 31 ॥
ब्रह्माजी बोले- हे मुनीश्वर! मैंने मेनाके साथ हिमालयके सुखद पवित्र विवाहका वर्णन कर दिया। अब आप और क्या सुनना चाहते हैं ? ॥ 32 ॥