नारदजी बोले - हे महाप्राज्ञ ! हे विधे! अब आदर-पूर्वक मेनाकी उत्पत्तिका वर्णन कीजिये और शापके भी विषयमें बताइये, इस प्रकार मेरे सन्देहको दूर कीजिये ॥ 1 ॥ ब्रह्माजी बोले- हे नारद! हे सुतवर्य! हे महाबुध! आप इन मुनिगणोंके साथ विवेकपूर्वक मेनाकी उत्पत्तिके वृत्तान्तको अत्यन्त प्रेमपूर्वक सुनिये, मैं कह रहा हूँ ॥ 2 ॥
हे मुने। मैंने अपने दक्ष नामक जिन पुत्रकी चर्चा | पहले की थी उनके यहाँ सृष्टिकी कारणभूता साठ | कन्याएँ उत्पन्न हुईं ॥ 3 ॥
उन्होंने उन कन्याओंका विवाह श्रेष्ठ कश्यप आदिके साथ किया। हे नारद! यह सारा वृत्तान्त आपको विदित ही है, अब प्रस्तुत कथाका श्रवण कीजिये ॥ 4 ॥
उन्होंने उनमेंसे स्वधा नामकी कन्या पितरोंको दी। उस स्वभासे धर्ममूर्तिरूपा सौभाग्यवती तीन कन्याएँ उत्पन्न हुई। हे मुनीश्वर उन कन्याओंके पवित्र, सदा विघ्नोंका हरण करनेवाले तथा महामंगल प्रदान करनेवाले नामोंको मुझसे सुनिये ।। 5.6 ।।
सबसे बड़ी कन्याका नाम मेना, मझली कन्याका नाम धन्या तथा अन्तिम कन्याका नाम कलावती था ये सभी कन्याएँ पितरोंके मनसे प्रादुर्भूत हुई थीं ॥ 7 ॥ ये अयोनिजा कन्याएँ लोकाचारके अनुसार स्वधाकी पुत्रियाँ कही गयी हैं। इनके पवित्र नामोंका उच्चारण करके मनुष्य समस्त कामनाओंको प्राप्त कर लेता है ॥ 8 ॥
वे जगत्की वन्दनीया, लोकमाता, परमानन्दको | देनेवाली, योगिनीस्वरूपा, उत्कृष्ट, ज्ञानकी निधि तथा तीनों लोकोंमें विचरण करनेवाली हुई ॥ 9 ॥
हे मुनीश्वर ! एक समयकी बात है-वे तीनों बहनें भगवान् विष्णुके निवासस्थान श्वेतद्वीपमें उनके दर्शन के लिये गयीं। भक्तिपूर्वक विष्णुको प्रणाम तथा उनकी स्तुति करके वे उनकी आज्ञासे वहीं रुक गयीं। | उस समय बहुत बड़ा समाज एकत्रित था ।। 10-11 ॥हे मुने! उसी अवसरपर [मुझ) ब्रह्माके पुत्र सनकादि सिद्धगण भी वहाँ गये और श्रीहरिको प्रणामकर वहीं उनकी आज्ञासे बैठ गये। तब सभी लोग सनकादि मुनियोंको देखकर वहाँ बैठे हुए लोकवन्दित देवता आदिको प्रणाम करके शीघ्र उठ खड़े हुए। ll 12-13 ।।
किंतु हे मुने! वे तीनों बहनें परात्पर शंकरकी मायासे मोहित होनेके कारण प्रारब्धसे विवश हो नहीं उठीं ॥ 14ll
शिवजीकी माया अत्यन्त प्रबल हैं, जो सब लोकोंको मोहित करनेवाली है। समस्त संसार उसीके अधीन है, वह शिवकी इच्छा कही जाती है ॥ 15 ॥
उसीको प्रारब्ध भी कहा जाता है, उसके अनेक नाम हैं। वह शिवकी इच्छासे ही प्रवृत्त होती है, इसमें सन्देह नहीं है। उसी [शिवमाया] के अधीन होकर उन कन्याओंने सनक आदिको प्रणाम नहीं किया। वे केवल उन्हें देखकर विस्मित हो बैठी रह गयीं ॥ 16-17 ।।
ज्ञानी होते हुए भी सनकादि मुनीश्वरोंने उनके उस प्रकारके व्यवहारको देखकर अत्यधिक असह्य क्रोध किया। तब शिवजीकी इच्छासे मोहित हुए योगीश्वर सनत्कुमार क्रोधित होकर दण्डित करनेवाला शाप देते हुए उनसे कहने लगे- ॥ 18-19 ॥
सनत्कुमार बोले- तुम तीनों बहनें पितरोंकी कन्या हो, तथापि मूर्ख, सद्ज्ञानसे रहित और वेदतत्त्वके ज्ञानसे शून्य हो ॥ 20 ॥
अभिमानमें भरी हुई तुमलोगोंने न तो हमारा अभ्युत्थान किया और न ही अभिवादन किया, तुमलोग नरभावसे मोहित हो गयी हो, अतः इस स्वर्गसे दूर चली जाओ और अज्ञानसे मोहित होनेके कारण तुम तीनों ही मनुष्योंकी स्त्रियाँ बनो। इस प्रकार तुमलोग अपने कर्मके प्रभावसे इस प्रकारका फल प्राप्त करो ।। 21-22 ॥
ब्रह्माजी बोले- यह सुनकर वे साध्वी कन्याएँ आश्चर्यचकित हो गर्यो और उनके चरणोंमें गिरकर | विनम्रतासे सिर झुकाकर कहने लगीं ॥ 23 ॥
पितृकन्याएँ बोलीं- हे मुनिवर्य! हे दयासागर! अब हमलोगोंपर प्रसन्न हो जाइये, हमलोगोंने मूढ़ होनेके कारण आपको श्रद्धासे प्रणाम नहीं किया ll 24 llहे विप्र! अतः हमलोगोंने उसका फल पाया। हे महामुने! इसमें आपका दोष नहीं है। आप हमलोगोंपर दया कीजिये, जिससे हमलोगोंको पुनः स्वर्गलोककी प्राप्ति हो ॥ 25 ॥
ब्रह्माजी बोले- हे तात! तब उनकी यह बात सुनकर प्रसन्नचित्त वे मुनि शिवजीकी मायासे प्रेरित हो शापसे उद्धारका उपाय कहने लगे ॥ 26 ॥
सनत्कुमार बोले- हे पितरोंकी तीनों कन्याओ! तुमलोग प्रसन्नचित्त होकर मेरी बात सुनों, यह तुम्हारे शोकका नाश करनेवाली और सदा ही तुम्हें सुख प्रदान करनेवाली है ॥ 27 ॥
तुममें से जो ज्येष्ठ है, वह विष्णुके अंशभूत हिमालय
गिरिकी पत्नी होगी और पार्वती उसकी पुत्री होंगी ॥ 28 ॥ योगिनीस्वरूपा धन्या नामक दूसरी कन्या राजा जनककी पत्नी होगी, उसकी कन्या महालक्ष्मी होंगी, जिनका नाम सीता होगा। सबसे छोटी कन्या कलावती वैश्य वृषभानकी पत्नी होगी, जिसकी पुत्रीके रूपमें द्वापरके अन्तमें राधाजी प्रकट होंगी ।। 29-30।।
योगिनी मेनका पार्वतीके वरदानसे अपने पतिके साथ उसी शरीरसे परम पद कैलासको जायगी तथा यह धन्या जनकवंशमें उत्पन्न जीवन्मुक्त तथा महायोगी सीरध्वजको पतिरूपमें प्राप्तकर सीताको जन्म देगी तथा वैकुण्ठधामको जायगी ।। 31-32 ॥
वृषभानके साथ विवाह होनेके कारण जीवन्मुक्त कलावती भी अपनी कन्याके साथ गोलोक जायगी,
इसमें संशय नहीं है ॥ 33 ॥
[इस संसारमें] बिना विपत्तिके किसको कहाँ महत्त्व प्राप्त होगा। उत्तम कर्म करनेवालोंके दुःख दूर हो जानेपर उन्हें दुर्लभ सुख प्राप्त होता है ॥ 34 ॥ तुमलोग पितरोंकी कन्याएँ हो और स्वर्गमें विलास करनेवाली हो। अब विष्णुका दर्शन हो जानेसे तुमलोगोंके कर्मका क्षय हो गया है ॥ 35 ॥ यह कहकर क्रोधरहित हुए मुनीश्वरने ज्ञान, तथा मोक्ष प्रदान करनेवाले शिवजीका स्मरण करके भोग पुनः कहा—[हे पितृकन्याओ!] तुमलोग प्रीतिपूर्वक मेरी दूसरी बात भी सुनो, जो अत्यन्त सुखदायक | शिवजीमें भक्ति रखनेवाली तुमलोग सदा धन्य, मान्य और बार बार पूजनीय हो । ll 36-37 ।।मेनाकी कन्या जगदम्बिका पार्वती देवी परम कठोर तपकर शिवजीकी पत्नी होंगी, धन्याकी पुत्री कही गयी सीता [भगवान्] रामकी पत्नी होंगी, जो लौकिक आचारका आश्रय लेकर उनके साथ विहार करेंगी और साक्षात् गोलोकवासिनी कलावतीपुत्री राधा अपने गुप्त स्नेहसे बंधी हुई श्रीकृष्णकी पत्नी होंगी। ll 38-40 ll
ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार कहकर सबके | द्वारा स्तुत वे भगवान् सनत्कुमार मुनि अपने भाइयोंसहित वहीं अन्तर्हित हो गये ॥ 41 ॥
हे तात पितरोंकी मानसी कन्याएँ वे तीनों बहनें पापरहित हो सुख पाकर तुरंत अपने धामको चली गर्यो ॥ 42 ॥