नारदजी बोले - हे ब्रह्मन् ! हे महाप्राज्ञ ! अब आप मुझे बताइये कि सम्पूर्ण समाचार सुन लेनेपर महादेवीने क्या किया? उसे ठीक-ठीक सुनना चाहता हूँ॥ 1 ॥ ब्रह्माजी बोले- हे मुनिश्रेष्ठ! उसके बाद जगदम्बाका जो चरित्र हुआ, उसे अब मैं सम्पूर्ण रूपसे कह रहा हूँ, सुनिये ॥ 2 ॥
गणाधिप उस गणेशके मार दिये जानेपर शिवजीके गणोंने मृदंग एवं पटह बजाये तथा महान् उत्सव किया ॥ 3 ॥
हे मुनीश्वर शिवजी भी गणेशजीका शिरश्छेदनकर ज्यों ही दुखी हुए, उसी समय गिरिजादेवी अत्यन्त क्रोधित हो गयीं ॥ 4 ॥
उन्होंने कहा- हाय, मैं क्या करूँ, कहाँ जाऊँ? मुझे बहुत बड़ा दुःख उत्पन्न हो गया है। इसके मरनेसे तो मुझे बड़ा क्लेश हुआ, वह दुःख किस प्रकारसे दूर हो सकता है ! ॥ 5 ॥सभी देवताओं तथा गणोंने मेरे पुत्रको मार डाला है। अतः मैं उनका नाश कर दूँगी अथवा प्रलय कर दूँगी ॥ 6 ॥
इस प्रकार दुखी हुई उन सर्वलोकमहेश्वरीने उसी क्षण कुपित होकर करोड़ों शक्तियोंको उत्पन्न किया ॥ 7 ॥
तेजसे जाज्वल्यमान उन उत्पन्न हुई शक्तियोंने जगदम्बा पार्वतीको नमस्कारकर कहा- हे मातः ! आज्ञा दीजिये ॥ 8 ॥
हे मुनीश्वर! यह सुनकर शम्भुकी शक्ति महामाया प्रकृतिने क्रोधमें भरकर उन सभी शक्तियोंसे कहा- ॥ 9 ॥
देवी बोलीं- हे शक्तियो! हे देवियो! तुम सब मेरी आज्ञासे प्रलय कर डालो; इसमें आप सभीको विचार नहीं करना चाहिये ॥ 10 ॥
हे सखियो ! तुमलोग देवता, ऋषि, यक्ष, राक्षस और अपने तथा दूसरे सबको हठपूर्वक खा डालो ॥ 11 ॥
ब्रह्माजी बोले- तब पार्वतीकी आज्ञा पाते ही वे सभी शक्तियाँ क्रोधमें भरकर देवता आदि सभीका संहार करनेके लिये उद्यत हो गयीं ॥ 12 ॥
जिस प्रकार अग्नि तृणोंका संहार कर देती है, उसी प्रकार वे समस्त शक्तियाँ भी संहार करने लगीं ॥ 13 ॥ [शिवके] गणाधिप, विष्णु, ब्रह्मा, शंकर, इन्द्र, यक्षराज, स्कन्द अथवा सूर्य आदिका वे निरन्तर संहार करने लगीं। जहाँ-जहाँ दृष्टि जाती, वहाँ वहाँ केवल शक्तियाँ ही दिखायी पड़ती थीं ।। 14-15 ॥
उस समय कराली, कुब्जका, खंजा, लम्बशीर्षा आदि अनेक शक्तियाँ देवताओंको हाथसे पकड़कर मुखमें डालने लगीं ॥ 16 ॥
उस संहारको देखकर हर, ब्रह्मा, हरि तथा इन्द्रादि सभी देवतागण एवं ऋषि इस सन्देहमें पड़ गये कि क्या देवी अकालमें ही प्रलय कर देंगी ? इस प्रकार उनमें जीवनकी आशा समाप्त सी हो गयी। ll 17-18 ॥
सभी लोगोंने मिलकर कहा कि अब हमें क्या | करना चाहिये-सब लोग इसपर विचार करें। इस प्रकार परस्पर विचार करते हुए वे कहने लगे ॥ 19 ॥यदि गिरिजादेवी प्रसन्न हो जायँ तो शान्ति हो सकती है अन्यथा करोड़ों उपायोंसे भी शान्ति सम्भव नहीं है ॥ 20 ॥ अनेक प्रकारकी लीलाओंको करनेमें प्रवीण शिवजी भी सबको मोहित करते हुए लौकिक गतिका आश्रय लेकर दुःखमें पड़ गये ॥ 21 ॥ किंतु सभी देवताओंकी कमर उस समय टूट गयी, जब पार्वतीके पास जानेका प्रश्न उठा। उन्होंने सोचा कि पार्वती साक्षात् क्रोधकी मूर्ति हैं, कोई भी
उनके सामने जानेका साहस नहीं कर सकता है ।। 22 ।।
हे मुने! उस समय देवता, दानवगण, दिक्पाल, यक्ष, किन्नर, मुनि, विष्णु, ब्रह्मा एवं महाप्रभु शंकर आदि तथा अपना पराया कोई भी गिरिजाके सामने खड़ा होने में समर्थ नहीं हुआ ll 23-24 ॥
सभी ओरसे पार्वतीके जलते हुए उस दाहक तेजको देखकर सभी लोग दूर खड़े हो गये ॥ 25॥
हे मुने! उसी समय दिव्य दर्शनवाले आप नारद देवगणोंको सुखी करने वहाँ पहुँच गये। पास आकर मुझ ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकरको प्रणामकर सबके साथ मिलकर आप कहने लगे कि सोच-विचारकर ही कोई काम करना चाहिये ।। 26-27 ।।
उसके बाद सभी देवताओंने आप महात्माके साथ मन्त्रणा की कि इस दुःखकी शान्ति किस प्रकार होगी; इसके बाद उन्होंने कहा- जबतक गिरिजादेवी कृपा नहीं करेंगी, तबतक दुःखकी शान्ति सम्भव नहीं है, इसमें कोई विचार नहीं करना चाहिये ll 28-29 ।।
उसके बाद सभी ऋषि आपको साथ लेकर पार्वतीके पास गये और क्रोध शान्त करनेके लिये शिवाको प्रसन्न करने लगे ॥ 30 ll सभीने बारम्बार प्रणाम किया और अनेक स्तोत्रोंसे स्तुति करके उन्हें प्रसन्न करते हुए देवगणोंकी आज्ञासे प्रेमपूर्वक कहा- ॥ 31 ॥
देवर्षि बोले- हे जगदम्ब! आपको नमस्कार है, आप शिवाको नमस्कार है, आप चण्डिकाको नमस्कार है, आप कल्याणीको नमस्कार है ॥ 32 ॥
हे अम्ब! आप ही आदिशक्ति हैं, आप ही सर्वदा सृष्टि करनेवाली, पालन करनेवाली तथा प्रलय | करनेवाली शक्ति हैं ॥ 33 ॥हे देवेशि ! आप प्रसन्न हों, शान्ति कीजिये । आपको नमस्कार है, हे देवि! आपके क्रोधसे सारा त्रैलोक्य विकल हो रहा है ॥ 34 ॥
ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार आप सभी ऋषियोंने मिलकर पराम्बाकी स्तुति की, तब भी क्रोधपूर्ण दृष्टिसे उनकी ओर देखती हुई उन शिवाने कुछ भी नहीं कहा ।। 35 ।।
पुनः सभी ऋषियोंने उनके चरणकमलको नमस्कारकर परम भक्तिसे हाथ जोड़कर धीरेसे शिवासे कहा- ॥ 36 ॥
ऋषिगण बोले- हे देवि ! क्षमा कीजिये, क्षमा कीजिये। इस समय प्रलय होना चाहता है। हे अम्बिके! आपके स्वामी यहीं पर स्थित हैं, देखिये, देखिये ॥ 37 ॥
हम कौन हैं? ये ब्रह्मा, विष्णु आदि देवता कौन हैं? वस्तुतः हम सब आपकी प्रजाएँ हैं और हाथ जोड़कर खड़े हैं ॥ 38 ॥
हे परमेश्वरि ! हम सभीका अपराध क्षमा कीजिये। हे शिवे ! सभी लोग व्याकुल हैं, अतः इनकी शान्ति कीजिये ॥ 39 ॥
ब्रह्माजी बोले- ऐसा कहकर सभी ऋषिगण अत्यन्त दीनतासे व्याकुल हो अम्बिकाके सामने हाथ जोड़े हुए खड़े रहे ।। 40 ।।
इस प्रकार उनका वचन सुनकर चण्डिका प्रसन्न हो गयीं और करुणार्द्रचित्त हो ऋषियोंसे कहने लग - ॥ 41 ॥
देवी बोलीं- यदि मेरा पुत्र जीवित हो जाय और तुमलोगोंके बीच प्रथम पूज्य हो, तो यह संहार नहीं होगा। यह आजसे सबका अध्यक्ष हो जाय और यदि तुमलोग उसे ऐसा कर दो तो लोकमें शान्ति हो सकती है अन्यथा तुमलोगोंको सुखकी प्राप्ति नहीं होगी ॥ 42-43 ।।
ब्रह्माजी बोले- [भगवतीके द्वारा ] इस प्रकार कहे | जानेपर आप सभी ऋषियोंने आ करके देवगणोंके समीप जाकर उन देवताओंसे सारा वृत्तान्त निवेदन किया ll 44 ll
तब यह सुनकर दुःखित इन्द्रादि सभी देवगणोंने हाथ जोड़कर प्रणाम करके [ इस वृत्तान्तको] शंकरसे निवेदित किया ll 45 ॥यह सुनकर शिवजीने भी देवताओंसे कहा
हमलोगोंको भी वही करना चाहिये, जिससे सारे
संसारका कल्याण हो ॥ 46 ॥ अतः आपलोग उत्तर दिशाकी ओर जाइये और सर्वप्रथम जो मिले, उसका सिर लाकर इसके धड़में जोड़ दीजिये ॥ 47 ॥
ब्रह्माजी बोले- तदनन्तर शिवकी आज्ञा पालन करनेवाले देवताओंने ऐसा ही किया। गणेशजीका शरीर लाकर विधिपूर्वक उसका प्रक्षालन करके उसकी पूजाकर वे उत्तर दिशाकी ओर चल दिये, वहींपर उन्हें सर्वप्रथम एक दाँतवाला हाथी मिला । ll 48-49 ।।
तब उसीका सिर लेकर उन्होंने गणेशके शरीरमें जोड़ दिया। सिर जोड़कर सभी देवताओंने ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकरको प्रणाम करके यह वचन कहा- आपने जैसा कहा था, वैसा हमने किया, अब इसके बाद जो कार्य शेष हो, उसे आपको करना चाहिये ।। 50-51 ll
इसके बाद शिवके गण तथा देवता सुखपूर्वक सुशोभित हुए। पुनः शिवजीने जैसा कहा वैसा ही उन लोगोंने पालन किया ।। 52 ।।
तब ब्रह्मा, विष्णु आदि देवगण अपने प्रभु निर्गुण ब्रह्म ईश्वर शिवको प्रणाम करके उनसे बोले- जिस प्रकार हम महात्मालोग आपके तेजसे उत्पन्न हुए हैं, उसी प्रकार आपका तेज वेदमन्त्रोंके प्रभावसे इस शरीरमें भी प्रकट हो जाय ।। 53-54 ll
इस प्रकार उन लोगोंने शिवजीका स्मरण करके मन्त्र के द्वारा अभिमन्त्रित उत्तम जलको गणेशके शरीरपर छिड़का ॥ 55 ॥
उस जलके स्पर्शमात्रसे ही वह बालक शिवजीकी इच्छासे चेतनायुक्त हो जीवित हो गया और सोये हुएकी भाँति उठ बैठा ॥ 56 ॥
वह सुभग, अत्यन्त सुन्दर, हाथीके मुखवाला, लाल वर्णवाला, प्रसन्न मुखमण्डलवाला, अत्यन्त तेजस्वी तथा मनोहर आकृतिवाला था ॥ 57॥
हे मुनीश्वर उस बालक पार्वतीपुत्रको जीवित | देखकर सभी लोग अत्यन्त प्रसन्न हो गये और सबका | दुःख नष्ट हो गया ll 58 ॥इसके बाद हर्षसे युक्त सभी लोगोंने देवीको उसे दिखाया और अपने पुत्रको जीवित देखकर देवी अत्यन्त प्रसन्न हुईं ॥ 59 ॥