नारदजी बोले हे महामुने। भार्यासहित अनिरुद्ध तथा श्रीकृष्णजीके द्वारकापुरीमें चले जानेपर बाणासुरने क्या किया, इसको आप कहिये ॥ 1 ॥ सनत्कुमार बोले- भार्यासहित अनिरुद्ध तथा श्रीकृष्णके द्वारका चले जानेपर बाणासुर मन-ही-मन अपने अज्ञानका स्मरण करता हुआ अत्यन्त दुखी हुआ ॥ 2 ॥ तब शिवजीके गण नन्दीने रक्तसे संलिप्त शरीरवाले, पश्चात्तापयुक्त तथा दुखी दैत्य बाणासुरसे कहा-ll 3 ॥
नन्दीश्वर बोले- हे शिवके भक्त बाणासुर! तुम दुखी न होओ, भगवान् शिवजी भक्तोंपर कृपा करनेवाले भक्तवत्सल नामधारी हैं। हे भक्तोंमें श्रेष्ठ! जो कुछ हुआ, उनकी इच्छासे हुआ है, इस प्रकार चित्तमें मानकर बारंबार शिवजीका स्मरण करो ।। 4-5 ।।
उन आदिदेव शिवजीमें मन लगाकर नित्य भक्तोंपर दया करनेवाले महादेवका बारंबार उत्सव करो ॥ 6 ॥ उसके बाद नन्दीके कहनेसे द्वेषरहित होकर वह दैत्य बाणासुर हर्षित हो धैर्य धारणकर शीघ्र शिवजीके स्थानको चला गया ॥ 7 ॥
वहाँ जाकर प्रभुको नमस्कारकर गर्वरहित होकर प्रेमसे पूर्ण मनवाला बाणासुर विह्वल होकर रोने लगा और अनेक स्तोत्रों तथा स्तुतियोंसे नमस्कार करता हुआ, यथोचित चरणन्यासकर हाथोंको चलाता हुआ, अनेक प्रकारके आली आदि स्थानकों तथा प्रत्यालीढ आदि मुद्राओंसे शोभित ताण्डव नृत्य करने लगा ॥ 8-10 ॥
वह सहस्रों मुखके बाजोंको बजाने, भौंह चलाने, सिरको कैंपाने तथा सहस्रों प्रकारसे अंग चलाने लगा। धीरे-धीरे अनेक प्रकारके नृत्योंको दिखाकर तथा रुधिरकी धाराओंसे भूमिको सींचकर अपनी गति तथा अहंकारको विस्मृत किये हुए उस महाभक्त बाणासुरने चन्द्रशेखर शिवको प्रसन्न किया ।। 11-13 ॥
तब नृत्यगीतप्रिय भक्तवत्सल भगवान् शिवजीने प्रसन्न होकर सुन्दर नृत्य करनेवाले बाणासुरसे कहा-ll 14 ॥रुद्र बोले- हे बाणासुर। हे बलिपुत्र हे तात! मैं तुम्हारे इस नृत्यसे प्रसन्न हूँ। हे दैत्येन्द्र। तुम्हारे मनमें जो हो, वह वरदान माँगो ॥ 15 ll
सनत्कुमार बोले- हे मुने। तब शिवजीका यह वचन सुनकर उस दैत्येन्द्र बाणासुरने अपना घाव भरनेके लिये वर माँगा, इसके साथ ही बाहुयुद्धके लिये क्षमा, अक्षय गाणपत्यका भाव तथा उस शोणितपुर नामक नगरमें ऊषापुत्रका राज्य हो, देवताओंसे तथा विशेषकर विष्णुसे निर्वैरता और रजोगुण तथा तमोगुणसे युक्त दुष्ट दैत्यभावका विनाश हो, विशेषकर शिवजीकी निर्विकार भक्ति, शिवके भक्तोंके प्रति स्नेह तथा सब प्राणियोंके प्रति दयाभाव हो। हे मुने। उस बाण दैत्यने शिवजीसे इन वरोंको माँगकर नेत्रोंसे आँसू बहाते हुए हाथ जोड़कर प्रेमपूर्वक शिवजीकी स्तुति की - ॥ 16-20 ॥
बाणासुर बोला- हे देव! हे महादेव! हे शरणागतवत्सल! हे महेश्वर! हे दीनबन्धो! हे दयानिधे! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। हे कृपासागर! हे शंकर! हे प्रभो! आपने मुझपर बड़ी कृपा की, आपने प्रसन्न होकर मेरा गर्व दूर कर दिया। आप ब्रह्म, परमात्मा, सर्वव्यापी, अखिलेश्वर, ब्रह्माण्डरूपी शरीरवाले, उग्र, ईश, विराट्, सबमें व्याप्त तथा सबसे परे हैं । 21-23 ॥ हे प्रभो! आकाश आपकी नाभि मुख अग्नि, जल वीर्य है, दिशाएँ कान, द्युलोक मस्तक, पृथ्वी चरण तथा चन्द्रमा मन है, सूर्य नेत्र, ऋद्धि उदर, इन्द्र भुजाएँ, ब्रह्मा बुद्धि, प्रजापति विसर्ग तथा धर्म आपका हृदय है। हे नाथ! औषधियाँ आपके रोम हैं, मेघ आपके केश हैं, तीनों गुण आपके तीनों नेत्र हैं, आप सर्वात्मा पुरुष हैं। आपका मुख ब्राह्मण है, भुजाएँ क्षत्रिय, जंघा वैश्य और चरण शूद्र कहे गये हैं । ll 24-27 ॥
हे महेश्वर ! आप ही नित्य सब जीवोंके उपासना करनेयोग्य हैं, आपका भजन करनेवाला मनुष्य निश्चय ही परम मुक्ति प्राप्त कर लेता है ॥ 28 ॥
जो मनुष्य आत्माके प्रिय ईश्वर आपको त्याग देता है, वह मानो अमृतका त्याग करता हुआ इन्द्रियोंके लिये अकल्याणकारी विषका ही भक्षण करता है ॥ 29 ॥ विष्णु, ब्रह्मा, सभी देवता, निर्मलभाववाले मुनि आप प्रिय ईश्वरके सब प्रकारसे शरणागत हैं ॥ 30 ॥सनत्कुमार बोले- इस प्रकार कहकर उस दैत्य बाणासुरने प्रेमसे विह्वल अंगवाला हो शिवजीको प्रणामकर मौन धारण कर लिया। अपने भक्त बाणासुरका यह वचन सुनकर भगवान् सदाशिव'तुम सब कुछ प्राप्त करोगे' इस प्रकार कहकर वहीं अन्तर्धान हो गये ॥ 31-32 ॥ तब शिवजीके अनुग्रहसे महाकालत्वको प्राप्त हुआ वह शिवजीका अनुचर बाणासुर बड़ा प्रसन्न हुआ ।। 33 ।।
[हे व्यासजी!] सभी गुरुजनोंके परम गुरु तथा समस्त पृथ्वीके मध्यमें क्रीड़ा करनेवाले शूलपाणि शंकर तथा बाणासुरके सुन्दर वृत्तान्तका कानोंको प्रिय लगनेवाले वचनोंमें आपसे यह वर्णन किया ॥ 34 ॥