नन्दिकेश्वर बोले- हे योगीन्द्र ! प्राचीनकालमें किसी समय शेषशायी भगवान् विष्णु अपनी पराशक्ति लक्ष्मीजी तथा अन्य पार्षदोंसे घिरे हुए शयन कर रहे थे ॥ 1 ॥ उसी समय ब्रह्मवेत्ताओंमें श्रेष्ठ ब्रह्माजीने अपनी इच्छासे वहाँ आकर उन परम सुन्दर कमलनेत्र विष्णुसे पूछा- तुम कौन हो, जो मुझे आया देखकर भी उद्धत पुरुषके समान सो रहे हो ? हे वत्स ! उठो और यहाँ अपने प्रभु - मुझे देखो। जो पुरुष अपने श्रेष्ठ गुरुजनको आया हुआ देखकर उद्धतके समान आचरण करता है, उस मूर्ख गुरुद्रोहीके लिये प्रायश्चित्तका विधान किया गया है । ll 2-4॥
[ब्रह्माके] इस वचनको सुनकर क्रोधित होनेपर भी बाहरसे शान्त व्यवहार करते हुए भगवान् विष्णु बोले- हे वत्स ! तुम्हारा कल्याण हो, तुम्हारा स्वागत है। आओ, इस आसनपर बैठो। तुम्हारे मुखमण्डलसे व्यग्रता प्रदर्शित हो रही है और तुम्हारे नेत्र विपरीत भाव सूचित कर रहे हैं ॥ 51/2 ॥
ब्रह्माजी बोले- हे वत्स! हे विष्णो! कालके प्रभावसे तुम्हें बहुत अभिमान हो गया है। हे वत्स ! मैं जगत्का पितामह और तुम्हारा रक्षक हूँ ॥ 61/2 ॥
विष्णु बोले—हे वत्स ! यह जगत् मुझमें ही स्थित है, तुम केवल चोरके समान दूसरेकी सम्पत्तिको | व्यर्थ अपनी मानते हो ! तुम मेरे नाभिकमलसे उत्पन्न हो, अत: तुम मेरे पुत्र हो, तुम तो व्यर्थ बातें कह रहे हो ? ॥ 71 / 2 ॥
नन्दिकेश्वर बोले - [हे मुने!] उस समय वे अजन्मा ब्रह्मा और विष्णु मोहवश 'मैं श्रेष्ठ हूँ, मैं स्वामी हूँ, तुम नहीं' - इस प्रकार बोलते-बोलते परस्पर एक-दूसरेको मारनेकी इच्छासे युद्ध करनेके लिये उद्यत हो गये ॥ 8-9 ॥
हंस और गरुडपर आरूढ होकर वे दोनों वीर ब्रह्मा और विष्णु युद्ध करने लगे, तब ब्रह्मा और विष्णुके गण भी परस्पर युद्ध करने लगे ॥ 10 ॥उस समय सभी देवगण उस परम अद्भुत बुद्धको देखनेकी इच्छासे विमानपर चढ़कर वहाँ पहुँच गये। [ वहाँ आकर] आकाशमें अवस्थित हो पुष्पकी वृष्टि करते हुए वे युद्ध देखने लगे। गरुडवाहन भगवान् विष्णुने क्रुद्ध होकर ब्रह्माके वक्षःस्थलपर अनेक प्रकारके असंख्य दुःसह बाणों और अम्बोंसे प्रहार किया । ll 11-121/2 ॥
तब विधाता भी क्रुद्ध होकर विष्णुके हृदयपर अग्निके समान बाण और अनेक प्रकारके अस्त्रोंको छोड़ने लगे। उस समय देवगण उन दोनोंका वह अद्भुत युद्ध देखकर अतिशय व्याकुल हो गये और ब्रह्मा तथा विष्णुकी प्रशंसा करने लगे ॥ 13-141/2 ॥
तत्पश्चात् युद्धमें तत्पर महाज्ञानी विष्णुने अतिशय क्रोधके साथ श्रान्त हो दीर्घ निःश्वास लेते हुए ब्रह्माको लक्ष्यकर भयंकर माहेश्वर अस्त्रका संधान किया। ब्रह्माने भी अतिशय क्रोधमें आकर विष्णुके हृदयको लक्ष्यकर ब्रह्माण्डको कम्पित करते हुए भयंकर पाशुपत अस्त्रका प्रयोग किया। ब्रह्मा और विष्णुके सूर्यके समान हजारों मुखवाले, अत्यन्त उग्र तथा प्रचण्ड आँधी के समान भयंकर दोनों अस्त्र आकाशमें प्रकट हो गये ll 15 - 18ll
इस प्रकार ब्रह्मा और विष्णुका आपसमें भयंकर युद्ध होने लगा। हे तात। उस युद्धको देखकर सभी देवगण राजविप्लवके समय ब्राह्मणोंके समान अतिशय दुखी और व्याकुल होकर परस्पर कहने लगे- जिसके द्वारा सृष्टि, स्थिति, प्रलय, तिरोभाव तथा अनुग्रह होता है और जिसकी कृपाके बिना इस भूमण्डलपर अपनी | इच्छासे एक तृणका भी विनाश करनेमें कोई भी समर्थ नहीं है, उन त्रिशूलधारी ब्रह्मस्वरूप महेश्वरको नमस्कार है । ll19 - 21 ॥
भयभीत देवतागण इस प्रकार सोचते हुए चन्द्रशेखर महेश्वर जहाँ विराजमान थे, उस शिवस्थान कैलास शिखर पर गये ॥ 22 ॥
शिवके उस प्रणवाकार स्थानको देखकर वे देवता प्रसन्न हुए और प्रणाम करके भवनमें प्रविष्ट हुए ॥ 23 ॥उन्होंने वहाँ सभाके मध्यमें स्थित मण्डपमें देवी पार्वतीके साथ रत्नमय आसनपर विराजमान देवश्रेष्ठ शंकरका दर्शन किया। वे वाम चरणके ऊपर दक्षिण चरण और उसके ऊपर वाम करकमल रखे हुए थे, समस्त शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न थे और चारों ओर शिवगण उनकी सेवामें तत्पर थे, शिवके प्रति उत्तम भक्तिभाववाली | कुशल रमणियाँ उनपर चँवर डुला रही थीं, वेद निरन्तर उनकी स्तुति कर रहे थे और वे अनुग्रहकी दृष्टिसे | सबको देख रहे थे । हे वत्स ! उन महेश्वर शिवको देखकर आनन्दाश्रुसे परिपूर्ण नेत्रोंवाले देवताओंने दूरसे ही उन्हें दण्डवत् प्रणाम किया ॥ 24 -27 ॥
भगवान् शंकरने उन देवोंको देखकर अपने गणोंसे उन्हें समीप बुलवाया और देवशिरोमणि महादेव उन देवताओंको आनन्दित करते हुए अर्थगम्भीर, मंगलमय तथा सुमधुर वचन कहने लगे ॥ 28 ॥