नारदजी बोले – हे ब्रह्मन् ! हे विधे! हे महाभाग ! आप धन्य हैं, जो आपकी बुद्धि शिवमें आसक्त है। आपने परमात्मा शंकरजीके सुन्दर चरित्रका आख्यान किया ॥ 1 ॥ मारगणों तथा [ अपनी स्त्री] रतिके साथ जब काम अपने स्थानपर चला गया, तब क्या हुआ और आपने क्या किया? अब उस चरित्रको कहिये ॥ 2 ॥ ब्रह्माजी बोले- हे नारद! आप अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक महादेवजीके चरित्रको सुनिये, जिसके श्रवणमात्रसे मनुष्य विकारसे मुक्त हो जाता है ॥ 3 ॥ कामके सपरिवार अपने आश्रममें चले जानेपर उस समय जो हुआ, उस चरित्रको मुझसे सुनिये ॥ 4 ll
हे नारद! मेरा घमण्ड चूर-चूर हो गया और अपने मनोरथके अपूर्ण रहनेसे मुझ आनन्दरहितके हृदयमें विस्मय हुआ ॥ 5 ॥
मैंने मनमें अनेक प्रकारसे विचार किया कि वे निर्विकार, जितात्मा तथा योगपरायण शिव स्त्रीको किस प्रकार ग्रहण कर सकते हैं ? ॥ 6 ॥हे मुने! इस प्रकार अनेक तरहसे विचार करके अहंकाररहित मैंने उस समय अपने जन्मदाता शिवस्वरूप उन विष्णुका भक्तिपूर्वक स्मरण किया और दीनतापूर्ण वाक्योंसे युक्त कल्याणकारी स्तोत्रोंसे मैं उनकी स्तुति करने लगा। उसे सुनकर चतुर्भुज, कमलनयन, शंख-पद्म-गदाधारी, पीताम्बरसे सुशोभित तथा श्यामवर्णके शरीरवाले भक्तप्रिय भगवान् विष्णु शीघ्र ही मेरे सम्मुख प्रकट हो गये ।। 7-9 ॥
उस प्रकारके रूपवाले शरणागतवत्सल उन भगवान्को देखकर मैंने पुनः प्रेमसे बार-बार उनकी स्तुति की ॥ 10 ॥ गद्गद वाणीमें अपने भक्तोंके दुःखको दूर करनेवाले भगवान् विष्णु उस स्तोत्रको सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हो मुझ शरणागत ब्रह्मासे कहने लगे ॥ 11 ॥
विष्णुजी बोले- हे विधे! हे ब्रह्मन्! है महाप्राज्ञ ! आप धन्य हैं, हे लोककर्ता! आपने आज किसलिये मेरा स्मरण किया और किसलिये आप मेरी स्तुति कर रहे हैं ? 12 ॥ आपको कौन सा महान् दुःख हो गया है, उसे अभी बताइये। उस सम्पूर्ण दुःखका मैं नाश करूँगा, इसमें सन्देह नहीं करना चाहिये ॥ 13 ॥
ब्रह्माजी बोले- हे नारद! विष्णुके इन वचनोंको सुनकर मैंने दीर्घ श्वास लिया और हाथ जोड़कर प्रणाम करके विष्णुसे यह वचन कहा- 14 ॥ हे देवदेव! हे रमानाथ! मेरी बात सुनिये और हे मानद उसे सुनकर दया करके मेरा दुःख दूर कीजिये तथा मुझे सुखी कीजिये 15 हे विष्णो! मैंने रुद्रके सम्मोहनके लिये | सपरिवार मारगण तथा वसन्तके साथ कामको भेजा था ll 16 ॥
उन्होंने शिवजीको मोहित करनेके लिये अनेक प्रकारके उपाय किये, परंतु वे सब निष्फल हो गये। | उन समदर्शी योगीको मोह नहीं हुआ ॥ 17 ॥
मेरा यह वचन सुनकर शिवतत्त्वके ज्ञाता, विज्ञानी तथा सब कुछ देनेवाले वे विष्णु विस्मित | होकर मुझसे कहने लगे ॥ 18 ॥विष्णुजी बोले- हे पितामह। आपकी इस | प्रकारकी बुद्धि किस कारणसे हो गयी है ? हे ब्रह्मन् ! | अपनी सुबुद्धिसे सब विचारकर मुझसे सत्य सत्य उसे कहें ।। 19 ।।
ब्रह्माजी बोले- हे तात! अब उस चरित्रको सुनिये। यह आपकी माया मोहनेवाली है, सुख दुःखमय यह सारा जगत् उसीके अधीन है ॥ 20 ॥
उसी मायाके द्वारा प्रेरित होकर मैं [ इस प्रकारका] पाप करनेके लिये प्रवृत्त हुआ हूँ। हे देवेश! आपकी आज्ञासे में कह रहा है। आप उसे सुनिये ॥ 21 ॥
सृष्टिके प्रारम्भमें मेरे दक्ष आदि दस पुत्र उत्पन्न हुए और मेरी वाणीसे एक परम सुन्दरी कन्या भी उत्पन्न हुई ॥ 22 ॥
जिसमें धर्म मेरे वक्षःस्थलसे, काम मनसे तथा अन्य पुत्र मेरे शरीरसे उत्पन्न हुए, हे हरे! कन्याको देखकर मुझे मोह हो गया ॥ 23 ॥
मैंने आपकी मायासे मोहित होकर जब उसे कुदृष्टिसे देखा, तब उसी समय महादेवजीने आकर मेरी तथा मेरे पुत्रोंकी निन्दा की ॥ 24 ॥
हे नाथ! उन्होंने स्वयंको श्रेष्ठ तथा प्रभु मानकर ज्ञानी, योगी, जितेन्द्रिय, भोगरहित मुझ ब्रह्माको तथा मेरे पुत्रोंको धिक्कारा॥ 25 ॥
| हे हरे! मेरे पुत्र होकर भी शिवने सबके सामने ही मेरी निन्दा की। यही मुझे महान् दुःख है, इसे मैंने आपके सामने कह दिया ॥ 26 ॥
यदि वे पत्नी ग्रहण कर लें, तो मैं सुखी हो जाऊँगा और मेरे मनका कष्ट दूर हो जायगा हे केशव ! इसीलिये मैं आपकी शरणमें आया हूँ ॥ 27 ॥
ब्रह्माजी बोले - [ हे नारद!] मुझ ब्रह्माका यह वचन सुनकर विष्णु हँसकर मुझ सृष्टिकर्ता ब्रह्माको हर्षित करते हुए शीघ्र ही कहने लगे- ॥ 28 ॥
विष्णुजी बोले- हे विधे! सम्पूर्ण भ्रमका निवारण करनेवाले और वेद तथा आगमद्वारा अनुमोदित | परमार्थयुक्त मेरे वचनको सुनें ॥ 29 ॥
हे विधे! वेदके वक्ता तथा समस्त लोकके कर्ता होकर भी आप इस प्रकार महामूर्ख तथा दुर्बुडि किस प्रकार हो गये ? ॥ 30 ॥हे मन्दात्मन्! आप अपनी जड़ताका त्याग करें और इस प्रकारकी बुद्धि न करें। सम्पूर्ण वेद स्तुतिद्वारा क्या कहते हैं, अच्छी बुद्धिसे उसका स्मरण करें ॥ 31 ॥
हे दुर्बुद्धे! आप उन परेश, रुद्रको अपना पुत्र समझते हैं। हे विधे! आप वेदके वक्ता हैं, फिर भी आपका समस्त ज्ञान विस्मृत हो गया है ॥ 32 ॥
[ऐसा ज्ञात होता है कि] इस समय आपकी सुबुद्धि नष्ट हो गयी है और आपमें कुमति उत्पन्न हो गयी है, जो आप शंकरको सामान्य देवता समझकर उनसे द्रोह कर रहे हैं ॥ 33 ॥
हे ब्रह्मन् निर्णय करके वेदोंमें वर्णित किया गया जो कल्याणकारक तत्त्वसिद्धान्त कहा गया है, उसे आप सुनिये और सद्बुद्धि रखिये ॥ 34 ॥ शिवजी ही समस्त सृष्टिके कर्ता, भर्ता, हर्ता परात्पर, परब्रह्म, परेश, निर्गुण, नित्य, अनिर्देश्य, निर्विकार, परमात्मा, अद्वैत, अच्युत, अनन्त, सबका अन्त करनेवाले, स्वामी, व्यापक, परमेश्वर, सृष्टि-पालन संहारको करनेवाले, सत्त्व- रज-तम-इन तीन गुणोंसे युक्त, सर्वव्यापी, रज-सत्त्व तमरूपसे ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर नाम धारण करनेवाले, मायासे भिन्न, इच्छारहित, मायास्वरूप, माया रचनेमें प्रवीण, सगुण, स्वतन्त्र, अपनेमें आनन्दित रहनेवाले, निर्विकल्पक, अपनेमें ही रमण करनेवाले, द्वन्द्वसे रहित, भक्तोंके अधीन रहनेवाले, उत्तम शरीरवाले, योगी, सदा योगमें निरत रहनेवाले, योगमार्ग दिखानेवाले, लोकेश्वर, गर्वको दूर करनेवाले तथा सदैव दीनोंपर दया करनेवाले हैं। जो ऐसे स्वामी हैं, उन्हें आप अपना पुत्र मानते हैं! ll 35-40 ॥
हे ब्रह्मन्! [शिव हमारे पुत्र हैं-] इस प्रकारका अज्ञान छोड़ दीजिये। उन्हींकी शरणमें जाइये और सब प्रकारसे शिवजीका भजन कीजिये, वे प्रसन्न होकर आपका कल्याण करेंगे ll 41 ll
यदि आपका यह विचार है कि शिवजी अवश्य दारपरिग्रह करें, तो शिवजीका स्मरण करते हुए आप शिवाको उद्देश्य करके कठोर तप कीजिये ।। 42 ।।
आप अपनी इच्छाको हृदयमें धारणकर [भगवती ] शिवाका ध्यान कीजिये। यदि वे देवेश्वरी प्रसन्न हो गर्यो, तो आपका समस्त कार्य पूर्ण करेंगी ॥ 43 ॥यदि वे शिवा सगुणरूपसे अवतार लेकर किसी मनुष्यकी कन्या बनें, तो निश्चय ही वे उन (शिव) की पत्नी बन सकती हैं ॥ 44 ॥ हे ब्रह्मन् आप [ इस कार्यके लिये] दक्षको आज्ञा दीजिये कि वे स्वयं भक्तितत्पर होकर उन शिवपत्नीको उत्पन्न करनेके लिये प्रयत्नपूर्वक तप करें ।। 45 ।।
हे तात! आप इसे भली प्रकार समझ लें कि वे शिवा और शिव भक्तोंके अधीन हैं, परब्रह्मस्वरूप ये दोनों स्वेच्छासे सगुणभाव धारण कर लेते हैं ।। 46 ।।
ब्रह्माजी बोले- लक्ष्मीपति भगवान् विष्णुने इस प्रकार कहकर तत्क्षण अपने प्रभु शिवजीका स्मरण किया और उसके बाद उनकी कृपासे ज्ञान प्राप्तकर वे मुझसे कहने लगे- ॥ 47 ॥
विष्णुजी बोले- हे ब्रह्मन्। पूर्वकालमें शिवजीकी इच्छासे उत्पन्न हुए हम दोनोंके द्वारा प्रार्थना करनेपर उन्होंने जो-जो वचन कहा था, उसका स्मरण कीजिये ॥ 48 ॥
आप वह सब भूल गये हैं। शिवजीकी जो पराशक्ति है, वह धन्य है, उसीने इस समस्त जगत्को मोहित कर रखा है। शिवके अतिरिक्त उसे कोई नहीं जान सकता ॥ 49 ॥
हे ब्रह्मन्! जब निर्गुण शिवजीने अपनी इच्छासे सगुणरूप धारण किया था, उस समय मुझे तथा आपको उत्पन्न करके अपनी शक्तिके साथ उत्तम विहार करनेवाले, सृष्टिकर्ता, अविनाशी, परमेश्वर उन शम्भुने आपको सृष्टिकार्यके लिये तथा मुझे उसके पालनके लिये आदेश दिया ।। 50-51 ॥
उसके बाद हम दोनोंने हाथ जोड़कर विनम्र होकर निवेदन किया कि आप सर्वेश्वर होकर भी सगुणरूप धारणकर अवतार लीजिये। ऐसा कहनेपर करुणामय तथा अनेक प्रकारकी लीलाएँ करनेमें | प्रवीण उन स्वामी शिवजीने आकाशकी ओर देखकर हँसते हुए प्रेमपूर्वक कहा- ॥ 52-53॥
हे विष्णो! मेरा ऐसा ही परम रूप ब्रह्माजीके अंगसे प्रकट होगा, जो लोकमें रुद्र नामसे प्रसिद्ध होगा। वह मेरा पूजनीय पूर्णरूप आप दोनोंके समस्त कार्यको पूरा करनेवाला, जगत्का लयकर्ता, सभी गुणोंका अधिष्ठाता, | निर्विशेष तथा उत्तम योग करनेवाला होगा ।। 54-55 ॥यद्यपि त्रिदेव मेरे स्वरूप हैं, किंतु 'हर' मेरे पूर्णरूप होंगे। [इसी प्रकार ] हे पुत्रो ! उमाके भी तीन प्रकारके रूप होंगे। लक्ष्मी विष्णुकी पत्नी, सरस्वती ब्रह्माकी पत्नी और पूर्णरूपा सती रुद्रकी पत्नी होंगी ॥ 56-57 ॥
विष्णुजी बोले - [ हे ब्रह्मन्!] भगवान् महेश्वर ऐसा कहकर हमदोनोंपर कृपा करके अन्तर्धान हो गये, उसके बाद हम दोनों सुखी होकर अपने-अपने कार्यों में लग गये ।। 58 ।।
हे ब्रह्मन्! समय पाकर हमदोनोंने स्त्री ग्रहण कर ली, किंतु शंकरजीने नहीं। वे रुद्र नामसे अवतीर्ण हुए हैं और कैलास पर्वतपर रहते हैं ॥ 59 ॥
हे प्रजेश्वर ! वे शिवा सती नामसे अवतीर्ण होंगी। अतः उन्हें उत्पन्न होनेके लिये हमदोनोंको यत्न करना चाहिये ॥ 60 ॥
परम कृपा करके वे विष्णु ऐसा कहकर अन्तर्धान हो गये। तब मैं [शिवजीके प्रति] ईर्ष्यारहित होकर अत्यधिक प्रसन्न हो गया ॥ 61 ॥