सनत्कुमार बोले- हे व्यासजी। उस समय ब्रह्मासहित भगवान् विष्णु अत्यन्त दिव्य निराधार एवं अभौतिक शिवलोक पहुँचकर आनन्दित तथा प्रसन्नमुख होकर भीतर गये, जो नाना प्रकारके रत्नोंसे निर्मित महोज्ज्वल और शोभासे युक्त था ॥ 1-2 ll
उन्होंने गणोंसे सेवित, अद्भुत, अत्यन्त ऊँचे, परम सुन्दर और अत्यधिक शोभासम्पन्न पहले द्वारपर आकर श्वेत वस्त्रोंसे सुशोभित, रत्नमय आभूषणोंसे भूषित, रत्नके सिंहासनपर स्थित, पाँच मुख तथा तीन नेत्रवाले, गौर तथा सुन्दर शरोरवाले, त्रिशूल आदि धारण किये हुए और भस्म तथा द्राक्षसे सुशोभित महावीर द्वारपालोंको देखा। तब ब्रह्मा सहित विष्णुने बड़ी विनम्रता के साथ उन्हें प्रणाम करके प्रभुदर्शनके निमित्त सारा वृत्तान्त बताया ll 36 ll
तब उन्होंने आज्ञा प्रदान की और वे उनकी आज्ञासे प्रविष्ट हुए दूसरा द्वार भी परम मनोहर, विचित्र तथा अत्यन्त प्रभायुक्त था। प्रभुके पास जाने के लिये उन्होंने वहाँके द्वारपालसे वृत्तान्त निवेदित किया और उस द्वारपालसे आज्ञा प्राप्तकर के अन्य द्वारमें प्रविष्ट हुए ॥ 78 ॥
इस प्रकार पन्द्रह द्वारोंमें क्रमसे प्रवेश करके वे पद्मयोनि एक विशाल द्वारपर पहुँचे और उन्होंने वहाँ नन्दीको देखा। उन्हें भलीभाँति नमस्कारकर तथा उनकी स्तुति करके विष्णुजीने पूर्वको भाँति उन नन्दीसे आज्ञा प्राप्तकर धीरेसे प्रसन्नतापूर्वक भीतर प्रवेश किया। ll 9-10 ॥
वहाँ पहुँचकर उन लोगोंने शिवजीकी उच्च महासभा देखी, जो महाप्रभासे युक्त सुन्दर शरीरवाले, शिवके स्वरूपवाले शुभ कान्तिवाले, दस भुजाओंवाले, पाँच मुखवाले, तीन नेत्रोंवाले, नीले कण्ठवाले, परम कान्तिसे युक्त, रत्नमय सदार्थों तथा भस्मरूप आभरणोंसे भूषित पार्षदोंसे घिरी हुई थी। वह सभा उदीयमानचन्द्रमण्डलके आकारवाली, चौकोर, मनोहर श्रेष्ट मणियोंके हारसे युक्त एवं उत्तम हीरोंसे सुशोभित, अमूल्य रत्नोंसे रचित, पद्मपत्रोंसे शोभित, मणियों के समूहोंकी मालाओंसे सुशोभित, अनेक प्रकारके चित्रोंसे चित्रित तथा शंकरजीके इच्छानुसार पचरागकी श्रेष्ठ मणियोंद्वारा विरचित थी ॥ 11 - 15 ॥
उस सभामें स्वर्णके सूत्रोंसे पिरोये हुए अत्यन्त मनोहर चन्दन वृक्षके पत्तोंके बन्दनवार थे तथा उसमें स्यमन्तक मणिनिर्मित सैकड़ों सोपान बने हुए थे उस सभामें इन्द्रनीलमणिके खम्भे लगे हुए थे और वह अत्यन्त मनोहर, सुसंस्कृत तथा सुगन्धित वायुसे सुवासित थी। उसकी चौड़ाई हजारों योजन थी और वह अनेक सेवकोंसे परिपूर्ण थी। सुरेश्वर विष्णुने उस सभामें अम्बा पार्वतीसहित भगवान् शंकरको देखा ॥ 16-18 ॥
उस सभा बीचमें अमूल्य रत्ननिर्मित विचित्र सिंहासनपर बैठे हुए शिवजी ताराओंके बीच चन्द्रमाकी की भाँति सुशोभित हो रहे थे। वे किरीट, कुण्डल एवं रत्नोंकी मालासे सुशोभित थे, सभी अंगोंमें भस्म लगाये हुए थे तथा हाथों में लीलाकमल धारण किये हुए थे वे अपने आगे होनेवाले गीत एवं नृत्यको बड़ी प्रसन्नताके साथ मुसकराते हुए देख रहे थे वे उमापति शान्त, प्रसन्नमन तथा महान् उल्लाससे युक्त थे और भगवतीके द्वारा दिये गये सुगन्धित ताम्बूलका सेवन कर रहे थे। गणलोग परम भक्तिसे श्वेत चैवर डुला रहे थे और सिद्धगण भक्तिसे सिर झुकाये चारों ओरसे उनकी स्तुति कर रहे थे। उन गुणातीत, परमेश्वर, तीनों देवताओंको उत्पन्न करनेवाले, सर्वव्यापी, निराकार, निर्विकल्प अपनी इच्छासे सगुण रूप धारण करनेवाले, मायारहित, अजन्मा, आदिदेव, मायाधीश परात्पर, प्रकृति एवं पुरुषसे भी परे, विशिष्ट परिपूर्णतम, समभाववाले अपने प्रभु शिवको देखकर ब्रह्मा एवं विष्णु हाथ जोड़कर प्रणाम करके उनकी स्तुति करने लगे- ॥ 19-26 ॥विष्णु और ब्रह्मा बोले- हे देवदेव! हे महादेव हे परब्रह्म हे अखिलेश्वर हे त्रिगुणातीत! हे निर्व्यग्र हे त्रिदेवजनक! हे प्रभो! हम आपकी शरणमें आये हैं। हे विभो। हे परमेश्वर ! शंखचूडके द्वारा पीड़ित तथा सन्तप्त किये गये हम दुखित तथा अनाथोंकी रक्षा कीजिये ।। 27-28 ।।
यह गोलोक, जिसकी स्थिति आपके ही द्वारा है, उस गोलोकके अधिष्ठाता आपने श्रीकृष्णको नियुक्त किया है। उनका श्रेष्ठ पार्षद सुदामा प्रारब्धवश राधिकाके शापसे शंखचूड नामक दानवके रूपमें उत्पन्न हुआ है। हे शम्भो ! उसने हमलोगोंको नाना प्रकारको यातनाएँ देकर [स्वर्गलोकसे] निकाल दिया है. अपने अधिकारोंसे चित देवतालोग पृथ्वीपर घूम रहे हैं ।। 29-31 ॥
हे महेशान! आपके बिना वह अन्य देवताओंसे नहीं मारा जा सकता, अतः आप उसका वध कीजिये और सभी लोकोंको सुखी बनाइये। [हे प्रभो!] आप ही निर्गुण, सत्य, अनन्त एवं अनन्त पराक्रमवाले हैं। आप सगुण, प्रकृति एवं पुरुषसे परे तथा सर्वत्र व्यापक हैं ।। 32-33 ॥
हे प्रभो! आप सृष्टिकालमें रजोगुणसे ब्रह्माके रूपमें सृष्टि करते हैं एवं पालनकालमें सत्त्वगुणसे युक्त हो विष्णुके रूपमें जगत्का पालन करते हैं, प्रलयकालमें तमोगुणसे युक्त हो रुद्रके रूपमें इस जगत्का संहार करते हैं एवं त्रिगुणसे परे चौथे शिव नामक ज्योतिःस्वरूप भी आप ही हैं। आप अपनी दीक्षासे गोलोकमें गायोंका पालन करते हैं तथा आपकी गोशाला में श्रीकृष्ण दिन-रात क्रीड़ा करते रहते हैं। आप सबके कारण तथा स्वामी हैं और आप ही ब्रह्मा, विष्णु तथा ईश्वर हैं, आप निर्विकारी, सदा
साक्षी, परमात्मा एवं परमेश्वर हैं ।। 34-37 ॥ आप दीनों एवं अनाथोंके सहायक हैं, दोनोंके रक्षक, दीनबन्धु, त्रिलोकेश एवं शरणागतवत्सल हैं ॥ 38 ॥ हे गौरीश। हे परमेश्वर! आप प्रसन्न हो जाइये और हमलोगोंका उद्धार कीजिये। हे नाथ! हमलोग आपके अधीन हैं, अतः जैसी आपकी इच्छा हो, वैसा कीजिये ।। 39 ।।सनत्कुमार बोले- हे व्यासजी ! इस प्रकार कहकर वे दोनों देवता - ब्रह्मा एवं विष्णु विनम्र होकर हाथ जोड़कर शिवको नमस्कार करके मौन हो गये ॥ 40 ॥