शौनक बोले- आपने परमार्थ प्रदान करनेवाला सनत्कुमार एवं व्यासजीका संवादरूप जो महान् आख्यान कहा, उसे मैंने सुन लिया। अब जिस प्रकार ब्रह्माकी सृष्टि उत्पन्न हुई, उसे मैं सुनना चाहता हूँ, जैसा आपने व्यासजीसे सुना है, उसे मुझसे कहिये ॥ 1-2 ॥
सूतजी बोले- हे मुने! मेरे द्वारा कही जाती हुई श्रुतियोंमें विस्तारसे वर्णित, अनेक अर्थोवाली, सभी प्रकारके पापोंका नाश करनेवाली, दिव्य तथा अद्भुत कथाको आप सुनिये ॥ 3 ॥
जो [ मनुष्य ] इसे पढ़ाता है अथवा बार- बार सुनता है, वह अपनी वंशपरम्पराको स्थिर रखते हुए स्वर्गलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। जो [परमात्मा] प्रधान तथा पुरुषस्वरूप हैं, जो नित्य और सदसदात्मक हैं, उन्हीं पुरुषरूप लोकस्रष्टाके द्वारा प्रधान अर्थात् प्रकृतिके माध्यमसे सृष्टि की गयी है ll 4-5 ll
हे मुनिश्रेष्ठ! नारायणपरायण तथा अमित तेजस्वी उन ब्रह्माको सभी प्राणियोंकी सृष्टि करनेवाला जानिये। हे मुनिश्रेष्ठ! जिनसे सभी पवित्र कल्पों (पदार्थों) की सृष्टि हुई तथा जिनसे सब कुछ पवित्र होता है, उन स्वयम्भूको नमस्कार है। उन हिरण्यगर्भ पुरुष परमेश्वरको नमस्कार करके मैं इस सर्वश्रेष्ठ सृष्टिका वर्णन कर रहा हूँ ॥ 6-8 ॥समय- समयपर ब्रह्मा इस सृष्टिके सृजनकर्ता, विष्णु पालनकर्ता एवं शिवजी संहर्ता रहे हैं, इनके , अतिरिक्त स्रष्टा अथवा लय करनेवाला अन्य कोई नहीं है ॥ 9 ॥
नाना प्रकारकी प्रजाओंकी सृष्टिकी इच्छासे | भगवान् स्वयम्भूने सर्वप्रथम जलको उत्पन्न किया. और उसमें ओजका आधान किया ॥ 10 ॥
जलको नार कहा जाता है; क्योंकि वह नरसे उत्पन्न हुआ है, वह जल पूर्व समयमें भगवान्का आश्रय हुआ था, अतः वे नारायण कहे गये हैं ॥। 11 ॥ भगवान्के द्वारा जलमें आधान किये गये ओजसे एक सुवर्णमय अण्ड प्रकट हुआ, उससे स्वयं ब्रह्मा उत्पन्न हुए, अतः वे स्वयम्भू कहे गये हैं ॥ 12 ॥ भगवान् हिरण्यगर्भने एक वर्षतक वहाँ निवासकर उस अण्डेको दो भागों में विभक्त किया और उनसे स्वर्ग तथा भूलोकका निर्माण किया। उन्होंने उसमें नीचे और ऊपर कुल चौदह भुवनोंकी रचना की। प्रभुने दोनों खण्डोंके बीचमें आकाशका सृजन किया। उन्होंने जलमें तैरती हुई पृथ्वी तथा दस दिशाओंकी रचना की और वहीं काल, मन, वाणी, काम, क्रोध एवं रतिको बनाया ॥ 13 – 15 ll
तत्पश्चात् उन महातेजस्वीने मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु एवं वसिष्ठ-इन सात मानस ऋषियोंको उत्पन्न किया। पुराणमें ये ही सात ऋषि ब्रह्माके नामसे प्रसिद्ध हैं, उसके बाद पुनः ब्रह्माजीने क्रोधसे उत्पन्न होनेवाले रुद्रोंकी एवं सबके पूर्वज ऋषि सनत्कुमारकी रचना की। इस प्रकार ये सप्तर्षि पहले एवं रुद्र उनके बाद उत्पन्न होते हैं। सनत्कुमार तो अपने तेजका संवरणकर स्थित रहते हैं, किंतु उन सप्तर्षियोंके सात महावंश उत्पन्न होते हैं, जो दिव्य देवर्षियोंसे पूजित, क्रियाशील तथा महर्षियोंसे अलंकृत हैं ।। 16-19 ॥
उसके बाद उन्होंने विद्युत्, वज्र, मेघ, रोहित, इन्द्र- धनुष, जल एवं पर्जन्यको उत्पन्न किया। तदनन्तर उन्होंने यज्ञसम्पादनके लिये ऋक्, यजुः तथा सामवेदकी रचना की। उन वेदोंके द्वारा ही पूज्य देवोंका यजन किया गया ऐसा हम सुनते हैं।उन्होंने अपने मुखसे देवताओंको, वक्षःस्थलसे पितरोंको, उपस्थेन्द्रियसे मनुष्योंको और जघनसे दैत्योंको उत्पन्न किया। इस प्रकार प्रजाकी सृष्टि करते हुए उन आपव (अर्थात् जलमें प्रकट हुए) प्रजापति ब्रह्माजीके अंगोंमेंसे उच्च तथा साधारण श्रेणीके बहुत से प्राणी प्रकट हुए । ll 20-22 ॥
ब्रह्माजीके द्वारा सृजन की जाती हुई सृष्टि जब नहीं बढ़ी, तब वे अपने शरीरको दो भागों में विभक्तकर एक भागसे पुरुष और दूसरे भागसे नारी हो गये । ll 23-24 ॥
इसके अनन्तर अपनी महिमासे सारे संसारमें व्याप्त होकर उन्होंने सम्पूर्ण प्रजाको उत्पन्न किया। | भगवान् विष्णुने विराट् (आपव, ब्रह्माजी) को उत्पन्न किया। उन विराट्ने पुरुषको उत्पन्न किया। उस पुरुषको ही द्वितीय [सृष्टिकर्ता] मनु समझिये तथा यहींसे मन्वन्तरका आरम्भ भी मानना चाहिये। उन्हीं प्रभावशाली वैराज पुरुष मनुने समस्त प्रजाओंकी सृष्टि की थी । ll 25-26 ॥
भगवान् नारायणका [ आपव प्रजापति ब्रह्माजीके रूपमें हुआ] प्रजासर्ग अयोनिज था। वह सर्ग आयुष्मान्, कीर्तिमान्, धन्य तथा प्रजावान् हुआ ॥ 27 ॥
हे मुनिश्रेष्ठ ! इस प्रकार मैंने आपसे आदिसर्गका वर्णन कर दिया। मनुष्य इस आदिसर्गको जानकर यथेष्ट गतिको प्राप्त कर लेता है ॥ 28 ॥