नन्दिकेश्वर बोले- तदुपरान्त महादेव शिवजीने ब्रह्माके गर्वको मिटाने की इच्छासे अपनी भृकुटीके मध्यसे भैरव नामक एक अद्भुत पुरुषको उत्पन्न किया। उस भैरवने रणभूमिमें अपने स्वामी शिवजीको प्रणाम करके पूछा कि हे प्रभो! आप शीघ्र आज्ञा दें, मैं आपका कौन-सा कार्य करूँ ? ll 1-2 ll
शिवजी बोले- हे वत्स! ये जो ब्रह्मा हैं, वे इस सृष्टिके आदि देवता है, तुम वेगपूर्वक तीक्ष्ण तलवारसे इनकी पूजा करो अर्थात् इनका वध कर दो ॥ 3 ॥तब भैरव एक हाथसे [ब्रह्माके] केश पकड़कर असत्य भाषण करनेवाले उनके उद्धत पाँचवें सिरको काटकर हाथोंमें तलवार भाँजते हुए उन्हें मार डालनेके लिये उद्यत हुए ॥ 4 ॥ [हे सनत्कुमार!] तब आपके पिता अपने आभूषण, वस्त्र, माला, उत्तरीय एवं निर्मल बालोंके बिखर जानेसे आँधीमें झकझोरे हुए केलेके पेड़ और लतागुल्मोंके | समान कम्पित होकर भैरवके चरण-कमलोंपर गिर पड़े। हे तात! तब ब्रह्माकी रक्षा करनेकी इच्छासे कृपालु विष्णुने मेरे स्वामी भगवान् शंकरके चरणकमलोंको अपने अश्रु- जलसे भिगोते हुए हाथ जोड़कर इस प्रकार प्रार्थना की, जैसे एक छोटा बालक अपने पिताके प्रति टूटी-फूटी वाणीमें करता है ॥ 5-6 ॥
अच्युत बोले- [हे ईश!] आपने ही पहले कृपापूर्वक इन ब्रह्माको पंचाननरूप प्रदान किया था। इसलिये ये आपके अनुग्रह करनेयोग्य हैं, इनका अपराध क्षमा करें और इनपर प्रसन्न हों ॥ 7 ॥
भगवान् अच्युतके द्वारा इस प्रकार प्रार्थना किये जानेपर शिवजीने प्रसन्न होकर देवताओंके सामने ही ब्रह्माको दण्डित करनेसे भैरवको रोक दिया। शिवजीने एक सिरसे विहीन कपटी ब्रह्मासे कहा - हे ब्रह्मन् ! तुम श्रेष्ठता पानेके चक्कर में शठेशत्वको प्राप्त हो गये हो। इसलिये संसारमें तुम्हारा सत्कार नहीं होगा और तुम्हारे मन्दिर तथा पूजनोत्सव आदि नहीं होंगे ।। 8-91/2 ।।
ब्रह्माजी बोले- हे महाविभूतिसम्पन्न स्वामिन्! आप मुझपर प्रसन्न होइये; मैं [आपकी कृपासे ] अपने सिरके कटनेको भी आज श्रेष्ठ समझता हूँ । विश्वके कारण, विश्वबन्धु दोषोंको सह लेनेवाले और पर्वतके समान कठोर धनुष धारण करनेवाले आप भगवान् शिवको नमस्कार है ।। 10-11 ॥
ईश्वर बोले- हे वत्स! अनुशासनका भय नहीं रहनेसे यह सारा संसार नष्ट हो जायगा। अतः तुम दण्डनीयको दण्ड दो और इस संसारकी व्यवस्था चलाओ। तुम्हें एक परम दुर्लभ वर भी देता हूँ, जिसे ग्रहण करो। अग्निहोत्र आदि वैतानिक और गृह्य यज्ञोंमें आप ही श्रेष्ठ रहेंगे। सर्वांगपूर्ण और पुष्कल दक्षिणावाला यज्ञ भी आपके बिना निष्फल होगा। 12-13 ॥तब भगवान् शिवने झूठी गवाही देनेवाले कपटी केतक पुष्पसे कहा- अरे शठ केतक! तुम दुष्ट हो; यहाँसे दूर चले जाओ। मेरी पूजामें उपस्थित तुम्हारा फूल मुझे प्रिय नहीं होगा। शिवजीद्वारा इस प्रकार कहते ही सभी देवताओंने केतकीको उनके पास से हटाकर अन्यत्र भेज दिया ॥ 14–16 ॥
केतक बोला - हे नाथ! आपको नमस्कार है। आपकी आज्ञाके कारण मेरा तो जन्म ही निष्फल हो गया है। हे तात! मेरा अपराध क्षमा करें और मेरा जन्म सफल कर दें। जाने-अनजानेमें हुए पाप आपके स्मरणमात्रसे नष्ट हो जाते हैं, फिर ऐसे प्रभावशाली आपके साक्षात् दर्शन करनेपर भी मेरे झूठ बोलनेका दोष कैसे रह सकता है ? ।। 17-18 ।।
उस सभास्थलमें केतक पुष्पके इस प्रकार स्तुति करनेपर भगवान् सदाशिवने कहा- मैं सत्य बोलनेवाला हूँ, अतः मेरे द्वारा तुझे धारण किया जाना उचित नहीं है, किंतु मेरे ही अपने (विष्णु आदि देवगण) तुम्हें धारण करेंगे और तुम्हारा जन्म सफल होगा और मण्डप आदिके बहाने उपस्थित रहोगे ॥ 19-20 ॥ तुम मेरे ऊपर भी इस प्रकार भगवान् शंकर ब्रह्मा, विष्णु और | केतकी पुष्पपर अनुग्रह करके सभी देवताओंसे स्तुत | होकर सभा में सुशोभित हुए ॥ 21 ॥