सनत्कुमार बोले— तब दुष्टोंके लिये कालस्वरूप तथा सज्जनोंके रक्षक महारुद्र ईश्वरने देवताओंकी इच्छासे अपने मनमें शंखचूडके वधकानिश्चय किया और गन्धर्वराज चित्ररथ (पुष्पदन्त) को अपना अभीष्ट दूत बनाकर शीघ्र ही प्रसन्नतापूर्वक | शंखचूडके समीप भेजा। तब सर्वेश्वरकी आज्ञासे वह दूत इन्द्रकी अमरावतीपुरीसे भी अधिक ऐश्वर्यसम्पन्न तथा कुबेरके भवनसे भी उत्कृष्ट भवनोंवाले उस दैत्येन्द्रके नगरमें गया ॥ 1-3 ॥
उसने वहाँ जाकर बारह दरवाजोंसे युक्त शंखचूडका भवन देखा, जहाँ प्रत्येक द्वारपर द्वारपाल नियुक्त थे ॥ 4 ॥
उनको देखते हुए उस पुष्पदन्तने प्रधान द्वारको देखा और निर्भय हो वहाँके द्वारपालसे सारा वृत्तान्त निवेदन किया। तब अत्यन्त सुन्दर, रम्य, विस्तृत तथा भलीभाँति अलंकृत उस द्वारको पार करके वह प्रसन्नतापूर्वक भीतर गया। वहाँ जाकर उसने वीरोंके मण्डलमें विराजमान तथा रत्नसिंहासनपर बैठे हुए उस दानवाधिपति शंखचूडको देखा उस समय वह | तीन करोड़ दैत्यराजोंसे घिरा हुआ था तथा वे उसकी सेवा कर रहे थे और अन्य सौ करोड़ दानव हाथोंमें शस्त्र लेकर उसके चारों ओर पहरा दे रहे थे। इस प्रकार उसे देखकर पुष्पदन्तको बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने शंकरके द्वारा कहे गये बुद्धका सन्देश इस प्रकार कहा- ॥ 5-9 ॥
पुष्पदन्त बोला- हे राजेन्द्र में शिवजीका | पुष्पदन्त नामक दूत है। हे प्रभो शंकरने जो सन्देश भेजा है, उसे श्रवण कीजिये, मैं आपसे कह रहा हूँ ॥ 10 ॥
शिवजी बोले- तुम सज्जन देवताओंका राज्य तथा उनका अधिकार इस समय लौटा दो, अन्यथा मुझे अपना शत्रु समझकर मेरे साथ युद्ध करो ॥ 11 ॥
मैं सज्जनोंका रक्षक हूँ और देवतालोग मेरी शरणमें आये हैं, अतः मैं महारुद्र क्रुद्ध होनेपर निःसन्देह तुम्हारा वध करूँगा ॥ 12 ॥
मैं हर हूँ, मैंने सभी देवताओंको अभयदान दिया है। मैं शरणागतवत्सल हूँ और दुष्टोंको दण्ड देनेवाला हूँ ll 13 ll
हे दानवेन्द्र! तुम राज्य लौटाओगे अथवा युद्ध करोगे, विचार करके इन दोनोंमें एक तात्त्विक बात बताओ ।। 14 ।।पुष्पदन्त बोला— हे दैत्यराज शंकरने मुझसे ! जो कुछ कहा है, उसे मैंने तत्त्वतः आपसे निवेदन किया। शंकरजीका वचन कभी झूठा होनेवाला नहीं है। अब मैं शीघ्र ही अपने स्वामी सदाशिवके पास जाना चाहता हूँ। मैं जाकर शम्भुसे क्या कहूँगा, इसे मुझको तुम बताओ। 15-16 ।।
सनत्कुमार बोले- इस प्रकार श्रेष्ठ स्वामीवाले | शिवदूत पुष्पदन्तकी बात सुनकर वह दानवेन्द्र हँसकर उससे कहने लगा- ॥ 17 ॥
शंखचूड बोला- मैं देवताओंको राज्य नहीं दूंगा। यह पृथ्वी वीरभोग्या है। हे रुद्र देवताओंकि पक्षमें रहनेवाले तुमसे में युद्ध करूँगा। जिस राजाके ऊपर शत्रुकी चढ़ाई हो जाती है, वह भुवनमें अधम वीर होता है। अतः हे रुद्र! मैं निश्चित रूपसे पहले तुम्हारे ऊपर चढ़ाई करूंगा। ll 18-19 ।।
[हे दूत) तुम जाओ और मेरा यह वचन रुद्रसे कह दो कि मैं वीरयात्राके विचारसे प्रातः काल आऊँगा ॥ 20 ll शंखचूडका यह वचन सुनकर उस शिवदूतने हँस करके गर्वयुक्त उस दानवेन्द्रसे कहा- ॥ 21 ॥ पुष्पदन्त बोला- हे राजेन्द्र ! तुम शिवजीके अन्य गणोंके सामने भी नहीं ठहर सकते, तब शिवजीके सम्मुख कैसे खड़े हो सकते हो ? ॥ 22 ॥
अतः तुम्हें उचित यही है कि देवताओंका समस्त अधिकार उन्हें प्रदान कर दो और यदि जीवित रहना चाहते हो, तो शीघ्र ही पातालमें चले जाओ। हे दानवश्रेष्ठ। तुम शंकरजीको सामान्य देवता मत समझो शंकरजी सभी ईश्वरोंके ईश्वर तथा परमात्मा हैं ।। 23-24 ।।
[हे दैत्येन्द्र!] प्रजापतियोंके सहित इन्द्रादि समस्त देवता, सिद्ध, मुनिगण तथा नागराज सभी सर्वदा उनकी आज्ञामें रहते हैं वे विष्णु तथा ब्रह्माके स्वामी हैं और वे सगुण होकर भी निर्गुण हैं। जिनके भ्रुकुटीको टेढ़ा करनेमात्रसे सभीका प्रलय हो जाता है। शिवका यह पूर्णरूप लोकसंहारकारक है। वे सज्जनोंके रक्षक, दुष्टोंके हन्ता, निर्विकार तथा परसे भी परे हैं ।। 25-27॥वे महेश्वर ब्रह्मा तथा विष्णुके भी अधिपति हैं। हे दानवश्रेष्ठ उनकी आज्ञाकी अवहेलना नहीं करनी चाहिये। हे राजेन्द्र बहुत कहनेसे क्या लाभ? तुम मनसे विचार करके रुद्रको महेशान तथा चिदात्मक परब्रह्म जानो। अतः तुम देवताओंका राज्य तथा सम्पूर्ण अधिकार लौटा दो। हे तात! ऐसा करनेसे तुम्हारा कल्याण होगा, अन्यथा भय होगा ।। 28-30 ll
सनत्कुमार बोले- दूतकी इस प्रकारकी बात सुनकर प्रतापी दानवेन्द्र शंखचूड भवितव्यसे मोहित होकर उस शिवदूतसे कहने लगा- ॥ 31 ॥
शंखचूड बोला - [हे दूत!] मैं यह सत्य कहता हूँ कि शिवसे बिना युद्धके स्वयं न तो देवताओंका राज्य दूँगा और न तो अधिकार ही दूँगा। इस सम्पूर्ण चराचर जगत्को कालके अधीन जानना चाहिये। कालसे ही सब कुछ उत्पन्न होता है तथा कालसे ही विनष्ट भी हो जाता है। तुम रुद्र शंकरके पास जाओ और यथार्थ रूपसे मेरे द्वारा कही गयी बात कह दो, जैसा उचित हो, वे करें, तुम बहुत बातें मत करो ll 32-34 ॥ सनत्कुमार बोले- हे मुने! इस प्रकार बात करके वह पुष्पदन्त नामका शिवदूत अपने स्वामीके पास चला गया और उसने सारा वृत्तान्त यथार्थरूपसे निवेदित किया ।। 35 ॥