ब्रह्माजी बोले- हे मुने! इसी समय आप विष्णुजीसे प्रेरित होकर शिवजीको प्रसन्न करनेके लिये शीघ्र उनके पास गये। वहाँ जाकर देवकार्य करनेकी इच्छासे आपने अनेक प्रकारके स्तोत्रसे स्तुति करके रुद्रको भलीभाँति समझाया। तब सदाशिव शम्भुने आपकी बात सुनकर अपनी कृपालुता दिखायी और प्रेमपूर्वक अद्भुत दिव्य तथा उत्तम स्वरूप धारण कर लिया ॥ 1-3 ॥
कामदेवसे भी अधिक कमनीय, लावण्यके परम निधि तथा सुन्दर रूपवाले उन शिवको देखकर हे मुने! आप अत्यन्त प्रसन्न हो गये और परमानन्दसे युक्त हो अनेक प्रकारके स्तोत्रोंसे उनकी स्तुतिकर आप पुनः वहाँ आये, जहाँ मेना सभी लोगोंके साथ थीं ॥। 4-5 ।।
हे मुने! वहाँ आकर अत्यन्त हर्षित तथा प्रेमयुक्त आप हिमालयकी पत्नी मेनाको हर्षित करते हुए यह वचन कहने लगे- ॥ 6 ॥ नारदजी बोले हे विशाल नेत्रोंवाली मेने आप शिवजीके अत्युत्तम रूपको देखिये, उन्हीं करुणामय शंकरने यह महती कृपा की है॥ 7 ॥
ब्रह्माजी बोले- यह बात सुनकर शैलकामिनी मेना विस्मित हो परमानन्द प्रदान करनेवाले शिवरूपको देखने लगीं। वह रूप करोड़ों सूर्यके समान कान्तिमान् सभी अंगोंसे सुन्दर विचित्र वस्त्रसे युक्त, अनेक आभूषणोंसे अलंकृत, अत्यन्त प्रसन्न सुन्दर हास्यसेयुक्त, लावण्यमय, मनको मोहित करनेवाला, गौर आभावाला, कान्तिसम्पन्न, चन्द्ररेखासे विभूषित, विष्णु | आदि सभी देवताओंसे प्रेमपूर्वक सेवित, सिरपर सूर्य | तथा चन्द्रमाके द्वारा लगाये गये छत्रसे शोभायमान, अत्यन्त शोभामय तथा सभी प्रकारसे रमणीय था। आभूषणोंसे विभूषित उनके वाहनकी महा-शोभाका तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता ।। 8- 12 ॥
गंगा और यमुना उनपर चँवर डुला रही थीं और सिद्धियाँ उनके आगे सुन्दर नृत्य कर रही थीं ॥ 13 ॥
उस समय मेरे तथा शिवजीके साथ विष्णु, इन्द्र आदि सभी देवता अपने-अपने वेष धारणकर चल रहे थे ॥ 14 ॥
महान् मोदमें भरे हुए तथा अनेक प्रकारके रूपोंवाले गण उस समय जय-जयकार करते हुए शिवजीके आगे-आगे चल रहे थे ॥ 15 ॥
सिद्ध, अन्य देवता, महामंगलकारी मुनिगण तथा अन्य लोग भी प्रसन्न होकर शिवजीके साथ चल रहे थे ॥ 16 ॥
इसी प्रकार सजे हुए सभी देवता अपनी स्त्रियोंको साथ लिये कौतूहलसे युक्त हो परब्रह्म शंकरजीकी स्तुति करते हुए चल रहे थे। समस्त अप्सराओंको साथ लिये हुए विश्वावसु आदि गन्धर्व शिवजीके | महान् यशका गान करते हुए उनके आगे-आगे चल रहे थे ।। 17-18 ।।
हे मुनिश्रेष्ठ ! इस प्रकार हिमालयके द्वारपर शंकरके जाते समय अनेक प्रकारके महोत्सव हो रहे थे ॥ 19 ॥
हे मुनीश्वर ! उस समय परमात्मा शंकरकी जैसी शोभा थी, उसका विशेष रूपसे वर्णन कौन कर सकता है ? ॥ 20 ॥
हे मुने! उस प्रकारके रूपवाले उन | शिवजीको देखकर मेना क्षणभरके लिये चित्रलिखितके समान हो गयीं, इसके बाद वे प्रेमपूर्वक यह वचन कहने लगीं- ॥ 21 ॥
मेना बोली- हे महेशान। मेरी पुत्री धन्य है, जिसने कठिन तपस्या की। जिसके प्रभावसे आप यहाँ मेरे घर पधारे हैं ।। 22 ।।हे शिवास्वामिन् मैंने पहले जो घोर शिवनिन्दा की है, उसे आप क्षमा कीजिये और अब परम प्रसन्न हो जाइये ॥ 23 ॥
ब्रह्माजी बोले- शैलप्रिया मेनाने इस प्रकार कहकर चन्द्रमौलिकी स्तुतिकर अत्यन्त लज्जित हो हाथ जोड़कर प्रणाम किया। उसी समय नगरकी बहुत-सी स्त्रिय [अपना-अपना सारा काम छोड़कर शिवदर्शनकी इच्छासे वहाँ पहुँच गयीं। स्नान करती हुई कोई स्त्री स्नानचूर्ण लिये लिये कुतूहलमें भरकर गिरिजापति शंकरको देखनेके लिये पहुँच गयी ।। 24- 26 ॥
कोई [स्त्री] अपने स्वामीकी सेवा छोड़कर हाथमें सुन्दर चँवर लिये हुए अपनी सखीके साथ | शंकरजीके दर्शनके लिये प्रेमपूर्वक पहुँच गयी। कोई स्तनपान करते हुए अपने बालकको अतृप्त ही छोड़कर शिवजी के दर्शनकी इच्छासे आदरपूर्वक [वहाँ ] चली गयी ॥ 27-28 ।।
कोई करधनी बाँध रही थी, उसे वैसे ही लिये पहुँच गयी और कोई विपरीत वस्त्र धारण किये ही पहुँच गयी। कोई स्त्री भोजनके लिये बैठे हुए अपने पतिको छोड़कर प्रेमसे पार्वतीपतिको देखनेकी तृष्णा लिये कुतूहलमें भरकर वहाँ पहुँच गयी ॥ 29-30 ।।
कोई स्त्री एक ही आँखमें अंजन लगाकर एक हाथमें अंजन और दूसरे हाथमें शलाका लिये हुए हिमालयपुत्री के पतिको देखनेके लिये चल पड़ी ॥ 31 ॥ कोई स्त्री पैरोंमें महावर लगा ही रही थी कि बाजेका शब्द सुनकर वह उसे वहीं छोड़कर दर्शनके लिये दौड़ पड़ी। इस प्रकार स्त्रिय विविध कार्योको तथा निवासस्थानको छोड़कर पहुँच गयीं। [उस समय] शिवका रूप देखकर वे मोहित हो गर्यो तब शिवदर्शनसे हर्षित हुई वे प्रेमसे विभोर हो उनकी मूर्ति हृदयमें धारणकर [परस्पर] यह वचन कहने लगीं ॥32-34 ॥
पुरवासिनियाँ बोली- हिमालयपुरी में रहनेवालोंक नेत्र सफल हो गये, जिस-जिसने इस स्वरूपको देखा, आज उसका जन्म सफल हो गया। उसीका जन्मसफल है एवं उसीकी क्रियाएँ सफल है, जिसने सम्पूर्ण पापका नाश करनेवाले साक्षात् शिवका दर्शन किया ।। 35-36 ll
पार्वतीने सब कुछ सिद्ध कर लिया, जो उसने शिवके लिये तप किया। यह पार्वती शिवको पतिरूपमें प्राप्तकर धन्य तथा कृतकृत्य हो गयी ॥ 37 ॥ यदि ब्रह्मा प्रसन्नतापूर्वक शिवा-शिवकी इस जोड़ीको न मिलाते तो, उनका सम्पूर्ण श्रम व्यर्थ हो जाता ॥ 38 ॥ इन्होंने बहुत ठीक किया, जो यहाँ उत्तम जोड़ीका संयोग करा दिया। इससे सभीके समस्त कार्योंकी सार्थकता हो गयी। बिना तपस्याके मनुष्योंको शिवजीका दर्शन दुर्लभ है, [आज] शिवजीके दर्शनसे ही सभी लोग कृतार्थ हो गये जिस प्रकार पूर्व समयमें लक्ष्मीने नारायणको पतिरूपमें प्राप्त किया था, उसी प्रकार ये पार्वती देवी भी शिवको प्राप्तकर सुशोभित हो गयीं ॥ 39-41 ॥
जिस प्रकार सरस्वतीने बयाको पतिरूपमें पाया था, वैसे ही पार्वती देवी शंकरको प्राप्तकर सुशोभित हो गयीं ॥ 42 ॥
हम सभी स्त्रियाँ धन्य हैं तथा सभी पुरुष धन्य हैं, जो-जो गिरिजापति सर्वेश्वर शिवका दर्शन कर रहे हैं ।। 43 ।।
ब्रह्माजी बोले- [ हे नारद!] ऐसा कहकर उन लोगोंने चन्दन एवं अक्षतसे शिवजीका पूजन किया और आदरपूर्वक उनके ऊपर लाजाको वर्षा की ।। 44 ll
उसके अनन्तर सभी स्त्रियाँ उत्सुक होकर मेनाके साथ खड़ी रहीं और हिमालय तथा मेनाके महान् भाग्यकी
सराहना करने लगीं। हे मुने! स्त्रियोंके द्वारा कही गयी
उस प्रकारकी शुभ बातोंको सुनकर विष्णु आदि सभी
देवताओंके साथ प्रभु अत्यन्त प्रसन्न हुए । ll45-46 ।।