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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 3, अध्याय 3 - Sanhita 3, Adhyaya 3

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भगवान् शिवका अर्धनारीश्वर अवतार एवं सतीका प्रादुर्भाव

नन्दीश्वर बोले- हे तात! हे महाप्राज्ञ! अब मैं ब्रह्माजीकी मनोकामनाओंको पूर्ण करनेवाले शिवके उत्तम अर्धनारीश्वर नामक रूपका वर्णन कर रहा हूँ, उसे सुनें। ब्रह्माके द्वारा विरचित समस्त प्रजाओंका जब विस्तार नहीं हुआ, तब उस दुःखसे व्याकुल हो वे चिन्तित रहने लगे ॥ 1-2 ॥

तब आकाशवाणी हुई कि आप मैथुनी सृष्टि करें। यह सुनकर ब्रह्माने मैथुनी सृष्टि करनेका निश्चय किया। उस समय शिवजीसे स्त्रियाँ उत्पन्न नहीं हुई थीं, अतः ब्रह्माजी मैथुनी सृष्टि करनेमें समर्थ नहीं हो सके ।। 3-4 ll

शिवके प्रभाव के बिना इन प्रजाओंकी वृद्धि नहीं होगी ऐसा विचार करते हुए ब्रह्माजी तप करनेको उद्यत हुए। पार्वतीरूप परम शक्तिसे संयुक्त परमेश्वर शिवका हृदयमें ध्यानकर वे अत्यन्त प्रीतिसे महान् तपस्या करने लगे। इस प्रकारकी उम्र तपस्यासे संयुक्त हुए उन स्वयम्भू ब्रह्मापर थोड़े समयमें शिवजी शीघ्र ही प्रसन्न हो गये ॥ 5-7 ॥उसके पश्चात् भगवान् हर अपनी पूर्ण चैतन्यमयी, ऐश्वर्यशालिनी तथा सर्वकामप्रदायिनी मूर्तिमें प्रविष्ट होकर अर्धनारीनरका रूप धारणकर ब्रह्माके पास गये ॥ 8 ॥

वे ब्रह्माजी परम शक्तिसे सम्पन्न उन परमेश्वरको देखकर दण्डवत् प्रणामकर हाथ जोड़े हुए उनको स्तुति करने लगे। इसके बाद देवाधिदेव विश्वकर्ता महेश्वरने अत्यन्त प्रसन्न हो मेघके समान गम्भीर वाणीमें सृष्टिके लिये ब्रह्माजीसे कहा- ॥ 9-10 ॥

ईश्वर बोले- वत्स! हे महाभाग ! हे मेरे पुत्र पितामह! मैं तुम्हारे समस्त मनोरथको यथार्थ रूपमें जान गया है। प्रजाओंकी वृद्धिके लिये ही तुमने इस समय तपस्या की है। उस तपस्यासे मैं सन्तुष्ट हूँ और तुम्हें इच्छित वरदान दे रहा हूँ ॥ 11-12 ॥

परम उदार एवं स्वभावसे मधुर यह वचन कहकर भगवान् शिवने अपने शरीरके [वाम] भागसे | देवी पार्वतीको अलग किया ll 13 ॥

शिवसे अलग हुई और पृथक् रूपमें स्थित उन परम शक्तिको देखकर विनीत भावसे प्रणाम करके ब्रह्माजी उनसे प्रार्थना करने लगे- ll 14 ll

ब्रह्माजी बोले- हे शिवे! आपके पति देवाधिदेव शिवजीने सृष्टिके आदिमें मुझे उत्पन्न किया और उन्हीं परमात्मा शिवने सभी प्रजाओंको नियुक्त किया है 15 ॥

हे शिवे! [उनकी आज्ञासे] मैंने अपने मनसे सभी देवताओं आदिकी सृष्टि की, किंतु बार-बार सृष्टि करने भी प्रजाओंकी वृद्धि नहीं हो रही है। इसलिये अब मैथुनसे होनेवाली सृष्टि करके ही मैं अपनी समस्त प्रजाओंकी वृद्धि करना चाहता हूँ ॥ 16-17 ॥

आपसे पहले शिवजीके शरीरसे स्त्रियाँका अविनाशी समुदाय उत्पन्न नहीं हुआ, इसलिये मैं उस नारीकुलकी सृष्टि करनेमें असमर्थ रहा। सभी शक्तियाँ आपसे ही उत्पन्न होती है, इसलिये मैं परम शक्तिस्वरूपा | आप अखिलेश्वरीसे प्रार्थना कर रहा हूँ ॥ 18-19 ॥

हे शिवे हे मातः इस चराचर जगत्की वृद्धिके | लिये नारीकुलकी रचनाका सामर्थ्य प्रदान कीजिये। हे शिवप्रिये! आपको नमस्कार है ॥ 20 ॥हे वरदेश्वरि। मैं आपसे एक अन्य वरकी प्रार्थना करता हूँ, मुझपर कृपाकर उसे प्रदान करें। हे जगन्मातः! आपको नमस्कार है ll 21 ॥

हे सर्वगे! हे अम्बिके। इस चराचर जगत्की वृद्धिके लिये आप अपने एक सर्वसमर्थरूपसे मेरे पुत्र दक्षकी कन्याके रूपमें अवतरित हों ॥ 22 ॥

ब्रह्माजीद्वारा इस प्रकार याचना करनेपर 'ऐसा ही होगा' - यह वचन कहकर देवी परमेश्वरीने ब्रह्माको वह शक्ति प्रदान की। इस प्रकार [ यह स्पष्ट ही है कि] भगवान् शिवकी परमशक्ति वे शिवादेवी विश्वात्मिका (स्त्रीपुरुषात्मिका) हैं। उन्होंने अपनी भौहोंके मध्यसे अपने ही समान कान्तिवाली एक दूसरी शक्तिका सृजन किया ।। 23-24 ।।

उस शक्तिको देखकर देवताओंमें श्रेष्ठ कृपासिन्धु लीलाकारी महेश्वर हर हँसते हुए उन जगन्मातासे कहने लगे- ॥ 25 ॥

शिवजी बोले- हे देवि! परमेष्ठी ब्रह्माने तपस्याके द्वारा आपकी आराधना की है, अतः आप प्रसन्न हो जाइये और प्रेमपूर्वक उनके सारे मनोरथोंको पूर्ण कीजिये। तब उन देवीने परमेश्वर शिवजीकी आज्ञा शिरोधार्य करके ब्रह्माजी के प्रार्थनानुसार दक्षपुत्री होना स्वीकार कर लिया ।। 26-27 ।।

हे मुने! इस प्रकार ब्रह्माको अपार शक्ति प्रदानकर वे शिवा शिवजीके शरीरमें प्रविष्ट हो गयीं और प्रभु शिव भी अन्तर्धान हो गये ॥ 28 ॥

उसी समय से इस लोकमें सृष्टि कर्ममें स्त्रियोंको भाग प्राप्त हुआ। तब वे ब्रह्माजी बहुत प्रसन्न हुए और मैथुनी सृष्टि होने लगी। हे तात! इस प्रकार मैंने आपसे शिवजीके अत्यन्त उत्तम तथा सज्जनोंको परम मंगल प्रदान करनेवाले इस अर्धनारी और अर्धनर रूपका वर्णन कर दिया ।। 29-30 ।।

जो इस निष्पाप कथाको पढ़ता अथवा सुनता है, यह [इस लोकमें] सभी सुखोंको भोगकर परम गति प्राप्त कर लेता है ॥ 31 ॥

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] सूतजीसे शौनकादि मुनियोंका शिवावतारविषयक प्रश्न
  2. [अध्याय 2] भगवान् शिवकी अष्टमूर्तियों का वर्णन
  3. [अध्याय 3] भगवान् शिवका अर्धनारीश्वर अवतार एवं सतीका प्रादुर्भाव
  4. [अध्याय 4] वाराहकल्पके प्रथमसे नवम द्वापरतक हुए व्यासों एवं शिवावतारोंका वर्णन
  5. [अध्याय 5] वाराहकल्पके दसवेंसे अट्ठाईसवें द्वापरतक होनेवाले व्यासों एवं शिवावतारोंका वर्णन
  6. [अध्याय 6] नन्दीश्वरावतारवर्णन
  7. [अध्याय 7] नन्दिकेश्वरका गणेश्वराधिपति पदपर अभिषेक एवं विवाह
  8. [अध्याय 8] भैरवावतारवर्णन
  9. [अध्याय 9] भैरवावतारलीलावर्णन
  10. [अध्याय 10] नृसिंहचरित्रवर्णन
  11. [अध्याय 11] भगवान् नृसिंह और वीरभद्रका संवाद
  12. [अध्याय 12] भगवान् शिवका शरभावतार-धारण
  13. [अध्याय 13] भगवान् शंकरके गृहपति अवतारकी कथा
  14. [अध्याय 14] विश्वानरके पुत्ररूपमें गृहपति नामसे शिवका प्रादुर्भाव
  15. [अध्याय 15] भगवान् शिवके गृहपति नामक अग्नीश्वरलिंगका माहात्म्य
  16. [अध्याय 16] यक्षेश्वरावतारका वर्णन
  17. [अध्याय 17] भगवान् शिवके महाकाल आदि प्रमुख दस अवतारोंका वर्णन
  18. [अध्याय 18] शिवजीके एकादश रुद्रावतारोंका वर्णन
  19. [अध्याय 19] शिवजीके दुर्वासावतारकी कथा
  20. [अध्याय 20] शिवजीका हनुमान्के रूपमें अवतार तथा उनके चरितका वर्णन
  21. [अध्याय 21] शिवजीके महेशावतार वर्णनक्रममें अम्बिकाके शापसे भैरवका बेतालरूपये पृथ्वीपर अवतरित होना
  22. [अध्याय 22] शिवके वृषेश्वरावतार वर्णनके प्रसंगों समुद्रमन्थनकी कथा
  23. [अध्याय 23] विष्णुद्वारा भगवान् शिवके वृषभेश्वरावतारका स्तवन
  24. [अध्याय 24] भगवान् शिवके पिप्पलादावतारका वर्णन
  25. [अध्याय 25] राजा अनरण्यकी पुत्री चाके साथ पिप्पलादका विवाह एवं उनके वैवाहिक जीवनका वर्णन
  26. [अध्याय 26] शिवके वैश्यनाथ नामक अवतारका वर्णन
  27. [अध्याय 27] भगवान् शिवके द्विजेश्वरावतारका वर्णन
  28. [अध्याय 28] नल एवं दमयन्तीके पूर्वजन्मकी कथा तथा शिवावतार यतीश्वरका हंसरूप धारण करना
  29. [अध्याय 29] भगवान् शिवके कृष्णदर्शन नामक अवतारकी कथा
  30. [अध्याय 30] भगवान् शिवके अवधूतेश्वरावतारका वर्णन
  31. [अध्याय 31] शिवजीके भिक्षुवर्यावतारका वर्णन
  32. [अध्याय 32] उपमन्युपर अनुग्रह करनेके लिये शिवके सुरेश्वरावतारका वर्णन
  33. [अध्याय 33] पार्वतीके मनोभावकी परीक्षा लेनेवाले ब्रह्मचारीस्वरूप शिवावतारका वर्णन
  34. [अध्याय 34] भगवान् शिवके सुनर्तक नटावतारका वर्णन
  35. [अध्याय 35] परमात्मा शिवके द्विजावतारका वर्णन
  36. [अध्याय 36] अश्वत्थामाके रूपमें शिवके अवतारका वर्ण
  37. [अध्याय 37] व्यासजीका पाण्डवोंको सान्त्वना देकर अर्जुनको इन्द्रकील पर्वतपर तपस्या करने भेजना
  38. [अध्याय 38] इन्द्रका अर्जुनको वरदान देकर शिवपूजनका उपदेश देना
  39. [अध्याय 39] भीलस्वरूप गणेश्वर एवं तपस्वी अर्जुनका संवाद
  40. [अध्याय 40] मूक नामक दैत्यके वधका वर्णन
  41. [अध्याय 41] भगवान् शिवके किरातेश्वरावतारका वर्णन
  42. [अध्याय 42] भगवान् शिवके द्वादश ज्योतिर्लिंगरूप अवतारोंका वर्णन