View All Puran & Books

शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 3 (पार्वती खण्ड) , अध्याय 39 - Sanhita 2, Khand 3 (पार्वती खण्ड) , Adhyaya 39

Previous Page 134 of 466 Next

भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना

नारदजी बोले - हे विष्णुशिष्य हे महाप्राज्ञ। हे तात! हे विधे आपको प्रणाम है। हे कृपानिधे। हमलोगोंने आपसे यह अद्भुत कथा सुनी। अब मैं शिवजीके वैवाहिक चरित्रको सुनना चाहता हूँ, जो परम मंगलदायक तथा सब प्रकारकी पापराशिका विनाश करनेवाला है ॥ 1-2 ॥

मंगलपत्रिका प्राप्त करनेके बाद महादेवजीने क्या किया? परमात्मा शिवजीकी वह दिव्य कथा सुनाइये ll 3 ll

ब्रह्माजी बोले- हे वत्स! हे महाप्राज्ञ। महादेवजीने मंगलपत्रिका प्राप्त करनेके पश्चात् जो किया, भगवान् शंकरके उस यशको सुनिये ॥ 4 ॥

विभु शिवजी प्रसन्नतापूर्वक मंगलपत्रिका ग्रहणकर जोरसे हँसे और उन्होंने प्रसन्नचित्त होकर उन लग्नपत्रिका लानेवालोंका बड़ा स्वागत सम्मान किया ॥ 5 ॥

उन्होंने उस लग्नपत्रिकाको सम्यक् पढ़कर विधि-विधान से स्वीकार किया तथा उन लोगोंको आदरसे बहुत सम्मानितकर विदा कर दिया। उन्होंने सप्तर्षियोंसे कहा कि आपलोगोंने यह परम कल्याणकारी कार्य ठीकसे सम्पन्न किया। अब मैंने विवाह स्वीकार कर लिया है, अतः मेरे विवाहमें आपलोग [ अवश्य ] आइयेगा ।। 6-7 ।।

शिवजीके इस प्रकारके वचनको सुनकर वे परम प्रसन्न हो गये और उनको प्रणामकर तथा उनकी प्रदक्षिणा करके अपने परम भाग्यकी सराहना करते हुए अपने घर चले गये। हे मुने! तब महान् लीला करनेवाले, देवताओंके सहित देवेश्वर प्रभु शिवजीने लौकिकाचारका आश्रयण करते हुए शीघ्र आपका स्मरण किया ।। 8-9 ॥

उस समय आप अपने सौभाग्यकी प्रशंसा करते हुए बड़ी प्रसन्नताके साथ वहाँ आये और हाथ जोड़कर सिर झुकाकर विनम्रतासे उन्हें प्रणाम करते हुए बारम्बार 'जय' शब्दका उच्चारण करके आपनेउनकी स्तुति की। हे मुने! उसके बाद अपने भाग्यकी प्रशंसा करते हुए शिवजीसे आज्ञा प्रदान करनेके लिये आपने निवेदन किया ।। 10-11 ।। हे मुनिवर। तब प्रसन्नचित्त होकर लौकिकी
गतिको दिखाते हुए शुभ वचनोंसे आपको प्रसन्न करते हुए शिवजी कहने लगे-12 ॥ शिवजी बोले- हे मुनिश्रेष्ठ मैं जो कहता हूँ, उसे प्रेमपूर्वक सुनिये। आप मेरे परमप्रिय तथा भक्तराजशिरोमणि हैं, इसलिये आपसे कहता हूँ॥ 13 ॥ आपकी आज्ञासे पार्वतीने जिस प्रकारकी महान् तपस्या की थी, उससे सन्तुष्ट होकर मैंने उसे पति
बननेके लिये वरदान दे दिया है ॥ 14 ॥

मैं उसकी भक्तिके वशीभूत होकर अब विवाह करना चाहता हूँ। सप्तर्षियोंने सारा कार्य सम्पन्न कर दिया है और विवाहका लग्न भी निश्चित कर दिया है ॥ 15 ॥

हे नारद! वह विवाह आजके सातवें दिन होगा। मैं लोकरीतिका आश्रय लेकर [वैवाहिक) महोत्सव करूँगा ॥ 16 ll

ब्रह्माजी बोले- हे तात! इस प्रकार परमात्मा शंकरका वचन सुनकर आप परम प्रसन्न हो उन प्रभुको प्रणाम करके यह वचन कहने लगे- ॥ 17 ॥ नारदजी बोले - आपका यह व्रत है कि आप भक्तोंके अधीन रहते हैं और ऐसा सभीका मत भी है. इसलिये आपने यह उचित ही किया; क्योंकि पार्वती यही चाहती भी थीं। हे विभो ! अब मेरे योग्य जो कोई कार्य हो, आप मुझे बताइये आपको प्रणाम है, आप मुझे अपना सेवक मानकर कृपा कीजिये ॥ 18-19 ।। ब्रह्माजी बोले- हे मुनीश्वर ! जब आपने शिवजी से इस प्रकार कहा, तब भक्तवत्सल शिवजी प्रसन्नचित्त होकर आदरपूर्वक आपसे कहने लगे- ॥ 20 ॥

शिवजी बोले- हे मुने। आप मेरी ओरसे विष्णु आदि देवों, मुनियों, सिद्धों तथा अन्य लोगोंको भी चारों ओर निमन्त्रण दीजिये। मेरी आज्ञाको मानते हुए उपर्युक्त सभी लोग उत्साह तथा शोभासे युक्त हो अपनी स्त्री, पुत्र तथा गणोंके सहित इस विवाह में आयें ।। 21-22 ।।हे मुने! जो इस विवाहोत्सवमें सम्मिलित नहीं होंगे, उन्हें मैं अपना नहीं मानेगा, चाहे वे देवता ही क्यों न हों ।। 23 ।।

ब्रह्माजी बोले- हे मुने! ईश्वरकी इस आज्ञाको स्वीकार करके शिवप्रिय आपने शीघ्रतासे उन-उनके यहाँ जाकर सबको निमन्त्रण दे दिया ॥ 24 ॥

हे नारद! इस प्रकार शिवजीके दूतका कार्य शीघ्रता से सम्पन्नकर शिवजीके पास आकर आप मुनिवर उनकी आज्ञासे वहीं बैठ गये। शिवजी भी उन लोगोंके आगमनकी प्रतीक्षा करने लगे। उनके गण सभी जगह नृत्य-गान पूर्वक उत्सव करने लगे । ll 25-26 ॥

इसी समय अत्यन्त सुन्दर वेश-भूषासे सुसज्जित | होकर भगवान् विष्णु अपने परिकरोंके साथ कैलास आये ॥ 27 ॥

वे अपनी भार्या तथा पार्षदोंके साथ भक्तिपूर्वक प्रणामकर उनकी आज्ञा प्राप्त करके प्रसन्नचित्त हो बैठ गये। उसके बाद मैं भी अपने गणोंके साथ प्रसन्नतापूर्वक कैलासपर्वतपर गया और प्रभुको प्रणाम करके अपने गणसहित आनन्दित हो बैठ गया ।। 28-29 ।।

इन्द्र आदि लोकपाल भी अपनी पत्नियों तथा सेवकोंके सहित नाना प्रकारके अलंकारोंसे अलंकृत हो उत्सव मनाते हुए वहाँ आये ॥ 30 ॥

इसी प्रकार निमन्त्रित मुनि, नाग, सिद्ध तथा उपदेव एवं अन्य दूसरे लोग भी वहाँ आये ॥ 31 ॥ उस समय महेश्वरने वहाँ आये उन सभी देवता आदिका प्रसन्नतासे पृथक्-पृथक् सत्कार किया॥ 32 ॥ उस समय कैलासपर देवस्त्रियोंने यथायोग्य नृत्य आदि करना प्रारम्भ कर दिया तथा वहाँ अद्भुत एवं महान् उत्सव होने लगा ॥ 33 ॥ हे मुने! इसी समय जो विष्णु आदि देवगण शिवके यहाँ आये हुए थे, वे सब शिवकी वरयात्राकी तैयारी करानेके लिये प्रसन्नतासे निवास करने लगे ॥ 34 ॥ उस समय शिवजीकी आज्ञासे आये हुए सभी लोग शिवजीके कार्यको यह मेरा ही कार्य है-ऐसा समझकर शिवकी सेवा करने लगे ॥ 35 ॥

सप्तमातृकाओंने शिवजीके विवाहका दूलह वेष | बड़े प्रेमसे शिवजी के अनुरूप सजाया ॥ 36 ॥हे मुनिश्रेष्ठ परमेश्वर प्रभुकी इच्छासे ही उनके स्वाभाविक वेषको भूषणोंसे सजाया गया ॥ 37 ॥

सप्तमातृकाओंने मुकुटके स्थानपर चन्द्रमाको बाँध दिया। उनके ललाटमें रहनेवाला तीसरा नेत्र तिलकरूपसे शोभित किया गया ॥ 38 ॥ हे मुने। नाना रत्नोंसे देदीप्यमान दो सर्प दोनों कानोंको अलंकृत करनेवाले कुण्डलके रूपमें शोभित हुए ।। 39 ।। उनके अंगमें निवास करनेवाले अन्य सर्प अनेक रत्नोंसे युक्त आभूषणोंके समान सुशोभित हुए ।। 40 ।। उनके शरीर में लगी हुई विभूति चन्दनादि पदार्थोंसे उत्पन्न उत्तम अंगराग हो गया। उनका परम सुन्दर गजचर्म दिव्य दुकूलके समान हो गया ।। 41 ।।

उस समय शिवजीका ऐसा सुन्दर रूप हो गया, जो अवर्णनीय था। वे साक्षात् ईश्वर हैं, अतः उन्होंने सभी ऐश्वर्य धारण कर लिया था। उस समय सभी देवता, दानव, नाग, पन्नग, अप्सराएँ तथा महर्षिगण उत्सवसे युक्त होकर शिवजीके समीप जाकर प्रसन्न हो कहने लगे ।। 42-43 ।।

सभी लोग कहने लगे- हे महादेव ! हे महेश्वर ! हिमालयपुत्री महादेवी पार्वतीसे विवाह करनेके लिये आप हम सभीके साथ कृपापूर्वक प्रस्थान करें ॥ 44 ॥

तदुपरान्त शिवतत्त्वको जाननेके कारण प्रसन्न चित्तवाले विष्णुने भक्तिपूर्वक शिवजीको प्रणामकर उस प्रस्तावके अनुरूप कहना प्रारम्भ किया ।। 45 ।। विष्णु बोले- हे देवदेव! हे महादेव हे शरणागतवत्सल! आप अपने भक्तोंका मनोरथ पूर्ण करनेवाले हैं। अतः हे प्रभो! मेरा निवेदन सुनें ॥ 46 ॥

हे शम्भो ! हे शंकर! आप गृह्यसूत्रकी विधिसे गिरीशसुता देवी पार्वती के साथ अपने विवाहका कर्म कीजिये हे हर! यदि आप गृह्यसूत्रकी विधिसे विवाहकर्म करेंगे, तो सारे लोकमें इसी प्रकारसे विवाहकी विधि प्रसिद्ध हो जायगी। हे नाथ ! इस लोकमें आप अपने यशकी घोषणा करते हुए कुलधर्मके अनुसार मण्डपस्थापन तथा नान्दीमुख कृत्य प्रसन्नतापूर्वक कीजिये ॥ 47-49 ॥ब्रह्माजी बोले- विष्णुके द्वारा इस प्रकार कहे जानेपर परमेश्वर शंकरजीने समस्त लौकिकाचार मुझ ब्रह्माके द्वारा सम्पन्न करवाया। [हे नारद!] उन्होंने सारे अभ्युदयका कार्यभार मेरे ऊपर सौंप दिया और मैंने भी मुनियोंके साथ प्रेमपूर्वक सभी कृत्योंको पूरा किया ।। 50-51 ll

हे महामुने! कश्यप, अत्रि, वसिष्ठ, गौतम, भागुरि, गुरु, कण्व, बृहस्पति, शक्ति, जमदग्नि, पराशर, मार्कण्डेय, शिलापाक, अरुणपाल, अकृतश्रम, अगस्त्य, च्यवन, गर्ग, शिलाद, दधीचि, उपमन्यु, भरद्वाज, अकृतव्रण, पिप्पलाद, कुशिक, कौत्स, शिष्योंके सहित व्यास-ये तथा अन्य बहुत-से ऋषिगण शिवजीके समीप आये और मेरी प्रेरणासे उन्होंने विधिवत् क्रिया सम्पन्न की ॥ 52-55 ॥

वेद-वेदांगके पारगामी उन ऋषियोंने शिवजीका समस्त कौतुक मंगलकर वेदरीतिके अनुसार उनकी रक्षाका विधान किया। उन सम्पूर्ण ऋषियोंने ऋक्, यजुः, साम एवं अन्य नाना प्रकारके रक्षोघ्नसूक्तोंसे अनेक प्रकारसे मंगलपाठ किये। उन्होंने विघ्नशान्तिके लिये मुझसे तथा श्रीशिवजीसे मण्डपस्थ देवताओं तथा समस्त ग्रहोंका पूजन करवाया ॥ 56-58 ॥

इस प्रकार शिवजीने प्रसन्न होकर समस्त लौकिक कुलाचार तथा वैदिक विधिका सम्पादनकर प्रसन्नतापूर्वक ब्राह्मणोंको प्रणाम किया। उसके बाद देवताओं और ब्राह्मणोंको आगेकर सर्वेश्वर शिवजी अपने पर्वतोत्तम कैलाससे प्रसन्नतापूर्वक चले ।। 59-60 ॥

लीला करनेमें प्रवीण वे शिवजी उन देवताओं तथा ब्राह्मणोंके साथ कैलासके बहिर्भागमें आकर प्रेमसे स्थित हो गये ॥ 61 ॥

देवताओंने उस समय महेशकी प्रसन्नताके लिये अनेक प्रकारके गाने-बजाने तथा नृत्य-सम्बन्धी अनेक प्रकारके उत्सव किये ॥ 62 ॥

Previous Page 134 of 466 Next

शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] पितरोंकी कन्या मेनाके साथ हिमालयके विवाहका वर्णन
  2. [अध्याय 2] पितरोंकी तीन मानसी कन्याओं-मेना, धन्या और कलावतीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त तथा सनकादिद्वारा प्राप्त शाप एवं वरदानका वर्णन
  3. [अध्याय 3] विष्णु आदि देवताओंका हिमालयके पास जाना, उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बाकी स्तुति करना
  4. [अध्याय 4] उमादेवीका दिव्यरूपमें देवताओंको दर्शन देना और अवतार ग्रहण करनेका आश्वासन देना
  5. [अध्याय 5] मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न होकर देवीका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेनासे मैनाकका जन्म
  6. [अध्याय 6] देवी उमाका हिमवान्‌के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, देवीका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे वार्तालाप तथा पुनः नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना
  7. [अध्याय 7] पार्वतीका नामकरण तथा उनकी बाललीलाएँ एवं विद्याध्ययन
  8. [अध्याय 8] नारद मुनिका हिमालयके समीप गमन, वहाँ पार्वतीका हाथ देखकर भावी लक्षणोंको बताना, चिन्तित हिमवान्‌को शिवमहिमा बताना तथा शिवसे विवाह करनेका परामर्श देना
  9. [अध्याय 9] पार्वतीके विवाहके सम्बन्धमें मेना और हिमालयका वार्तालाप, पार्वती और हिमालयद्वारा देखे गये अपने स्वप्नका वर्णन
  10. [अध्याय 10] शिवजीके ललाटसे भौमोत्पत्ति
  11. [अध्याय 11] भगवान् शिवका तपस्याके लिये हिमालयपर आगमन, वहाँ पर्वतराज हिमालयसे वार्तालाप
  12. [अध्याय 12] हिमवान्‌का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा मांगना, शिवद्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना
  13. [अध्याय 13] पार्वती और परमेश्वरका दार्शनिक संवाद, शिवका पार्वतीको अपनी सेवाके लिये आज्ञा देना, पार्वतीका महेश्वरकी सेवामें तत्पर रहना
  14. [अध्याय 14] तारकासुरकी उत्पत्तिके प्रसंगों दितिपुत्र बज्रांगकी कथा, उसकी तपस्या तथा वरप्राप्तिका वर्णन
  15. [अध्याय 15] वरांगीके पुत्र तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुरकी तपस्या एवं ब्रह्माजीद्वारा उसे वरप्राप्ति, वरदानके प्रभावसे तीनों लोकोंपर उसका अत्याचार
  16. [अध्याय 16] तारकासुरसे उत्पीड़ित देवताओंको ब्रह्माजीद्वारा सान्त्वना प्रदान करना
  17. [अध्याय 17] इन्द्रके स्मरण करनेपर कामदेवका उपस्थित होना, शिवको तपसे विचलित करनेके लिये इन्द्रद्वारा कामदेवको भेजना
  18. [अध्याय 18] कामदेवद्वारा असमयमें वसन्त ऋतुका प्रभाव प्रकट करना, कुछ क्षणके लिये शिवका मोहित होना, पुनः वैराग्य भाव धारण करना
  19. [अध्याय 19] भगवान् शिवकी नेत्रज्वालासे कामदेवका भस्म होना और रतिका विलाप, देवताओं द्वारा रतिको सान्त्वना प्रदान करना और भगवान् शिवसे कामको जीवित करनेकी प्रार्थना करना
  20. [अध्याय 20] शिवकी क्रोधाग्निका वडवारूप धारण और ब्रह्माद्वारा उसे समुद्रको समर्पित करना
  21. [अध्याय 21] कामदेवके भस्म हो जानेपर पार्वतीका अपने घर आगमन, हिमवान् तथा मेनाद्वारा उन्हें धैर्य प्रदान करना, नारदद्वारा पार्वतीको पंचाक्षर मन्त्रका उपदेश
  22. [अध्याय 22] पार्वतीकी तपस्या एवं उसके प्रभावका वर्णन
  23. [अध्याय 23] हिमालय आदिका तपस्यानिरत पार्वतीके पास जाना, पार्वतीका पिता हिमालय आदिको अपने तपके विषयमें दृढ़ निश्चयकी बात बताना, पार्वतीके तपके प्रभावसे त्रैलोक्यका संतप्त होना, सभी देवताओंका भगवान् शंकरके पास जाना
  24. [अध्याय 24] देवताओंका भगवान् शिवसे पार्वतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, भगवान्का विवाहके दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करनेपर स्वीकार कर लेना
  25. [अध्याय 25] भगवान् शंकरकी आज्ञासे सप्तर्षियोंद्वारा पार्वतीके शिवविषयक अनुरागकी परीक्षा करना और वह वृत्तान्त भगवान् शिवको बताकर स्वर्गलोक जाना
  26. [अध्याय 26] पार्वतीकी परीक्षा लेनेके लिये भगवान् शिवका जटाधारी ब्राह्मणका वेष धारणकर पार्वतीके समीप जाना, शिव-पार्वती संवाद
  27. [अध्याय 27] जटाधारी ब्राह्मणद्वारा पार्वतीके समक्ष शिवजीके स्वरूपकी निन्दा करना
  28. [अध्याय 28] पार्वतीद्वारा परमेश्वर शिवकी महत्ता प्रतिपादित करना और रोषपूर्वक जटाधारी ब्राह्मणको फटकारना, शिवका पार्वतीके समक्ष प्रकट होना
  29. [अध्याय 29] शिव और पार्वतीका संवाद, विवाहविषयक पार्वतीके अनुरोधको शिवद्वारा स्वीकार करना
  30. [अध्याय 30] पार्वतीके पिताके घरमें आनेपर महामहोत्सवका होना, महादेवजीका नटरूप धारणकर वहाँ उपस्थित होना तथा अनेक लीलाएँ दिखाना, शिवद्वारा पार्वतीकी याचना, किंतु माता-पिताके द्वारा मना करनेपर अन्तर्धान हो जाना
  31. [अध्याय 31] देवताओंके कहनेपर शिवका ब्राह्मण वेषमें हिमालयके यहाँ जाना और शिवकी निन्दा करना
  32. [अध्याय 32] ब्राह्मण वेषधारी शिवद्वारा शिवस्वरूपकी निन्दा सुनकर मेनाका कोपभवनमें गमन शिवद्वारा सप्तर्षियोंका स्मरण और उन्हें हिमालयके घर भेजना, हिमालयकी शोभाका वर्णन तथा हिमालयद्वारा सप्तर्षियोंका स्वागत
  33. [अध्याय 33] वसिष्ठपत्नी अरुन्धती reद्वारा मेना को समझाना तथा
  34. [अध्याय 34] सप्तर्षियोंद्वारा हिमालयको राजा अनरण्यका आख्यान सुनाकर पार्वतीका विवाह शिवसे करनेकी प्रेरणा देना
  35. [अध्याय 35] धर्मराजद्वारा मुनि पिप्पलादकी भार्या सती पद्माके पातिव्रत्यकी परीक्षा, पद्माद्वारा धर्मराजको शाप प्रदान करना तथा पुनः चारों युगोंमें शापकी व्यवस्था करना, पातिव्रत्यसे प्रसन्न हो धर्मराजद्वारा पद्माको अनेक वर प्रदान करना, महर्षि वसिष्ठद्वारा हिमवान्से पद्माके दृष्टान्तद्वारा अपनी पुत्री शिवको सौंपनेके लिये कहना
  36. [अध्याय 36] सप्तर्षियोंके समझानेपर हिमवान्‌का शिवके साथ अपनी पुत्रीके विवाहका निश्चय करना, सप्तर्षियोंद्वारा शिवके पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त बताकर अपने धामको जाना
  37. [अध्याय 37] हिमालयद्वारा विवाहके लिये लग्नपत्रिकाप्रेषण, विवाहकी सामग्रियोंकी तैयारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियोंका दिव्य रूपमें सपरिवार हिमालयके घर आगमन
  38. [अध्याय 38] हिमालयपुरीकी सजावट, विश्वकर्माद्वारा दिव्यमण्डप एवं देवताओंके निवासके लिये दिव्यलोकोंका निर्माण करना
  39. [अध्याय 39] भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना
  40. [अध्याय 40] शिवबरातकी शोभा भगवान् शिवका बरात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान
  41. [अध्याय 41] नारदद्वारा हिमालयगृहमें जाकर विश्वकर्माद्वारा बनाये गये विवाहमण्डपका दर्शनकर मोहित होना और वापस आकर उस विचित्र रचनाका वर्णन करना
  42. [अध्याय 42] हिमालयद्वारा प्रेषित मूर्तिमान् पर्वतों और ब्राह्मणोंद्वारा बरातकी अगवानी, देवताओं और पर्वतोंके मिलापका वर्णन
  43. [अध्याय 43] मेनाद्वारा शिवको देखनेके लिये महलकी छतपर जाना, नारदद्वारा सबका दर्शन कराना, शिवद्वारा अद्भुत लीलाका प्रदर्शन, शिवगणों तथा शिवके भयंकर वेषको देखकर मेनाका मूर्च्छित होना
  44. [अध्याय 44] शिवजीके रूपको देखकर मेनाका विलाप, पार्वती तथा नारद आदि सभीको फटकारना, शिवके साथ कन्याका विवाह न करनेका हठ, विष्णुद्वारा मेनाको समझाना
  45. [अध्याय 45] भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना
  46. [अध्याय 46] नगरमें बरातियोंका प्रवेश द्वाराचार तथा पार्वतीद्वारा कुलदेवताका पूजन
  47. [अध्याय 47] पाणिग्रहण के लिये हिमालयके घर शिवके गमनोत्सवका वर्णन
  48. [अध्याय 48] शिव-पार्वती विवाहका प्रारम्भ, हिमालयद्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तरके रूपमें शिवमाहात्म्य प्रतिपादित करना, हर्षयुक्त हिमालयद्वारा कन्यादानकर विविध उपहार प्रदान करना
  49. [अध्याय 49] अग्निपरिक्रमा करते समय पार्वतीके पदनखको देखकर ब्रह्माका मोहग्रस्त होना, बालखिल्योंकी उत्पत्ति, शिवका कुपित होना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  50. [अध्याय 50] शिवा शिवके विवाहकृत्यसम्पादनके अनन्तर देवियोंका शिवसे मधुर वार्तालाप
  51. [अध्याय 51] रतिके अनुरोधपर श्रीशंकरका कामदेवको जीवित करना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  52. [अध्याय 52] हिमालयद्वारा सभी बरातियोंको भोजन कराना, शिवका विश्वकर्माद्वारा निर्मित वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल जनवासेमें आगमन
  53. [अध्याय 53] चतुर्थीकर्म, बरातका कई दिनोंतक ठहरना, सप्तर्षियोंके समझानेसे हिमालयका बरातको विदा करनेके लिये राजी होना, मेनाका शिवको अपनी कन्या सौंपना तथा बरातका पुरीके बाहर जाकर ठहरना
  54. [अध्याय 54] मेनाकी इच्छा अनुसार एक ब्राह्मणपत्नीका पार्वतीको पातिव्रतधर्मका उपदेश देना
  55. [अध्याय 55] शिव-पार्वती तथा बरातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और शिव विवाहोपाख्यानके श्रवणकी महिमा