नारदजी बोले - हे ब्रह्मन् ! हे विधे! हे महाभाग ! इसके अनन्तर फिर क्या हुआ? आप मुझपर दयाकर इस पापको विनष्ट करनेवाली कथाका पुनः वर्णन कीजिये ॥ 1 ॥
ब्रह्माजी बोले- हे तात! इसके अनन्तर जो हुआ, उसे आप सुनें। मैं आपके स्नेहवश आनन्ददायक शिवलीलाका वर्णन करूँगा। [हे नारद!] उसके बाद महायोगी महेश्वर [ अपने] धैर्यके नाशको देखकर अत्यन्त विस्मित हो मनमें इस प्रकार विचार करने लगे ।। 2-3 ।।
शिवजी बोले- मैं तो उत्तम तपस्या कर रहा था, उसमें विघ्न कैसे आ गया! किस कुकर्मीने यहाँ मेरे चित्तमें विकार पैदा कर दिया है। मैंने दूसरेकी स्त्रीके विषयमें प्रेमपूर्वक निन्दित वर्णन किया। यह तो धर्मका विरोध हो गया और शास्त्रमर्यादाका उल्लंघन हुआ ।। 4-5 ।।
ब्रह्माजी बोले- तब सज्जनोंके एकमात्र रक्षक महायोगी परमेश्वर शिव इस प्रकार विचारकर शंकित हो सम्पूर्ण दिशाओंकी ओर देखने लगे। इसी समय वामभागमें बाण खींचे खड़े हुए कामपर उनकी दृष्टि पड़ी। यह मूढचित्त मदन अपनी शक्तिके गर्वसे चूर होकर पुनः अपना बाण छोड़ना ही चाह रहा था ।। 6-7 ।।
हे नारद! उस अवस्थामें कामपर दृष्टि पड़ते ही | परमात्मा गिरीशको तत्काल क्रोध उत्पन्न हो गया ॥ 8 ॥हे मुने! इधर, आकाशमें बाणसहित धनुष लेकर खड़े हुए कामने भगवान् शंकरपर अपना दुर्निवार तथा अमोघ अस्त्र छोड़ दिया। परमात्मा शिवपर वह अमोघ अस्त्र व्यर्थ हो गया। कुपित हुए परमेश्वरके पास जाते ही वह शान्त हो गया । 9-10 ॥
तदनन्तर भगवान् शिवपर अपने अस्त्रके व्यर्थ हो जानेपर मन्मथको बड़ा भय हुआ। भगवान् मृत्युंजयको देखकर उनके सामने खड़ा होकर वह काँप उठा हे मुनिश्रेष्ठ! यह कामदेव अपने प्रयासके निष्फल हो जानेपर भयसे व्याकुल होकर इन्द्र आदि सभी देवताओंका स्मरण करने लगा ॥ 11-12 ॥
हे मुनीश्वर! कामदेवके स्मरण करनेपर वे इन्द्र आदि सब देवता आ गये और शम्भुको प्रणामकर उनकी स्तुति करने लगे ॥ 13 ॥
देवता स्तुति कर ही रहे थे कि कुपित हुए भगवान् शिवके ललाटके मध्यभागमें स्थित तृतीय नेत्रसे बड़ी भारी आगकी ज्वाला तत्काल प्रकट होकर निकली। वे लाएँ ऊपरकी ओर उठ रही थीं। वह आग धू-धू करके जलने लगी। उसकी ज्योति प्रलयाग्निके समान मालूम पड़ती थी । ll 14-15 ॥
वह ज्वाला तत्काल ही आकाशमें उछलकर पृथ्वीपर गिरकर फिर अपने चारों ओर चक्कर काटती हुई कामदेवपर जा गिरी हे साधी क्षमा कीजिये, क्षमा कीजिये, यह बात जबतक देवताओंने कही, तबतक उस आगने कामदेवको जलाकर राख कर दिया ।। 16-17 ॥
उस वीर कामदेवके मारे जानेपर देवताओंको बड़ा दुःख हुआ। वे व्याकुल होकर, यह क्या हुआ, इस प्रकार कहकर जोर-जोरसे चीत्कार करते हुए रोने बिलखने लगे। उस समय घबरायी हुई पार्वतीका समस्त शरीर सफेद पड़ गया और वे सखियोंको साथ लेकर अपने भवनको चली गयीं। [ कामदेवके जल जानेपर] रति वहाँ क्षणभरके लिये अचेत हो गयी। पतिके मृत्युजनित दुःखसे वह मरी हुईकी भाँति पड़ी रही ।। 18-20 ।।
[थोड़ी देरमें] चेतना आनेपर अत्यन्त व्याकुल होकर वह रति उस समय तरह-तरहकी बातें कहती | हुई विलाप करने लगी ॥ 21 ॥रति बोली- मैं क्या करूँ? कहाँ जाऊँ ? देवताओनि यह क्या किया, मेरे उद्धत स्वामीको बुलाकर उन्होंने नष्ट करा दिया। हाय! हाय! हे नाथ! हे स्मर! हे स्वामिन्! हे प्राणप्रिय ! हे सुखप्रद । हे प्रिय ! हे प्रिय ! यह यहाँ क्या हो गया ? ।। 22-23 ।।
ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार रोती-बिलखती और अनेक प्रकारकी बातें कहती हुई वह हाथ-पैर पटककर सिरके बालोंको नोंचने लगी ॥ 24 ॥
हे नारद! उस समय उसका विलाप सुनकर वहाँ रहनेवाले समस्त वनवासी तथा सभी स्थावर प्राणी भी दुखी हो गये। इसी बीच इन्द्र आदि समस्त देवता महेश्वरका स्मरण करते हुए रतिको आश्वस्त करके उससे कहने लगे- ॥ 25-26 ll
देवता बोले- थोड़ा-सा भस्म लेकर उसे यत्नपूर्वक रखो और भय छोड़ दो। वे स्वामी महादेवजी [कामदेवको] जीवित कर देंगे और तुम पतिको पुनः प्राप्त कर लोगी ll 27 ॥
कोई न सुख देनेवाला है और न कोई दुःख ही देनेवाला है। सब लोग अपनी करनीका फल भोगते हैं। तुम देवताओंको दोष देकर व्यर्थ ही शोक करती हो ॥ 28 ॥
ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार रतिको समझा बुझाकर सब देवता भगवान् शिक्के समीप आये और उन्हें भक्तिसे प्रसन्न करके यह वचन कहने लगे- ॥ 29 ॥
देवता बोले-हे भगवन हे प्रभो हे महेशान! हे शरणागतवत्सल ! आप कृपा करके हमारे इस शुभ वचनको सुनिये ll 30 ॥
हे शंकर आप कामदेवके कृत्यपर भलीभाँति अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक विचार कीजिये। हे महेश्वर ! कामने जो यह कार्य किया है, इसमें उसका कोई स्वार्थ नहीं था 31 ॥
हे विभो। दुष्ट तारकासुरसे पीड़ित हुए सब देवताओंने मिलकर उससे यह कार्य कराया है। हे नाथ! हे शंकर! इसे आप अन्यथा न समझें ॥ 32 ॥
सब कुछ प्रदान करनेवाले हे देव! हे गिरिश! साध्वी रति अकेली अति दुखी होकर विलाप कर रही है, आप उसे सान्त्वना प्रदान कीजिये ॥ 33 ॥हे शंकर! यदि इस क्रोधके द्वारा आपने कामदेवको मार डाला, तो हम यही समझेंगे कि आप | देवताओं सहित समस्त प्राणियोंका अभी संहार कर डालना चाहते हैं ॥ 34 ॥
उस रतिका दुःख देखकर देवता नष्टप्राय हो गये हैं। इसलिये आपको रतिका शोक दूर कर देना चाहिये ।। 35 ।। ब्रह्माजी बोले- [हे नारद!] उन सम्पूर्ण देवताओंका यह वचन सुनकर भगवान् शिव प्रसन्न हो गये और यह वचन कहने लगे- ॥ 36 ॥
शिवजी बोले- हे देवताओ और ऋषियो। आप सब आदरपूर्वक मेरी बात सुनिये। मेरे क्रोधसे जो कुछ हो गया है, वह तो अन्यथा नहीं हो सकता, तथापि रतिका शक्तिशाली पति कामदेव तभीतक अनंग रहेगा, जबतक रुक्मिणीपति श्रीकृष्णका धरतीपर अवतार नहीं हो जाता ।। 37-38 ।।
जब श्रीकृष्ण द्वारकामें रहकर पुत्रको उत्पन्न करेंगे, तब ये रुक्मिणीके गर्भसे कामको भी जन्म देंगे ॥ 39 ॥ उस कामका ही नाम [उस समय ] प्रद्युम्न होगा, इसमें संशय नहीं है। उस पुत्रके जन्म लेते ही शम्बरासुर उसे हर लेगा। हरण करके दानवश्रेष्ठ मूर्ख शम्बर उसे समुद्रमें फेंककर और उसे मरा हुआ जानकर वृथा ही अपने नगरको लौट जायगा। हे रते! तुम्हें उस समयतक शम्बरासुरके नगरमें सुखपूर्वक निवास करना चाहिये, वहींपर तुम्हें अपने पति प्रद्युम्नकी प्राप्ति होगी ll 40-42 ॥
हे देवताओ। वहाँ बुद्धमें उस शम्बरासुरका वध | करके कामदेव अपनी पत्नीको प्राप्त करके सुखी होगा ।। 43 ।।
हे देवताओ ! प्रद्युम्न नामधारी वह काम शम्बरासुरका जो भी धन होगा, उसे लेकर उस रतिके साथ [अपने] नगरमें जायगा, मेरा यह कथन सर्वथा सत्य होगा ।। 44 ll
ब्रह्माजी बोले- [हे नारद!] शिवजीकी यह | बात सुनकर देवताओंके चित्तमें कुछ उल्लास हुआ और वे सिर झुकाकर उन्हें प्रणाम करके दोनों हाथ जोड़कर उनसे कहने लगे - ॥ 45 ॥देवता बोले- हे देवदेव हे महादेव ! हे करुणा सागर! हे प्रभो ! हे हर ! आप कामदेवको शीघ्र जीवित कर दीजिये तथा रतिके प्राणोंकी रक्षा कीजिये ॥ 46 ॥ ब्रह्माजी बोले- देवताओंकी यह बात सुनकर सबके स्वामी करुणासागर परमेश्वर शिव प्रसन्न होकर पुनः कहने लगे - ॥ 47 ॥
शिवजी बोले- हे देवताओ! मैं बहुत प्रसन्न हूँ, मैं कामको सबके हृदयमें जीवित कर दूँगा और वह सदा मेरा गण होकर विहार करेगा ।। 48 ।।
हे देवताओ ! आपलोग इस आख्यानको किसीके सामने मत कहियेगा, आपलोग अपने स्थानको जाइये, मैं सब प्रकारसे [ आपलोगोंके] दुःखका नाश करूँगा ।। 49 ।।
ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार कहकर रुद्रदेव देवताओंके स्तुति करते-करते ही अन्तर्धान हो गये । तब सभी देवता अत्यन्त प्रसन्न तथा सन्देहरहित हो गये ॥ 50 ॥ हे मुने! तदनन्तर रुद्रकी बातपर भरोसा करके वे देवता रतिको आश्वासन देकर तथा उससे उनका वचन कहकर अपने-अपने धामको चले गये। हे मुनीश्वर ! तब वह कामपत्नी शिवके बताये हुए नगरको चली गयी तथा रुद्रके बताये गये समयकी प्रतीक्षा करने लगी ॥ 51-52 ॥