सनत्कुमार बोले- समस्त देवता आदिके इस वचनको सुनकर शरणागतोंकी रक्षा करनेवाले भक्तवत्सल सदाशिवने उनकी बात स्वीकार कर ली हे मुने! इसी बीच देवी पार्वती अपने दोनों पुत्रोंको लेकर वहाँ आ गयीं, जहाँ सदाशिव देवताओंके साथ स्थित थे ॥ 1-2 ॥
तब देवीको वहाँ उपस्थित देखकर विष्णु आदि सभी देवता आश्चर्ययुक्त हो गये और सम्भ्रमयुक्त होकर नम्रतासे उन्हें शीघ्रतापूर्वक प्रणाम करने लगे ॥ 3 ॥हे मुने! उन सभीने शुभ लक्षण प्रकट करनेवाला जय-जयकार किया और उनके आनेका कारण न जानते हुए वे लोग मौन हो गये। इसके बाद सभी देवताओंसे स्तुत एवं अद्भुत कुतूहल करनेवाली वे देवी नानालीला विशारद अपने स्वामीसे प्रेमपूर्वक कहने लगीं- ॥ 4-5 ॥
देवी बोलीं- हे विभो ! हे पुत्रवानोंमें श्रेष्ठ! उत्तम आभूषणोंसे भूषित तथा सूर्यके समान देदीप्यमान खेलते हुए अपने षण्मुख पुत्रको देखिये ॥ 6 ॥
सनत्कुमार बोले- जब लोकमाताने अपनी वाणीसे इस प्रकार शिवजीको सम्बोधित करते हुए कहा, तब स्कन्दके मुखामृतका पान करते हुए शिवजीको तृप्ति नहीं हुई ॥ 7 ॥
उस समय महेश्वरको दैत्योंके तेजसे पीड़ित होकर आये हुए देवताओंका स्मरण नहीं रहा और वे स्कन्दका आलिंगन करके तथा उनका सिर सूँघकर बड़े प्रसन्न हुए ॥ 8 ॥
अनेक लीलाओंमें विशारद श्रीजगदम्बा भी महेश्वरसे मन्त्रणाकर कुछ कालतक वहीं स्थित | रहकर पुनः उठ खड़ी हुईं। इसके बाद सभी देवताओंसे वन्दित होते हुए उत्तम लीलावाले भगवान् सदाशिवने कार्तिकेय, नन्दी तथा उन गिरिराजपुत्रीके साथ अपने भवनमें प्रवेश किया ll 9-10 ॥
हे मुने! [शंकरको घरमें गया देख] सम्पूर्ण | देवता महाव्याकुल एवं क्षुब्धमन होकर बुद्धिमान् देवाधिदेवके द्वारके समीप खड़े रहे। अब हम क्या करें, कहाँ जायँ, कौन हमलोगोंको सुख देनेवाला है और यह क्या हो गया ? हाय हमलोग मारे गये ऐसा वे सब कहने लगे। एक-दूसरेको देखकर इन्द्र | आदि अत्यन्त व्याकुल हो गये और अपने भाग्यको धिक्कारते हुए विकल वचन कहने लगे। कुछ देवताओंने कहा- हाय! हमलोग बड़े पापी हैं। दूसरोंने कहा- हाय, हम अभागे हैं, अन्योंने कहा वे असुर तो बड़े भाग्यवान् हैं ॥ 11-14 ॥
उसी समय उनके अनेक प्रकारके शब्दोंको सुनकर महातेजस्वी कुम्भोदर [नामका गण] देवताओंको | दण्डसे मारने लगा। तब वे देवता भयभीत होकरहाय हाय करते हुए वहाँसे भाग गये। कितने ही मुनि तथा अन्य लोग गिर पड़े, उस समय चारों और हाहाकार होने लगा। इन्द्र अत्यन्त व्याकुल होकर घुटनोंके बल पृथ्वीपर गिर पड़े, इसी प्रकार अन्य देवता तथा ऋषि भी व्याकुल होकर पृथ्वीपर गिर पड़े । ll 15 - 17 ॥ तब सभी देवता एवं मुनि परस्पर मिलकर व्याकुल हो शिवके मित्रभूत ब्रह्मा एवं विष्णु के समीप गये ।। 18 ।।
उस समय कश्यपादि सभी मुनि संसारका भय दूर करनेवाले विष्णुजीसे कहने लगे-अहो ! यह प्रारब्धका बल है। दूसरे द्विज कहने लगे कि अभाग्यसे हमारा काम पूरा नहीं हुआ और दूसरे लोग अति विस्मित होकर विचार करने लगे कि यह विघ्न कैसे उपस्थित हो गया हे मुने। तब कश्यपादिके द्वारा कहे गये इस वचनको सुनकर विष्णुजी मुनियों तथा देवताओंको सान्त्वना देते हुए यह वचन कहने लगे - ॥ 19-21 ॥
विष्णु बोले- हे देवताओ! हे मुनियो आप सभीलोग हमारा वचन आदरसे सुनिये, आपलोग इस प्रकार क्यों दुखी हो रहे हैं, आपलोग अपने समस्त दुःखोंका त्याग कर दीजिये हे देवताओ महान् लोगोंका आराधन सरल नहीं है आपलोग स्वयं विचार कीजिये, बड़े लोगोंकी आराधनामें पहले दुःख ही होता है - ऐसा हमने सुना है। हे देवताओ! शिवजी दृढ़ताको जानकर निश्चय ही प्रसन्न हो जाते हैं ॥ 22-23 ॥
सदाशिव सभी गणोंके अध्यक्ष एवं परमेश्वर हैं। आप सभीलोग अपने मनमें विचार कीजिये कि वे सहसा कैसे वशमें हो सकते हैं। सबसे पहले ॐ का उच्चारण करके उसके बाद 'नमः' उच्चारण करे। पुनः 'शिवाय', फिर दो बार शुभं शुभं, इसके बाद | दो बार 'कुरु' बताया गया है। तदनन्तर 'शिवाय नमः' तदनन्तर प्रणव लगाना चाहिये (ॐ नमः शिवाय शुभं शुभं कुरु कुरु शिवाय नमः ॐ) हें देवताओ! यदि आपलोग शिवजीके लिये इस मन्त्रका एक करोड़ सदा जप करें, तो शिवजी प्रसन्न होकर तुम्हारा कार्य अवश्य करेंगे ।। 24-27 ॥हे मुने। उन सर्वसमर्थ विष्णुके द्वारा ऐसा कहे जानेपर देवतालोग उसी तरह शिवकी आराधना करने लगे। उस समय विष्णुजी भी ब्रह्माजीके साथ शिवमें अपना मन एकाकर देवताओं एवं मुनियोंका विशेष रूपसे कार्य सिद्ध करनेके निमित्त जप करने लगे। हे मुनिसत्तम! धैर्य धारणकर वे देवगण बारंबार 'शिव' इस प्रकार उच्चारण करते हुए एक करोड़ मन्त्रका जपकर वहीं स्थित हो गये ॥ 28-30 ॥
इसी बीच स्वयं सदाशिव उनके सामने साक्षात् यथोक्त स्वरूपसे प्रकट हो गये और यह वचन कहने लगे- ॥ 31 ॥
श्रीशिव बोले- हे हरे हे विधे हे देवगण! शुभव्रतवाले हे मुनियो ! मैं इस जपसे प्रसन्न हूँ, आपलोग अभीष्ट वर माँगिये ॥ 32 ॥
देवगण बोले- हे देवेश! हे जगदीश ! हे शंकर! यदि आप प्रसन्न हैं, तो देवताओंको व्याकुल जानकर त्रिपुरोंका वध कीजिये। हे परमेशान! हे दीनबन्धो हे कृपाकर! आप हम सबकी रक्षा करें; क्योंकि आपने ही विपत्तियोंसे देवताओंकी सदा बारंबार रक्षा की है ।। 33-34 ॥
सनत्कुमार बोले- हे ब्रह्मन् तब ब्रह्मा, विष्णु एवं देवताओंका कहा गया यह वचन सुनकर शिवजीने मन-ही-मन हँसकर कहा- ॥ 35 ॥ महेश बोले- हे विष्णो! हे विधे! हे देवगणो!
हे मुनियो! आप सब त्रिपुरको नष्ट हुआ समझकर आदर करके मेरे वचनको सुनें आपलोगोंने पूर्व समयमें जो रथ, सारथी, दिव्य धनुष तथा उत्तम बाण देना स्वीकार किया था, वह सब शीघ्र उपस्थित कीजिये। हे विष्णो! हे विधे! आप त्रिलोकाधिपति हैं, इसलिये शीघ्र हमारे सम्राट् पदके योग्य सामग्री यत्नपूर्वक उपस्थित कीजिये। त्रिपुरको नष्ट समझकर सृष्टि तथा पालनके लिये नियुक्त किये गये आप दोनों इन देवताओंकी सहायता करें ।। 36-39 ।।
यह मन्त्र महापुण्यप्रद, मुझे प्रसन्न करनेवाला, शुभ, भोग-मोक्ष प्रदान करनेवाला, सभी प्रकारकी कामनाओंको पूर्ण करनेवाला, शिवभक्तोंको सुख देनेवाला, धन्य, यश देनेवाला, आयुको बढ़ानेवाला,स्वर्गकी इच्छा करनेवालोंको स्वर्ग तथा कामनारहित पुरुषोंको मुक्ति देनेवाला है, यह मुमुक्षुओंको भोग तथा मोक्ष दोनों प्रदान करता है। जो मनुष्य पवित्र होकर नित्य इस मन्त्रका जप करता है अथवा इस मन्त्रको सुनता अथवा सुनाता है, उसकी समस्त कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं ॥। 40-42 ॥
सनत्कुमार बोले- उन परमात्मा शिवजीके इस वचनको सुनकर सभी देवता प्रसन्न हो गये और विष्णु एवं ब्रह्माको अधिक प्रसन्नता हुई । तदनन्तर उनकी आज्ञासे विश्वकर्माने संसारके कल्याणके लिये सर्वदेवमय, दिव्य तथा अत्यन्त सुन्दर रथका निर्माण किया ।। 43-44 ॥