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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 8, अध्याय 3 - Sanhita 8, Adhyaya 3

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भगवान् शिवकी ब्रह्मा आदि पंचमूर्तियों, ईशानादि ब्रह्ममूर्तियों तथा पृथ्वी एवं शर्व आदि अष्टमूर्तियोंका परिचय और उनकी सर्वव्यापकताका वर्णन

उपमन्यु कहते हैं— श्रीकृष्ण महेश्वर परमात्मा शिवकी मूर्तियोंसे यह सम्पूर्ण चराचर जगत् [किस प्रकार] व्याप्त हैं, यह सुनो ll 1 ll

अप्रमेय स्वरूपवाले उन शिवने अपनी मूर्तियोंके द्वारा इस सम्पूर्ण संसारको अधिष्ठित कर रखा है, यह सब बातें तो [तुमको] स्मरण ही हैं ॥ 2 ॥

ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, महेशान तथा सदाशिव ये उन परमेश्वरकी पाँच मूर्तियाँ जाननी चाहिये, जिनसे यह सम्पूर्ण विश्व विस्तारको प्राप्त हुआ है ॥ 3 ॥ इनके सिवा और भी उनके पाँच शरीर हैं, जिन्हें पंच ब्रह्म (सद्योजात आदि) कहते हैं। इस जगत्में कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है, जो उन मूर्तियोंसे व्याप्त न हो 4 ईशान, पुरुष, अघोर, वामदेव और सद्योजात ये महादेवजीकी विख्यात पाँच ब्रह्ममूर्तियाँ हैं ॥ 5 ॥ इनमें जो ईशान नामक उनकी आदि श्रेष्ठतम मूर्ति है, वह प्रकृतिके साक्षात् भोक्ता क्षेत्रज्ञको व्याप्त करके स्थित है। मूर्तिमान् प्रभु शिवकी जो तत्पुरुष नामक मूर्ति है, वह गुणोंके आश्रयरूप भोग्य अव्यक्त (प्रकृति) में अधिष्ठित है ll 6-7 ll

पिनाकपाणि महेश्वरकी जो अत्यन्त ति अघोर नामक मूर्ति है, वह धर्म आदि आठ अंगोंसे युक्त बुद्धितत्त्वको अपना अधिष्ठान बनाती है ॥ 8 ॥

विधाता महादेवकी वामदेव नामक मूर्तिको आगम वेत्ता विद्वान् अहंकारकी अधिष्ठात्री बताते हैं ॥ 9 ॥ बुद्धिमान् पुरुष अमित तेजस्वी शिवकी सद्योजात नामक मूर्तिको मनकी अधिष्ठात्री कहते हैं ॥ 10 ॥विद्वान् पुरुष भगवान् शिवकी ईशान नामक मूर्तिको श्रवणेन्द्रिय वाणी, शब्द और व्यापक आकाशतत्त्वकी स्वामिनी मानते हैं। पुराणोंके अर्थज्ञानमें निपुण समस्त विद्वानोंने महेश्वरके तत्पुरुष नामक विग्रहको त्वचा, हाथ, स्पर्श और वायु तत्त्वका स्वामी समझा है ॥ 11-12 ॥

मनीषी [[मुनि) शिवकी अघोर नामक मूर्तिको नेत्र, पैर, रूप और अग्नि तत्त्वकी अधिष्ठात्री बताते हैं ॥ 13 ll

भगवान् शिवके चरणों में अनुराग रखनेवाले महात्मा पुरुष उनकी वामदेव नामक मूर्तिको रसना, पायु, रस और जलतत्त्वकी स्वामिनी समझते हैं तथा सद्योजात नामक मूर्तिको वे घ्राणेन्द्रिय, उपस्थ, गन्ध और पृथ्वी तत्त्वकी अधिष्ठात्री कहते हैं ॥ 14-15 ll

महादेवजीकी ये पाँचों मूर्तियाँ कल्याणकी एकमात्र हेतु हैं। कल्याणकामी पुरुषोंको इनकी सदा ही यत्नपूर्वक वन्दना करनी चाहिये। उन देवाधिदेव महादेवजीकी जो आठ मूर्तियाँ हैं, तत्स्वरूप ही यह जगत् है। उन आठ मूर्तियोंमें यह विश्व उसी प्रकार ओतप्रोतभावसे स्थित है, जैसे सूतमें मनके पिरोये होते हैं॥ 16-17 ॥

शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान तथा महादेव-ये शिवकी विख्यात आठ मूर्तियाँ हैं॥ 18 ॥ महेश्वरकी इन शर्व आदि आठ मूर्तियों से क्रमशः भूमि, जल, अग्नि, वायु, आकाश, क्षेत्रज्ञ, सूर्य और चन्द्रमा अधिष्ठित होते हैं। उनकी पृथ्वीमयी मूर्ति सम्पूर्ण चराचर जगत्‌को धारण करती है। उसके अधिष्ठाताका नाम शर्व है इसलिये वह शिवकी 'शार्थी' मूर्ति कहलाती है। यही शास्त्रका निर्णय है । ll 19-20 ॥

उनकी जलमयी मूर्ति समस्त जगत्के लिये जीवनदायिनी है। जल परमात्मा भवको मूर्ति है, | इसलिये उसे 'भावी' कहते हैं। शिवकी तेजोमयी शुभमूर्ति विश्वके बाहर-भीतर व्याप्त होकर स्थित है। उस घोररूपिणी मूर्तिका नाम रुद्र है, इसलिये वह 'रौद्री' कहलाती है ll 21-22 ।।

भगवान् शिव वायुरूपसे स्वयं गतिशील होते और इस जगत्को गतिशील बनाते हैं। साथ ही वे इसका भरण-पोषण भी करते हैं। वायु भगवान् उग्रकी मूर्ति है; | इसलिये साधु पुरुष इसे 'औग्री' कहते हैं ॥ 23 ॥भगवान् भीमकी आकाशरूपिणी मूर्ति सबको अवकाश देनेवाली, सर्वव्यापिनी तथा भूतसमुदायकी भेदिका है। वह भीमा नामसे प्रसिद्ध है (अत: इसे 'भैमी' मूर्ति भी कहते हैं)। सम्पूर्ण क्षेत्रोंमें निवास करनेवाली तथा सम्पूर्ण आत्माओंकी अधिष्ठात्री शिव मूर्तिको 'पशुपति' मूर्ति समझना चाहिये। वह पशुओंके पाशोंका उच्छेद करनेवाली है ।। 24-25 ॥

'महेश्वरकी जो 'ईशान' नामक मूर्ति है, वही दिवाकर (सूर्य) नाम धारण करके सम्पूर्ण जगत्को प्रकाशित करती हुई आकाशमें विचरती है॥ 26 ॥

जिनकी किरणोंमें अमृत भरा है और जो सम्पूर्ण विश्वको उस अमृतसे आप्यायित करते हैं, वे चन्द्रदेव भगवान् शिवके महादेव नामक विग्रह हैं; अतः उन्हें 'महादेव' मूर्ति कहते हैं। यह जो आठवीं मूर्ति है, वह परमात्मा शिवका साक्षात् स्वरूप है तथा अन्य सब मूर्तियोंमें व्यापक है। इसलिये यह सम्पूर्ण विश्व शिवरूप ही है ।। 27-28 ॥

जैसे वृक्षकी जड़ सींचनेसे उसकी शाखाएँ पुष्ट होती हैं, उसी प्रकार भगवान् शिवकी पूजासे उनके | स्वरूपभूत जगत्का पोषण होता है। इसलिये सबको अभय दान देना, सबपर अनुग्रह करना और सबका उपकार करना-यह शिवका आराधन माना गया है। जैसे इस जगत् में अपने पुत्र-पौत्र आदिके प्रसन्न रहनेसे पिता-पितामह आदिको प्रसन्नता होती है, उसी प्रकार सम्पूर्ण जगत्की प्रसन्नतासे भगवान् शंकर प्रसन्न होते हैं। यदि किसी भी देहधारीको दण्ड दिया जाता है तो उसके द्वारा अष्टमूर्तिधारी शिवका ही अनिष्ट किया जाता है, इसमें संशय नहीं है । ll 29-32 ॥

आठ मूर्तियोंके रूपमें सम्पूर्ण विश्वको व्याप्त | करके स्थित हुए भगवान् शिवका तुम सब प्रकारसे भजन करो; क्योंकि रुद्रदेव सबके परम कारण हैं ॥ 33 ॥

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] सूतजीसे शौनकादि मुनियोंका शिवावतारविषयक प्रश्न
  2. [अध्याय 2] भगवान् शिवकी अष्टमूर्तियों का वर्णन
  3. [अध्याय 3] भगवान् शिवका अर्धनारीश्वर अवतार एवं सतीका प्रादुर्भाव
  4. [अध्याय 4] वाराहकल्पके प्रथमसे नवम द्वापरतक हुए व्यासों एवं शिवावतारोंका वर्णन
  5. [अध्याय 5] वाराहकल्पके दसवेंसे अट्ठाईसवें द्वापरतक होनेवाले व्यासों एवं शिवावतारोंका वर्णन
  6. [अध्याय 6] नन्दीश्वरावतारवर्णन
  7. [अध्याय 7] नन्दिकेश्वरका गणेश्वराधिपति पदपर अभिषेक एवं विवाह
  8. [अध्याय 8] भैरवावतारवर्णन
  9. [अध्याय 9] भैरवावतारलीलावर्णन
  10. [अध्याय 10] नृसिंहचरित्रवर्णन
  11. [अध्याय 11] भगवान् नृसिंह और वीरभद्रका संवाद
  12. [अध्याय 12] भगवान् शिवका शरभावतार-धारण
  13. [अध्याय 13] भगवान् शंकरके गृहपति अवतारकी कथा
  14. [अध्याय 14] विश्वानरके पुत्ररूपमें गृहपति नामसे शिवका प्रादुर्भाव
  15. [अध्याय 15] भगवान् शिवके गृहपति नामक अग्नीश्वरलिंगका माहात्म्य
  16. [अध्याय 16] यक्षेश्वरावतारका वर्णन
  17. [अध्याय 17] भगवान् शिवके महाकाल आदि प्रमुख दस अवतारोंका वर्णन
  18. [अध्याय 18] शिवजीके एकादश रुद्रावतारोंका वर्णन
  19. [अध्याय 19] शिवजीके दुर्वासावतारकी कथा
  20. [अध्याय 20] शिवजीका हनुमान्के रूपमें अवतार तथा उनके चरितका वर्णन
  21. [अध्याय 21] शिवजीके महेशावतार वर्णनक्रममें अम्बिकाके शापसे भैरवका बेतालरूपये पृथ्वीपर अवतरित होना
  22. [अध्याय 22] शिवके वृषेश्वरावतार वर्णनके प्रसंगों समुद्रमन्थनकी कथा
  23. [अध्याय 23] विष्णुद्वारा भगवान् शिवके वृषभेश्वरावतारका स्तवन
  24. [अध्याय 24] भगवान् शिवके पिप्पलादावतारका वर्णन
  25. [अध्याय 25] राजा अनरण्यकी पुत्री चाके साथ पिप्पलादका विवाह एवं उनके वैवाहिक जीवनका वर्णन
  26. [अध्याय 26] शिवके वैश्यनाथ नामक अवतारका वर्णन
  27. [अध्याय 27] भगवान् शिवके द्विजेश्वरावतारका वर्णन
  28. [अध्याय 28] नल एवं दमयन्तीके पूर्वजन्मकी कथा तथा शिवावतार यतीश्वरका हंसरूप धारण करना
  29. [अध्याय 29] भगवान् शिवके कृष्णदर्शन नामक अवतारकी कथा
  30. [अध्याय 30] भगवान् शिवके अवधूतेश्वरावतारका वर्णन
  31. [अध्याय 31] शिवजीके भिक्षुवर्यावतारका वर्णन
  32. [अध्याय 32] उपमन्युपर अनुग्रह करनेके लिये शिवके सुरेश्वरावतारका वर्णन
  33. [अध्याय 33] पार्वतीके मनोभावकी परीक्षा लेनेवाले ब्रह्मचारीस्वरूप शिवावतारका वर्णन
  34. [अध्याय 34] भगवान् शिवके सुनर्तक नटावतारका वर्णन
  35. [अध्याय 35] परमात्मा शिवके द्विजावतारका वर्णन
  36. [अध्याय 36] अश्वत्थामाके रूपमें शिवके अवतारका वर्ण
  37. [अध्याय 37] व्यासजीका पाण्डवोंको सान्त्वना देकर अर्जुनको इन्द्रकील पर्वतपर तपस्या करने भेजना
  38. [अध्याय 38] इन्द्रका अर्जुनको वरदान देकर शिवपूजनका उपदेश देना
  39. [अध्याय 39] भीलस्वरूप गणेश्वर एवं तपस्वी अर्जुनका संवाद
  40. [अध्याय 40] मूक नामक दैत्यके वधका वर्णन
  41. [अध्याय 41] भगवान् शिवके किरातेश्वरावतारका वर्णन
  42. [अध्याय 42] भगवान् शिवके द्वादश ज्योतिर्लिंगरूप अवतारोंका वर्णन