ऋषि बोले- हे तात! आप धन्य हैं। कृतकृत्य हैं और आपका जीवन सफल है जो आप हमलोगोंको महेश्वरकी कल्याणकारी कथा सुना रहे हैं॥ 1 ॥
हे सूतजी यद्यपि हमलोगोंने बहुत- से ऋषियोंसे परमार्थतत्त्वका श्रवण किया है, किंतु हमारा संशय अभीतक नहीं गया, इसीलिये आपसे पूछ रहे हैं। किस व्रतसे सन्तुष्ट होकर शिवजी उत्तम सुख प्रदान करते हैं? आप शिवकृत्यमें कुशल हैं, इसलिये हमलोग आपसे पूछ रहे हैं। हे व्यासशिष्य ! जिस व्रत करनेसे शिवभक्तोंको भोग तथा मोक्षकी प्राप्ति होती है, उसे आप विस्तारसे कहिये, आपको नमस्कार है॥ 2-4 ॥
सूतजी बोले- हे श्रेष्ठ ऋषियो ! दयायुक्त चित्तवाले आपलोगोंने अच्छा प्रश्न किया है, मैंने जैसा सुना है, वैसा ही शिवके चरणकमलका ध्यानकर कहता हूँ ॥ 5 ॥
जिस प्रकार आपलोगोंने मुझसे पूछा है, उसी प्रकार ब्रह्मा, विष्णु तथा पार्वतीने शिवजीसे पूछा था ॥ 6 ॥किसी समय उन लोगोंने परमात्मा शिवजीसे पूछा था कि आप किस व्रतसे सन्तुष्ट होकर भोग तथा मोक्ष प्रदान करते हैं ? ॥ 7 ॥
उस समय विष्णु आदि उन सभीके ऐसा पूछनेपर शिवजीने जैसा कहा था, मैं भी उसीका वर्णन कर रहा हूँ, जो सुननेवालोंके पापको दूर करनेवाला है ॥ 8 ॥
शिवजी बोले- भोग तथा मोक्ष प्रदान करनेवाले मेरे अनेक व्रत हैं, उनमें दस व्रतोंको मुख्य जानना चाहिये। वेदज्ञाता जाबाल आदि महर्षियोंने शिवके दस व्रतोंको बताया है। द्विजातियोंको सदा उन्हीं व्रतोंको प्रयत्नपूर्वक करना चाहिये ॥ 9-10 ॥
हे विष्णो प्रत्येक अष्टमीके [दिनमें उपवासकर] रात्रिकालमें भोजन करना चाहिये, किंतु कालाष्टमीमें विशेष रूपसे [रात्रिमें भी] भोजनका त्याग करना चाहिये ।। 11 ।।
हे विष्णो! शुक्लपक्षकी एकादशीके अवसरपर दिनमें भोजनका त्याग करना चाहिये, किंतु हे हरे कृष्णपक्षको एकादशीमें मेरा पूजनकर रात्रिमें भोजन कर लेना चाहिये। शुक्लपक्षको त्रयोदशीको रात्रिमें भोजन करे, किंतु कृष्णपक्षको त्रयोदशी प्राप्त होनेपर शिवव्रत धारियोंको भोजन नहीं करना चाहिये ll 12-13 ll
हे विष्णो दोनों पक्षोंमें सोमवारके दिन बत्नपूर्वक शिक्त करनेवालोंको रात्रिमें भोजन करना चाहिये ॥ 14 ॥
हे द्विजश्रेष्ठो! इन सभी व्रतोंके समाप्त होनेपर व्रतकी सम्पूर्णताके लिये यथाशक्ति शैवोंको भोजन कराना चाहिये। द्विजातियोंको इन व्रतोंका अनुष्ठान नियमपूर्वक करना चाहिये, इन व्रतोंका त्याग करनेपर द्विज [दूसरे जन्ममें] तस्कर [चोर] होते हैं ।। 15-16 ।।
मुक्तिमार्ग में प्रवीण लोगोंको ये व्रत नियमपूर्वक करने चाहिये ये चारों मुक्ति देनेवाले कहे गये हैं। शिवजीका पूजन, रुद्रमन्त्रका जप, शिवालयमें उपवास और काशीमें मरण-ये सनातनी मुक्तिके 8 उपाय हैं ।। 17-18 ॥सोमवारसे युक्त अष्टमी तथा कृष्णपक्षकी चतुर्दशी- इन दो तिथियोंमें व्रत करनेसे शिवजी सन्तुष्ट होते हैं, इसमें सन्देह नहीं करना चाहिये ॥ 19 ॥ हे हरे ! [पूर्वोक्त] चारों व्रतोंसे शिवरात्रिव्रत विशेष बलवान् होता है, अतः भोग एवं मोक्षकी इच्छावालोंको वही व्रत करना चाहिये। इस व्रतके अलावा मनुष्योंका हितकारक कोई दूसरा व्रत नहीं है। यह व्रत सभीके लिये उत्तम धर्मसाधन है । ll 20-21 ।।
हे हरे! सकाम अथवा निष्काम भाव रखनेवाले सभी मनुष्यों, वर्णों, आश्रमों, स्त्रियों, बालकों, दास दासियों, देवगणों तथा समस्त प्राणियोंके लिये यह श्रेष्ठ व्रत हितकारक है ।। 22-23 ।।
माघमासके कृष्णपक्ष में शिवचतुर्दशी अत्यन्त विशिष्ट कही गयी है। अर्धरात्रिकालकी चतुर्दशीको ही ग्रहण करना चाहिये; यह करोड़ों हत्याओंका विनाश करनेवाली है। हे केशव ! उस दिन प्रातः कालसे आरम्भकर जो करना चाहिये, उसे | मन लगाकर प्रीतिपूर्वक सुनिये, उसे मैं आपसे कहता हूँ ।। 24-25 ll
विद्वान्को चाहिये कि प्रातः काल उठकर आलस्यरहित हो परम आनन्दसे युक्त होकर स्नान आदि नित्यकर्म करे। इसके बाद शिवालयमें जाकर यथाविधि शिवजीका पूजनकर उन्हें नमस्कार करके बादमें इस प्रकार संकल्प करना चाहिये ॥ 26-27 ॥ हे देवदेव ! हे महादेव! हे नीलकण्ठ ! आपको नमस्कार है। हे देव! मैं आपका शिवरात्रिव्रत करना चाहता हूँ। हे देवेश! आपके प्रभावसे यह व्रत विघ्नोंसे रहित हो और कामादि शत्रु मुझे [ किसी प्रकारकी] पीड़ा न पहुँचायें ॥ 28-29 ॥
इस प्रकार संकल्पकर पूजासामग्री एकत्रित करे। सुन्दर स्थलपर जो शास्त्रप्रसिद्ध शिवलिंग हो, वहाँ स्वयं रात्रिमें जाकर उत्तम विधि सम्पादित करके शिवके दाहिने अथवा पश्चिम भागमें शुभ स्थानमें पूजाहेतु उस सामग्रीको शिवके समीप रखकर पुनः व्रती पुरुष वहाँ विधिपूर्वक स्नान करे ।। 30-32 ॥तत्पश्चात् पवित्र वस्त्र तथा उपवस्त्र धारण करनेके उपरान्त तीन बार आचमन करके पूजाका आरम्भ करना चाहिये। जिस मन्त्रका जो द्रव्य (नियत) हो, उस मन्त्रको पढ़कर उसी द्रव्यके द्वारा पूजन करना चाहिये। बिना मन्त्रके शिवका पूजन नहीं करना चाहिये ।। 33-34 ।।
भक्तिभावसे युक्त गीत, वाद्य तथा नृत्यके साथ प्रथम प्रहरमें पूजन करके बुद्धिमान्को मन्त्रका जप करना चाहिये। यदि मन्त्रज्ञ पुरुषने उस समय पार्थिव लिंगका निर्माण किया हो तो नित्यक्रिया करनेके अनन्तर पार्थिवपूजन ही करे ।। 35-36 ॥
सर्वप्रथम पार्थिव लिंगका निर्माणकर बादमें उसकी स्थापना करे और नाना प्रकारके स्तोत्रोंसे प्रभु वृषभध्वजको सन्तुष्ट करे। उसके बाद बुद्धिमान् श्रेष्ठ भक्त शिवरात्रिव्रतकी समाप्तिका फल प्राप्त करनेके लिये व्रतसम्बन्धी माहात्म्य पढ़े अथवा सुने ।। 37-38 ।।
रात्रिके चारों प्रहरोंमें शिवकी चार मूर्तियों (पार्थिव लिंगों) का निर्माण करके क्रमशः आवाहनसे लेकर विसर्जनपर्यन्त पूजन करे और रात्रिमें प्रेमसे महोत्सवपूर्वक जागरण करे। पुनः प्रातः काल उठकर स्नान करनेके बाद शिवकी स्थापना तथा पूजा करनी चाहिये ।। 39-40 ।।
इस प्रकार व्रत समाप्त करके सिर झुकाकर हाथ जोड़कर शिवको बारंबार नमस्कारकर यह प्रार्थना करे - हे महादेव ! हे स्वामिन्! आपकी आज्ञासे मैंने जो व्रत ग्रहण किया था, वह उत्तम व्रत सम्पूर्ण हो गया, अब मैं व्रतका विसर्जन करता हूँ। हे देवेश! हे सर्व [मेरे द्वारा) यथाशक्ति किये गये व्रतसे आप आज सन्तुष्ट हों और मेरे ऊपर दया करें ।। 41-43 ।।
इसके बाद शिवजीको पुष्पांजलि समर्पितकर यथाविधि दान दे और शिवको नमस्कारकर उस नियमको समाप्ति करे। शैव ब्राह्मणोंको तथा विशेषकर संन्यासियोंको शक्तिके अनुसार भोजन करा करके उन्हें भलीभाँति सन्तुष्टकर स्वयं भोजन करे ।। 44-45 ।।हे हरे। शिवरात्रिमें श्रेष्ठ भक्तोंको जिस प्रकार प्रत्येक प्रहरमें शिवजीकी विशेष पूजा करनी चाहिये, उसे मैं आपसे कहता हूँ। हे हरे! प्रथम प्रहरमें अनेक उत्तम उपचारोंसे परम भक्तिपूर्वक स्थापित पार्थिव लिंगका पूजन करना चाहिये ।। 46-47 ।।
सर्वप्रथम [गन्ध- पुष्पादि] पाँच द्रव्योंसे सदाशिवका पूजन करे और उस उस वस्तुसे सम्बन्धित मन्त्रसे पृथक् पृथक् द्रव्योंको समर्पित करे। उन द्रव्योंको समर्पित करनेके पश्चात् जलधारा अवश्य प्रदान करे। बादमें बुद्धिमान् पुरुष जलधारासे ही [समर्पित] द्रव्योंको उतारे ।। 48-49 ।।
एक सौ आठ बार शिवमन्त्र ['ॐ नमः शिवाय' ] पढ़कर जलधारासे निर्गुण होते हुए भी सगुण हुए शिवकी पूजा करे। गुरुके द्वारा दिये गये मन्त्रसे शिवकी पूजा करनी चाहिये अथवा नाममन्त्रसे ही सदाशिवका पूजन करे। सुगन्धित चन्दन, अखण्डित अक्षत तथा काले तिलोंसे परात्मा शम्भुकी पूजा करनी चाहिये ll 50-52 ll
सौ पंखुड़ियोंवाले कमलपुष्पों तथा कनेरके पुष्पोंसे शिवका पूजन करना चाहिये। शिवके आठों नाममन्त्रोंसे शिवजीको पुष्प अर्पित करने चाहिये । भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान्, भीम एवं ईशान-ये [आठ] नाम हैं। इन नामोंको श्रीसे युक्त, चतुर्थ्यन्त [नाममन्त्र ] बनाकर इनसे शिवकी पूजा करे और बादमें धूप, दीप तथा नैवेद्य समर्पित करे। विद्वान्को चाहिये कि प्रथम प्रहरमें पक्वान्नका नैवेद्य समर्पण करे तथा श्रीफलसे युक्त अर्घ्य देकर ताम्बूल समर्पित करे ।। 53-56॥
उसके अनन्तर नमस्कार तथा ध्यान करके गुरुसे प्राप्त मन्त्रका जप करे अथवा उसी पंचाक्षरमन्त्रसे शिवको सन्तुष्ट करे ॥ 57 ॥
उसके बाद धेनुमुद्रा दिखाकर निर्मल जलसे शिवका तर्पण करे और अपने सामर्थ्यके अनुसार पाँच ब्राह्मणोंको भोजन कराये। जबतक प्रहर न बीते, तबतक महोत्सव करे। इसके बाद शिवको पूजाका फल समर्पितकर विसर्जन करे ।। 58-59 ॥तदनन्तर द्वितीय प्रहर प्राप्त होनेपर अच्छी प्रकार से संकल्प करे अथवा सभी प्रहरोंका एक साथ संकल्प करके उसी प्रकारकी पूजा करे। पूर्ववत् पाँच द्रव्योंसे पूजा करके धारा समर्पित करे। मन्त्र पढ़कर पहलेकी अपेक्षा दो गुना शिवार्चन करना चाहिये ।। 60-61 ॥
पहलेके रखे गये तिल, यव एवं कमलपुष्पोंसे शिवकी पूजा करे, विशेषकर बिल्वपत्रोंसे परमेश्वरका पूजन करना चाहिये। बीजपूर (बिजौरा) के साथ अर्घ्य देकर खीरका नैवेद्य समर्पित करे। हे जनार्दन ! मन्त्रकी आवृत्ति पहलेसे भी दुगुनी होनी चाहिये । उसके बाद ब्राह्मणभोजनका संकल्प करे। दूसरे प्रहरकी समाप्तितक अन्य सब कुछ पहले प्रहरकी भाँति करे ।। 62-64 ॥
तीसरा प्रहर प्राप्त होनेपर पूर्वकी भाँति ही पूजन करे । यवके स्थानपर गोधूम चढ़ाये तथा [विशेष रूपसे] आकके पुष्प अर्पित करे। हे विष्णो! अनेक प्रकारके धूपों, नानाविध दीपों, नैवेद्यके रूपमें मालपुओं एवं अनेक प्रकारके शाकोंसे पूजनकर कर्पूर से आरती करे। अनारके साथ अर्घ्य प्रदान करे तथा पूर्वकी अपेक्षा दूना जप करे। इसके बाद दक्षिणासहित ब्राह्मणभोजनका संकल्प करे। इस प्रकार तृतीय प्रहरकी समाप्तिपर्यन्त पूर्ववत् उत्सव करे ।। 65- 68 ।।
चौथे प्रहरके आनेपर उनका विसर्जन करे। इसके बाद पुनः पूर्ववत् समस्त प्रयोगकर विधिवत् पूजन करे। उड़द, कंगुनी, मूँग, सप्तधान्य, शंखपुष्पी और बिल्वपत्रोंसे परमेश्वरका पूजन करे ।। 69-70 ।।
अनेक प्रकारके मधुर पदार्थोंसे बना हुआ नैवेद्य अर्पित करे। अथवा उड़दके पक्वान्नसे सदाशिवको सन्तुष्ट करे। हे हरे ! केलेके फलोंसे युक्त शिवजीको अर्घ्य प्रदान करे अथवा अन्य विविध प्रकारके फलोंसे अर्घ्य प्रदान करे ।। 71-72 ॥
सज्जन पुरुष पहलेसे दूना मन्त्रजप करे, उसके बाद विद्वान्को चाहिये कि यथाशक्ति ब्राह्मणभोजनका संकल्प करे। भक्तिपूर्वक भक्तजनोंके साथ गीतों, वाद्यों, नृत्यों तथा महोत्सवोंके द्वारा अरुणोदयपर्यन्त कालयापन करना चाहिये ॥ 73-74 ॥सूर्यके उदित होनेपर पुनः स्नानकर अनेक पूजनोपचारों तथा उपहारोंसे शिवार्चन करे। उस समय [ ब्राह्मणोंके द्वारा ] अपना अभिषेक करवाये। पुनः अनेक प्रकारके दान देकर प्रहरोंमें संकल्पित ब्राह्मणों एवं संन्यासियोंको विविध प्रकारका भोजन कराये ।। 75-76 ।।
तदनन्तर बुद्धिमान् पुरुष शिवजीको नमस्कारकर पुष्पांजलि अर्पित करे और उत्तम स्तुति करके निम्नांकित मन्त्रोंसे प्रार्थना करे हे मृड! हे कृपानिधे ! मैं आपका हूँ, मेरे प्राण एवं चित्त सदा आपके आश्रित हैं- ऐसा जानकर जो उचित हो, वैसा आप करें ।। 77-78 ।।
हे भूतनाथ ! मैंने ज्ञानसे अथवा अज्ञानसे जो भी जप, पूजन आदि किया है, कृपानिधि होनेसे उसे जान करके आप प्रसन्न हों ।। 79 ।।
हे प्रभो! इस उपवासके द्वारा जो फल प्राप्त हुआ है, उससे सुखदायक आप शंकरदेव प्रसन्न हों। हे महादेव ! मेरे कुलमें सर्वदा आपका भजन होता रहे, मेरा जन्म उस कुलमें न हो, जिसमें आप कुलदेवता न हों ॥ 80-81 ।।
इस प्रकार पुष्पांजलि समर्पित करके ब्राह्मणोंसे आशीर्वाद एवं तिलक ग्रहण करे, इसके बाद शिवका विसर्जन करे। [ हे विष्णो!] जिसने इस प्रकार मेरा व्रत किया, मैं उससे दूर नहीं रहता, उसके फलका वर्णन नहीं किया जा सकता और उस भक्तके लिये मेरे पास कुछ भी अदेय नहीं है ॥ 82-83 ॥
जिसने अनायास भी इस उत्तम व्रतको किया, उसमें मानो मुक्तिका बीज ही अंकुरित हो गया हो, इसमें सन्देह नहीं करना चाहिये। मनुष्योंको प्रत्येक महीने में भक्तिपूर्वक यह व्रत करना चाहिये। तत्पश्चात् इसका उद्यापन करके मनुष्य सांगोपांग फल प्राप्त कर लेता है । ll84-85 ॥
[ हे विष्णो!] इस व्रतको करनेपर मैं शिव निश्चित रूपसे सारे दुःखोंको दूर करता हूँ और भोग, मोक्ष तथा सम्पूर्ण वांछित फल प्रदान करता हूँ ॥ 86 llसूतजी बोले - [ हे ऋषियो!] शिवजीके इस कल्याणकारी एवं अद्भुत [ फल देनेवाले] व्रतको सुनकर विष्णुजी अपने धामको लौट आये और तत्पश्चात् अपना सर्वविध कल्याण चाहनेवाले [श्रद्धालु] मनुष्योंमें इस व्रतका प्रचार हुआ ॥ 87 ॥
किसी समय विष्णुजीने भोग तथा मोक्ष देनेवाले इस दिव्य शिवरात्रिव्रतका वर्णन नारदजीसे किया था ॥ 88 ॥