ऋषिगण बोले- [ हे सूतजी!] शिवजी कौन हैं, विष्णु कौन हैं, रुद्र कौन हैं तथा ब्रह्मा कौन हैं और इनमें निर्गुण कौन है ? हमलोगोंके इस संशयको दूर कीजिये ॥ 1 ॥
सूतजी बोले- हे ऋषियो ! [सृष्टिके ] आदिमें निर्गुण परमात्मासे जो उत्पन्न हुआ, उसी [ सगुणरूप] को शिव कहा गया है-ऐसा वेद और वेदान्तके वेत्ता लोग कहते हैं ॥ 2 ॥
उसीसे पुरुषसहित प्रकृति उत्पन्न हुई। उन दोनोंने मूल स्थानमें स्थित जलमें तप किया। वही [तपःस्थली ]- पंचक्रोशी काशी कही गयी है, वह शिवजीको अत्यन्त प्रिय है। उसीका जल फैलकर सारे संसारमें व्याप्त हो गया ॥ 3-4 ॥
[उसी जलका] आश्रय लेकर श्रीहरि [योग ] मायाके साथ वहाँ सो गये। तब वे [नार अर्थात् जलको अयन (निवासस्थान) बनानेके कारण] 'नारायण' नामसे विख्यात हुए तथा माया नारायणी नामसे विख्यात हुई ॥ 5 ॥उनके नाभिकमलसे जो उत्पन्न हुए, वे पितामह [ब्रह्मा कहलाये] थे उन्होंने तपस्यासे जिन्हें देखा, वे विष्णु कहे गये ॥ 6 ॥
हे विद्वानो। [किसी समय उन दोनोंके विवादको शान्त करनेके लिये निर्गुण शिवने जिस रूपका साक्षात्कार कराया, वह महादेव नामसे प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने कहा कि मैं ब्रह्माके मस्तकसे शम्भुरूपमें प्रकट होऊंगा, लोकपर अनुग्रह करनेवाले वे ही रुद्र नामसे विख्यात हुए ।। 7-8
इस प्रकार भक्तोंके ऊपर वात्सल्यभाव प्रकट करनेवाले वे शिवजी ही सबके चिन्तनका विषय बननेके लिये रूपरहित होते हुए भी रूपवान् होकर साकार रुद्ररूपसे प्रकट हुए ॥ 9 ॥
पूर्णत: त्रिगुणरहित शिवमें एवं गुणोंके धाम रुद्रमें वस्तुतः कोई भेद नहीं है, जैसे सुवर्ण एवं उससे बने आभूषणमें कोई अन्तर नहीं होता है ॥ 10 ॥
ये दोनों ही समान रूप तथा कर्मवाले, समान रूपसे भक्तोंको गति देनेवाले हैं, समान रूपसे सबके द्वारा सेवनीय और अनेक प्रकारकी लीलाएँ करनेवाले हैं ॥ 11
भयानक पराक्रमवाले रुद्र सभी प्रकारसे शिवरूप ही हैं। वे भोंका कार्य करनेके लिये प्रकट होते हैं और ब्रह्मा तथा विष्णुकी सहायता करते हैं ॥ 12 ॥
अन्य जो लोग उत्पन्न हुए हैं, वे क्रमानुसार लयको प्राप्त होते हैं, किंतु रुद्र ऐसे नहीं हैं, रुद्र शिवमें ही विलीन होते हैं ॥ 13 ॥
सभी प्राकृत [देवता] क्रमशः मिलकर विलीन हो जाते हैं, किंतु रुद्र उन विष्णु आदिमें मिलकर विलीन नहीं होते- ऐसी वेदोंकी आज्ञा है॥ 14 ॥
सभी रुद्रका भजन करते हैं, किंतु रुद्र किसीका भजन नहीं करते, कभी कभी भक्तवत्सलतावश वे अपने आप अपने भक्तोंका भजन करते हैं ॥ 15 ॥
हे विद्वानो! जो लोग नित्य अन्य देवताका भजन करते हैं, वे उसीमें लीन होकर बहुत समयके बाद उसीसे रुद्रको प्राप्त होते हैं। जो कोई भी रुद्रभक्त हैं, वे उसी क्षण शिवत्वको प्राप्त हो जाते हैं; क्योंकि उन्हें अन्य देवताकी अपेक्षा नहीं होती- यह सनातनी श्रुति है ॥ 16-17 llहे द्विजो! अज्ञान तो अनेक प्रकारका होता है, किंतु यह विज्ञान अनेक प्रकारका नहीं होता, मैं उस [[विज्ञान] को समझने की रीति कहता हूँ आपलोग आदरपूर्वक सुनिये ॥ 18 ॥
इस लोकमें ब्रह्मासे लेकर तृणपर्यन्त जो कुछ दिखायी देता है, वह सब शिव ही है, अनेकताकी कल्पना मिथ्या है ॥ 19 ॥
सृष्टिके आदिमें शिव कहे गये हैं, सृष्टिके मध्यमें शिव कहे गये हैं, सृष्टिके अन्तमें शिव कहे गये हैं और सर्वशून्य होनेपर भी सदाशिव विद्यमान रहते हैं। इसलिये हे मुनीश्वरो शिव चार गुणवाले कहे गये हैं। उन्हीं सगुण शिवको शक्तिसे युक्त होनेके कारण दो प्रकारका भी समझना चाहिये ॥ 20-21 ॥
जिसने विष्णुको सनातन वेदोंका उपदेश किया, अनेक वर्ण, अनेक मात्रा, ध्यान तथा अपनी पूजाका रहस्य बताया, वे शिव सम्पूर्ण विद्याओंके अधिपति हैं यह सनातनी वृति है, इसीलिये उन शिवको वेदोंको प्रकट करनेवाला तथा वेदपति कहा गया है । ll 22-23 ॥
वही शिव सबपर साक्षात् अनुग्रह करनेवाले हैं। ये ही कर्ता भर्ता हर्ता, साक्षी तथा निर्गुण हैं ॥ 24 ll
सभीके जीवनके कालका प्रमाण है, किंतु उन काल [रूप शिव] का प्रमाण नहीं है। वे स्वयं महाकाल हैं और महाकालीके भी आश्रय हैं ॥ 25 ॥ ब्राह्मणलोग रुद्र तथा कालीको सबका कारण बताते हैं उन दोनोंके द्वारा सत्यलीलायुक्त इच्छासे है सब कुछ व्याप्त हुआ हे ॥ 26 ॥ उन [शिव] को उत्पन्न करनेवाला कोई नहीं है और उनका पालन करनेवाला तथा विनाश करनेवाला भी कोई नहीं है, स्वयं वे सबके कारण हैं, वे विष्णु आदि सभी देवता उनके कार्यरूप हैं॥ 27॥
वे शिवजी स्वयं ही कारण और कार्यरूप हैं, किंतु | उनका कारण कोई नहीं है। वे एक होकर भी अनेक हैं और अनेक होकर भी एकताको प्राप्त होते हैं॥ 28 ॥
जिस प्रकार एक ही बीज बाहर अंकुरित होकर बहुत बीजोंके रूपमें प्रकट होता है, उसी प्रकार | बहुत होनेपर भी वस्तुरूपसे स्वयं शिवरूपी महेश्वर एक ही हैं ।। 29 ।।हे मुनीश्वरो ! यह उत्तम शिवविषयक ज्ञान यथार्थ रूपसे [मेरे द्वारा] कह दिया गया, इसे ज्ञानवान् पुरुष ही जानता है और कोई नहीं ॥ 30 ॥
मुनिगण बोले - [ हे सूतजी!] आप लक्षण सहित ज्ञानका वर्णन कीजिये, जिसे जानकर मनुष्य शिवत्वको प्राप्त होते हैं। वे शिव सर्वमय कैसे हैं और सब कुछ शिवमय कैसे है ? ॥ 31 ॥
व्यासजी बोले- यह वचन सुनकर पौराणिकोत्तम सूतजीने शिवजीके चरणकमलोंका ध्यान करके उन मुनियोंसे यह वचन कहा- ॥ 32 ॥