नन्दीश्वर बोले- हे सर्वज्ञ। सनत्कुमार! अब सर्वव्यापी परमात्मा शिवजीके नर्तकनट नामक अवतारका श्रवण कीजिये ॥ 1 ॥
जब हिमालयसुता कालिका पार्वती शिवको प्राप्त करनेके लिये वनमें जाकर अत्यन्त निर्मल तप करने लगीं, तब हे मुने! उनके कठिन तपसे शिवजी प्रसन्न हो गये और उनके भावकी परीक्षाके लिये तथा उन्हें वर देनेके लिये प्रसन्नतापूर्वक वहाँ गये ॥ 2-3 ॥
हे मुने अत्यन्त प्रसन्नचित्तवाले शिवने उन्हें अपना रूप दिखाया और उन शिवासे 'वर माँगो' इस प्रकार कहा ॥ 4 ॥शिवजीके उस वचनको सुनकर तथा उनके उत्तम रूपको देखकर पार्वती बहुत प्रसन्न हुई और उन्हें भलीभाँति प्रणामकर वे कहने लगीं- ॥ 5 ॥
पार्वती बोलीं- हे देवेश! हे ईशान! यदि आप [मुझपर] प्रसन्न हैं और यदि मुझे वर देना चाहते हैं, तो मेरे पति बनें और मेरे ऊपर कृपा करें ॥ 6 ॥
हे नाथ! मैं आपकी समुचित आज्ञासे पिताके घर जा रही हूँ। हे प्रभो! आपको भी मेरे पिताके पास जाना चाहिये, आप भिक्षुक बनकर अपना उत्तम यश प्रकट करते हुए मुझे माँगें और प्रेमपूर्वक मेरे पिताका गृहस्थाश्रम पूरी तरहसे सफल करें ।। 7-8 ॥
उसके अनन्तर हे प्रभो! हे महेशान! आप शास्त्रोक्त विधिसे देवगणोंका कार्य सिद्ध करनेके लिये मेरा पाणिग्रहण करें ॥ 9 ॥
हे विभो ! आप मेरे इस मनोरथको पूर्ण कीजिये। आप सर्वथा निर्विकार हैं तथा भक्तवत्सल नामवाले हैं और मैं सर्वदा आपकी भक्त हूँ ॥ 10 ॥
नन्दीश्वर बोले- पार्वतीके इस प्रकार कहनेपर भक्तवत्सल भगवान् शिव 'ऐसा ही हो'- यह वचन कहकर अन्तर्धान होकर अपने स्थान कैलासको चले गये ॥ 11 ॥
इसके बाद पार्वती भी प्रसन्न होकर अपनी दोनों सखियोंके साथ अपने रूपको सार्थक करके पिताके घर चली गयीं ॥ 12 ॥
पार्वतीके आगमनका समाचार सुनकर हिमालय भी मेना तथा परिवारको साथ लेकर अपनी पुत्रीको देखनेके लिये प्रसन्नतापूर्वक गये ।। 13 ।।
परम आनन्दित वे दोनों पार्वतीको प्रसन्नमुख देखकर उन्हें घर लिवा लाये और प्रोतिके साथ महोत्सव मनाया ॥ 14 ॥
मेना तथा हिमालयने ब्राह्मणादिकोंको [बहुत सा] धन दिया और आदरके साथ वेदध्वनिपूर्वक मंगलाचार कराया ॥ 15 ll
उसके बाद मेना अपनी कन्याके साथ आँगनमें प्रसन्नतापूर्वक बैठ गर्यो और वे हिमालय गंगास्नान करने चले गये ll 16 ॥इसी बीच सुन्दर लीलाओंवाले भक्तवत्सल शिव नाचनेवाले नटका रूप धारणकर मेनाके पास पहुँचे ॥ 17 ॥
रक्तवस्त्रधारी तथा नृत्य-गान विशारद नटरूपधारी वे शिव अपने बायें हाथमें भृंग, दाहिने हाथमें डमरू और पीठपर कन्या धारण करके मैनाके आँगनमें प्रसन्नतापूर्वक अनेक प्रकारके नृत्य तथा अत्यन्त मनोहर गान करने लगे ।। 18-19 ।।
उन्होंने बड़ी मनोहर ध्वनि करके डमरू तथा भृंग बजाय और प्रीतिपूर्वक विविध प्रकारको मनोहर लीला प्रारम्भ की। उन्हें देखनेके लिये वहाँ नगरके सभी बालक, वृद्ध, पुरुष एवं स्त्रियाँ सहसा आ पहुँचे ॥ 20-21 ॥
हे मुने! उत्तम गीतको सुनकर तथा उस मनोहर नृत्यको देखकर सभी लोग उस समय सहसा मोहित हो गये और मेना भी मोहित हो उठीं ॥ 22 ॥
इसके बाद उनकी लीलासे प्रसन्न मनवाली मैना शीघ्र ही स्वर्णपात्रमें रखे हुए रत्नोंको उन्हें प्रीतिपूर्वक देनेके लिये गयीं ॥ 23 ॥
उन्होंने उन रत्नोंको ग्रहण नहीं किया और उन पार्वतीको ही भिक्षाके रूपमें माँगा। वे पुनः कौतुकसे उत्तम नृत्य तथा गान करने लगे ॥ 24 ॥
उनका वचन सुनकर विस्मित हुई मेना बहुत क्रुद्ध हो गयीं। उन्होंने भिक्षुकको भत्र्त्सना की और उसे बाहर निकालनेकी इच्छा की ।। 25 ll
इसी समय पर्वतराज हिमालय गंगा स्नानकर वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने मनुष्यरूप धारण किये हुए उस भिक्षुकको सामने आँगनमें स्थित देखा ॥ 26 ॥ तब मेनाके मुखसे वह सारा वृत्तान्त सुनकर उन्होंने भी बड़ा क्रोध किया और उस भिक्षुकको बाहर निकालनेके लिये अपने सेवकोंको आज्ञा दो ॥ 27 ॥
मुनिसत्तम प्रलयाग्निके समान जलते हुए तेजसे अत्यन्त दुस्सह उस भिक्षुकको बाहर निकालनेमें कोई भी समर्थ नहीं हुआ। उसके बाद हे तात! अनेक | प्रकारकी लीला करनेमें उस भिकनेको अपना अनन्त प्रभाव दिखलाया ।। 28-29 ॥हिमालयने शीघ्रतासे उसे विष्णुरूपधारी, फिर ब्रह्मारूप और थोड़ी देरमें सूर्यरूप धारण किये हुए देखा। हे तात! इसके थोड़ी ही देर बाद उसको अत्यन्त अद्भुत एवं परम तेजस्वी रुद्ररूप धारणकर पार्वतीके साथ मनोहर हास करते हुए देखा ॥ 30-31 ॥
इस प्रकार उन्होंने वहाँ उसके अनेक सुन्दर रूपोंको देखा और वे आनन्दसे विभोर हो विस्मित हो उठे ॥ 32 ॥
इसके बाद सुन्दर लीला करनेवाले उस भिक्षुने शैल एवं मेनासे केवल पार्वतीको ही भिक्षारूपमें माँगा और अन्य कुछ भी ग्रहण नहीं किया ॥ 33 ॥
पार्वतीके वाक्योंसे प्रेरित होकर भिक्षुरूप धारण करनेवाले परमेश्वर इसके बाद अन्तर्धान हो गये और शीघ्र ही अपने स्थानको चले गये ll 34 ॥
तब मेना एवं हिमालयको उत्तम ज्ञान हुआ कि सर्वव्यापी शिव हम दोनोंको ठगकर अपने स्थानको चले गये ॥ 35 ॥
हमें अपनी इस तपस्विनी कन्या पार्वतीको उन्हें प्रदान कर देना चाहिये था - ऐसा विचार करके शिवजीमें उन दोनोंकी उत्कट भक्ति हो गयी ॥ 36 ॥ इस प्रकारकी महालीलाएँ करके शिवजीने पार्वतीसे भक्तोंको आनन्द देनेवाला विवाह प्रेमपूर्वक विधि विधानके साथ किया ॥ 37 ॥
हे तात! इस प्रकार मैंने पार्वतीके अनुरोधको |पूर्ण करनेवाला शिवका सुनतक नट नामक अवतार आपसे कहा ॥ 38 ॥
[हे] सनत्कुमार!] मेरे द्वारा कहा गया यह आख्यान अत्यन्त श्रेष्ठ तथा पवित्र है, जो भी इसे प्रेमपूर्वक सुनता है, वह सुखी होकर सद्गति प्राप्त कर लेता है ।। 39 ।।