ऋषिगण बोले- हे महाभाग व्यासशिष्य सूतजी! आपको नमस्कार है। अब आप परम उत्तम भस्म माहात्म्यका विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये ॥ 1 ॥ भस्ममाहात्म्य, रुद्राक्षमाहात्म्य तथा उत्तम नाममाहात्म्य - इन तीनोंका परम प्रसन्नतापूर्वक प्रतिपादन कीजिये और हमारे हृदयको आनन्दित कीजिये ॥ 2 ॥
सूतजी बोले- हे महर्षियो! आप लोगोंने बहुत उत्तम बात पूछी है; यह समस्त लोकोंके लिये हितकारक विषय है आप लोग महाधन्य, पवित्र तथा अपने कुलके भूषणस्वरूप हैं ॥ 3 ॥
इस संसारमें कल्याणकारी परमदेवस्वरूप भगवान् शिव जिनके देवता है, ऐसे आप सबके लिये यह शिवकी कथा अत्यन्त प्रिय है ॥ 4 ॥
वे ही धन्य और कृतार्थ हैं, उन्हींका शरीर धारण करना भी सफल है और उन्होंने ही अपने कुलका उद्धार कर लिया है, जो शिवकी उपासना करते हैं ॥ 5 ॥
जिनके मुखमें भगवान् शिवका नाम है, जो अपने मुखसे सदा शिव शिव इस नामका उच्चारण | करते रहते हैं, पाप उनका उसी तरह स्पर्श नहीं करते, जैसे खदिर वृक्षके अंगारको छूनेका साहस कोई भी प्राणी नहीं कर सकता ॥ 6 ॥हे शिव! आपको नमस्कार है (श्रीशिवाय नमस्तुभ्यम्) - जिस मुखसे ऐसा उच्चारण होता है, वह मुख समस्त पापोंका विनाश करनेवाला पावन तीर्थ बन जाता है। जो मनुष्य प्रसन्नतापूर्वक उस मुखका दर्शन करता है, उसे निश्चय ही तीर्थसेवनजनित फल प्राप्त होता है । ll 7-8 ।।
हे ब्राह्मणो! शिवका नाम, विभूति (भस्म) तथा | रुद्राक्ष—ये तीनों त्रिवेणीके समान परम पुण्यवाले माने गये हैं। जहाँ ये तीनों शुभतर वस्तुएँ सर्वदा रहती हैं, | उसके दर्शनमात्रसे मनुष्य त्रिवेणीस्नानका फल पा लेता है । ll 9-10 ॥
जिसके शरीरपर भस्म, रुद्राक्ष और मुखमें शिवनाम - ये तीनों नित्य विद्यमान रहते हैं, उसका पापविनाशक दर्शन संसारमें दुर्लभ है ॥ 11 ॥
उस पुण्यात्माका दर्शन त्रिवेणीके समान ही है. भस्म, रुद्राक्ष तथा शिवनामका जप करनेवाले और त्रिवेणी–इन दोनोंमें रंचमात्र भी अन्तर नहीं है-ऐसा जो नहीं जानता, वह निश्चित ही पापी है; इसमें सन्देह नहीं है ॥ 12 ॥
जिसके मस्तकपर विभूति नहीं है, अंगमें रुद्राक्ष नहीं है और मुखमें शिवमयी वाणी नहीं है, उसे अधम व्यक्तिके समान त्याग देना चाहिये ॥ 13 ॥
भगवान् शिवका नाम गंगा है। विभूति यमुना मानी गयी है तथा रुद्राक्षको सरस्वती कहा गया है। इन तीनोंकी संयुक्त त्रिवेणी समस्त पापोंका नाश करनेवाली है ॥ 14 ॥ बहुत पहलेकी बात है, हितकारी ब्रह्माने जिसके | शरीरमें उक्त ये तीनों - त्रिपुण्ड्र, रुद्राक्ष और शिवनाम संयुक्त रूपसे विद्यमान थे, उनके फलको तुलाके पलड़े में एक ओर रखकर, त्रिवेणीमें स्नान करनेसे उत्पन्न फलको | दूसरी ओरके पलड़े में रखा और तुलना की, तो दोनों बराबर ही उतरे। अतएव विद्वानोंको चाहिये कि इन तीनोंको सदा अपने शरीरपर धारण करें ।। 15-16 ॥ उसी दिनसे ब्रह्मा, विष्णु आदि देव भी दर्शनमात्रसे पापोंको नष्ट कर देनेवाले इन तीनों (रुद्राक्ष, विभूति और शिवनाम) को धारण करने लगे ॥ 17 ॥ऋषिगण बोले- हे सुव्रत! [ भस्म, रुद्राक्ष और शिवनाम] इन तीनोंको धारण करनेसे इस प्रकार उत्पन्न होनेवाले फलका वर्णन तो आपने कह दिया है, किंतु अब आप विशेष रूपसे उनके माहात्म्यका वर्णन करें ।। 18 ।।
सूतजी बोले- ज्ञानियोंमें श्रेष्ठ हे महाप्राज्ञ ! हे शिवभक्त ऋषियो और विप्रो ! आप सब सद्भक्ति तथा आदरपूर्वक उक्त भस्म, रुद्राक्ष और शिवनाम - इन तीनोंका माहात्म्य सुनें ॥ 19 ॥
शास्त्रों, पुराणों और श्रुतियोंमें भी इनका माहात्म्य अत्यन्त गूढ़ कहा गया है। हे विप्रो! आप सबके स्नेहवश इस समय मैं [उस रहस्यको खोलकर ] प्रकाशित करने जा रहा हूँ ॥ 20 ॥
हे श्रेष्ठ ब्राह्मणो! इन तीनोंकी महिमाको सदसद्विलक्षण भगवान् महेश्वरके बिना दूसरा कौन भलीभाँति जान सकता है। इस ब्रह्माण्डमें जो कुछ है, वह सब तो केवल महेश्वर ही जानते हैं ॥ 21 ॥
हे विप्रगण ! मैं अपनी श्रद्धा-भक्तिके अनुसार संक्षेपसे भगवन्नामकी महिमाका कुछ वर्णन करता हूँ। आप सबलोग प्रेमपूर्वक उसे सुनें। यह नाम माहात्म्य समस्त पापोंको हर लेनेवाला सर्वोत्तम साधन है ।। 22 ll
'शिव' इस नामरूपी दावानलसे महान् पातकरूपी पर्वत अनायास ही भस्म हो जाता है-यह सत्य है, सत्य है; इसमें संशय नहीं है ॥ 23 ॥
हे शौनक ! पापमूलक जो नाना प्रकारके दुःख हैं, वे एकमात्र शिवनाम (भगवन्नाम) से ही नष्ट होनेवाले हैं; दूसरे साधनोंसे सम्पूर्ण यत्न करनेपर भी पूर्णतया नष्ट नहीं होते हैं ॥ 24 ॥
जो मनुष्य इस भूतलपर सदा भगवान् शिवके नामोंके जपमें ही लगा हुआ है, वह वेदोंका ज्ञाता है, वह पुण्यात्मा है, वह धन्यवादका पात्र है तथा वह विद्वान् माना गया है ॥ 25 ॥
हे मुने! जिनका शिवनामजपमें विश्वास है, उनके द्वारा आचरित नाना प्रकारके धर्म तत्काल फल देनेके लिये उत्सुक हो जाते हैं ॥ 26 ॥हे महर्षे। भगवान् शिवके नामसे जितने नष्ट होते हैं, उतने पाप मनुष्य इस भूतलपर कर ही नहीं सकता ॥ 27 ॥ हे मुने! ब्रह्महत्या जैसे पापोंकी समस्त अपरिमित राशियाँ शिवनाम लेनेसे शीघ्र ही नष्ट हो जाती है॥ 28 ॥ | समुद्रको पार करते हैं, उनके जन्म-मरणरूप संसारके मूलभूत वे सारे पाप निश्चय ही नष्ट हो जाते हैं ॥ 29 जो शिवनामरूपी नौकापर आरूढ़ होकर संसार हे महामुने । संसारके मूलभूत पातकरूपी
वृक्षका शिवनामरूपी कुठारसे निश्चय ही नाश हो जाता है ॥ 30 ॥
जो पापरूपी दावानलसे पीड़ित हैं, उन्हें शिवनामरूपी अमृतका पान करना चाहिये। पापक दावानलसे दग्ध होनेवाले लोगोंको उस शिवनामामृतके बिना शान्ति नहीं मिल सकती ॥ 31 ॥
जो शिवनामरूपी सुधाकी वृष्टिजनित धारायें गोते लगा रहे हैं, वे संसाररूपी दावानलके बीच में खड़े होनेपर भी कदापि शोकके भागी नहीं होते ॥ 32 ॥
जिन महात्माओंके मनमें शिवनामके प्रति बड़ी भारी भक्ति है, ऐसे लोगोंकी सहसा और सर्वथा मुक्ति होती है ॥ 33 ॥
हे मुनीश्वर ! जिसने अनेक जन्मोंतक तपस्या की है, उसीकी शिवनामके प्रति भक्ति होती है, जो समस्त पापोंका नाश करनेवाली है ॥ 34 ॥
जिसके मनमें भगवान् शिवके नामके प्रति कभी खण्डित न होनेवाली असाधारण भक्ति प्रकट हुई है, | उसीके लिये मोक्ष सुलभ है - यह मेरा मत है ॥ 35 जो अनेक पाप करके भी भगवान् शिवके नाम जपमें आदरपूर्वक लग गया है, वह समस्त पापोंसे मुक्त हो ही जाता है; इसमें संशय नहीं है ॥ 36 ॥ जैसे वनमें दावानलसे दग्ध हुए वृक्ष भस्म हो जाते हैं, उसी प्रकार शिवनामरूपी दावानलसे दग्ध होकर उस समयतकके सारे पाप भस्म हो जाते हैं ॥ 37 ॥
हे शौनक ! जिसके अंग नित्य भस्म लगानेसे पवित्र हो गये हैं तथा जो शिवनामजपका आदर करने लगा है, वह घोर संसारसागरको भी पार कर ही लेता है ॥ 38 ॥ब्राह्मणोंका धनहरण और अनेक ब्राह्मणोंकी हत्या करके भी जो आदरपूर्वक शिवके नामका जप करता है, वह पापोंसे लिप्त नहीं होता है [ अर्थात् उसे किसी भी प्रकारका पाप नहीं लगता है] ॥ 39 ॥
सम्पूर्ण वेदोंका अवलोकन करके पूर्ववर्ती महर्षियोंने यही निश्चित किया है कि भगवान् शिवके नामका जप संसारसागरको पार करनेके लिये सर्वोत्तम उपाय है ॥ 40 ॥
हे मुनिवरो ! अधिक कहनेसे क्या लाभ, मैं शिव-नामके सर्वपापहारी माहात्म्यका वर्णन एक ही श्लोकमें करता हूँ ॥ 41 ॥
भगवान् शंकरके एक नाममें भी पापहरणकी जितनी शक्ति है, उतना पातक मनुष्य कभी कर ही नहीं सकता ॥ 42 ॥
हे मुने! पूर्वकालमें महापापी राजा इन्द्रद्युम्नने शिवनामके प्रभावसे ही उत्तम सद्गति प्राप्त की थी ॥ 43 ॥
इसी तरह कोई ब्राह्मणी युवती भी जो बहुत पाप कर चुकी थी, शिवनामके प्रभावसे ही उत्तम गतिको प्राप्त हुई ॥ 44 ॥
हे द्विजवरो! इस प्रकार मैंने आपलोगोंसे भगवन्नामके उत्तम माहात्म्यका वर्णन किया है। अब आप लोग भस्मका माहात्म्य सुनें, जो समस्त पावन | वस्तुओंको भी पवित्र करनेवाला है ॥ 45 ॥