सूतजी बोले -[उसके बाद] शिवजी भी अपने गणको साथ लेकर राजाके कल्याणको कामनासे आदरपूर्वक वहाँ गये और उसकी रक्षाके लिये गुप्तरूपसे स्थित हो गये ॥ 1 ॥ इसी अवसरपर कामरूपेश्वरने वहाँ पार्थिव लिंगके आगे गहन ध्यान करना प्रारम्भ किया ॥ 2 ॥
तभी किसीने जाकर राक्षससे कह दिया कि वह राजा आपके निमित्त कुछ अभिचारकर्म कर रहा है ॥ 3 सूतजी बोले- यह सुनकर राक्षस कुपित हो उठा और उसे मारनेकी इच्छासे हाथमें तलवार लेकर | राजाके समीप गया ॥ 4 ॥
वहाँ जो पार्थिव शिवलिंग आदि रखा हुआ था, उसे देखकर और उसके स्वरूपको देखकर उसने | निश्चय कर लिया कि यह मेरे लिये कुछ कर रहाहै। अतः मैं आज सभी सामग्रीसहित इसे बलपूर्वक मार डालूँगा । इस प्रकार विचार करके अत्यन्त क्रुद्ध हो राक्षसने राजासे कहा- ॥ 5-6 ॥
भीम बोला- हे दुष्टात्मा राजा! तुम इस समय क्या कर रहे हो? यह सच सच बता दो, तो तुम्हें नहीं मारूंगा, अन्यथा निश्चय ही तुम्हारा वध कर दूँगा ॥ 7 ॥
सूतजी बोले- उसका यह वचन सुनकर शिवमें विश्वासपरायण वह कामरूपेश्वर शीघ्र ही अपने मनमें यह विचार करने लगा—जो होनहार है, वह होकर रहेगा, उसको टालनेवाला कोई नहीं है, यहाँ तो सब कुछ प्रारब्धके अधीन है और शिवको ही प्रारब्ध कहा गया है। वे दयालु शिवजी निश्चितरूपसे इस पार्थिव लिंगमें भी उपस्थित हैं। क्या वे मेरे लिये कुछ नहीं करेंगे ? यह राक्षस [ उनके सामने] क्या है? वे अपनी की हुई प्रतिज्ञा पूर्ण करेंगे; क्योंकि भगवान् शिव वेदमें सत्यप्रतिज्ञ कहे गये हैं। [वे स्वयं कहते हैं] जब कोई अत्यन्त निर्दयी व्यक्ति मेरे भक्तको पीड़ित करता है, तो मैं उसकी रक्षाके लिये उस दुष्टका वध कर देता हूँ, इसमें संशय नहीं है॥ 8- 12ll
इस प्रकार धैर्य धारणकर भगवान् शिवका ध्यान करते हुए वह राजा अपने मनमें उत्तम भक्तिपूर्वक प्रार्थना करने लगा। हे महाराज मैं आपका है, जैसी आपकी इच्छा हो, वैसा कीजिये। मैं यह सत्य कहता हूँ कि आप मेरा कल्याण कीजिये ।। 13-14 ।।
इस प्रकार मनमें ध्यान करके सत्यपाशमें बँधे हुए उस राजाने राक्षसका तिरस्कार करते हुए सत्य वचन कहा- ॥ 15 ॥
राजा बोला - [हे राक्षस!] मैं अपने भक्तोंकी रक्षा करनेवाले, समस्त चराचरके स्वामी तथा निर्विकार भगवान् शिवका भजन कर रहा हूँ ॥ 16 ll
सूतजी बोले- उस कामरूपेश्वरका यह वचन सुनकर क्रोधसे काँपते हुए शरीरवाले उस भीमने यह वचन कहा- ॥ 17 ॥
भीम बोला- मैं तुम्हारे शंकरको जानता हूँ, वह मेरा क्या कर लेगा, जिसे मेरे पिताके भाई (रावण) ने दासकी भाँति स्थापित किया था ॥ 18 ॥तुम उसीके बलका सहारा लेकर मुझे जीतना चाहते हो, तो अब तुम सब कुछ जीत चुके! इसमें सन्देह नहीं करना चाहिये। जबतक तुम्हारा पालन करनेवाला | वह शिव मेरे सामने आकर दिखायी नहीं पड़ता, तबतक तुम उसे स्वामी मानकर उसकी सेवा करते रहो, अन्यथा कभी नहीं कर सकोगे ॥ 19-20 ॥
हे राजन्! उसे मेरे द्वारा देख लेनेसे सब कुछ भलीभाँति स्पष्ट हो जायगा, अतः तुम शिवजीके इस रूपको दूर कर दो। अन्यथा तुम्हें आज अवश्य हो भय होगा, इसमें संशय नहीं है, भयंकर पराक्रमवाला मैं तुम्हारे स्वामीको तीक्ष्ण चपेटा मारूँगा ॥ 21-22 ॥
सूतजी बोले- उसका यह वचन सुनकर शिवके प्रति आस्थावाले राजा कामरूपेश्वरने भीमसे शीघ्र ही यह दृढ़ वचन कहा- ॥ 23 ॥
राजा बोला- हे राक्षस! मैं नीच एवं दुष्ट जो भी हूँ, किंतु शिवजीका त्याग कभी नहीं करूँगा और मेरे स्वामी भी सर्वश्रेष्ठ हैं, वे मेरा त्याग कभी नहीं करेंगे ॥ 24 ॥
सूतजी बोले- इस प्रकार उस शिवभक्त राजाकी बात सुनकर उस भीम राक्षसने हँसकर शीघ्र ही उस राजासे कहा- ॥ 25 ॥
भीम बोला—मत्त होकर वह नित्य भीख माँगता रहता है, उसे तो अपने स्वरूपका भी ज्ञान नहीं है। भक्तोंकी रक्षा करनेमें योगियोंकी क्या निष्ठा होगी ? ॥ 26 ॥
ऐसा विचारकर तुम सब प्रकारसे उससे दूर रहो, मैं और तुम्हारा वह स्वामी [ परस्पर] युद्ध करेंगे ॥ 27 ॥ सूतजी बोले- उसके बाद इस प्रकार कहे | जानेपर शिवभक्त तथा दृढ़ व्रतवाले उस श्रेष्ठ राजाने निडर होकर सदा जगत्को दुःख देनेवाले भीमसे कहा- ।। 28 ।। राजा बोला—हे दुष्टात्मा राक्षस! सुनो, मैं | ऐसा कभी नहीं कर सकता। तुम जो यह विकर्म करते हो, उसमें तुम समर्थ कहाँसे हुए हो ? ॥ 29 ॥
सूतजी बोले- उसके इस प्रकार कहने पर सेना लेकर [आये हुए] भीमने उस राजाको धमका करके | अपने भयंकर कृपाणसे पार्थिव लिंगपर प्रहार कियाऔर राक्षसोंके साथ उस महाबली भीमने हँसकर | कहा- अब तुम भक्तोंको सुख देनेवाला अपने स्वामीका बल देखो । ll 30-31 ll
हे द्विजो ! जबतक कि उस तलवारने पार्थिवका स्पर्श भी नहीं किया, तबतक उस पार्थिव लिंगसे शिवजी स्वयं प्रकट हो गये ॥ 32 ॥
[शिवजी बोले-]'हे भीम! देखो, मैं ईश्वर हूँ, मैं [राजाकी] रक्षाके लिये प्रकट हुआ हूँ। मेरा पहलेसे ही यह व्रत है कि मैं सदा भक्तोंकी रक्षा करता हूँ। अतः अब तुम भक्तोंको सुख देनेवाले मेरे बलको शीघ्र | देखो' ऐसा कहकर शिवजीने अपने पिनाक धनुषसे उसकी तलवारके दो टुकड़े कर दिये ।। 33-34 ।।
तब उस राक्षसने पुनः अपना त्रिशूल फेंका। शिवजीने उस दुष्टके उस त्रिशूलके भी सैकड़ों टुकड़े कर दिये ।। 35 ।।
हे द्विजो ! तब उस दुष्टने शिवजीके ऊपर अपनी शक्तिसे प्रहार किया। शिवजीने शीघ्रतासे अपने बाणोंसे उसके भी लाखों टुकड़े कर दिये ॥ 36 ॥
तत्पश्चात् उसने शिवजीके ऊपर पट्टिशसे प्रहार किया, तब शिवजीने त्रिशूलसे पट्टिशको तिलके समान खण्ड-खण्ड कर दिया ॥ 37 ॥
उसके बाद शिवके गणों तथा राक्षसोंके बीच घोर युद्ध होने लगा, जो देखनेवालोंको भय उत्पन्न करनेवाला था ॥ 38 ॥
इसके बाद तो उससे सारी पृथ्वी क्षणभरमें व्याकुल हो उठी और पर्वतोंसहित सभी समुद्र विक्षुब्ध हो उठे। सभी देवता तथा ऋषि अत्यन्त व्याकुल हो गये और आपसमें कहने लगे कि हमलोगोंने व्यर्थ ही शिवसे प्रार्थना की ॥ 39-40 ll
इसी बीच नारदजी आकरके दुःखको नष्ट करनेवाले शिवजीसे हाथ जोड़कर तथा सिर झुकाकर प्रार्थना करने लगे ॥ 41 ॥ नारदजी बोले - हे नाथ! हे विभ्रमकारक! आप क्षमा करें। क्या तृणपर कुठारका प्रयोग करना उचित है ? अतः आप शीघ्र ही इसका वध कीजिये 42 ॥ तब नारदके द्वारा) इस प्रकार प्रार्थना किये जानेपर प्रभु शिवने अपने हुंकाररूपी अस्त्रसे समस्त राक्षसोंको भस्म कर दिया ।। 43 ।।हे मुने। इस प्रकार शिवजीके द्वारा वे सभी राक्षस क्षणमात्रमें सभी देवताओंके देखते-देखते दग्ध कर दिये गये। जिस प्रकार दावानलसे उत्पन्न अग्नि वनको जला डालती है, वैसे ही कुपित शिवजीने राक्षसोंकी सेनाको क्षणभरमें जला डाला ।। 44-45 ।।
उस समय किसीको ज्ञात न हुआ कि भीमकी भस्म कौन-सी है! वह परिवारसहित भस्म हो गया, उसका नाम भी कहीं सुनायी नहीं पड़ता था ॥ 46 ॥ इसके बाद शिवजीकी कृपासे सभी मुनीश्वरों तथा इन्द्र आदि सभी देवताओंको शान्ति प्राप्त हुई और सारा जगत् स्वस्थ हो गया ॥ 47 ॥
उस समय महेश्वरके क्रोधकी ज्वाला एक वनसे दूसरे वनतक फैलने लगी। इससे राक्षसोंकी वह सम्पूर्ण भस्म वनमें सभी जगह व्याप्त हो गयी ॥ 48 ॥
उससे अनेक कार्य सम्पन्न करनेवाली ऐसी ओषधियाँ उत्पन्न हुईं, जिनके प्रभावसे मनुष्योंके रूप तथा वेष भिन्न-भिन्न रूपमें बदल जाते हैं ॥ 49 ॥
हे द्विजो उन औषधियोंसे भूत, प्रेत, पिशाच आदि दूर भाग जाते हैं, जगत्का ऐसा कोई कार्य नहीं है, जो उन औषधियोंसे न होता हो ॥ 50 ॥
उसके बाद उन देवताओं एवं ऋषियोंने शिवजीसे विशेषरूपसे प्रार्थना की- संसारको सुख देनेके लिये आप स्वामीको अब यहीं निवास करना चाहिये। निर्बल तथा पराक्रमहीन लोगोंको दुःख | देनेवाला यह बड़ा कुत्सित देश है, आपके दर्शनसे उन लोगोंका कल्याण होगा। आप भीमशंकर नामसे प्रसिद्ध होंगे और सब कुछ सिद्ध करेंगे। सभी आपत्तियोंको दूर करनेवाला यह लिंग सदा पूज्य होगा । ll 51-53 ॥
सूतजी बोले- इस प्रकार प्रार्थना किये जानेपर लोकका हित करनेवाले, स्वतन्त्र तथा भक्तवत्सल शिवजी प्रेमपूर्वक वहाँपर स्थित हो गये ॥ 54 ll